22-09-2022, 10:39 PM
7 बज रहे थे मैं कीचेन मे खाना बनाने मैं व्यस्त थी तभी डॉर बेल बजी । मैं जान गई की अशोक आ गए है मैं अपना काम छोड़ गेट खोलने चली गई ,
गेट खोला तो सामने अशोक ही थे पर आज रोज की तरह मुस्कुरा नहीं रहे थे उनके हाथ मे एक फाइल थी । मैंने उन्हे देखते ही कहा - "आ गए आप "
अशोक उसी शांत स्वभाव से बोले - " हम्म "
और अंदर की ओर चल दिए । मुझे अशोक के स्वभाव मे कुछ गड़बड़ लगी ऐसा आमतौर पर तो वो नहीं करते । मैंने सोचा " आज ऑफिस मे जरूर कोई बड़ा काम रहा होगा ! या शायद कुछ काम अच्छा ना हुआ हो । " अशोक चुपचाप जाकर हॉल मे सोफ़े पर बैठ गए और मैं भी उनके पीछे - 2 चलती हुई हॉल मे आ गई और उनके बगल मे बैठ कर बोली - " क्या हुआ ? आज मूड बोहोत ऑफ लग रहा है । "
अशोक ने अपने हाथ मे ली हुई फाइल सामने टेबल पर रखी और मेरी ओर देखते हुए बोले - " अरे हाँ ... । बस आज कुछ काम ज्यादा था इसीलिए थोड़ी थकान हो गई । "
मैं - हम्म .. समझ गई ये सब इस फाइल की वजह से हुआ होगा ?
मैंने टेबल पर रखी हुई फाइल को उठाते हुए कहा ।
अशोक - " हाँ ... ये फाइल जाकर अलमारी के लॉकर मे रख दो । और ध्यान रखना ये बोहोत ही जरूरी फाइल है ।
मैं - ठीक है । आप बिल्कुल फिक्र ना करे ।
अशोक - आह .. आज तो अभी से नींद आ रही है । पदमा जल्दी से खाना लगा दो प्लीज ।
मैं - आप बस जाकर फ्रेश होइए मैं खाना लगाती हूँ । फिर आप आराम करना ।
अशोक ने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और कहा - " ओके बीवी साहिबा । " इतना कहकर अशोक ने मेरे गाल पर अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और फ्रेश होने चले गए ।
अशोक को मुस्कुराता देखकर मुझे भी खुशी मिली और मैं खाना तैयार करने कीचेन मे चली गई , थोड़ी ही देर मे मैंने सारा खाना टेबल पर लगा दिया और तब तक अशोक भी आ गए और फिर हम खाना खाने लगे । खाना खाते हुए हम दोनों यूँही हल्की फुल्की बात करने लगे अचानक मेरे मन मे आया की क्यूं ना अशोक से नितिन के बारे मे पूछ लूँ कि वो शहर मे वापस आया है की नहीं ? इससे मेरे मन का वहम भी मिट जाएगा कि जिसको मैंने आज वरुण के घर जाते देखा वो नितिन हो सकता है या नहीं । मैंने यूँही बातों-बातों मे अशोक से पुछा -
मैं - ओर आपके पुराने बॉस नितिन के क्या हॉल है ? वापस आ गए क्या ?
अशोक नितिन की बात सुन खाना खाते हुए एकदम से रुक गए । मुझे कुछ हैरानी हुई, एकदम से अशोक तो ऐसे रुक गए जैसे पहली बार नितिन का नाम सुन रहे हो , उनके चेहरे पर चिंता की लकिरे खिंच आई । अशोक ने मेरी ओर देखकर सीधे सवाल किया - " क्या तुम्हें वो कहीं दिखाई दिया ?"
