03-04-2023, 10:56 AM
यह कहानी काल्पनिक है जिसका सत्य से कोई लेना देना नही। कहानी बहुत ही अच्छे विचार से बनाया गया है। कृपया इस कहानी को उत्तम सहयोग दे।
साल 1990
यह कहानी की शुरुआत होती है भोपाल के सेंट्रल जेल से। 28 साल की महिला जेल से बाहर निकलती है। सलवार कमीज में एक दूध सा रंग और दिलकश चेहरा। पांच साल जेल में रह चुकी इस महिला का नाम सुप्रिया है। सुप्रिया जो बहुत ही अच्छे और साफ दिल की औरत है। फिर क्यों उसे जेल जाना पड़ा ?
कहानी की शुरुआत होती है 5 साफ पहले जब उसने एक आदमी का कत्ल किया। वो आदमी उसका पति अनिल श्रीवास्तव था। अनिल जो एक बड़ा बिजनेसमैन था और बहुत ही नीच और खराब आदमी था। शराब और ड्रग्स की लत लगने से वो अक्सर सुप्रिया को मारता पीटता और कभी कभी हवेली के कोठरी में बंद करता। अनिल का दरअसल एक लड़की के साथ प्रेम संबंध था लेकिन सुप्रिया से शादी उसकी मजबूरी थी। अनिल के पिता ने सुप्रिया के साथ उसकी शादी करवाई और स्वर्गवास हो गए।
अनिल अक्सर सुप्रिया से तलाक लेने का दबाव उसपर बनाता लेकिन सुप्रिया मानने से साफ साफ इंकार करती। फिर क्या वो रोज जानवरो की तरह सुप्रिया को मारता और भद्दी भद्दी गालियां देता। एक दिन नशे की हालत में अनिल सुप्रिया को चाकू दिखाकर डरा रहा था। उसका इरादा अब सुप्रिया का कत्ल करने का था। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे धक्का दिया और अनिल के हाथ से चाकू छीन लिया। अनिल ने दुबारा उसपर हमला किया। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे गलती से चाकू से मार दिया।
सुप्रिया में कत्ल का इल्ज़ाम लगा। सुप्रिया लगातार अपना बचाव कोर्ट में किया लेकिन आखिर में जज साहब ने उसे 15 साल जेल की सजा सुनाई। सुप्रिया ने फिर भी हार नही मानी और कैसे लड़ती रही। आखिर में सबूत गवाह के तहत सुप्रिया निर्दोष साबित हुई । जज ने सुप्रिया को जेल में बिताए पांच साल सजा के बदले 25 लाख रुपए का मुहावजा दिया और बदले में एक सरकारी नौकरी भी दिलाई।
सुप्रिया ने 15 लाख रुपए लिया और नौकरी अपने सबसे वफादार नौकर सरजू के बेटे को दिलवाई।
सरजू जो अनिल के घर काम करता था। सरजू सुप्रिया का बहुत खयाल रखता था। सरजू की उमर 68 साल की थी। सरजू अक्सर बीमार रहने लगा और इसी के चलते अपने गांव चला गया।
जेल से छूटने के बाद सुप्रिया को घर नहीं मिला। कोई देने को तैयार नहीं था। सुप्रिया हताश हो गई। आखिर में सुप्रिया को सरजू को चिट्ठी मिली जिसमे सरजू ने उसे अपने गांव बुलाया।
सुप्रिया इस दुनिया से मिलो दूर सरजू के गांव चली गई। सरजू का गांव झारखंड में स्तिथ धनबाद शहर के अंतू में था। अंतू गांव वैसे बहुत ही पुराना और शहर से ज्यादा दूर था। सुप्रिया ने पास पैसे थे और अब घर भी मिल गया। सुप्रिया को घर मिलने में काफी दिक्कत हुई थी लेकिन सरजू ने व्यवस्था बना ली थी। सरजू के घर में दो कमरा था। एक में वो खुद रहता है और दूसरे में बेटा रहता था। सरजू के बेटे का नाम मोहन था। मोहन जो जब सुप्रिया के 15 लाख रुपए मिले तो सबसे पहले वो शहर चला गया और उन में से कुछ 5 लाख घर बनवाए दिल्ली में 7 लाख का घुस देकर नौकरी हासिल की और 2 लाख सरजू के देखभाल में डाले। सुप्रिया को उन पैसों की जरूरत नहीं थी क्योंकि एक सरकारी नौकरी जो मिल गई थी। सुप्रिया को अंतू गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में नौकरी मिली। तंखा भी अच्छी ही थी। सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और 12 बजे दोपहर को वापिस आती। सिर्फ चार घंटे की नौकरी। बाकी के वक्त वो खाली रहती तो घर में ही ट्यूशन लगा लिया। 1 से 7 क्लास के बच्चे आते। कॉलेज के बच्चे ज्यादातर मजदूर परिवार से थे तो फीस भी सुप्रिया बहुत कम लेती। अपने ट्यूशन का वक्त शाम 4 बजे से 7 बजे रखा। करीब 70 छात्र पढ़ते।
