22-09-2022, 10:17 PM
मैं चुपके से जाके हॉल मे सोफ़े पर बैठ गई और अपने को वरुण की किताब मे व्यस्त करने का दिखावा करने लगी ।
थोड़ी देर बाद वरुण हॉल मे आया उसे भी पसीना आया हुआ था वो चुपचाप आकर मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया । मैंने उसे ना कुछ कहा और ना ही उसकी ओर देखा दरसल अब मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी और मैं वरुण की आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । फिर पढ़ाई का बहाना बना कर मैंने वरुण से बात शुरू की , वरुण पढ़ाते हुए मैंने एक बात नोटिस की वरुण बीच-2 मे मुझे कुछ अजीब तरह से देख रहा था जैसे उसे मुझ पर कुछ शक हो और मैं बेवकूफ उससे नजरे चुराकर उसके शक को ओर भी पक्का कर रही थी ।
थोड़ी देर बाद वरुण के जाने का समय हो गया और वो उठकर जाने लगा , जाते हुए वरुण मेरी ओर देखकर एक कटीली मुस्कान के साथ बोला - " भाभी ! " मैं वरुण की ओर देखकर बोली -
मैं - हाँ वरुण ?
वरुण - आपने अपनी सैंडल क्यों उतारी हुई है ?
दरसल वापस हॉल मे आकर मैं अपनी सैंडल पहनना तो भूल गई थी और वरुण की इस बात से तो मुझे यकीन हो गया की उसे मुझ पर शक है कि मैं उसे छिपकर बाथरूम के बाहर से देख रही थी , मेरा गला सुख गया कुछ जवाब भी ना सुझा , बड़ी मुश्किल से एक बहाना बनाया -
मैं - वो .... वो क्या है ना ...... वरुण ..... सारा दिन ये सैंडल पहनने से मेरे पैरों मे दर्द होने लगता है इसलिए सोचा की थोड़ी देर के लिए उतार दूँ ।
मेरे इस गोल -मोल जवाब को सुन वरुण फिर से मुस्काया और कहने लगा - " भाभी अब तो फरवरी भी खत्म होने को है और अब इतनी ठंड भी नहीं होती । तो आप सुबह को ग्राउंड मे वॉक के लिए क्यों नहीं आ जाती ? अब तो मोहल्ले के काफी लोग भी घूमने आने लगे है , इससे आपके पैरों को भी आराम मिलेगा ।
दरसल हर साल सर्दियाँ बीत जाने पर मैं और अशोक रोज सुबह -सुबह हमारे घर के सामने वाले पार्क मे वॉक और योग के लिए जाते थे पर इस बार सर्दियाँ बीत जाने पर भी अशोक ने मॉर्निंग वॉक की बात नहीं छेड़ी और मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर अब वरुण के याद दिलाने से मुझे भी मॉर्निंग वॉक पर जाने की इच्छा होने लगी मैंने मन मे सोचा की आज अशोक से इसके बारे मे जरूर बात करूंगी ।
मैं - हम्म .. कह तो तुम ठीक रहे हो वरुण । कल से मैं भी शुरू करूंगी ।
वरुण खुश होते हुए बोला- ओके भाभी फिर 6 बजे ग्राउंड मे मिलते है । बाय ।
मैंने भी वरुण को बाय बोला और वो चला गया ।
वरुण के जाने के बाद मैं सीधे बाथरूम की ओर गई बाथरूम के बाहर पानी की कुछ बुँदे बिखरी हुई थी जो और कुछ नहीं अभी थोड़ी देर पहले मेरी योनि से निकला मेरा चुतरस था उसे देखकर मुझे शर्म भी आई और घबराहट भी हुई मेरे मन मे एक बात ने जगह बना ली कि वरुण ने ये मेरा चुतरस जरूर देख लिया होगा और इसीलिए वो मुझे शक की निगाहों से देख रहा था "हे ! भगवान अब क्या होगा ? क्या वरुण जान गया है कि मैं उसे छिपकर देख रही थी ? वो मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा ?" - ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी और फिर मैंने बाथरूम मे प्रवेश किया बाथरूम के अंदर का नजारा तो नॉर्मल ही लग रहा था पर मेरी ब्रा और पेन्टी जो वरुण के हाथ मे थी कहीं नजर नहीं आई मैंने इधर -उधर देखा तो दीवार पर टँगे कपड़ों के पीछे मुझे कुछ दिखाई दिया मैंने धीरे से दीवार पर टँगे कपड़े उतारे उनके उतरते ही सामने मुझे मेरी ब्रा और पेन्टी दिख गई मैंने उन्हे उतारकर अपने हाथों मे लिया पेन्टी तो मुझे ठीक सी ही लगी पर