22-09-2022, 09:08 PM
7. जब आँखे खुली तब कुछ होश आया । साँसे तो अब नॉर्मल हो गई थी पर लज्जा के मारे मेरा दिल बैठने लगा । मेरी हवस का गुबार अब शांत हो चुका था और अब उसकी जगह पाप और शर्म ने लेली । " पदमा ये तूने क्या कर दिया , तू अपनी हवस मे इतनी अंधी कैसे हो सकती है ? "- मैंने खुद से मन मे सवाल किया । मन मे कई सारे भाव एक साथ उठने लगे मेरे लिए एक पल भी अब गुप्ता जी की दुकान मे रुकना मुझे अपमानित कर रहा था । गुप्ता जी अभी भी मेरे ऊपर लेटे हुए थे उन्हे तो मानो कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा हो । मैंने ही गुप्ता जी से कहा - " गुप्ता जी ! हठीये मुझे जाना है । " मेरे इतना कहने पर गुप्ता जी बिना कुछ बोले मेरे ऊपर से हटकर साइड मे लेट गए । गुप्ता जी के अपने ऊपर से हटने से मुझे ऐसा लगा जैसे एक बोहोत बड़ा भार मेरे शरीर के ऊपर से हट गया हो ।गुप्ता जी के हटने के बाद मैं उठने लगी , उठते हुए अपनी हालत देख मुझे खुद पर रोना सा आ गया मेरे बदन पर कपड़े के नाम पर केवल मेरी छोटी सी पेन्टी थी
जो मेरी योनि के चुतरस से भीगी हुई थी जिसकी वजह से वो चिपचिपी होकर मेरी योनि से चिपक गई थी और उससे मेरी योनि को बोहोत असुविधा होने लगी मुश्किल से मैं सीधी हुई । मैंने गुप्ता जी की ओर देखा उनका लिंग अभी भी उनकी पेंट के बाहर मुरझाया हुआ पड़ा था और वो खुद लेटे हुए बेशर्मी से मुझे देख रहे थे । ये पहली बार था जब मैंने गुप्ता जी का लिंग देखा था अब तक मैंने सिर्फ उसे महसूस ही किया था शर्म से मैंने अपना मुहँ फेर लिया और इधर उधर पड़े अपने कपड़े समेटने लगी गुप्ता जी अब बैठ गए और उन्होंने अपना लिंग अपनी पेंट के अंदर डाल जीप लगा ली , बैठकर भी वो मुझपर ही नजरे बनाएं हुए थे । अपने जिस्म को ढकने के लिए मैंने जमीन पर पड़े कुछ कपड़े उठाए और उन्हे अपने पर डाल लिया .
और अपनी ब्रा , ब्लाउज और पेटीकोट लेकर परदे के पीछे चली गई, जाते हुए भी गुप्ता जी पीछे से मुझे घूर रहे थे, पर वो कुछ बोले नहीं । परदे के पीछे जाकर मैंने अपने कपड़े पहनने शुरू कीये परदा इतना महीन था के आर-पार का सब कुछ दिख रहा था और गुप्ता जी की नजरे वहाँ भी मेरा पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी । मैंने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने शुरू
कीये सबसे पहले अपनी ब्रा को पहनने लगी ब्रा पहनते हुए मुझे मेरे बूब्स मे हल्का दर्द मुहसूस हुआ जिसका कारण था गुप्ता जी के हाथों के द्वारा उनका बेदर्दी से मसला जाना । ब्रा पहनने के बाद मैंने अपना ब्लाउज पहना और जैसे ही पेटीकोट पहनने की सोची तो चुतरस से भीगी पेंटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा अगर मैंने ऐसे ही पेन्टी के ऊपर पेटीकोट पहन लिया तो मुझे रास्ते भर चलने मे परेशानी होगी और मुझे ऐसे चलता देख मोहल्ले के लोगों को कुछ शक भी हो सकता था इसलिए मैंने पेन्टी को ना पहनने का फैसला किया