ट्यूशन की जगह थी गांव से बाहर एक छोटी सी झोपडी। झोपडी एक अधेड़ उमर के आदमी की थी। झोपडी दो थे एक उस आदमी के और उसने सुप्रिया को ट्यूशन के लिए दिया। बदले में सुप्रिया उसका घर चल सके इसीलिए भाड़े के पैसे अधेड़ आदमी को देती। भाड़ा भी ठीक ठाक था।
उस अधेड़ आदमी का नाम बिरजू था। बिरजू की उमर 60 साल की थी। बिरजू गांव के मंदिर की सफाई करता और थोड़े बहुत पैसे उसी से कमा लेता। बिरजू की एक बुरी आदत थी। वो शराब बहुत पीता था। दोपहर को काम करके वापिस आता और पीकर सो जाता। कई दफा रात के वक्त सुप्रिया उसे खाना देती। बस खाता और सो जाता। सुप्रिया को उसकी ये आदत अच्छी नही लगती।
अक्टूबर का महीना था। रोज की तरह कॉलेज में सुप्रिया गई और अपना काम करने लगी। बच्चो को पढ़ाकर सुबह ग्यारह बजे स्टाफ रूम में आई। ज्यादातर टीचर महिलाएं ही थी जो काफी बड़ी उमर की थी। सुप्रिया वैसे स्टाफ रूम में बच्चो की किताबे चेक करती और चाय पीती। बाकी की बड़ी उमर महिलाए उससे बाते करती। वह सभी टीचर्स दूसरे गांव के थे। दोपहर 12 बजे घंटी बाजी और बच्चे शोर मचाने हुए अपने घर के लिए निकले। कॉलेज से घर का फासला ज्यादा नही था। सुप्रिया पैदल चलते चलते घर पहुंची। सामने देखा तो सरजू बीड़ी पी रहा था और खटिया पे लेटा हुआ था। सुप्रिया को देखते ही बैठ गया और बोला "सुप्रियाजी कैसा रहा आज का दिन ?"
सुप्रिया हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए "कितनी बार कहा आपसे सिर्फ सुप्रिया ही बुलाओ। समझ में नहीं आता इतनी सी बात ?"
अपनी जीभ कोहलके से दातों में दबाते हुए काम पकड़ते बोला "माफ करो भूल गया सुप्रिया।"
हल्की सी मुस्कान देते हुए सुप्रिया बोली "चलो जल्दी से उठो और खाने के लिए बैठो। मैं रोटी बनाती हूं।"
सुप्रिया जल्दी से कमरे गई। साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही बिस्तर पर लेट गई। दस मिनिट आखें बंद करके लेटी और फिर हाथ पैर धोकर साड़ी वापिस पहनकर रसोईघर गई। सरजू भी रसोईघर घुसा और खाने के लिए बैठ गया। सुप्रिया रोटी बनाकर सरजू को दे रही थी। सरजू खाना खा रहा था।
"अरे सुनो सुप्रिया। वो बिरजू आज घर आया था।"
"क्या काम था उसे ?"
"उसे खाना चाहिए था। मैने उसे रूखा सूखा खाना दे दिया।"
"अरे तो ठहरने को कह देते मैं बनाकर खिला देती।"
"एक काम करो आज शाम ट्यूशन जा रही हो तो खाना ले जाना।"
"ठीक है। लेकिन एक बात सनलो। उसका शराब बंद करो वरना मार जाएगा किसी दिन।"
"कुछ नही होगा। अब बस करो रोटी बनाना मेरा हो गया।"
"अच्छा सुनो। आज शाम बाजार जा रहे हो ?"
"हां। कोई सामान लेना है क्या ?"
"हां मैंने कुछ सामान की लिस्ट बनाई है उसे लेकर आना।"
"चलो ठीक है लेकिन आज रात खाना मत बनाना।"
"क्यों ?"
"आज न्योता है संभू के घर बस वहां जाऊंगा।"
"ठीक है। अब चलो सो जाओ। दोपहर हो गई।"
"ठीक। काम के बाद कमरे में आना। मेरा पैर दबा देना।"
"हां आ जाऊंगी।"
सुप्रिया काम पूरा करके पान बनाया और ले गई सरजू के कमरे में। सरजू खटिया पर लेटा हुआ था। सुप्रिया उसके पैर के पास आकर बैठी और पैर दबाने लगी।
"एक बात बताइए सुबह जो आपको मैंने दिया था वो पूरा हक या नहीं ?"
"कौन सा काम ?"
"मेरे ब्लाउज का बटन टूट गया था उसे सिलना था आपको।"
"अरे हां रुको आज जल्द से जल्द सील दूंगा। तुम धागा और ब्लाउज लाओ।"
"आपसे एक काम भी ठीक से नही होता। कल वार्षिक उत्सव है कॉलेज का क्या पहनूंगी ?"