अशोक के इस जवाब से मैं भी हैरान थी । मैंने अशोक की बात पर ना मे सर हिलाया और अशोक को कहा - " क्या बात है ? आप नितिन का नाम सुन इतने हैरान क्यों हो गए ? " मेरी इस बात से अशोक एकदम से सकपका गए और बात को घूमते हुए बोले - " अअअ..नहीं तो वो बस ऐसे ही बोहोत दिनों बाद उसका जिक्र तुमसे सुन ना इसलिए । नितिन तो अभी यहाँ नहीं है उसे बॉस ने तो आउट ऑफ टाउन भेजा है ना, तो वो कैसे होगा यहाँ । " अशोक ने जल्दी - जल्दी मे जवाब दिया और फिर से खाना खाने लगे । इसके बाद मैंने अशोक को बीच-बीच मे देखा तो वो कुछ परेशान से लग रहे थे मैंने पूछना भी चाहा , पर फिर कही वो गुस्सा ना हो जाए इसलिए चुप ही रही और खाना खाने लगी । अशोक ने खाना खत्म किया और टेबल से उठकर जाने लगे मैंने पीछे से उन्हे आवाज दी ।
मैं - सुनिए ।
अशोक मेरी ओर घूमे ओर कहा - " हाँ बोलो पदमा । "
मैं - अब तो सुबह को इतनी सर्दी भी नहीं होती तो क्यों ना हम दोनों सुबह ग्राउंड मे वॉक पर चले ।
अशोक - हम्म .. बात तो ठीक है पर मुझसे तो अब इतनी जल्दी उठा नहीं जाता तुम एक काम करो तुम चली जाना । मैं भी कुछ दिनों मे शुरू कर दूंगा ।
इतना बोलकर अशोक बेडरूम की ओर चल दिए । मैं जान गई की अब वो सोना चाहते है । अशोक के जाने के बाद मैं अपने बचे हुए काम निपटाने मे लग गई । सब काम खत्म करके मैं हॉल की लाइट्स ऑफ करके बेडरूम की ओर जाने लगी तभी मेरी नजर टेबल पर रखी उस फाइल पर गई जो अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी मैंने उसे टेबल ये उठाया और लेकर बेडरूम मे आ गई और अलमारी का लॉकर खोलकर उसमे रखने लगी एकबार को उसे खोलकर भी देखा उसमे कंपनी की कुछ रिपोर्ट्स थी जो मेरी तो समझ से बाहर थी इसलिए मैंने उसे वही लॉकर मे रखकर लॉक लगा दिया और अलमारी बंद कर दी । फिर मैंने चेंज किया और अपनी साड़ी और ब्लाउज निकालकर एक नाइटी पहन ली और बेड पर लेट गई बेड पर पहले से ही अशोक गहरी नींद मे थे पर मेरी आँखों मे नींद नहीं कई सारे सवाल और जिस्म मे बैचेनी थी । सवाल ये की "क्या जिसको मैंने आज वरुण के घर के बाहर देखा वो नितिन ही था या नहीं और अगर था तो वहाँ क्या कर रहा था ? वरुण के घर उसे क्या काम ? दूसरा आज नितिन का नाम सुन अशोक इतने परेशान क्यों हो गये ? ऐसी क्या बात हो सकती है ? " जिस्म की बैचेनी ये थी के आज वरुण के घर पर रहने के दौरान जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था कहीं वरुण को कुछ पता तो नहीं चल गया उसकी बातों के अंदाज से तो येही लग रहा था कि उसे मुझ पर कुछ शक हो गया है । पता नहीं आगे क्या-2 होगा मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आता । ये सब बाते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई ।
