05-09-2022, 01:00 AM
सुबह 7 बजे मैं नींद से जागी आज रविवार था और अशोक की ऑफिस से छुट्टी रहती थी इसलिए जल्दी उठने की मेरे पास कोई वजह भी नहीं थी । सुबह 7 बजे आंखे खुली तो देखा अशोक अभी भी सोये हुए थे । सूरज भी निकल आया था अब फरवरी का महिना चल रहा था तो ज्यादा सर्दी नहीं थी , ओर दिन अच्छे होने लगे थे । मैं खिड़की के पास गई तो सूरज की नन्ही किरणे मेरे चेहरे पर पड़ी ,
ओर एक नई ताजगी के साथ मैंने अपने दिन की शुरुवात की । आज के पूरे दिन अशोक घर ही रहने वाले थे इसलिए मैं अपना पूरा वक्त उन्ही के साथ बिताना चाहती थी । और ऐसा ही हुआ रविवार का दिन होने की वजह से आज वरुण भी नहीं आने वाला था । मैंने और अशोक ने पूरा दिन एक साथ मे बिताया जी भरकर बातें की । सप्ताह मे एक रविवार का ही दिन तो हमारा होता था । उस दिन हम पूरे हफ्ते की कसर निकालते थे । इसी तरह मेरा दिन गुजरा लगभग 4 बजे अशोक अशोक घर के बाहर सेर के लिए निकले और 5 बजे वापस आए मैं उस वक्त हॉल मे बेठकर टीवी देख रही थी अशोक आए ओर मुझसे बोले -
अशोक - पदमा !
मैं( अशोक की ओर देखकर )- हम्म ?
अशोक - तुमने गुप्ता जी वो कुछ सिलने के लिए कपड़े दिए थे क्या ?
गुप्ता जी का नाम सुन मैं एक बार वो थोड़ी विचलित सी हो गई पता नहीं उन्होंने अशोक को क्या कहा होगा कहीं उस दिन की घटना के बारे मे तो कुछ नहीं बता दिया ।
मैं ( थोड़ा आराम से )- जी हाँ दिए तो थे ।
अशोक - अच्छा तो वो तैयार हो गए है । गुप्ता जी मिले थे वो बता रहे थे की तुम उन्हे ले जा सकती हो ।
मैं - आप ही क्यों नहीं ले आए ?
अशोक - अरे गुप्ता जी मुझे दुकान पर नहीं, गली के बाहर चोक पर मिले थे । वही उन्होंने मुझे बताया ।
मैं - अच्छा । .... ओर कुछ भी कह रहे थे क्या गुप्ता जी ?
अशोक - नहीं ओर तो बस इधर उधर की बात बस ।
"थैंक्स गॉड" - मैंने मन मे बोला । अच्छा हुआ गुप्ता जी ने अशोक से उस दिन के बारे मे कुछ नहीं कहा । मैं इसी सोच मे डूबी थी के अशोक ने मेरा ध्यान तोड़ते हुए कहा - "पदमा !"
मैं - जी ?
अशोक - एक कप चाय बना दो जरा ।
मैं - अभी लाई ।
इतना बोलकर मैं अपने सोफ़े से उठी और कीचेन मे जाकर चाय बनाने लगी अभी मैं चाय का सामान डालकर चाय को गैस पर चढ़ाने ही वाली थी के पीछे से अशोक ने आकर मुझे बाहों मे भर लिया ।
मैं(हँसते हुए ) - क्या हुआ चाय नहीं पीनी क्या ?
अशोक - अरे जिसके पास तुम्हारे जैसी बीवी हो वो कुछ ओर क्यूँ पिए ?
मैं - अच्छा जी । पर अभी तो दिन है कोई आ गया तो ?