"आज ही कर दूंगा। पहले अपना ब्लाउज लेकर आओ।"
वैसे देखा जाए तो सरजू और सुप्रिया के बीच कोई खास उमर का दीवार नही था। सरजू बुड्ढा भले ही हो लेकिन दोनो एक दूसरे से खुलकर बात करते है। सरजू को सिलाई का काम अच्छे से आता है और इसीलिए सुप्रिया के कपड़े भी सिल देता है। दोनो साथ में रहते तो ज्यादा भेदभाव भी नही रहता। वैसे भी बेटे मोहन के जाने के बाद सरजू की जिम्मेदारी सुप्रिया को मिली।
दोपहर बीता और शाम हुई। सुप्रिया अपनी किताबे लेकर गई बिरजू के झोपडी पर। ट्यूशन का वक्त हो चुका था। बिरजू इस वक्त बगलवाली झोपडी में नही था। सुप्रिया समझ गईं के फिर पीने गया होगा बिरजू। बच्चो को ट्यूशन पढ़ाया और शाम 7 बजे अंधेरा छाने लगा। बच्चे घर को चल दिए। सुप्रिया को पता था की सरजू आज रात खाना नही खायेगा। सोचा आज झोपडी में ही खाना बना ले ताकि वो और बिरजू दोनो खाना खा ले। झोपडी की चाबी थी सुप्रिया के पास। झोपडी में घुसी तो देखा की कटहल पड़ा हुआ था। सुप्रिया ने कटहल की सब्जी बनाई और चावल भी। खाने को चूल्हे पे चढ़ाया। अपने बाल बंधे और कमर पे साड़ी खोसकर झाड़ू लिया और साफ सफाई करने लगी। इतने में बिरजू आ गया। सुप्रिया ने घर साफ कर लिया। बिरजू नशे की हालत में था।
नशे में झूलता हुआ बिरजू बोला "तुम यहां ? घर नही गई ?"
"आज सरजू बाहर न्योता में खाना खाने गया। सोचा इधर खा लूं। इस बहाने तुम्हे गरम खाना भी मिल जाएगा। चलो हाथ मुंह धो लो और बैठ जाओ।"
बिरजू लड़खडाकर आगे बढ़ा और हाथ पैर धोकर नशे में खुलते बैठ गया।
मुंह बिगाड़ते हुए सुप्रिया बोली "ये शराब की बुरी आदत छोड़ दो। समझे वरना मार जाओगे।"
बिरजू बोला "बात ऐसी नही है सुप्रिया। वो क्या है ना आज दुकानवाले ने जबरजस्ती पीला दिया। मेरा पीने का इरादा नहीं था।"
"एक बेलन उठाकर मरूंगी। झूट मत बोलो। बेवकूफ।"
खाने का निवाला लेते हुए बिरजू बोला "वह क्या खाना बना है। गरम गरम कटहल की सब्जी और चावल। वाह तुम्हारे हाथ में जादू है सुप्रिया।"
"हां हां मारो मस्का और हां कल बाजार जाकर सब्जी खरीद लेना। तुम्हारे घर में सब्जी नही है।"
"हां ले आऊंगा।"
बिरजू खाना खा लिया और सुप्रिया ने भी। बिरजू को खटिया पे लेटा दिया और बिरजू भी गहरी नींद में था। झोपडी का दरवाजा बंद करके रात के अंधेरे में अपने घर पहुंची। सरजू घर पर नही था। सुप्रिया समझ गई की आज उसे आने में वक्त लगेगा। उस वक्त गांव में बिजली नही होती थी। इसीलिए सुप्रिया ने लालटेन जलाया और अपने साड़ी उतारकर कमरे में लेट गई। ब्लाउज और पेटीकोट में उसका जिस्म हसीन लग रहा था। गर्मी भी थी और थकान भी। ब्लाउज पेटीकोट में वो लालटेन के उजाले में लेट गई। थकान के मारे उसने कमरे का दरवाजा बंद नही किया सोचा बाद में बंद कर देगी लेकिन देखते देखते उसे नींद आ गई। आधी रात सरजू वापिस आया और चाबी घर की उसके पास भी थी। सरजू घर में घुसा और दबे पांव अपने कमरे की तरफ चल दिया। रास्ते में ही सुप्रिया का खुला कमरा दिखा। लालटेन की रोशनी में वो लेटी हुई थी।
"सुनो सुप्रिया मैं आ गया।"
नींद टूटते हुए सरजू को देखकर आलस भरे आवाज में सुप्रिया बोली "अरे सरजू खटखटा कर आते मैने साड़ी उतारी हुई है।"
"अरे तुम्हारे कमरे का दरवाजा खुला था। चलो में भी चला सोने। लेकिन मेरा पान कहा है ?"
हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए सुप्रिया बोली "रहने दो। मैं बना देती हूं।" उठकर सुप्रिया रसोई गई और पान का बक्सा लेकर आई।
(आप शायद ये सोच रहे होने की ब्लाउज पेटीकोट में सुप्रिया सरजू के सामने इतने आराम से क्यों बात चीत कर रही है ? दरअसल जब वो जालिम अनिल उसके साथ बूरा व्यव्हार करता तब उसकी कई दफा इज्जत सरजू ने बचाई। सरजू ने इससे भी बुरे परिस्थिति में देखा। इसीलिए दोनो को कोई फर्क नहीं पड़ता एक दूसरे के काम कपड़े पहरे रहने से।)
सरजू अपने खटिया पे लेट गया और उसी के बगल बैठी सुप्रिया पान बना रही थी।
"रात के १ बजे पान खाना है इनको। अक्कल सच में तुम्हारी घास चरने गई क्या ?"
"अरे इसके बिना मजा नही आता। तुम वैसे भी कितना अच्छा पान बनाती हो। दुलनवाला भी तुम्हारे पान के सामने कुछ नही।"
"ये मस्का मरना बंद करो और सुनो वार्षिक उत्सव के अगले दिन से 14 दीनो तक कॉलेज में छुट्टी रहेगी।"
"चलो ठीक है। मैं बाजार होकर आया। सामान घर में रखवा दिया था।"
"धत्त एक काम रह गया।"
"कौन सा काम ?"
