24-09-2022, 01:11 PM
(23-09-2022, 12:47 AM)Ravi Patel Wrote: मैं कितनी ही देर वहाँ ऐसे ही लेती हुई तेज -तेज साँसे लेती रही मेरी हवस का की आग अब बुझ चुकी थी और अब मुझे अपनी हालत देखकर शर्म आ रही नितिन भी अब मेरी योनि से हटकर खड़ा हो गया और अपना ट्रेक-सूट उठाकर पहनने लगा । मैं भी धीरे -2 अपनी जगह से उठी मेरा जिस्म पूरा थका हुआ लग रहा था और मैं पसीने से भीगी हुई थी । जब मुझे अपनी हालत का होश आया तो मैंने अपनी ब्रा को ठीक किया
और खड़े होकर अपनी पेन्टी और वॉक-पेंट्स ऊपर चढ़ा ली । सामने नितिन खड़ा होकर मुस्कुरा रहा वो मेरी हालत देखकर खुश हो रहा था और मैं उसके सामने सिर्फ ब्रा मे खड़ी होकर शर्मिंदा हो रही थी अपने जिस्म को उसकी नज़रों से बचाने के लिए मैंने उसकी ओर से घूम गई और अपनी पीठ उस ओर करके अपना वॉक-टॉप उठाकर पहहने लगी नितिन अभी भी पीछे से अपनी नजरे मेरी पीठ और कमर पर गड़ाएं हुए था । मैंने जल्दी -2 अपने कपड़े पहने और अपने शरीर पर लगी मिट्टी और घास कर तिनको को साफ करने लगी । मुझे वहाँ रुकने मे इतनी शर्मिंदगी हो रही थी की मैं क्या बताऊ मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहती थी इसलिए अपने आप को सहज करके मैंने नितिन की ओर देखा वो पहले से ही मुझे देख रहा था ।
मैं - ये सब ठिक नहीं हो रहा नितिन ।
नितिन(अनजान बनते हुए ) - क्या पदमा ?
मैं - तुम सब जानते हो । ये सही नहीं तुम्हें मुझसे नहीं मिलना चाहिए , मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और तुम भी शादीशुदा हो ।
नितिन (लापरवाही से )- तो क्या हुआ पदमा ? शादीशुदा लोग आपस मे मिल नहीं सकते क्या ?
मैं - तुम समझते क्यों नहीं नितिन ? अगर कुछ ऊँच - नीच हो गई तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर मैं कहीं की नहीं रहूँगी , इसलिए आज के बाद तुम मुझसे कभी मत मिलना और मेरे घर भी मत आना ।
नितिन मेरी बात सुनकर मेरे करीब आ गया और कहा -"तुम ज्यादा परेशान ना हो पदमा , कुछ नहीं होगा । "
मैं - नहीं नितिन ये सब गलत है और हमे इसे रोकना होगा ।
नितिन - पदमा मैं क्या करूँ तुम हो ही इतनी सुंदर तुम्हें देखते ही मैं अपने होश-हवाश खो देता हूँ ।
नितिन की बात सुनकर मैंने अपनी नजरे नीची करते हुए बोली - "तुम ये सब बातें ना कहो नितिन , बोहोत देर हो गई है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।"
नितिन - ठीक है पर तुम्हें अपना प्रोमिस तो याद है ना ?
मैं - कौन सा प्रोमिस ?
नितिन - ये भी भूल गई , वही प्रोमिस जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले मुझसे मजे लेते हुए किया ।
मैं ( थोड़ा गुस्से से ) - मजे लेते हुए क्या मतलब है तुम्हारा ?
नितिन - अरे तुम तो नाराज हो गई मैं तो मजाक कर रहा था मेरा मतलब उस फाइल से था वो तुम मुझे कब तक ला सकती हो ।
मैं - मुझे नहीं पता देखूँगी , वैसे तुम्हें वो क्यूँ चाहिए ?
नितिन - मेरे लिए वो फाइल बोहोत जरूरी है पदमा , एक वही जरिया है मेरे लिए शहर मे वापिस आने का ।
मैं - तो तुम वो फाइल अशोक से ही क्यों नहीं ले लेते ।
नितिन - नहीं पदमा , उसे तो इसकी खबर भी नहीं लगनी चाहिए वो इसे मुझे कभी देगा
मैं(हैरानी से ) - क्योँ ?
नितिन - क्योंकि मेरे यहाँ आने से उसके हाथ से ग्रुपहेड की पॉजिशन चली जाएगी । बस तुम मुझे वो फाइल ला दो पदमा मैं तुम्हें सब कुछ समझा दूंगा ।
मैं - ठीक है कोशिश करूंगी पर अभी मुझे जाना है देर हो रही है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।
नितिन - हाँ मैं भी चलता हूँ मुझे भी देर हो रही है ।
मैं - रुको तुम अभी , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद जाना अगर किसी ने हमे साथ मे निकलते हुए देख लिया तो गजब हो जाएगा ।
नितिन - तुम घबराओ मत पदमा , मैं ग्राउंड से नहीं जाऊँगा ।
मैं ( थोड़ी हैरानी से )- तो फिर कहाँ से ........ ?
नितिन - मैं बाग को पार करके सीधे पुरानी फाटक से निकलूँगा , वहीं मेरी बाइक खड़ी है ।
इतना कहकर नितिन जाने लगा अचानक मुझे कल वाली बात ध्यान आई और मैंने नितिन को टोकते हुए कहा - " नितिन ।"
मेरी आवाज सुनकर नितिन वापस मुड़ा पर कुछ बोला नहीं ।
मैं - क्या तुम कल मेरी गली मे किसी के घर आए थे ?
