15-09-2022, 03:08 PM
मैं लगातार इस पल का मजा ले रहा था।
फिर मेरी जीभ की नोक उसकी चूत की दरार में घुस गई और वो एकदम से अकड़ी और अगले ही पल वो झड़ गई, उसका नमकीन पानी मेरी जुबान से छुआ मैंने चपर चपर करते हुए उसके रस को चाट लिया।
वो शिथिल होकर मेरे सर को अपने हाथों से पकड़े हुए थी।
अब मैंने बैठ कर उसको अपनी गोद में बिठाया और अपने सीने से लगा लिए।
वो अपने दोनों पैर मेरी कमर में लपेटे हुए मुझसे चिपकी हुई थी।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लिपटे हुए बैठ रहे.. मेरा लवड़ा खड़ा हो कर उसकी चूत से स्पर्श कर रहा था।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को उठाया और उसकी चूत के छेद को लौड़े की नोक पर सैट किया।
उसकी चूत अनछिदी थी। मेरा लौड़ा गीली चूत की दरार में घुस गया।
उसके मुँह से एक तेज ‘आहहह..’ निकली पर मैंने उसको अपनी बाँहों में भींचा हुआ था।
मैं कुछ देर तक उसके होंठों को अपने होंठो से दबा कर चूसता रहा और अपने चूतड़ों को उठाकर उसकी चूत में पेवस्त करने का मेरा प्रयास जारी था।
फिर मैंने उससे कहा- थोड़ा दर्द सहने को तैयार रहना अब मैं पूरा अन्दर करने जा रहा हूँ।
उसकी बन्द आखों ने मौन स्वीकृति दी और मैंने अपने पूरी ताकत से लवड़े को उसकी चूत में ठूंस दिया।
वो चिल्लाना चाहती थी पर मैं सजग था।
मेरे होंठ उसकी आवाज पर पहरा दे रहे थे।
कुछ देर तड़फने के बाद वो शिथिल हो गई।
मैंने भी उसको नीचे से ठोकरें लगाना आरम्भ कर दीं।
फिर जब वो कुछ सामान्य हुई तो मैंने कुछ इस तरह उसको लिटाया कि मेरा बाबूलाल उसकी मुनिया में ही रहा और उसी वक्त मुझे हल्के से खून की लालिमा दिखी पर मैं चुप रहा।
और अब पूरी तरह से उसके ऊपर चढ़ कर मैंने उसकी चुदाई आरम्भ कर दी।
कुछेक मिनट बाद वो अकड़ गई और झड़ गई पर मेरी धकापेल चालू थी फिर दस मिनट की चुदाई के बाद उसकी चूत ने फिर से अपना रस छोड़ना चालू किया तो मेरा बाबूलाल भी चूत के दरिया में डूब कर अपनी जान दे बैठा.. उसने उलटी कर दी थी।
हम दोनों ही निढाल हो कर एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे।
कुछ देर बाद उठे और फिर एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे।
फिर मेरी जीभ की नोक उसकी चूत की दरार में घुस गई और वो एकदम से अकड़ी और अगले ही पल वो झड़ गई, उसका नमकीन पानी मेरी जुबान से छुआ मैंने चपर चपर करते हुए उसके रस को चाट लिया।
वो शिथिल होकर मेरे सर को अपने हाथों से पकड़े हुए थी।
अब मैंने बैठ कर उसको अपनी गोद में बिठाया और अपने सीने से लगा लिए।
वो अपने दोनों पैर मेरी कमर में लपेटे हुए मुझसे चिपकी हुई थी।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लिपटे हुए बैठ रहे.. मेरा लवड़ा खड़ा हो कर उसकी चूत से स्पर्श कर रहा था।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को उठाया और उसकी चूत के छेद को लौड़े की नोक पर सैट किया।
उसकी चूत अनछिदी थी। मेरा लौड़ा गीली चूत की दरार में घुस गया।
उसके मुँह से एक तेज ‘आहहह..’ निकली पर मैंने उसको अपनी बाँहों में भींचा हुआ था।
मैं कुछ देर तक उसके होंठों को अपने होंठो से दबा कर चूसता रहा और अपने चूतड़ों को उठाकर उसकी चूत में पेवस्त करने का मेरा प्रयास जारी था।
फिर मैंने उससे कहा- थोड़ा दर्द सहने को तैयार रहना अब मैं पूरा अन्दर करने जा रहा हूँ।
उसकी बन्द आखों ने मौन स्वीकृति दी और मैंने अपने पूरी ताकत से लवड़े को उसकी चूत में ठूंस दिया।
वो चिल्लाना चाहती थी पर मैं सजग था।
मेरे होंठ उसकी आवाज पर पहरा दे रहे थे।
कुछ देर तड़फने के बाद वो शिथिल हो गई।
मैंने भी उसको नीचे से ठोकरें लगाना आरम्भ कर दीं।
फिर जब वो कुछ सामान्य हुई तो मैंने कुछ इस तरह उसको लिटाया कि मेरा बाबूलाल उसकी मुनिया में ही रहा और उसी वक्त मुझे हल्के से खून की लालिमा दिखी पर मैं चुप रहा।
और अब पूरी तरह से उसके ऊपर चढ़ कर मैंने उसकी चुदाई आरम्भ कर दी।
कुछेक मिनट बाद वो अकड़ गई और झड़ गई पर मेरी धकापेल चालू थी फिर दस मिनट की चुदाई के बाद उसकी चूत ने फिर से अपना रस छोड़ना चालू किया तो मेरा बाबूलाल भी चूत के दरिया में डूब कर अपनी जान दे बैठा.. उसने उलटी कर दी थी।
हम दोनों ही निढाल हो कर एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे।
कुछ देर बाद उठे और फिर एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.