"मेरी ब्रा। मुझे ब्रा भी खरीदना था।"
"चिंता मत करो वो में लेकर आया हूं पद्मा की दुकान से।"
"चलो अच्छा है। वैसे भी मेरी ब्रा पूरानी हो गई थी। तुम कल सुबह जल्दी उठ जाना। कल गाय को भी चराना है और दूध निकालना है।"
"मैं क्यों ? वो बिरजू क्या कर रहा है ?"
"शरण पीकर खटिया पे पड़ा है। बड़ी मुश्किल से खाना खिलाकर सुलाया।"
"यह बिरजू भी हद होती है। अब इतनी सुबह उठना पड़ेगा।"
"और क्या नहीं तो चाय कैसे बनेगा और तुम्हे दूध भी दोपहर को नही मिलेगा।"
"ठीक है। चलो सोने का वक्त हो गया।" बिरजू ने पान मुंह में डालकर कहा।
"कहां सोनेवाले हो ?"
"आंगन में। आज गर्मी भयंकर है।"
"हां सही कहा। मेरी तो हालत खराब हो गई। सुनो मेरा दरवाजा खुला रहेगा। आंगन से हवा आती है। कमरा बंद करके सोई तो गर्मी से हालत बिगड़ जाएगी।"
"ठीक है। लेकिन ब्लाउज पेटीकोट में सोगी? बाहर दरवाजे पे मेरी खटिया होगी।"
"कभी औरत बनकर देखो। दिन भर काम करो और नींद आए तो भी गर्मी में।"
"अरे तो एक काम करो तुम भी आंगन में आ जाओ।"
"नही बिलकुल नहीं। मच्छर का क्या होगा ?"
"तुम आओ खटिया लेकर मैं सुखा घास जलाकर राख दूंगा"
सुप्रिया ने अपनी और सरजू की खटिया को आंगन में रखा। ब्लाउज पेटीकोट में लेटी सुप्रिया को हल्की सी नींद आने लगी। वही सरजू घास में आग लाकर खटिया के पास रख दिया और बगल के खटिया में लेटा।
"अब कुछ ठीक है सरजू। वैसे मच्छर ने बहुत परेशान किया।"
"हां मैं भी शर्ट उतार दूं। वरना नींद नही आयेगी।"
दोनो सो गए। वैसे दोनो ऐसे रहते है जैसे एक ही उमर के हो। लेकिन सुप्रिया को गांव में रहना अच्छा लग रहा था। सुप्रिया अक्सर रात के वक्त ब्लाउज पेटीकोट में रहती लेकिन पिछले हफ्तों से सरजू के सामने ऐसे आई। सरजू को भी कोई फर्क नही पड़ता। उसे कहा मन सुप्रिया की खूबसूरती को निहारे। कभी सुप्रिया को उस तरह से नही देखा।
सुबह पांच बजे सरजू की नींद उड़ी। उठकर सबसे पहले गाय को चराने गया। फिर करीब आधे घंटे खेत का चक्कर लगाकर आया। कुआं से पानी निकला और आंगन में रख दिया। गहरी नींद में सो रही सुप्रिया को नींद से जगाया और नहाने को कहा।
वैसे आपको बता दूं पहले के जमाने स्नानघर में दरवाजे नही होते सिर्फ पर्दा होता था। स्नानघर भी बहुत छोटा होता था। उधर सुप्रिया नहाने गई और सरजू गाय का दूध निकलकर दूध को उबालने लगा। सुप्रिया भी नहाकर बाहर आई और आंगन में साड़ी पहनने लगी।
(स्नानघर छोटा होने से गीले फर्श पर साड़ी पहनना आसान नहीं इसीलिए स्नानघर के बाहर आंगन में साड़ी पहनने लगी।)
पेटीकोट और ब्रा पहन लेने के बाद सुप्रिया को याद आया की ब्लाउज तो वो भूल गई। तुरंत अपने कमरे में पहुंची तो ब्लाउज नही मिला।
ऊंची आवाज दी सरजू को "सरजू मेरा ब्लाउज कहा रखा हैं तुमने"
"अरे वो तो मेरे कमरे में रह गया। रुको देता हूं।"
"हां जल्दी करो। और चाय मत बनाना। मैं बना लूंगी। तुम तब तक नहा लो।"
सरजू दौड़ता हुआ आया और ब्लाउज लेकर कमरे का दरवाजा खटखटाया। हाथ बाहर निकलते हुए सुप्रिया ने ब्लाउज ले लिया। सरजू तुरंत गया नहाने। सुबह के सात बज चुके थे और लाल की साड़ी में सज धज्के सुप्रिया तैयार हो गई वार्षिक उत्सव के लिए। रसोईघर जाकर चाय बनाने लगी और तब तक सरजू आ गया। दोनो ने चाय पीया और इतने में सुप्रिया के जाने का वक्त हो गया।
"सुनो सरजू अब तुम आराम करो और हां अगर बिरजू आए तो उसे बता देना की कुआं से पानी निकालकर पेड़ पौधों को पानी सीच दे।" अपने बटुए से 10 रुपए निकालकर बोली "उसे दे देना और कहना की शराब न पीएं।"
"हां और सुप्रिया आज खाने में क्या बना है ?"