सुबह 5 बजे अलार्म के बजने से मेरी नींद खुली । आज मे 1 घंटा पहले जाग गई क्योंकि मुझे वॉक पर जाना था । मैं अपने बिस्तर से उठी ओर फ्रेश होने वॉशरूम मे चली गई । जब मैं फ्रेश होकर वॉशरूम से बाहर आई मैंने देखा अशोक अभी भी सो रहे थे , वो काफी गहरी नींद मे थे इसलिए मैंने उन्हे जगाना ठीक नहीं समझा मैंने चुप-चाप अपनी अलमारी को खोलकर उसमे से अपना वॉक-सूट निकाला । और उसे पहनने बाथरूम मे चली गई, वॉक-सूट पहनकर मै वॉक के लिए घर से बाहर आई । अशोक अभी सो रहे थे तो मैंने गेट बाहर से लॉक कर दिया उसकी एक चाबी अशोक के पास भी थी तो वो उसे आराम से खोल सकते थे । घर के बाहर आकर मैंने देखा ग्राउंड मे ज्यादा लोग नहीं थे अभी कम ही लोग घूम रहे थे । मैंने सोचा " वरुण तो बोल रहा था कि ग्राउंड मे अब काफी लोग आने लगे है पर यहाँ तो इतने लोग नहीं । " मुझे वरुण भी कही दिखाई नहीं दिया । "खैर मैंने मुझे इन सब से क्या मैं तो घूम कर जल्दी अपने घर वापस आ जाऊँगी । " ये विचार करके मैं ग्राउंड मे पहुँच गई ।
ग्राउंड के सामने ही आगे की ओर एक पुराना बाग था सर्दियों मे किसी के उस ओर ना जाने की वजह से वहाँ बोहोत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ हो गई थी अगर कोई ग्राउंड पार करके उस ओर चला जाए तो कोई ये भी नहीं देख सकता था की वहाँ कोई है या नहीं ? सुबह का वक्त था पर ज्यादा ठंड नहीं थी मैंने अपनी वॉक शुरू की , अभी मैंने चलना शुरू ही किया था के तभी मेरे पीछे से कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझे साइड से कंधा मार कर आगे निकल गया । उसका कंधा लगते ही मैं अपनी जगह से हील गई ओर बस गिरते-2 बची । मैंने संभालते हुए गुस्से से उसे एक आवाज दी
- " ओए ..... कौन है बदतमीज़ ? दिखता नहीं है क्या ? "
वो आदमी एक पल के लिए वहीं रुक गया , पर मेरी ओर पलटा नहीं मैंने उसे पीछे से देखा उसने एक ट्रैक-सूट पहना हुआ था । वहीं रुककर उस आदमी ने बिना पीछे मुड़े एक हँसी भरी और आगे की ओर भागने लगा । मैंने कहा - " रुको कौन हो तुम ? "
मुझे बोहोत गुस्सा आया ये कैसा आदमी है अपनी गलती पर सॉरी कहने के बजाए हँस रहा है । मैं भी दौड़ने के मूड मे थी मैंने निश्चय किया कि एक बार इसे जरूर देखूँगी आखिर ये है कौन ? और फिर मैं उसे पकड़ने के इरादे से उसके पीछे भागने लगी ।
वो बोहोत तेज भाग रहा था पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी मैं उसके पीछे भागती रही । भागते हुए वो ग्राउंड को पार करके भाग मे घुस गया मैं उसके पीछे पकड़ने मे इतनी उलझी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उसके पीछे बाग मे पहुँच गई । बाग के अंदर आकर मैं रुक गई ओर जोर -2 से साँस लेने लगी मैं भागते हुए बोहोत थक गई थी और मुझे पसीना भी आ रहा था । तेज-2 साँस लेते हुए मैंने उस आदमी को चारों ओर देखा पर वो ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैं बाग के अंदर थी ओर चारों ओर उसे खोज रही थी पर वो आदमी मुझे कहीं नजर नहीं आया । बाग के अंदर चारों ओर इतनी घनी झाड़ियाँ थी के