और उसे निकालने लगी पेन्टी निकालते समय मुझे इस बात का भी ध्यान नहीं रहा की गुप्ता जी परदे के पीछे से मेरी एक-एक हरकत पर नजर बनाए हुए है । पेन्टी निकालने के बाद मैंने उसे अपने हाथ मे लेकर देखा तो उसपर बोहोत सारा गुप्ता जी का वीर्य बिखरा हुआ था उसे देख मुझे अपने ऊपर फिर से शर्म आ गई मैंने चुपचाप अपनी पेन्टी को अपने पर्स मे रख लिया और अपना पेटीकोट पहन , नीचे पड़ी अपनी साड़ी पहन ली । कपड़े पहनने के बाद मैंने अपने आप को थोड़ा ठिक करने का सोचा क्योंकि मुझे घर भी जाना था और रास्ते मे खड़े मोहल्ले के लोग तो वैसे ही मुझे घूरते रहते है और अगर मैं ऐसे बाहर निकली तो वो लोग मेरी हालत देखकर तुरंत समझ जाएंगे कि मैंने गुप्ता जी के साथ क्या गुल खिलाए है इसलिए सबसे पहले मैंने अपने बालों को ठिक किया जो बिखरे हुए थे फिर अपने पर्स से एक छोटा सा आईना निकालकर अपने चेहरे को देखा -" माथे की बिंदी भी बिखर गई थी और होंठों की लाली तो गुप्ता जी ने मेरे होंठ चूस-चूस कर मिटा ही दी थी । " मैंने अपने पर्स से एक नई बिंदी निकाली और उसे अपने माथे पर लगाया फिर लाली की डब्बी निकाली और उसमे से थोड़ी लाली अपनी उँगली पर लेकर अपने होंठों पर लगाई
जब सब कुछ ठिक लगा तो मैं पदरे के पीछे से बाहर आई । बाहर आई तो देखा गुप्ता जी दीवार के सहारे खड़े हुए मुझे देख रहे थे , पर वो कुछ बोले नहीं । अब तक हम दोनों मे से कोई भी कुछ नहीं बोला था । मेरे मुहँ से तो शब्द ही नहीं निकल रहे थे , निकलते भी कैसे मुझे वहाँ खड़े रहकर तो एक - एक पल काटने को दौड़ता था शर्म के मारे आँखों मे नमी आ गई मैं बस किसी भी तरह जल्द-से-जल्द अपने घर पहुंचना चाहती थी । मैं अपना सर नीचे कीये चुपचाप खड़ी रही ओर दरवाजे की ओर बढ़ने लगी मुझे जाता देख गुप्ता जी ने टोका -
गुप्ता जी - पदमा !
उनकी आवाज सुन मैं रुक गई पर उनकी ओर पलटी नहीं । मुझे ऐसे ही चुप-चाप खड़ा देख गुप्ता जी एक बार फिर से बोले - " पदमा , आज जो भी हुआ तुम उसे लेकर परेशान मत होना । ये सब तो किस्मत का खेल है , वरना मेरी इतनी हिम्मत कहाँ की मैं ऐसा तुम्हारे साथ कर सकूँ । हालातो पर हमारा जोर नहीं होता पदमा , और हालात ही ऐसे बने की ये सब हो गया । तुम्हें देखकर ना मैं अपने आप को रोक पाया और फिर तुम भी अपनी हवस मे बहक गई । "
गुप्ता जी की बातों से साफ जाहीर था की वो अपने सारे कीये का दोष किस्मत , हालातों और मुझ पर डालना चाहते थे ताकि मैं उनके बारे मे कोई गलत धारणा ना बनाऊ , जबकि सारी समस्या की जड़ खुद गुप्ता जी थे । उन्होंने ही मुझे उत्तेजित किया ताकि मैं अपनी हवस मे बह जाऊँ और अपने मकसद मे वो किसी हद तक कामयाब भी हो गए । गुप्ता जी की बातों को सुनकर मैंने रुदासी से उनकी ओर देखा और कहा - "गुप्ता जी , प्लीज आज जो कुछ भी हुआ उसका जिक्र किसी के सामने मत कीजिएगा "
मेरी बात सुनकर गुप्ता जी मेरी ओर बढ़े और बोले - " ये क्या पदमा तुम्हारी आँखों मे आँसू ?"