"मैने आज आलू को सब्जी बनाई है। वापिस आकर रोटी बना दूंगी। चलो अब ८ बजने वाले है। मुझे देर हो रही है।"
सुप्रिया तुरंत चली गई कॉलेज। तो दोस्तो ये है तीनो को जिंदगी। अब आगे देखो कि इस जिंदगी में सरलता कितनी होगी।
साल 1990
यह कहानी की शुरुआत होती है भोपाल के सेंट्रल जेल से। 28 साल की महिला जेल से बाहर निकलती है। सलवार कमीज में एक दूध सा रंग और दिलकश चेहरा। पांच साल जेल में रह चुकी इस महिला का नाम सुप्रिया है। सुप्रिया जो बहुत ही अच्छे और साफ दिल की औरत है। फिर क्यों उसे जेल जाना पड़ा ?
कहानी की शुरुआत होती है 5 साफ पहले जब उसने एक आदमी का कत्ल किया। वो आदमी उसका पति अनिल श्रीवास्तव था। अनिल जो एक बड़ा बिजनेसमैन था और बहुत ही नीच और खराब आदमी था। शराब और ड्रग्स की लत लगने से वो अक्सर सुप्रिया को मारता पीटता और कभी कभी हवेली के कोठरी में बंद करता। अनिल का दरअसल एक लड़की के साथ प्रेम संबंध था लेकिन सुप्रिया से शादी उसकी मजबूरी थी। अनिल के पिता ने सुप्रिया के साथ उसकी शादी करवाई और स्वर्गवास हो गए।
अनिल अक्सर सुप्रिया से तलाक लेने का दबाव उसपर बनाता लेकिन सुप्रिया मानने से साफ साफ इंकार करती। फिर क्या वो रोज जानवरो की तरह सुप्रिया को मारता और भद्दी भद्दी गालियां देता। एक दिन नशे की हालत में अनिल सुप्रिया को चाकू दिखाकर डरा रहा था। उसका इरादा अब सुप्रिया का कत्ल करने का था। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे धक्का दिया और अनिल के हाथ से चाकू छीन लिया। अनिल ने दुबारा उसपर हमला किया। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे गलती से चाकू से मार दिया।
सुप्रिया में कत्ल का इल्ज़ाम लगा। सुप्रिया लगातार अपना बचाव कोर्ट में किया लेकिन आखिर में जज साहब ने उसे 15 साल जेल की सजा सुनाई। सुप्रिया ने फिर भी हार नही मानी और कैसे लड़ती रही। आखिर में सबूत गवाह के तहत सुप्रिया निर्दोष साबित हुई । जज ने सुप्रिया को जेल में बिताए पांच साल सजा के बदले 25 लाख रुपए का मुहावजा दिया और बदले में एक सरकारी नौकरी भी दिलाई।
सुप्रिया ने 15 लाख रुपए लिया और नौकरी अपने सबसे वफादार नौकर सरजू के बेटे को दिलवाई।
सरजू जो अनिल के घर काम करता था। सरजू सुप्रिया का बहुत खयाल रखता था। सरजू की उमर 68 साल की थी। सरजू अक्सर बीमार रहने लगा और इसी के चलते अपने गांव चला गया।
जेल से छूटने के बाद सुप्रिया को घर नहीं मिला। कोई देने को तैयार नहीं था। सुप्रिया हताश हो गई। आखिर में सुप्रिया को सरजू को चिट्ठी मिली जिसमे सरजू ने उसे अपने गांव बुलाया।
सुप्रिया इस दुनिया से मिलो दूर सरजू के गांव चली गई। सरजू का गांव झारखंड में स्तिथ धनबाद शहर के अंतू में था। अंतू गांव वैसे बहुत ही पुराना और शहर से ज्यादा दूर था। सुप्रिया ने पास पैसे थे और अब घर भी मिल गया। सुप्रिया को घर मिलने में काफी दिक्कत हुई थी लेकिन सरजू ने व्यवस्था बना ली थी। सरजू के घर में दो कमरा था। एक में वो खुद रहता है और दूसरे में बेटा रहता था। सरजू के बेटे का नाम मोहन था। मोहन जो जब सुप्रिया के 15 लाख रुपए मिले तो सबसे पहले वो शहर चला गया और उन में से कुछ 5 लाख घर बनवाए दिल्ली में 7 लाख का घुस देकर नौकरी हासिल की और 2 लाख सरजू के देखभाल में डाले। सुप्रिया को उन पैसों की जरूरत नहीं थी क्योंकि एक सरकारी नौकरी जो मिल गई थी। सुप्रिया को अंतू गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में नौकरी मिली। तंखा भी अच्छी ही थी। सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और 12 बजे दोपहर को वापिस आती। सिर्फ चार घंटे की नौकरी। बाकी के वक्त वो खाली रहती तो घर में ही ट्यूशन लगा लिया। 1 से 7 क्लास के बच्चे आते। कॉलेज के बच्चे ज्यादातर मजदूर परिवार से थे तो फीस भी सुप्रिया बहुत कम लेती। अपने ट्यूशन का वक्त शाम 4 बजे से 7 बजे रखा। करीब 70 छात्र पढ़ते।
ट्यूशन की जगह थी गांव से बाहर एक छोटी सी झोपडी। झोपडी एक अधेड़ उमर के आदमी की थी। झोपडी दो थे एक उस आदमी के और उसने सुप्रिया को ट्यूशन के लिए दिया। बदले में सुप्रिया उसका घर चल सके इसीलिए भाड़े के पैसे अधेड़ आदमी को देती। भाड़ा भी ठीक ठाक था।
उस अधेड़ आदमी का नाम बिरजू था। बिरजू की उमर 60 साल की थी। बिरजू गांव के मंदिर की सफाई करता और थोड़े बहुत पैसे उसी से कमा लेता। बिरजू की एक बुरी आदत थी। वो शराब बहुत पीता था। दोपहर को काम करके वापिस आता और पीकर सो जाता। कई दफा रात के वक्त सुप्रिया उसे खाना देती। बस खाता और सो जाता। सुप्रिया को उसकी ये आदत अच्छी नही लगती।
अक्टूबर का महीना था। रोज की तरह कॉलेज में सुप्रिया गई और अपना काम करने लगी। बच्चो को पढ़ाकर सुबह ग्यारह बजे स्टाफ रूम में आई। ज्यादातर टीचर महिलाएं ही थी जो काफी बड़ी उमर की थी। सुप्रिया वैसे स्टाफ रूम में बच्चो की किताबे चेक करती और चाय पीती। बाकी की बड़ी उमर महिलाए उससे बाते करती। वह सभी टीचर्स दूसरे गांव के थे। दोपहर 12 बजे घंटी बाजी और बच्चे शोर मचाने हुए अपने घर के लिए निकले। कॉलेज से घर का फासला ज्यादा नही था। सुप्रिया पैदल चलते चलते घर पहुंची। सामने देखा तो सरजू बीड़ी पी रहा था और खटिया पे लेटा हुआ था। सुप्रिया को देखते ही बैठ गया और बोला "सुप्रियाजी कैसा रहा आज का दिन ?"