अशोक - अरे कोन आएगा सब अपने घर मे है इस टाइम ।
इतना कहकर अशोक पीछे से मेरी गर्दन और पीठ पर चूमने लगे ।
अशोक के चूमने का असर मुझपर भी होने लगा और मैं भी मस्ती मे टूटने लगी । फिर अशोक ने मुझे अपनी ओर घुमाया मेरे बूब्स अशोक की सीने के नीचे दब गए फिर अशोक ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए ओर उन्हे चूमने लगा । मैंने भी अपने होंठ अशोक की खातिर खोल दिए ओर फिर हम दोनों किस करने लगे अशोक ने मुझे अपनी गोद मे उठाया और बेडरूम की मे ले गया वहाँ अशोक ने बिना देरी कीये मेरी साड़ी खोल दी और नीचे बेठकर पेटीकोट के नीचे हाथ डाल मेरी पेन्टी वो पकड़कर खींचने लगा । पेन्टी को नीचे आने मे ज्यादा वक्त नहीं लगा और थोड़ी ही देर मे पेन्टी मेरे शरीर से अलग नीचे फर्श पर पड़ी थी फिर अशोक ने मुझे बेड पर लेटाया और खुद मेरे ऊपर आ गए अशोक ने अपना बनियान भी उतार दिया और मुझे गर्दन और होंठों पर चूमते हुए मेरा पेटीकोट ऊपर की ओर सरकाने लगे । पेटीकोट ऊपर आते ही मेरी नग्न गीली हो चुकी योंनि अशोक के सामने आ गई अशोक ने भी बिना देरी कीये अपनी पेंट की जीप खोली और अपना लिंग बाहर निकालकर उसे मेरी योनि मे द्वार पर लगा दिया ।
लिंग का स्पर्श होते ही मेरी योनि लपलपाने लगी और खुद ही अशोक के लिंग को अपनी ओर खींचने लगी जल्द ही अशोक का लिंग मेरी योनि के अंदर समा गया ओर मुझे एक असीम शांति मिली । मैंने कसकर अशोक को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और अशोक ने ऊपर से मेरी योनि मे धक्के लगाने शुरू कर दिए । मैं आनंद के सागर मे डूबने लगी और आहें भरने लगी - " आह आह .. .. ओह .. हाँ ... आह ... "
पर मेरा ये मज़ा ज्यादा देर नहीं चल सका और अशोक हर बार की तरह मुश्किल से 5 मिनट मे ही अपने चरम पर पहुँच गया , और मुझे ऐसे ही प्यासी छोड़ दिया ।
पर मैं कुछ ना कह सकी कहती भी क्या ? अशोक दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गए ओर मैं उठकर बाथरूम मे चली गयी खुद को साफ करने ।
बाथरूम से निकलकर देखा तो अशोक वहाँ नहीं थे । मैंने फर्श पर पड़ी अपनी पेन्टी और साड़ी उठाई और उन्हे पहनकर मैं कमरे से बाहर आई तो हॉल वाले बाथरूम से पानी के चलने की आवाज आ रही थी । मैं समझ गई की ये अशोक ही है । थोड़ी ही बाद अशोक बाथरूम से बाहर आए ओर सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगे । मैं भी रात के खाने की तैयारी करने लगी । इसके बाद का समय नॉर्मल गुजरा कोई खास बात नहीं हुई ओर हम दोनों लगभग 9 बजे सो गए ।
( The Next Day)
अगले दिन सुबह रोज की तरह मैं 6 बजे उठी और फ्रेश होकर अशोक के लिए नाश्ता रेडी करने लगी । अशोक भी लगभग 7 बजे उठे और अपना सारा काम निपटाकर नाश्ता करके 8 बजे घर से ऑफिस के लिए निकल गए । अशोक के जाने के बाद मैं भी अपने घर मे बचे हुए कामों मे व्यस्त हो गई । सारा काम निपटाकर आराम करने बैठी तो देखा 9:30 बज रहे थे । थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं रात को सुखाए हुए कपड़े लेने छत पर चली गई अब इतनी सर्दी तो रही नहीं थी के धूप लेने की जरूरत पड़े तो मैं बस छत पर थोड़ी देर घूमकर कपड़े लेकर नीचे आ गई । कपड़े लाते हुए मुझे ध्यान आया कि कल गुप्ता जी नितिन से कह रहे थे कि मेरे कपड़े तैयार हो गए है । तो मैं उन्हे ले आती हूँ , पर गुप्ता जी के साथ उस दिन की बात को याद करके मैं एक बार को सिहर गयी । पता नहीं गुप्ता जी क्या सोचेंगे । फिर मैंने सोचा जो हुआ उसमे गुप्ता जी की भी तो गलती थी अकेले मेरी थोड़े ही शुरुवात तो उन्होंने ही की थी उसके बाद मुझसे भी गलती हो गई । ये बात सोचकर मैंने ऊपर से लाए हुए कपड़े बेडरूम मे रखे और घर से बाहर निकलकर गेट को लॉक किया और गली मे चल दी ।
गली मे चलते हुए मुझे एक बार फिर मोहल्ले वालों की उन्ही कटीली नज़रों का सामना करना पड़ा जो अपनी नज़रों से ही मेरे जिस्म के हुस्न को पी रही थी । चलते चलते मैं गुप्ता जी की दुकान के नीचे आ गई और बाहर बनी सीढ़ियों से ऊपर जाने लगी । ऊपर जाकर मैंने गुप्ता जी की दुकान के दरवाजे पर नॉक किया । गुप्ता जी अंदर ही थे और वो अंदर से ही बोले - " कौन हैं ? आ जाओ । "
गुप्ता जी के इतना कहने पर मैंने दरवाजा खोला और उनकी दुकान मे प्रवेश किया । मुझे देखते ही गुप्ता जी एकदम से खुश हो गए उनका चेहरा खिल गया
अपनी खुशी जाहिर करते हुए वो बोले - " आओ आओ , पदमा । कैसी हो ?"