गुप्ता जी मेरे करीब आकर शायद मुझे दिलासा देना चाहते थे पर मैं अभी उनके पास जाने मे अपमानित महसूस कर रही थी इसलिए जैसे ही वो मेरे करीब आने लगे मैंने उनके हाथ अपने से दूर झटक दिए ।
मेरी हरकत से गुप्ता जी को झटका सा लगा और वो चुपचाप दूर खड़े होकर मुझे देखने लगे और कुछ देर बाद बोले - " पदमा , तुम मुझे गलत मत समझना मैंने भी अपने आप पर काबू रखने की बोहोत कोशिश की थी पर क्या करूँ ? हूँ तो आखिर एक मर्द और जब तुम्हारे जैसी अप्सरा किसी के सामने आ जाए तो ऋषि -मुनियों का भी धैर्य जवाब दे जाए मैं तो फिर भी बस एक आम आदमी हूँ । " मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की गुप्ता जी की बात का क्या जवाब दूँ ? उनकी बात सुन मैंने उनकी ओर देखा और कहा - " गुप्ता जी , ये आप क्या कह रहे हैं ?
गुप्ता जी - मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ पदमा शायद तुम्हें अपनी खूबसूरती का अंदाजा नहीं है पर ये सच है की तुम्हारे लिए सिर्फ मैं ही नहीं कालोनी का हर मर्द आहें भरता है तुम्हें पाना चाहता है ।
गुप्ता जी अपनी बातों के तीर लगातार मुझ पर छोड़ने लगे और मैं भी मंत्र मुग्ध होकर अपनी तारीफ सुनने लगी ।
उनकी हर बात का मुझपर असर होने लगा ये सब बातें तो कभी अशोक ने भी मुझसे नहीं कहीं थी मुझे लगने लगा कहीं मैं एक बार फिर बहक ना जाऊँ इसलिए गुप्ता जी की बात बीच मैंने गुप्ता जी की बात बीच मे ही काट दी और कहा - " गुप्ता जी , ये सब बातें मत बोलिए प्लीज । "
गुप्ता जी - लेकिन क्यूं पदमा , क्या तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा ।
मैं - नहीं गुप्ता जी , मैं ये सब नहीं सुनना चाहती बोहोत देर हो गई है मुझे जाना चाहिए । बस आपसे एक विनती है आज यहाँ जो कुछ हुआ वो आप किसी से ना कहिएगा , नहीं तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी ।
गुप्ता जी - तुम इतनी शर्मिंदा क्यों हो रही हो पदमा ? तुमने कुछ गलत नहीं किया ।
मैं - नहीं गुप्ता जी ये जो कुछ भी आज हुआ है मेरे लिए बोहोत अपमानजनक है मैं शादीशुदा हूँ और मेरी कुछ सीमाएं है । आप बस वादा कीजिए की आप किसी को इस बारे मे कुछ नहीं बताएंगे प्लीज ।
गुप्ता जी - ठीक हैं पदमा मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा लेकिन ........
गुप्ता जी इतना कहकर रुक गए । गुप्ता जी की बात को जानने के लिए मैंने ही उनसे पुछा - " लेकिन क्या गुप्ता जी , क्या बात है बोलिए ?"
गुप्ता जी - मुझे तुमसे एक चीज चाहिए ।
मै गुप्ता जी की बात सुनकर थोड़ा घबरा गयी के अब गुप्ता जी को क्या चाहिए कहीं वो कुछ ऐसा ना मांग बैठे जो मेरे लिए और भी बड़ी मुसीबत बन जाए । मैंने डरते-2 गुप्ता जी से पूछ। - क्या चाहिए गुप्ता जी आपको ?
गुप्ता जी - वो लाल कपड़ा जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले अपने पर्स मे रखा है ।
पहले तो मुझे समझ नहीं आया के गुप्ता जी क्या माँग रहे है पर फिर जब समझ आया तो गाल शर्म से लाल हो गए गुप्ता जी मेरी पेन्टी मांग रहे थे पर वो उसका क्या करेंगे उन्हे उससे क्या काम हो सकता है ? और इससे भी बड़ी बात मैं उन्हे अपने आप कैसे अपनी पेन्टी देदूँ । ये तो मुझ से ना हो पाएगा । मैंने गुप्ता जी से पुछा - " क्यूँ गुप्ता जी ? आपको वो क्यूँ चाहिए ? "
गुप्ता जी - अब तुम तो चली जाओगी पदमा , मेरे पास तो बस आज की याद रह जाएगी इसलिए तुमसे दूर रहकर मेरे पास भी तो कुछ होना चाहिए जिससे मैं आज की याद को बनाए रखूँ ।
मैं - लेकिन गुप्ता जी मैं कैसे ...।..।?