सुप्रिया हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए "कितनी बार कहा आपसे सिर्फ सुप्रिया ही बुलाओ। समझ में नहीं आता इतनी सी बात ?"
अपनी जीभ कोहलके से दातों में दबाते हुए काम पकड़ते बोला "माफ करो भूल गया सुप्रिया।"
हल्की सी मुस्कान देते हुए सुप्रिया बोली "चलो जल्दी से उठो और खाने के लिए बैठो। मैं रोटी बनाती हूं।"
सुप्रिया जल्दी से कमरे गई। साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही बिस्तर पर लेट गई। दस मिनिट आखें बंद करके लेटी और फिर हाथ पैर धोकर साड़ी वापिस पहनकर रसोईघर गई। सरजू भी रसोईघर घुसा और खाने के लिए बैठ गया। सुप्रिया रोटी बनाकर सरजू को दे रही थी। सरजू खाना खा रहा था।
"अरे सुनो सुप्रिया। वो बिरजू आज घर आया था।"
"क्या काम था उसे ?"
"उसे खाना चाहिए था। मैने उसे रूखा सूखा खाना दे दिया।"
"अरे तो ठहरने को कह देते मैं बनाकर खिला देती।"
"एक काम करो आज शाम ट्यूशन जा रही हो तो खाना ले जाना।"
"ठीक है। लेकिन एक बात सनलो। उसका शराब बंद करो वरना मार जाएगा किसी दिन।"
"कुछ नही होगा। अब बस करो रोटी बनाना मेरा हो गया।"
"अच्छा सुनो। आज शाम बाजार जा रहे हो ?"
"हां। कोई सामान लेना है क्या ?"
"हां मैंने कुछ सामान की लिस्ट बनाई है उसे लेकर आना।"
"चलो ठीक है लेकिन आज रात खाना मत बनाना।"
"क्यों ?"
"आज न्योता है संभू के घर बस वहां जाऊंगा।"
"ठीक है। अब चलो सो जाओ। दोपहर हो गई।"
"ठीक। काम के बाद कमरे में आना। मेरा पैर दबा देना।"
"हां आ जाऊंगी।"
सुप्रिया काम पूरा करके पान बनाया और ले गई सरजू के कमरे में। सरजू खटिया पर लेटा हुआ था। सुप्रिया उसके पैर के पास आकर बैठी और पैर दबाने लगी।
"एक बात बताइए सुबह जो आपको मैंने दिया था वो पूरा हक या नहीं ?"
"कौन सा काम ?"
"मेरे ब्लाउज का बटन टूट गया था उसे सिलना था आपको।"
"अरे हां रुको आज जल्द से जल्द सील दूंगा। तुम धागा और ब्लाउज लाओ।"
"आपसे एक काम भी ठीक से नही होता। कल वार्षिक उत्सव है कॉलेज का क्या पहनूंगी ?"
"आज ही कर दूंगा। पहले अपना ब्लाउज लेकर आओ।"
वैसे देखा जाए तो सरजू और सुप्रिया के बीच कोई खास उमर का दीवार नही था। सरजू बुड्ढा भले ही हो लेकिन दोनो एक दूसरे से खुलकर बात करते है। सरजू को सिलाई का काम अच्छे से आता है और इसीलिए सुप्रिया के कपड़े भी सिल देता है। दोनो साथ में रहते तो ज्यादा भेदभाव भी नही रहता। वैसे भी बेटे मोहन के जाने के बाद सरजू की जिम्मेदारी सुप्रिया को मिली।
दोपहर बीता और शाम हुई। सुप्रिया अपनी किताबे लेकर गई बिरजू के झोपडी पर। ट्यूशन का वक्त हो चुका था। बिरजू इस वक्त बगलवाली झोपडी में नही था। सुप्रिया समझ गईं के फिर पीने गया होगा बिरजू। बच्चो को ट्यूशन पढ़ाया और शाम 7 बजे अंधेरा छाने लगा। बच्चे घर को चल दिए। सुप्रिया को पता था की सरजू आज रात खाना नही खायेगा। सोचा आज झोपडी में ही खाना बना ले ताकि वो और बिरजू दोनो खाना खा ले। झोपडी की चाबी थी सुप्रिया के पास। झोपडी में घुसी तो देखा की कटहल पड़ा हुआ था। सुप्रिया ने कटहल की सब्जी बनाई और चावल भी। खाने को चूल्हे पे चढ़ाया। अपने बाल बंधे और कमर पे साड़ी खोसकर झाड़ू लिया और साफ सफाई करने लगी। इतने में बिरजू आ गया। सुप्रिया ने घर साफ कर लिया। बिरजू नशे की हालत में था।
नशे में झूलता हुआ बिरजू बोला "तुम यहां ? घर नही गई ?"