जब ब्रा को मैंने अपने हाथों मे लिया तो कुछ गाढ़ा चिपचिपा लिक्विड की तरह का मेरे हाथों पर लग गया मैंने ब्रा को पलटकर देखा तो उसके कप मे ढेर सारा वोही सफेद लिक्विड भरा हुआ था मैं समझ गई ये ओर कुछ नहीं बल्कि वरुण का वीर्य है जो उसने चरमसुख पाते हुए मेरी ब्रा के कप मे भर दिया था मेरे हाथ वरुण के वीर्य से सन गए थे जिससे मुझे घिन आ रही थी वरुण का वीर्य बोहोत ही गाढ़ा सफेद था वो मेरी उंगलियों और हथेली पर चिपक गया उसे देखकर मुझे ना चाहते हुए भी अशोक की याद आ गई ,कारण था अशोक का पतला वीर्य । अशोक का वीर्य वरुण के मुकाबले बिल्कुल पानी था , ना ही उसका वीर्य इतना गाढ़ा था ना ही सफेद । मैं बाथरूम के पानी की टंकी को खोलकर अपने हाथ धोने लगी । हाथ धोकर मैं अपनी साड़ी उतारने लगी । मैं नहाना चाहती थी आज पूरे दिन की उथल -पुथल मे मुझे नहाने का तो मौका ही नहीं मिला था अपने सारे कपड़े उतारकर मैंने शावर खोल दिया । शावर की ठंडी बुँदे मुझे आनंदित करने लगी और मैं भी आज दिनभर की घटनाओ को भूलकर नहाने लगी ।
नहाने के बाद शावर बंद करके मैं अपने शरीर को टावल से पोंछने लगी ऐसा करते हुए एक बार फिर मेरी नजर मेरी उस ब्रा पर पड़ी जिसपर वरुण ने अपना कम छोड़ा था मेरी नजर बार-बार उस पर जा रही थी और एक अजीब सी कशिश मुझे उसकी ओर बाँधे हुई थी मैं अपने मन की उस स्थिति को बता नहीं सकती पर ना जाने क्यूँ मेरे हाथों ने एक बार फिर से उस ब्रा को उठा लिया और मैं बोहोत ध्यान से उसके कप मे गिरे वरुण के वीर्य को देखने लगी मन मे तो एक उफान सा उमड़ रहा था एक जिज्ञासा से मैं अपनी ब्रा को अपने नाक के पास लाई और वरुण के वीर्य की गंध को सूंघने लगी वरुण के वीर्य की गंध बोहोत तेज और अजीब सी थी उसे सूँघकर मुझे बोहोत अजीब स लगा और मैंने उसे अपने नाक से हटा लिया और उसे नीचे फेंककर अपने कपड़े पहनने लगी।
कपड़े पहनकर मैंने अपने पहले वाले कपड़े वाशिंग मशीन मे धोने के लिए डाल दिए पर अपनी ब्रा को उसमे नहीं डाला मैं नहीं चाहती थी के उसपर लगा वरुण का वीर्य मेरे दूसरे कपड़ों मे भी मिल जाए तो मैंने ब्रा को अलग बाल्टी मे भिगो कर रख दिया । हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई सोफ़े पर बैठी हुई कितनी ही देर तक मैं आज की हुई चीजों के बारे मे सोचती रही ये भी सवाल मन मे था कि क्या वरुण वाकई ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी ने उसके बारे मे कहा था ? आज जो कुछ उसने मेरे बाथरूम मे किया वो तो इसी ओर इशारा कर रहा था । दूसरी ओर मेरा खुद का जिस्म मेरे काबू मे नहीं था मेरे अंदर उत्तेजना कितनी जल्दी भरने लगी थी इसका तो खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था शायद ये सब अशोक से ना मिल पाने वाले प्यार के कारण था जो अब बोहोत आगे बढ़ चुका था और फिर पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो भी हो रहा था उससे भी मेरी दबी हुई कामाअग्नि सुलगने लगी थी । "ना जाने मेरी ये हवस मुझे किस अंधेरे दल-दल मे ले जाएगी " - ये सब मे बैठे हुए सोचती रही । थोड़ी देर ऐसे बैठने के बाद जब मन को कुछ शांति मिली तो मैं उठकर घर की छत पर घूमने चली गई शाम हो जाने की वजह से छत पर ठंड थी और फिर मैं अभी-अभी नहाई भी तो थी । छत पर घूमते हुए मैं गली की ओर वाली रैलिंग पर पहुँची और नीचे गली मे देखने लगी