गुप्ता जी - प्लीज , पदमा बस एक बार मुझे अपनी पेन्टी देदो ?
गुप्ता जी ने सीधा 'पेन्टी' शब्द मेरे सामने ही बोल दिया और मैं शर्माकर रह गई । गुप्ता जी तो अपनी बात पर अड़े थे और मुझे देर हो रही थी इसलिए मैंने सोचा दे ही देती हूँ एक पेन्टी देने से क्या हो जाएगा ? फिर मुझे ये भी था कि मेरी पेन्टी लेने के बाद गुप्ता जी किसी की मेरे बारे मे कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन खुद अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी के हाथों मे देना मेरा मानभंग कर रहा था मैंने अपना पर्स खोला और उसे गुप्ता जी की ओर बढ़ा दिया और बोली - " ये लीजिए गुप्ता निकाल लीजिए ?" गुप्ता जी - पदमा तुम खुद ही निकालकर देदों ।
अब गुप्ता जी ने मुझे और भी परेशानी मे डाल दिया । मैंने गुप्ता जी कहा - " आप खुद ही लेलिजीएना ना मुझसे नहीं निकाली जाएगी । "
गुप्ता जी - नहीं पदमा , पेन्टी तुम्हारी है और अगर तुम अपनी मर्जी से दे रही हो तो तुम्हें ये अपने हाथों से निकालकर मुझे देनी होगी नहीं तो रहने दो मुझे नहीं चाहिए। गुप्ता जी ने तो अपनी बात साफ कर दी थी पर मुझे अब समझ नहीं आ रहा था के क्या करूँ एक तरफ मुझे ये डर भी था के कहीं गुप्ता जी किसी को कुछ बता ना दे दूसरी ओर अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी को देने मैं मुझे शर्म भी आ रही थी । आखिर मेरी शर्म पर मेरा डर जीत गया और मैंने अपने पर्स के अंदर हाथ डाल के अपनी पेन्टी को निकाला उसमे अभी भी थोड़ा गीलापन था पेन्टी निकालकर मैंने वो गुप्ता जी की ओर बढ़ा दी । गुप्ता जी ने मुस्कुराते हुए उसे तुरंत अपने हाथों मे ले लिया और इसी मे मेरे हाथ को भी छु लिया । मेरी पेन्टी को पाकर गुप्ता जी तो फुले ना समायें और खुश होकर उसे अपने हाथों मे लेकर आँखे फाड़-फाड़कर देखने लगे गुप्ता जी को ऐसा करते देख मेरे मन मे एक सवाल को पूछने की इच्छा हुई पहले तो मैंने नहीं पुछा पर फिर अपने मन की उत्सुकता को रोक भी ना सकी और गुप्ता जी से पूछ ही लिया -
मैं - " इसका क्या किजिएगा ...?" गुप्ता जी ने पेन्टी से ध्यान हटा मेरी ओर देखा और जवाब मे मेरी पेन्टी को अपने एक हाथ से पकड़ अपने होंठों के पास लाकर अपनी जीब से उसे चाटने लगे ।
गुप्ता जी के इस जवाब से तो मेरा मन डोल गया और शर्मा के मैंने अपना सर नीचे झुका लिया । मैं गुप्ता जी की दुकान से जाना तो चाहती थी पर अभी गुप्ता जी ने मुझे पूरा आश्वासन नहीं दिया था की वो आज की घटना के बारे मे किसी को नहीं बताएंगे मैंने गुप्ता जी से फिर पुछा - " अब तो मैंने आपकी बात मान ली गुप्ता जी , अब आप वादा कीजिए की आप किसी से आज की घटना के बारे मे कुछ नहीं कहेंगे । "
गुप्ता जी ने मेरी पेन्टी को हाथों मे लेकर मसलते हुए कहा - "वादा पदमा , आज यहाँ इस कमरे मे जो भी हुआ वो मेरे और तुम्हारे अलावा किसी तीसरे को पता नहीं चलेगा ।" गुप्ता जी की ये बात सुनकर मैंने चैन की साँस ली और घर जाने लगी । जैसे ही मैं दरवाजे पर पहुँची गुप्ता जी ने मुझे एक बार ओर आवाज दी - " पदमा ! "
गुप्ता जी की आवाज सुनकर मैं फिर से सोच मे पड़ गई के अब इन्हे क्या चाहिए । बिना कुछ बोले मैं बस गुप्ता जी की ओर थोड़ा घूम गई । गुप्ता जी ने आगे सवाल किया - " फिर कब आओगी ? " मैंने हैरानी से गुप्ता जी की ओर देखा मुझे अपनी ओर इस तरह से घूरते पाकर गुप्ता जी ने अपनी बात संभाली और कहा - " मेरा मतलब सिले हुए कपड़े लेने कब आओगी ? "
मैं - आप सिल दीजिए गुप्ता जी मैं थोड़े दिनों बाद अपने-आप आ जाऊँगी ?