"आज सरजू बाहर न्योता में खाना खाने गया। सोचा इधर खा लूं। इस बहाने तुम्हे गरम खाना भी मिल जाएगा। चलो हाथ मुंह धो लो और बैठ जाओ।"
बिरजू लड़खडाकर आगे बढ़ा और हाथ पैर धोकर नशे में खुलते बैठ गया।
मुंह बिगाड़ते हुए सुप्रिया बोली "ये शराब की बुरी आदत छोड़ दो। समझे वरना मार जाओगे।"
बिरजू बोला "बात ऐसी नही है सुप्रिया। वो क्या है ना आज दुकानवाले ने जबरजस्ती पीला दिया। मेरा पीने का इरादा नहीं था।"
"एक बेलन उठाकर मरूंगी। झूट मत बोलो। बेवकूफ।"
खाने का निवाला लेते हुए बिरजू बोला "वह क्या खाना बना है। गरम गरम कटहल की सब्जी और चावल। वाह तुम्हारे हाथ में जादू है सुप्रिया।"
"हां हां मारो मस्का और हां कल बाजार जाकर सब्जी खरीद लेना। तुम्हारे घर में सब्जी नही है।"
"हां ले आऊंगा।"
बिरजू खाना खा लिया और सुप्रिया ने भी। बिरजू को खटिया पे लेटा दिया और बिरजू भी गहरी नींद में था। झोपडी का दरवाजा बंद करके रात के अंधेरे में अपने घर पहुंची। सरजू घर पर नही था। सुप्रिया समझ गई की आज उसे आने में वक्त लगेगा। उस वक्त गांव में बिजली नही होती थी। इसीलिए सुप्रिया ने लालटेन जलाया और अपने साड़ी उतारकर कमरे में लेट गई। ब्लाउज और पेटीकोट में उसका जिस्म हसीन लग रहा था। गर्मी भी थी और थकान भी। ब्लाउज पेटीकोट में वो लालटेन के उजाले में लेट गई। थकान के मारे उसने कमरे का दरवाजा बंद नही किया सोचा बाद में बंद कर देगी लेकिन देखते देखते उसे नींद आ गई। आधी रात सरजू वापिस आया और चाबी घर की उसके पास भी थी। सरजू घर में घुसा और दबे पांव अपने कमरे की तरफ चल दिया। रास्ते में ही सुप्रिया का खुला कमरा दिखा। लालटेन की रोशनी में वो लेटी हुई थी।
"सुनो सुप्रिया मैं आ गया।"
नींद टूटते हुए सरजू को देखकर आलस भरे आवाज में सुप्रिया बोली "अरे सरजू खटखटा कर आते मैने साड़ी उतारी हुई है।"
"अरे तुम्हारे कमरे का दरवाजा खुला था। चलो में भी चला सोने। लेकिन मेरा पान कहा है ?"
हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए सुप्रिया बोली "रहने दो। मैं बना देती हूं।" उठकर सुप्रिया रसोई गई और पान का बक्सा लेकर आई।
(आप शायद ये सोच रहे होने की ब्लाउज पेटीकोट में सुप्रिया सरजू के सामने इतने आराम से क्यों बात चीत कर रही है ? दरअसल जब वो जालिम अनिल उसके साथ बूरा व्यव्हार करता तब उसकी कई दफा इज्जत सरजू ने बचाई। सरजू ने इससे भी बुरे परिस्थिति में देखा। इसीलिए दोनो को कोई फर्क नहीं पड़ता एक दूसरे के काम कपड़े पहरे रहने से।)
सरजू अपने खटिया पे लेट गया और उसी के बगल बैठी सुप्रिया पान बना रही थी।
"रात के १ बजे पान खाना है इनको। अक्कल सच में तुम्हारी घास चरने गई क्या ?"
"अरे इसके बिना मजा नही आता। तुम वैसे भी कितना अच्छा पान बनाती हो। दुलनवाला भी तुम्हारे पान के सामने कुछ नही।"
"ये मस्का मरना बंद करो और सुनो वार्षिक उत्सव के अगले दिन से 14 दीनो तक कॉलेज में छुट्टी रहेगी।"
"चलो ठीक है। मैं बाजार होकर आया। सामान घर में रखवा दिया था।"
"धत्त एक काम रह गया।"
"कौन सा काम ?"