नीचे कुछ लोग थे जो अपने-अपने काम मे लगे हुए थे तभी मैंने देखा एक बाईक हमारी गली मे आ रही है और आते हुए सीधे वारुण के घर के सामने रुकी । मेरे उस बाईक को इतने गौर से देखने की वजह ये थी कि मैंने वो बाईक पहले भी देखी हुई थी बिल्कुल ऐसी ही बाईक नितिन के पास थी उसपर बैठे आदमी ने हेलमेट लगाया हुआ था वो आदमी अपनी बाईक से नीचे उतरा और वरुण के घर की डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद किसी ने आकर दरवाजा खोला अब तक उस आदमी ने हेलमेट नहीं उतारा था दरवाजा खुलने के बाद उस आदमी ने अपना हेलमेट उतारा । जैसे ही मेरी नजर उस आदमी के चेहरे पर गई एक बार के लिए मैं बिल्कुल हील गई
,वो बाईक वाला आदमी " नितिन " था , कम से कम मुझे तो वहाँ से ऐसा ही दिखाई दिया । शाम का वक्त था और वो मेरी नज़रों से काफी दूर खड़ा था मैंने उसे थोड़ा और गौर से देखने की कोशिश की पर वो तब तक वरुण के घर के अंदर चला गया । मेरा तो शरीर ठंडा पड़ गया , हालाँकि मैंने उसे पूरे साफ तौर पर नहीं देखा था पर जितना देखा उससे तो मैं उसके नितिन होने का ही अंदाजा लगा पाई ।
मेरे मन मे ढेर सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए ," ये कौन था जो नितिन जैसा लग रहा था ? कही ये नितिन ही तो नहीं ? पर वो यहाँ क्या करेगा ? और उसका वरुण के घर से क्या रिश्ता ? वो तो इन्हे जानता भी नहीं । अगर ये नितिन ही हुआ तो ? ये यहाँ हो क्या रहा है ? क्या कोई खेल चल रहा है ? वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो वाक्या हुए है वो भी तो कुछ नॉर्मल नहीं थे । " इन्ही सब बातों को सोचते हुए मैं बैचेन होकर छत पर इधर उधर चक्कर काटने लगी । फिर मन मे ख्याल आया - " नहीं ये नितिन कैसे हो सकता है उसे तो बॉस ने आउट ऑफ टाउन भेजा हुआ है । वो यहाँ कैसे हो सकता है ? पर ये बाईक तो उसकी ही लगती है । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा ?" ये सब बातें मेरे जहन मे घूमने लगी । मैंने सोचा यहीं रुककर देखती हूँ जब वो बाहर आएगा तो एक बार फिर उसे ध्यान से देखने की कोशिश करूंगी । मैं वही छत की रेलिंग पर खड़ी हो गई और गली मे देखने लगी मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा थोड़ी ही देर मे वरुण के घर का दरवाजा खुला और वो आदमी घर के बाहर आया , पर इस बार तो मैं उसे पहले जितना भी नहीं देख पाई क्योंकि वो घर के अंदर से ही हेलमेट लगाकर आया था । वो सीधे अपनी बाईक पर बैठा और उसे स्टार्ट करके जाने लगा एक अजीब बात इस बार ये हुई की जाने से पहले उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा । उसे पीछे मुड़ता पाकर मैं रेलिंग से हट कर नीचे छत पर बैठ गई ।
मैं नहीं जानती की उसने किस ओर देखा था और क्यूँ ? पर मुझे येही लगा जैसे वो मेरे ही घर को देख रहा हो । फिर वो सीधा हुआ और अपनी बाईक तेजी से लेकर चला गया । उसके जाने के बाद मैं कितनी ही देर इन्ही खयालों और सवालों मे उलझी वहाँ घूमती रही ।
थोड़ी देर बाद वरुण हॉल मे आया उसे भी पसीना आया हुआ था वो चुपचाप आकर मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया । मैंने उसे ना कुछ कहा और ना ही उसकी ओर देखा दरसल अब मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी और मैं वरुण की आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । फिर पढ़ाई का बहाना बना कर मैंने वरुण से बात शुरू की , वरुण पढ़ाते हुए मैंने एक बात नोटिस की वरुण बीच-2 मे मुझे कुछ अजीब तरह से देख रहा था जैसे उसे मुझ पर कुछ शक हो और मैं बेवकूफ उससे नजरे चुराकर उसके शक को ओर भी पक्का कर रही थी ।
थोड़ी देर बाद वरुण के जाने का समय हो गया और वो उठकर जाने लगा , जाते हुए वरुण मेरी ओर देखकर एक कटीली मुस्कान के साथ बोला - " भाभी ! " मैं वरुण की ओर देखकर बोली -
मैं - हाँ वरुण ?