मैं( सहजता से ) - मैं , अच्छी हूँ गुप्ता जी आप कैसे है ?
गुप्ता जी - मैं भी अच्छा हूँ पदमा । आओ बेठो ।
ये कहकर गुप्ता जी ने मुझे पास मे रखे स्टूल पर बैठने का इशारा किया । मैं उसपर बैठ गई ।
गुप्ता जी के कमरे आज भी हीटर लगा हुआ था इसलिए कमरे मे काफी गरमाई थी थी , पर आज वो कम गर्मी के पॉइंट पर सेट था ।
मैं - गुप्ता जी , अपने हीटर क्यों लगा रखा है अब तो इतनी सर्दी नहीं होती ।
गुप्ता जी - अरे पदमा ये तो बस थोड़ी देर के लिए ही लगाया है। क्या हैं ना सुबह-सुबह थोड़ी ठंड रहती है इसलिए थोड़ी देर के लिए लगा देता हूँ , ताकि कमरा गरम हो जाए । अब तुमने याद दिला दिया तो ये लो बंद कर देता हूँ ।
इतना कहकर गुप्ता जी ने हीटर बंद कर दिया । और बोले - " तुम बताओ कहाँ रह गई थी इतने दिन से ? "
मैं - वो गुप्ता जी बस आने का टाइम ही नहीं लगा । सुबह घर पर काफी काम होता है और फिर दोपहर मे वरुण को टयूशन पढ़ाने मे लग जाती हूँ तो टाइम ही नहीं मिलता ।
गुप्ता जी ने इतना सुन मेरी ओर देखा और कहा -
गुप्ता जी - वरुण .. .. ?? ये सीमा जी का लड़का ?
मैं - हाँ वही । वो थोड़ा पढ़ाई मे कमजोर है ।
गुप्ता जी- अरे जब सारा दिन लड़कियों के पीछे भागा फिरेगा तो पढ़ाई मे तो कमजोर होगा ही ।
गुप्ता जी की बात सुन मैंने हैरानी से उनकी ओर देखा
और पुछा - " लड़कियों के पीछे .. ? कौन .. वरुण ?"
गुप्ता जी -ओर नहीं तो क्या कई बार तो मैंने ही देखा है उसे मोटरसाइकिल पर लड़कियां घूमाते हुए । एक बार तो उसने हद ही कर दी ।
मैं ( उत्सुकता से ) - अच्छा । ऐसा क्या किया ?
गुप्ता जी - अब क्या बताऊ पदमा , तुम भी सुनकर बुरा मान जाओगी ।
मैं - नहीं नहीं .. .. गुप्ता जी आप बताइए तो क्या किया वरुण ने ?
गुप्ता जी - पदमा , मेरे कमरे के पीछे एक ओर कमरा है जिसकी सीढ़िया पीछे से ऊपर की ओर जाती है । उस कमरे मे मैंने वरुण को एक लड़की के साथ चुदा ..... माफ करना । सेक्स करते देखा है ।
गुप्ता जी ने अपने पहले शब्द पूरे नहीं कीये पर वो क्या कहना चाहते थे ये समझ गई । और उनके मुहँ से ऐसे शब्द सुनकर मेरे मन मे एक टीस सी बन गई , मैंने अपनी नजरे नीचे झुका ली । वरुण के बारे मे ऐसी बात सुनकर मैं रोमांचित भी हुई ओर मुझे हैरानी भी हुई । पर मेरी उत्सुकता अभी शांत नहीं हुई थी ।
मैं - पर गुप्ता जी उस दूसरे कमरे की चाभी तो नीचे किराने वाले के पास रहती है ना , तो फिर वरुण वहाँ कैसे गया ?