वहाँ आदमी तो क्या कोई परिंदा तक नहीं था । मैं चारों ओर से अकेली वहाँ घिरी हुई थी जब मेरा ध्यान इस ओर गया तो मैं घबरा गई अकेले उस सूनसान बाग मे वो भी इतनी घनी झाड़ियों के बीच , मेरे तो पसीने छूट गए । मैंने वापस ग्राउंड मे जाने मे ही भलाई समझी और मैं पीछे हटते हुए वहाँ से जाने लगी तभी उन घनी झाड़ियों मे से एक हाथ निकला और उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से खींचा ।
गेट खोला तो सामने अशोक ही थे पर आज रोज की तरह मुस्कुरा नहीं रहे थे उनके हाथ मे एक फाइल थी । मैंने उन्हे देखते ही कहा - "आ गए आप "
अशोक उसी शांत स्वभाव से बोले - " हम्म "
और अंदर की ओर चल दिए । मुझे अशोक के स्वभाव मे कुछ गड़बड़ लगी ऐसा आमतौर पर तो वो नहीं करते । मैंने सोचा " आज ऑफिस मे जरूर कोई बड़ा काम रहा होगा ! या शायद कुछ काम अच्छा ना हुआ हो । " अशोक चुपचाप जाकर हॉल मे सोफ़े पर बैठ गए और मैं भी उनके पीछे - 2 चलती हुई हॉल मे आ गई और उनके बगल मे बैठ कर बोली - " क्या हुआ ? आज मूड बोहोत ऑफ लग रहा है । "
अशोक ने अपने हाथ मे ली हुई फाइल सामने टेबल पर रखी और मेरी ओर देखते हुए बोले - " अरे हाँ ... । बस आज कुछ काम ज्यादा था इसीलिए थोड़ी थकान हो गई । "
मैं - हम्म .. समझ गई ये सब इस फाइल की वजह से हुआ होगा ?
मैंने टेबल पर रखी हुई फाइल को उठाते हुए कहा ।
अशोक - " हाँ ... ये फाइल जाकर अलमारी के लॉकर मे रख दो । और ध्यान रखना ये बोहोत ही जरूरी फाइल है ।
मैं - ठीक है । आप बिल्कुल फिक्र ना करे ।
अशोक - आह .. आज तो अभी से नींद आ रही है । पदमा जल्दी से खाना लगा दो प्लीज ।
मैं - आप बस जाकर फ्रेश होइए मैं खाना लगाती हूँ । फिर आप आराम करना ।
अशोक ने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और कहा - " ओके बीवी साहिबा । " इतना कहकर अशोक ने मेरे गाल पर अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और फ्रेश होने चले गए ।
अशोक को मुस्कुराता देखकर मुझे भी खुशी मिली और मैं खाना तैयार करने कीचेन मे चली गई , थोड़ी ही देर मे मैंने सारा खाना टेबल पर लगा दिया और तब तक अशोक भी आ गए और फिर हम खाना खाने लगे । खाना खाते हुए हम दोनों यूँही हल्की फुल्की बात करने लगे अचानक मेरे मन मे आया की क्यूं ना अशोक से नितिन के बारे मे पूछ लूँ कि वो शहर मे वापस आया है की नहीं ? इससे मेरे मन का वहम भी मिट जाएगा कि जिसको मैंने आज वरुण के घर जाते देखा वो नितिन हो सकता है या नहीं । मैंने यूँही बातों-बातों मे अशोक से पुछा -
मैं - ओर आपके पुराने बॉस नितिन के क्या हॉल है ? वापस आ गए क्या ?
अशोक नितिन की बात सुन खाना खाते हुए एकदम से रुक गए । मुझे कुछ हैरानी हुई, एकदम से अशोक तो ऐसे रुक गए जैसे पहली बार नितिन का नाम सुन रहे हो , उनके चेहरे पर चिंता की लकिरे खिंच आई । अशोक ने मेरी ओर देखकर सीधे सवाल किया - " क्या तुम्हें वो कहीं दिखाई दिया ?"