वरुण - आपने अपनी सैंडल क्यों उतारी हुई है ?
दरसल वापस हॉल मे आकर मैं अपनी सैंडल पहनना तो भूल गई थी और वरुण की इस बात से तो मुझे यकीन हो गया की उसे मुझ पर शक है कि मैं उसे छिपकर बाथरूम के बाहर से देख रही थी , मेरा गला सुख गया कुछ जवाब भी ना सुझा , बड़ी मुश्किल से एक बहाना बनाया -
मैं - वो .... वो क्या है ना ...... वरुण ..... सारा दिन ये सैंडल पहनने से मेरे पैरों मे दर्द होने लगता है इसलिए सोचा की थोड़ी देर के लिए उतार दूँ ।
मेरे इस गोल -मोल जवाब को सुन वरुण फिर से मुस्काया और कहने लगा - " भाभी अब तो फरवरी भी खत्म होने को है और अब इतनी ठंड भी नहीं होती । तो आप सुबह को ग्राउंड मे वॉक के लिए क्यों नहीं आ जाती ? अब तो मोहल्ले के काफी लोग भी घूमने आने लगे है , इससे आपके पैरों को भी आराम मिलेगा ।
दरसल हर साल सर्दियाँ बीत जाने पर मैं और अशोक रोज सुबह -सुबह हमारे घर के सामने वाले पार्क मे वॉक और योग के लिए जाते थे पर इस बार सर्दियाँ बीत जाने पर भी अशोक ने मॉर्निंग वॉक की बात नहीं छेड़ी और मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर अब वरुण के याद दिलाने से मुझे भी मॉर्निंग वॉक पर जाने की इच्छा होने लगी मैंने मन मे सोचा की आज अशोक से इसके बारे मे जरूर बात करूंगी ।
मैं - हम्म .. कह तो तुम ठीक रहे हो वरुण । कल से मैं भी शुरू करूंगी ।
वरुण खुश होते हुए बोला- ओके भाभी फिर 6 बजे ग्राउंड मे मिलते है । बाय ।
मैंने भी वरुण को बाय बोला और वो चला गया ।
वरुण के जाने के बाद मैं सीधे बाथरूम की ओर गई बाथरूम के बाहर पानी की कुछ बुँदे बिखरी हुई थी जो और कुछ नहीं अभी थोड़ी देर पहले मेरी योनि से निकला मेरा चुतरस था उसे देखकर मुझे शर्म भी आई और घबराहट भी हुई मेरे मन मे एक बात ने जगह बना ली कि वरुण ने ये मेरा चुतरस जरूर देख लिया होगा और इसीलिए वो मुझे शक की निगाहों से देख रहा था "हे ! भगवान अब क्या होगा ? क्या वरुण जान गया है कि मैं उसे छिपकर देख रही थी ? वो मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा ?" - ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी और फिर मैंने बाथरूम मे प्रवेश किया बाथरूम के अंदर का नजारा तो नॉर्मल ही लग रहा था पर मेरी ब्रा और पेन्टी जो वरुण के हाथ मे थी कहीं नजर नहीं आई मैंने इधर -उधर देखा तो दीवार पर टँगे कपड़ों के पीछे मुझे कुछ दिखाई दिया मैंने धीरे से दीवार पर टँगे कपड़े उतारे उनके उतरते ही सामने मुझे मेरी ब्रा और पेन्टी दिख गई मैंने उन्हे उतारकर अपने हाथों मे लिया पेन्टी तो मुझे ठीक सी ही लगी पर जब ब्रा को मैंने अपने हाथों मे लिया तो कुछ गाढ़ा चिपचिपा लिक्विड की तरह का मेरे हाथों पर लग गया मैंने ब्रा को पलटकर देखा तो उसके कप मे ढेर सारा वोही सफेद लिक्विड भरा हुआ था मैं समझ गई ये ओर कुछ नहीं बल्कि वरुण का वीर्य है जो उसने चरमसुख पाते हुए मेरी ब्रा के कप मे भर दिया था मेरे हाथ वरुण के वीर्य से सन गए थे जिससे मुझे