"मेरी ब्रा। मुझे ब्रा भी खरीदना था।"
"चिंता मत करो वो में लेकर आया हूं पद्मा की दुकान से।"
"चलो अच्छा है। वैसे भी मेरी ब्रा पूरानी हो गई थी। तुम कल सुबह जल्दी उठ जाना। कल गाय को भी चराना है और दूध निकालना है।"
"मैं क्यों ? वो बिरजू क्या कर रहा है ?"
"शरण पीकर खटिया पे पड़ा है। बड़ी मुश्किल से खाना खिलाकर सुलाया।"
"यह बिरजू भी हद होती है। अब इतनी सुबह उठना पड़ेगा।"
"और क्या नहीं तो चाय कैसे बनेगा और तुम्हे दूध भी दोपहर को नही मिलेगा।"
"ठीक है। चलो सोने का वक्त हो गया।" बिरजू ने पान मुंह में डालकर कहा।
"कहां सोनेवाले हो ?"
"आंगन में। आज गर्मी भयंकर है।"
"हां सही कहा। मेरी तो हालत खराब हो गई। सुनो मेरा दरवाजा खुला रहेगा। आंगन से हवा आती है। कमरा बंद करके सोई तो गर्मी से हालत बिगड़ जाएगी।"
"ठीक है। लेकिन ब्लाउज पेटीकोट में सोगी? बाहर दरवाजे पे मेरी खटिया होगी।"
"कभी औरत बनकर देखो। दिन भर काम करो और नींद आए तो भी गर्मी में।"
"अरे तो एक काम करो तुम भी आंगन में आ जाओ।"
"नही बिलकुल नहीं। मच्छर का क्या होगा ?"
"तुम आओ खटिया लेकर मैं सुखा घास जलाकर राख दूंगा"
सुप्रिया ने अपनी और सरजू की खटिया को आंगन में रखा। ब्लाउज पेटीकोट में लेटी सुप्रिया को हल्की सी नींद आने लगी। वही सरजू घास में आग लाकर खटिया के पास रख दिया और बगल के खटिया में लेटा।
"अब कुछ ठीक है सरजू। वैसे मच्छर ने बहुत परेशान किया।"
"हां मैं भी शर्ट उतार दूं। वरना नींद नही आयेगी।"
दोनो सो गए। वैसे दोनो ऐसे रहते है जैसे एक ही उमर के हो। लेकिन सुप्रिया को गांव में रहना अच्छा लग रहा था। सुप्रिया अक्सर रात के वक्त ब्लाउज पेटीकोट में रहती लेकिन पिछले हफ्तों से सरजू के सामने ऐसे आई। सरजू को भी कोई फर्क नही पड़ता। उसे कहा मन सुप्रिया की खूबसूरती को निहारे। कभी सुप्रिया को उस तरह से नही देखा।
सुबह पांच बजे सरजू की नींद उड़ी। उठकर सबसे पहले गाय को चराने गया। फिर करीब आधे घंटे खेत का चक्कर लगाकर आया। कुआं से पानी निकला और आंगन में रख दिया। गहरी नींद में सो रही सुप्रिया को नींद से जगाया और नहाने को कहा।
वैसे आपको बता दूं पहले के जमाने स्नानघर में दरवाजे नही होते सिर्फ पर्दा होता था। स्नानघर भी बहुत छोटा होता था। उधर सुप्रिया नहाने गई और सरजू गाय का दूध निकलकर दूध को उबालने लगा। सुप्रिया भी नहाकर बाहर आई और आंगन में साड़ी पहनने लगी।
(स्नानघर छोटा होने से गीले फर्श पर साड़ी पहनना आसान नहीं इसीलिए स्नानघर के बाहर आंगन में साड़ी पहनने लगी।)
पेटीकोट और ब्रा पहन लेने के बाद सुप्रिया को याद आया की ब्लाउज तो वो भूल गई। तुरंत अपने कमरे में पहुंची तो ब्लाउज नही मिला।
ऊंची आवाज दी सरजू को "सरजू मेरा ब्लाउज कहा रखा हैं तुमने"
"अरे वो तो मेरे कमरे में रह गया। रुको देता हूं।"
"हां जल्दी करो। और चाय मत बनाना। मैं बना लूंगी। तुम तब तक नहा लो।"
सरजू दौड़ता हुआ आया और ब्लाउज लेकर कमरे का दरवाजा खटखटाया। हाथ बाहर निकलते हुए सुप्रिया ने ब्लाउज ले लिया। सरजू तुरंत गया नहाने। सुबह के सात बज चुके थे और लाल की साड़ी में सज धज्के सुप्रिया तैयार हो गई वार्षिक उत्सव के लिए। रसोईघर जाकर चाय बनाने लगी और तब तक सरजू आ गया। दोनो ने चाय पीया और इतने में सुप्रिया के जाने का वक्त हो गया।
"सुनो सरजू अब तुम आराम करो और हां अगर बिरजू आए तो उसे बता देना की कुआं से पानी निकालकर पेड़ पौधों को पानी सीच दे।" अपने बटुए से 10 रुपए निकालकर बोली "उसे दे देना और कहना की शराब न पीएं।"
"हां और सुप्रिया आज खाने में क्या बना है ?"
"मैने आज आलू को सब्जी बनाई है। वापिस आकर रोटी बना दूंगी। चलो अब ८ बजने वाले है। मुझे देर हो रही है।"
सुप्रिया तुरंत चली गई कॉलेज। तो दोस्तो ये है तीनो को जिंदगी। अब आगे देखो कि इस जिंदगी में सरलता कितनी होगी।