अशोक के इस जवाब से मैं भी हैरान थी । मैंने अशोक की बात पर ना मे सर हिलाया और अशोक को कहा - " क्या बात है ? आप नितिन का नाम सुन इतने हैरान क्यों हो गए ? " मेरी इस बात से अशोक एकदम से सकपका गए और बात को घूमते हुए बोले - " अअअ..नहीं तो वो बस ऐसे ही बोहोत दिनों बाद उसका जिक्र तुमसे सुन ना इसलिए । नितिन तो अभी यहाँ नहीं है उसे बॉस ने तो आउट ऑफ टाउन भेजा है ना, तो वो कैसे होगा यहाँ । " अशोक ने जल्दी - जल्दी मे जवाब दिया और फिर से खाना खाने लगे । इसके बाद मैंने अशोक को बीच-बीच मे देखा तो वो कुछ परेशान से लग रहे थे मैंने पूछना भी चाहा , पर फिर कही वो गुस्सा ना हो जाए इसलिए चुप ही रही और खाना खाने लगी । अशोक ने खाना खत्म किया और टेबल से उठकर जाने लगे मैंने पीछे से उन्हे आवाज दी ।
मैं - सुनिए ।
अशोक मेरी ओर घूमे ओर कहा - " हाँ बोलो पदमा । "
मैं - अब तो सुबह को इतनी सर्दी भी नहीं होती तो क्यों ना हम दोनों सुबह ग्राउंड मे वॉक पर चले ।
अशोक - हम्म .. बात तो ठीक है पर मुझसे तो अब इतनी जल्दी उठा नहीं जाता तुम एक काम करो तुम चली जाना । मैं भी कुछ दिनों मे शुरू कर दूंगा ।
इतना बोलकर अशोक बेडरूम की ओर चल दिए । मैं जान गई की अब वो सोना चाहते है । अशोक के जाने के बाद मैं अपने बचे हुए काम निपटाने मे लग गई । सब काम खत्म करके मैं हॉल की लाइट्स ऑफ करके बेडरूम की ओर जाने लगी तभी मेरी नजर टेबल पर रखी उस फाइल पर गई जो अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी मैंने उसे टेबल ये उठाया और लेकर बेडरूम मे आ गई और अलमारी का लॉकर खोलकर उसमे रखने लगी एकबार को उसे खोलकर भी देखा उसमे कंपनी की कुछ रिपोर्ट्स थी जो मेरी तो समझ से बाहर थी इसलिए मैंने उसे वही लॉकर मे रखकर लॉक लगा दिया और अलमारी बंद कर दी । फिर मैंने चेंज किया और अपनी साड़ी और ब्लाउज निकालकर एक नाइटी पहन ली और बेड पर लेट गई बेड पर पहले से ही अशोक गहरी नींद मे थे पर मेरी आँखों मे नींद नहीं कई सारे सवाल और जिस्म मे बैचेनी थी । सवाल ये की "क्या जिसको मैंने आज वरुण के घर के बाहर देखा वो नितिन ही था या नहीं और अगर था तो वहाँ क्या कर रहा था ? वरुण के घर उसे क्या काम ? दूसरा आज नितिन का नाम सुन अशोक इतने परेशान क्यों हो गये ? ऐसी क्या बात हो सकती है ? " जिस्म की बैचेनी ये थी के आज वरुण के घर पर रहने के दौरान जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था कहीं वरुण को कुछ पता तो नहीं चल गया उसकी बातों के अंदाज से तो येही लग रहा था कि उसे मुझ पर कुछ शक हो गया है । पता नहीं आगे क्या-2 होगा मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आता । ये सब बाते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई ।