घिन आ रही थी वरुण का वीर्य बोहोत ही गाढ़ा सफेद था वो मेरी उंगलियों और हथेली पर चिपक गया उसे देखकर मुझे ना चाहते हुए भी अशोक की याद आ गई ,कारण था अशोक का पतला वीर्य । अशोक का वीर्य वरुण के मुकाबले बिल्कुल पानी था , ना ही उसका वीर्य इतना गाढ़ा था ना ही सफेद । मैं बाथरूम के पानी की टंकी को खोलकर अपने हाथ धोने लगी । हाथ धोकर मैं अपनी साड़ी उतारने लगी । मैं नहाना चाहती थी आज पूरे दिन की उथल -पुथल मे मुझे नहाने का तो मौका ही नहीं मिला था अपने सारे कपड़े उतारकर मैंने शावर खोल दिया । शावर की ठंडी बुँदे मुझे आनंदित करने लगी और मैं भी आज दिनभर की घटनाओ को भूलकर नहाने लगी ।
नहाने के बाद शावर बंद करके मैं अपने शरीर को टावल से पोंछने लगी ऐसा करते हुए एक बार फिर मेरी नजर मेरी उस ब्रा पर पड़ी जिसपर वरुण ने अपना कम छोड़ा था मेरी नजर बार-बार उस पर जा रही थी और एक अजीब सी कशिश मुझे उसकी ओर बाँधे हुई थी मैं अपने मन की उस स्थिति को बता नहीं सकती पर ना जाने क्यूँ मेरे हाथों ने एक बार फिर से उस ब्रा को उठा लिया और मैं बोहोत ध्यान से उसके कप मे गिरे वरुण के वीर्य को देखने लगी मन मे तो एक उफान सा उमड़ रहा था एक जिज्ञासा से मैं अपनी ब्रा को अपने नाक के पास लाई और वरुण के वीर्य की गंध को सूंघने लगी वरुण के वीर्य की गंध बोहोत तेज और अजीब सी थी उसे सूँघकर मुझे बोहोत अजीब स लगा और मैंने उसे अपने नाक से हटा लिया और उसे नीचे फेंककर अपने कपड़े पहनने लगी।
कपड़े पहनकर मैंने अपने पहले वाले कपड़े वाशिंग मशीन मे धोने के लिए डाल दिए पर अपनी ब्रा को उसमे नहीं डाला मैं नहीं चाहती थी के उसपर लगा वरुण का वीर्य मेरे दूसरे कपड़ों मे भी मिल जाए तो मैंने ब्रा को अलग बाल्टी मे भिगो कर रख दिया । हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई सोफ़े पर बैठी हुई कितनी ही देर तक मैं आज की हुई चीजों के बारे मे सोचती रही ये भी सवाल मन मे था कि क्या वरुण वाकई ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी ने उसके बारे मे कहा था ? आज जो कुछ उसने मेरे बाथरूम मे किया वो तो इसी ओर इशारा कर रहा था । दूसरी ओर मेरा खुद का जिस्म मेरे काबू मे नहीं था मेरे अंदर उत्तेजना कितनी जल्दी भरने लगी थी इसका तो खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था शायद ये सब अशोक से ना मिल पाने वाले प्यार के कारण था जो अब बोहोत आगे बढ़ चुका था और फिर पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो भी हो रहा था उससे भी मेरी दबी हुई कामाअग्नि सुलगने लगी थी । "ना जाने मेरी ये हवस मुझे किस अंधेरे दल-दल मे ले जाएगी " - ये सब मे बैठे हुए सोचती रही । थोड़ी देर ऐसे बैठने के बाद जब मन को कुछ शांति मिली तो मैं उठकर घर की छत पर घूमने चली गई शाम हो जाने की वजह से छत पर ठंड थी और फिर मैं अभी-अभी नहाई भी तो थी । छत पर घूमते हुए मैं गली की ओर वाली रैलिंग पर पहुँची और नीचे गली मे देखने लगी