गुप्ता जी कुछ नहीं बोले । मैं भी दरवाजा खोलकर गुप्ता जी की दुकान से बाहर आ गई और सीढ़ियों से नीचे उतरकर गली मे चल दी ।
जो मेरी योनि के चुतरस से भीगी हुई थी जिसकी वजह से वो चिपचिपी होकर मेरी योनि से चिपक गई थी और उससे मेरी योनि को बोहोत असुविधा होने लगी मुश्किल से मैं सीधी हुई । मैंने गुप्ता जी की ओर देखा उनका लिंग अभी भी उनकी पेंट के बाहर मुरझाया हुआ पड़ा था और वो खुद लेटे हुए बेशर्मी से मुझे देख रहे थे । ये पहली बार था जब मैंने गुप्ता जी का लिंग देखा था अब तक मैंने सिर्फ उसे महसूस ही किया था शर्म से मैंने अपना मुहँ फेर लिया और इधर उधर पड़े अपने कपड़े समेटने लगी गुप्ता जी अब बैठ गए और उन्होंने अपना लिंग अपनी पेंट के अंदर डाल जीप लगा ली , बैठकर भी वो मुझपर ही नजरे बनाएं हुए थे । अपने जिस्म को ढकने के लिए मैंने जमीन पर पड़े कुछ कपड़े उठाए और उन्हे अपने पर डाल लिया .
और अपनी ब्रा , ब्लाउज और पेटीकोट लेकर परदे के पीछे चली गई, जाते हुए भी गुप्ता जी पीछे से मुझे घूर रहे थे, पर वो कुछ बोले नहीं । परदे के पीछे जाकर मैंने अपने कपड़े पहनने शुरू कीये परदा इतना महीन था के आर-पार का सब कुछ दिख रहा था और गुप्ता जी की नजरे वहाँ भी मेरा पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी । मैंने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने शुरू
कीये सबसे पहले अपनी ब्रा को पहनने लगी ब्रा पहनते हुए मुझे मेरे बूब्स मे हल्का दर्द मुहसूस हुआ जिसका कारण था गुप्ता जी के हाथों के द्वारा उनका बेदर्दी से मसला जाना । ब्रा पहनने के बाद मैंने अपना ब्लाउज पहना और जैसे ही पेटीकोट पहनने की सोची तो चुतरस से भीगी पेंटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा अगर मैंने ऐसे ही पेन्टी के ऊपर पेटीकोट पहन लिया तो मुझे रास्ते भर चलने मे परेशानी होगी और मुझे ऐसे चलता देख मोहल्ले के लोगों को कुछ शक भी हो सकता था इसलिए मैंने पेन्टी को ना पहनने का फैसला किया और उसे निकालने लगी पेन्टी निकालते समय मुझे इस बात का भी ध्यान नहीं रहा की गुप्ता जी परदे के पीछे से मेरी एक-एक हरकत पर नजर बनाए हुए है । पेन्टी निकालने के बाद मैंने उसे अपने हाथ मे लेकर देखा तो उसपर बोहोत सारा गुप्ता जी का वीर्य बिखरा हुआ था उसे देख मुझे अपने ऊपर फिर से शर्म आ गई मैंने चुपचाप अपनी पेन्टी को अपने पर्स मे रख लिया और अपना पेटीकोट पहन , नीचे पड़ी अपनी साड़ी पहन ली । कपड़े पहनने के बाद मैंने अपने आप को थोड़ा ठिक करने का सोचा क्योंकि मुझे घर भी जाना था और रास्ते मे खड़े मोहल्ले के लोग तो वैसे ही मुझे घूरते रहते है और अगर मैं ऐसे बाहर निकली तो वो लोग मेरी हालत देखकर तुरंत समझ जाएंगे कि मैंने गुप्ता जी के साथ क्या गुल खिलाए है इसलिए सबसे पहले मैंने अपने बालों को ठिक किया जो बिखरे हुए थे फिर अपने पर्स से एक छोटा सा आईना निकालकर अपने चेहरे को देखा -" माथे की बिंदी भी बिखर गई थी और होंठों की लाली तो गुप्ता जी ने मेरे होंठ चूस-चूस कर मिटा ही दी थी । " मैंने अपने पर्स से एक नई बिंदी निकाली और उसे अपने माथे पर लगाया फिर लाली की डब्बी निकाली और उसमे से थोड़ी लाली अपनी उँगली पर लेकर अपने होंठों पर लगाई