सुबह 5 बजे अलार्म के बजने से मेरी नींद खुली । आज मे 1 घंटा पहले जाग गई क्योंकि मुझे वॉक पर जाना था । मैं अपने बिस्तर से उठी ओर फ्रेश होने वॉशरूम मे चली गई । जब मैं फ्रेश होकर वॉशरूम से बाहर आई मैंने देखा अशोक अभी भी सो रहे थे , वो काफी गहरी नींद मे थे इसलिए मैंने उन्हे जगाना ठीक नहीं समझा मैंने चुप-चाप अपनी अलमारी को खोलकर उसमे से अपना वॉक-सूट निकाला । और उसे पहनने बाथरूम मे चली गई, वॉक-सूट पहनकर मै वॉक के लिए घर से बाहर आई । अशोक अभी सो रहे थे तो मैंने गेट बाहर से लॉक कर दिया उसकी एक चाबी अशोक के पास भी थी तो वो उसे आराम से खोल सकते थे । घर के बाहर आकर मैंने देखा ग्राउंड मे ज्यादा लोग नहीं थे अभी कम ही लोग घूम रहे थे । मैंने सोचा " वरुण तो बोल रहा था कि ग्राउंड मे अब काफी लोग आने लगे है पर यहाँ तो इतने लोग नहीं । " मुझे वरुण भी कही दिखाई नहीं दिया । "खैर मैंने मुझे इन सब से क्या मैं तो घूम कर जल्दी अपने घर वापस आ जाऊँगी । " ये विचार करके मैं ग्राउंड मे पहुँच गई ।
ग्राउंड के सामने ही आगे की ओर एक पुराना बाग था सर्दियों मे किसी के उस ओर ना जाने की वजह से वहाँ बोहोत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ हो गई थी अगर कोई ग्राउंड पार करके उस ओर चला जाए तो कोई ये भी नहीं देख सकता था की वहाँ कोई है या नहीं ? सुबह का वक्त था पर ज्यादा ठंड नहीं थी मैंने अपनी वॉक शुरू की , अभी मैंने चलना शुरू ही किया था के तभी मेरे पीछे से कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझे साइड से कंधा मार कर आगे निकल गया । उसका कंधा लगते ही मैं अपनी जगह से हील गई ओर बस गिरते-2 बची । मैंने संभालते हुए गुस्से से उसे एक आवाज दी
- " ओए ..... कौन है बदतमीज़ ? दिखता नहीं है क्या ? "
वो आदमी एक पल के लिए वहीं रुक गया , पर मेरी ओर पलटा नहीं मैंने उसे पीछे से देखा उसने एक ट्रैक-सूट पहना हुआ था । वहीं रुककर उस आदमी ने बिना पीछे मुड़े एक हँसी भरी और आगे की ओर भागने लगा । मैंने कहा - " रुको कौन हो तुम ? "
मुझे बोहोत गुस्सा आया ये कैसा आदमी है अपनी गलती पर सॉरी कहने के बजाए हँस रहा है । मैं भी दौड़ने के मूड मे थी मैंने निश्चय किया कि एक बार इसे जरूर देखूँगी आखिर ये है कौन ? और फिर मैं उसे पकड़ने के इरादे से उसके पीछे भागने लगी ।
वो बोहोत तेज भाग रहा था पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी मैं उसके पीछे भागती रही । भागते हुए वो ग्राउंड को पार करके भाग मे घुस गया मैं उसके पीछे पकड़ने मे इतनी उलझी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उसके पीछे बाग मे पहुँच गई । बाग के अंदर आकर मैं रुक गई ओर जोर -2 से साँस लेने लगी मैं भागते हुए बोहोत थक गई थी और मुझे पसीना भी आ रहा था । तेज-2 साँस लेते हुए मैंने उस आदमी को चारों ओर देखा पर वो ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैं बाग के अंदर थी ओर चारों ओर उसे खोज रही थी पर वो आदमी मुझे कहीं नजर नहीं आया । बाग के अंदर चारों ओर इतनी घनी झाड़ियाँ थी के वहाँ आदमी तो क्या कोई परिंदा तक नहीं था । मैं चारों ओर से अकेली वहाँ घिरी हुई थी जब मेरा ध्यान इस ओर गया तो मैं घबरा गई अकेले उस सूनसान बाग मे वो भी इतनी घनी झाड़ियों के बीच , मेरे तो पसीने छूट गए । मैंने वापस ग्राउंड मे जाने मे ही भलाई समझी और मैं पीछे हटते हुए वहाँ से जाने लगी तभी उन घनी झाड़ियों मे से एक हाथ निकला और उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से खींचा ।