मेरी बात सुनकर नितिन ने पहले तो मुझे एक बार तिरछी निगाहों से देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोला - " फाइल तैयार रखना , मैं लेने आऊँगा । " और बस इतना कहकर तेजी से उन झाड़ियों से निकलकर भाग के अंदर भाग गया ।
मैं वहाँ अबोध सी ऐसे ही खड़ी रह गई फिर मुझे भी होश आया और मैं वहाँ उन झाड़ियों के बीच से धीरे -धीरे निकलने लगी झाड़ियों से निकलकर मैं बाग मे से होते हुए ग्राउंड पर पहुँची । अब तक सूरज भी पूरा निकल आया था मैंने छिपकर देखा ग्राउंड पूरा खाली था लोग घूमकर जा चुके थे । मैं जल्दी से ग्राउंड से अपने घर की ओर भागी । "देर बोहोत हो चुकी है, अशोक ऑफिस के लिए निकलने वाले होंगे " - इसका अंदाजा मुझे हो चुका था । मुझे इतनी देर से घर पर ना पाकर पता नही वो क्या-2 सवाल पूछेंगे ? इन सब सवालों को सोचते हुए मैं अपने घर पहुँची और गेट पर जाकर डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद अशोक ने आकर दरवाजा खोला । मैं बोहोत हाफ रही थी , साँस चढ़ी हुई थी । मुझे देखते ही अशोक बोले - " अरे कहाँ रह गई थी तुम ? "
मैं (अपनी घबराहट छिपाते हुए ) - "जी वो बस आज पहला दिन था ना तो मुझे जाने मे देर हो गई और फिर वहाँ जाकर वक्त का पता ही नहीं चला । "
मेरे चेहरे पर कितने ही भाव एक साथ उमड़ रहे थे जिन्हे देखकर अशोक ने कहा - "चलो कोई बात नहीं आओ अंदर चलो तुम्हें तो बोहोत पसीना आया हुआ है लगता है आज बोहोत मेहनत की है । "
अशोक की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई अब मैं उन्हे क्या बताती की मैंने कहाँ मेहनत की है और अंदर आकर सीधे हॉल मे सोफ़े पर पसर गई । मुझे बोहोत थकान हो रह थी । अशोक - " अच्छा मैं चलता हूँ तुम अपना ध्यान रखना । " मैं अशोक की बात सुनकर सोफ़े से उठी और कहा - " रुकिए मैं आपका नाश्ता बना देती हूँ । "
अशोक - नहीं रहने दो , देर हो जाएगी । मैं ऑफिस मे कर लूँगा ।
इतना कहकर अशोक ने अपना ऑफिस-बेग उठाया और घर से चले गए । अशोक के जाने के बाद मैं वापस वहीं सोफ़े पर बैठ गई । मुझे आज इस बात का बोहोत दुख था की इस नितिन के कारण मैं अपने पति को नाश्ता भी ना करवा सकी , आज पहली बार मैं अपने पत्नी धर्म मे चूक गई । यही सब सोचते हुए मैं कितनी ही देर वहीं सोफ़े पर लेटी रही , और उस फाइल के बारे मे सोचने लगी जिसकी नितिन अभी बात कर रहा था "क्या अशोक ही नितिन के आउट ऑफ टाउन जाने का कारण है , क्या ग्रुप हेड बनने के लिए ही अशोक ,नितिन को यहाँ नहीं आने दे रहे जितना मैं अशोक को जानती हूँ उसके हिसाब से तो अशोक ऐसे नहीं है पर नितिन ने जो कुछ कहा वो भी झूठ नहीं लग रहा था पता नहीं क्या सच है क्या झूठ कुछ समझ नहीं आ रहा । " मैं इन्ही सब उलझनों मे उलझी थी ।
फिर जब पसीना सूख गया तो मैं अपने सोफ़े से उठकर बाथरूम की ओर गई , नीचे जमीन पर लेटने की वजह से मिट्टी के कण शरीर पर लगे हुए थे । मैं नहाना चाहती थी इसलिए बाथरूम मे जाकर मैंने तुरंत अपना वॉक सूट निकाल दिया और शावर खोलकर नहाने लगी ।
शावर की ताजी पानी की बुँदे मेरे जिस्म पर दमकने लगी और मैं उनका आनंद उठाते हुए अपनी आँखे बंद करके उनका मजा लेने लगी । नहाते हुए मेरे दिमाग मे कितनी ही बाते घूमने लगी जो मेरे साथ हुए आज और पिछले दिनों के वाक्यों को दोहरा रही थी । पता नहीं क्या खेल चल रहा था मेरे चारों ओर एक अनजान आदमी जो कहने को मेरे पति का बॉस है पर अपने पति से ज्यादा मैं उसे जानने लगी थी , एक 19 साल का जवान लड़का जिसे मैं पिछले 4 साल से जानती थी मेरे लिए वो नहीं रहा जो पहले हुआ करता था मेरे भाव उसके लिए बिल्कुल बदल चुके थे और सबसे आखिर मे एक 50 साल का टेलर जिसके हाथों का स्पर्श ही मेरी कामअग्नि को हवा देने के लिए काफी था और ये सब बस जनवरी की उस सुबह से शुरू हुआ जब मैं अपनी छत पर खड़ी होकर धूप सेक रही थी उसी दिन मैंने पहली बार नितिन को देखा था । ना जाने कब ये बाते सोचते हुए मैंने नहा लिया और फिर शावर बंद करके एक नई ब्रा और पेन्टी पहनने लगी क्योंकि पहले वाली पेन्टी तो पूरी चुतरस से भीगी हुई थी और ब्रा भी गंदी हो गई थी ।
अपने कपड़े पहनकर मैं बाथरूम से बाहर आई ।