जब सब कुछ ठिक लगा तो मैं पदरे के पीछे से बाहर आई । बाहर आई तो देखा गुप्ता जी दीवार के सहारे खड़े हुए मुझे देख रहे थे , पर वो कुछ बोले नहीं । अब तक हम दोनों मे से कोई भी कुछ नहीं बोला था । मेरे मुहँ से तो शब्द ही नहीं निकल रहे थे , निकलते भी कैसे मुझे वहाँ खड़े रहकर तो एक - एक पल काटने को दौड़ता था शर्म के मारे आँखों मे नमी आ गई मैं बस किसी भी तरह जल्द-से-जल्द अपने घर पहुंचना चाहती थी । मैं अपना सर नीचे कीये चुपचाप खड़ी रही ओर दरवाजे की ओर बढ़ने लगी मुझे जाता देख गुप्ता जी ने टोका -
गुप्ता जी - पदमा !
उनकी आवाज सुन मैं रुक गई पर उनकी ओर पलटी नहीं । मुझे ऐसे ही चुप-चाप खड़ा देख गुप्ता जी एक बार फिर से बोले - " पदमा , आज जो भी हुआ तुम उसे लेकर परेशान मत होना । ये सब तो किस्मत का खेल है , वरना मेरी इतनी हिम्मत कहाँ की मैं ऐसा तुम्हारे साथ कर सकूँ । हालातो पर हमारा जोर नहीं होता पदमा , और हालात ही ऐसे बने की ये सब हो गया । तुम्हें देखकर ना मैं अपने आप को रोक पाया और फिर तुम भी अपनी हवस मे बहक गई । "
गुप्ता जी की बातों से साफ जाहीर था की वो अपने सारे कीये का दोष किस्मत , हालातों और मुझ पर डालना चाहते थे ताकि मैं उनके बारे मे कोई गलत धारणा ना बनाऊ , जबकि सारी समस्या की जड़ खुद गुप्ता जी थे । उन्होंने ही मुझे उत्तेजित किया ताकि मैं अपनी हवस मे बह जाऊँ और अपने मकसद मे वो किसी हद तक कामयाब भी हो गए । गुप्ता जी की बातों को सुनकर मैंने रुदासी से उनकी ओर देखा और कहा - "गुप्ता जी , प्लीज आज जो कुछ भी हुआ उसका जिक्र किसी के सामने मत कीजिएगा "
मेरी बात सुनकर गुप्ता जी मेरी ओर बढ़े और बोले - " ये क्या पदमा तुम्हारी आँखों मे आँसू ?"
गुप्ता जी मेरे करीब आकर शायद मुझे दिलासा देना चाहते थे पर मैं अभी उनके पास जाने मे अपमानित महसूस कर रही थी इसलिए जैसे ही वो मेरे करीब आने लगे मैंने उनके हाथ अपने से दूर झटक दिए ।
मेरी हरकत से गुप्ता जी को झटका सा लगा और वो चुपचाप दूर खड़े होकर मुझे देखने लगे और कुछ देर बाद बोले - " पदमा , तुम मुझे गलत मत समझना मैंने भी अपने आप पर काबू रखने की बोहोत कोशिश की थी पर क्या करूँ ? हूँ तो आखिर एक मर्द और जब तुम्हारे जैसी अप्सरा किसी के सामने आ जाए तो ऋषि -मुनियों का भी धैर्य जवाब दे जाए मैं तो फिर भी बस एक आम आदमी हूँ । " मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की गुप्ता जी की बात का क्या जवाब दूँ ? उनकी बात सुन मैंने उनकी ओर देखा और कहा - " गुप्ता जी , ये आप क्या कह रहे हैं ?