नीचे कुछ लोग थे जो अपने-अपने काम मे लगे हुए थे तभी मैंने देखा एक बाईक हमारी गली मे आ रही है और आते हुए सीधे वारुण के घर के सामने रुकी । मेरे उस बाईक को इतने गौर से देखने की वजह ये थी कि मैंने वो बाईक पहले भी देखी हुई थी बिल्कुल ऐसी ही बाईक नितिन के पास थी उसपर बैठे आदमी ने हेलमेट लगाया हुआ था वो आदमी अपनी बाईक से नीचे उतरा और वरुण के घर की डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद किसी ने आकर दरवाजा खोला अब तक उस आदमी ने हेलमेट नहीं उतारा था दरवाजा खुलने के बाद उस आदमी ने अपना हेलमेट उतारा । जैसे ही मेरी नजर उस आदमी के चेहरे पर गई एक बार के लिए मैं बिल्कुल हील गई
,वो बाईक वाला आदमी " नितिन " था , कम से कम मुझे तो वहाँ से ऐसा ही दिखाई दिया । शाम का वक्त था और वो मेरी नज़रों से काफी दूर खड़ा था मैंने उसे थोड़ा और गौर से देखने की कोशिश की पर वो तब तक वरुण के घर के अंदर चला गया । मेरा तो शरीर ठंडा पड़ गया , हालाँकि मैंने उसे पूरे साफ तौर पर नहीं देखा था पर जितना देखा उससे तो मैं उसके नितिन होने का ही अंदाजा लगा पाई ।
मेरे मन मे ढेर सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए ," ये कौन था जो नितिन जैसा लग रहा था ? कही ये नितिन ही तो नहीं ? पर वो यहाँ क्या करेगा ? और उसका वरुण के घर से क्या रिश्ता ? वो तो इन्हे जानता भी नहीं । अगर ये नितिन ही हुआ तो ? ये यहाँ हो क्या रहा है ? क्या कोई खेल चल रहा है ? वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो वाक्या हुए है वो भी तो कुछ नॉर्मल नहीं थे । " इन्ही सब बातों को सोचते हुए मैं बैचेन होकर छत पर इधर उधर चक्कर काटने लगी । फिर मन मे ख्याल आया - " नहीं ये नितिन कैसे हो सकता है उसे तो बॉस ने आउट ऑफ टाउन भेजा हुआ है । वो यहाँ कैसे हो सकता है ? पर ये बाईक तो उसकी ही लगती है । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा ?" ये सब बातें मेरे जहन मे घूमने लगी । मैंने सोचा यहीं रुककर देखती हूँ जब वो बाहर आएगा तो एक बार फिर उसे ध्यान से देखने की कोशिश करूंगी । मैं वही छत की रेलिंग पर खड़ी हो गई और गली मे देखने लगी मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा थोड़ी ही देर मे वरुण के घर का दरवाजा खुला और वो आदमी घर के बाहर आया , पर इस बार तो मैं उसे पहले जितना भी नहीं देख पाई क्योंकि वो घर के अंदर से ही हेलमेट लगाकर आया था । वो सीधे अपनी बाईक पर बैठा और उसे स्टार्ट करके जाने लगा एक अजीब बात इस बार ये हुई की जाने से पहले उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा । उसे पीछे मुड़ता पाकर मैं रेलिंग से हट कर नीचे छत पर बैठ गई ।
मैं नहीं जानती की उसने किस ओर देखा था और क्यूँ ? पर मुझे येही लगा जैसे वो मेरे ही घर को देख रहा हो । फिर वो सीधा हुआ और अपनी बाईक तेजी से लेकर चला गया । उसके जाने के बाद मैं कितनी ही देर इन्ही खयालों और सवालों मे उलझी वहाँ घूमती रही ।