गुप्ता जी - मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ पदमा शायद तुम्हें अपनी खूबसूरती का अंदाजा नहीं है पर ये सच है की तुम्हारे लिए सिर्फ मैं ही नहीं कालोनी का हर मर्द आहें भरता है तुम्हें पाना चाहता है ।
गुप्ता जी अपनी बातों के तीर लगातार मुझ पर छोड़ने लगे और मैं भी मंत्र मुग्ध होकर अपनी तारीफ सुनने लगी ।
उनकी हर बात का मुझपर असर होने लगा ये सब बातें तो कभी अशोक ने भी मुझसे नहीं कहीं थी मुझे लगने लगा कहीं मैं एक बार फिर बहक ना जाऊँ इसलिए गुप्ता जी की बात बीच मैंने गुप्ता जी की बात बीच मे ही काट दी और कहा - " गुप्ता जी , ये सब बातें मत बोलिए प्लीज । "
गुप्ता जी - लेकिन क्यूं पदमा , क्या तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा ।
मैं - नहीं गुप्ता जी , मैं ये सब नहीं सुनना चाहती बोहोत देर हो गई है मुझे जाना चाहिए । बस आपसे एक विनती है आज यहाँ जो कुछ हुआ वो आप किसी से ना कहिएगा , नहीं तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी ।
गुप्ता जी - तुम इतनी शर्मिंदा क्यों हो रही हो पदमा ? तुमने कुछ गलत नहीं किया ।
मैं - नहीं गुप्ता जी ये जो कुछ भी आज हुआ है मेरे लिए बोहोत अपमानजनक है मैं शादीशुदा हूँ और मेरी कुछ सीमाएं है । आप बस वादा कीजिए की आप किसी को इस बारे मे कुछ नहीं बताएंगे प्लीज ।
गुप्ता जी - ठीक हैं पदमा मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा लेकिन ........
गुप्ता जी इतना कहकर रुक गए । गुप्ता जी की बात को जानने के लिए मैंने ही उनसे पुछा - " लेकिन क्या गुप्ता जी , क्या बात है बोलिए ?"
गुप्ता जी - मुझे तुमसे एक चीज चाहिए ।
मै गुप्ता जी की बात सुनकर थोड़ा घबरा गयी के अब गुप्ता जी को क्या चाहिए कहीं वो कुछ ऐसा ना मांग बैठे जो मेरे लिए और भी बड़ी मुसीबत बन जाए । मैंने डरते-2 गुप्ता जी से पूछ। - क्या चाहिए गुप्ता जी आपको ?
गुप्ता जी - वो लाल कपड़ा जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले अपने पर्स मे रखा है ।
पहले तो मुझे समझ नहीं आया के गुप्ता जी क्या माँग रहे है पर फिर जब समझ आया तो गाल शर्म से लाल हो गए गुप्ता जी मेरी पेन्टी मांग रहे थे पर वो उसका क्या करेंगे उन्हे उससे क्या काम हो सकता है ? और इससे भी बड़ी बात मैं उन्हे अपने आप कैसे अपनी पेन्टी देदूँ । ये तो मुझ से ना हो पाएगा । मैंने गुप्ता जी से पुछा - " क्यूँ गुप्ता जी ? आपको वो क्यूँ चाहिए ? "
गुप्ता जी - अब तुम तो चली जाओगी पदमा , मेरे पास तो बस आज की याद रह जाएगी इसलिए तुमसे दूर रहकर मेरे पास भी तो कुछ होना चाहिए जिससे मैं आज की याद को बनाए रखूँ ।
मैं - लेकिन गुप्ता जी मैं कैसे ...।..।?
गुप्ता जी - प्लीज , पदमा बस एक बार मुझे अपनी पेन्टी देदो ?
गुप्ता जी ने सीधा 'पेन्टी' शब्द मेरे सामने ही बोल दिया और मैं शर्माकर रह गई । गुप्ता जी तो अपनी बात पर अड़े थे और मुझे देर हो रही थी इसलिए मैंने सोचा दे ही देती हूँ एक पेन्टी देने से क्या हो जाएगा ? फिर मुझे ये भी था कि मेरी पेन्टी लेने के बाद गुप्ता जी किसी की मेरे बारे मे कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन खुद अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी के हाथों मे देना मेरा मानभंग कर रहा था मैंने अपना पर्स खोला और उसे गुप्ता जी की ओर बढ़ा दिया और बोली - " ये लीजिए गुप्ता निकाल लीजिए ?" गुप्ता जी - पदमा तुम खुद ही निकालकर देदों ।
अब गुप्ता जी ने मुझे और भी परेशानी मे डाल दिया । मैंने गुप्ता जी कहा - " आप खुद ही लेलिजीएना ना मुझसे नहीं निकाली जाएगी । "
गुप्ता जी - नहीं पदमा , पेन्टी तुम्हारी है और अगर तुम अपनी मर्जी से दे रही हो तो तुम्हें ये अपने हाथों से निकालकर मुझे देनी होगी नहीं तो रहने दो मुझे नहीं चाहिए। गुप्ता जी ने तो अपनी बात साफ कर दी थी पर मुझे अब समझ नहीं आ रहा था के क्या करूँ एक तरफ मुझे ये डर भी था के कहीं गुप्ता जी किसी को कुछ बता ना दे दूसरी ओर अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी को देने मैं मुझे शर्म भी आ रही थी । आखिर मेरी शर्म पर मेरा डर जीत गया और मैंने अपने पर्स के अंदर हाथ डाल के अपनी पेन्टी को निकाला उसमे अभी भी थोड़ा गीलापन था पेन्टी निकालकर मैंने वो गुप्ता जी की ओर बढ़ा दी । गुप्ता जी ने मुस्कुराते हुए उसे तुरंत अपने हाथों मे ले लिया और इसी मे मेरे हाथ को भी छु लिया । मेरी पेन्टी को पाकर गुप्ता जी तो फुले ना समायें और खुश होकर उसे अपने हाथों मे लेकर आँखे फाड़-फाड़कर देखने लगे गुप्ता जी को ऐसा करते देख मेरे मन मे एक सवाल को पूछने की इच्छा हुई पहले तो मैंने नहीं पुछा पर फिर अपने मन की उत्सुकता को रोक भी ना सकी और गुप्ता जी से पूछ ही लिया -
मैं - " इसका क्या किजिएगा ...?" गुप्ता जी ने पेन्टी से ध्यान हटा मेरी ओर देखा और जवाब मे मेरी पेन्टी को अपने एक हाथ से पकड़ अपने होंठों के पास लाकर अपनी जीब से उसे चाटने लगे ।
गुप्ता जी के इस जवाब से तो मेरा मन डोल गया और शर्मा के मैंने अपना सर नीचे झुका लिया । मैं गुप्ता जी की दुकान से जाना तो चाहती थी पर अभी गुप्ता जी ने मुझे पूरा आश्वासन नहीं दिया था की वो आज की घटना के बारे मे किसी को नहीं बताएंगे मैंने गुप्ता जी से फिर पुछा - " अब तो मैंने आपकी बात मान ली गुप्ता जी , अब आप वादा कीजिए की आप किसी से आज की घटना के बारे मे कुछ नहीं कहेंगे । "
गुप्ता जी ने मेरी पेन्टी को हाथों मे लेकर मसलते हुए कहा - "वादा पदमा , आज यहाँ इस कमरे मे जो भी हुआ वो मेरे और तुम्हारे अलावा किसी तीसरे को पता नहीं चलेगा ।" गुप्ता जी की ये बात सुनकर मैंने चैन की साँस ली और घर जाने लगी । जैसे ही मैं दरवाजे पर पहुँची गुप्ता जी ने मुझे एक बार ओर आवाज दी - " पदमा ! "
गुप्ता जी की आवाज सुनकर मैं फिर से सोच मे पड़ गई के अब इन्हे क्या चाहिए । बिना कुछ बोले मैं बस गुप्ता जी की ओर थोड़ा घूम गई । गुप्ता जी ने आगे सवाल किया - " फिर कब आओगी ? " मैंने हैरानी से गुप्ता जी की ओर देखा मुझे अपनी ओर इस तरह से घूरते पाकर गुप्ता जी ने अपनी बात संभाली और कहा - " मेरा मतलब सिले हुए कपड़े लेने कब आओगी ? "
मैं - आप सिल दीजिए गुप्ता जी मैं थोड़े दिनों बाद अपने-आप आ जाऊँगी ?
गुप्ता जी कुछ नहीं बोले । मैं भी दरवाजा खोलकर गुप्ता जी की दुकान से बाहर आ गई और सीढ़ियों से नीचे उतरकर गली मे चल दी ।