गुप्ता जी - हाँ । तुम बिल्कुल ठिक कह रही हो पदमा चाभी तो किराने वाले के पास ही रहती है , पर उस किराने वाले से वरुण ने दोस्ती की हुई है और वो उसे पैसे भी देता है उसका रूम इस्तेमाल करने पर ।
मेरे लिए ये सारी बातें काफी शॉकइंग थी मुझे नहीं पता था के वरुण ये सब काम भी करने लगा है । एक बार को तो मुझे ही समझ नहीं आया के कहीं उसका टयूशन लेके मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी ।
गुप्ता जी आगे बोले - " पदमा ! "
मैंने बिना कुछ बोले गुप्ता जी की ओर देखा ।
गुप्ता जी - तुम उसका टयूशन ना ही पढ़ाओ तो अच्छा है । उसका तो कुछ होगा नहीं पर कहीं तुम्हें कोई परेशानी ना आ जाए ।
गुप्ता जी की बातों से मेरे मन मे भी एक डर बैठ गया कहीं वरुण को टयूशन पढ़ाने के चक्कर मे , मैं खुद किसी मुसीबत मे ना फँस जाऊ । मेरी सोच जारी थी फिर एक बार गुप्ता जी ने मेरा ध्यान तोड़ा -
गुप्ता जी - चलो , छोड़ो ये सब तुम अपनी बताओ ?
मैं( धीमी आवाज मे) - वो कल आपने अशोक से कहा था की मेरे कपड़ों की सिलाई पूरी हो गई तो मैं वो .... ....
गुप्ता जी ने पहले तो मेरी ओर हैरत से देखा फिर बोले - " पदमा क्या तुम भूल गई के तुमने मुझे सिर्फ ब्लाउज का माप दिया था पेटीकोट का नहीं "
गुप्ता जी की ये बात सुनकर मुझे सच मे याद आया की मैं पिछली बार पेटीकोट का माप नहीं दे पाई थी । मैं तो जैसे ये बात भूल ही गई थी ।
मैं - ओह हाँ गुप्ता जी । आप ठिक कह रहे है मुझे तो ये बात याद ही नहीं रही थी ।
गुप्ता जी - हम्म , इसलिए ही तो तुम्हें बुलवाया था । अब अगर तुम्हारी इजाजत हो तो क्या आज हम पेटिकोट का माप लेले ।
ओर एक नई ताजगी के साथ मैंने अपने दिन की शुरुवात की । आज के पूरे दिन अशोक घर ही रहने वाले थे इसलिए मैं अपना पूरा वक्त उन्ही के साथ बिताना चाहती थी । और ऐसा ही हुआ रविवार का दिन होने की वजह से आज वरुण भी नहीं आने वाला था । मैंने और अशोक ने पूरा दिन एक साथ मे बिताया जी भरकर बातें की । सप्ताह मे एक रविवार का ही दिन तो हमारा होता था । उस दिन हम पूरे हफ्ते की कसर निकालते थे । इसी तरह मेरा दिन गुजरा लगभग 4 बजे अशोक अशोक घर के बाहर सेर के लिए निकले और 5 बजे वापस आए मैं उस वक्त हॉल मे बेठकर टीवी देख रही थी अशोक आए ओर मुझसे बोले -
अशोक - पदमा !
मैं( अशोक की ओर देखकर )- हम्म ?
अशोक - तुमने गुप्ता जी वो कुछ सिलने के लिए कपड़े दिए थे क्या ?
गुप्ता जी का नाम सुन मैं एक बार वो थोड़ी विचलित सी हो गई पता नहीं उन्होंने अशोक को क्या कहा होगा कहीं उस दिन की घटना के बारे मे तो कुछ नहीं बता दिया ।
मैं ( थोड़ा आराम से )- जी हाँ दिए तो थे ।
अशोक - अच्छा तो वो तैयार हो गए है । गुप्ता जी मिले थे वो बता रहे थे की तुम उन्हे ले जा सकती हो ।
मैं - आप ही क्यों नहीं ले आए ?
अशोक - अरे गुप्ता जी मुझे दुकान पर नहीं, गली के बाहर चोक पर मिले थे । वही उन्होंने मुझे बताया ।
मैं - अच्छा । .... ओर कुछ भी कह रहे थे क्या गुप्ता जी ?
अशोक - नहीं ओर तो बस इधर उधर की बात बस ।
"थैंक्स गॉड" - मैंने मन मे बोला । अच्छा हुआ गुप्ता जी ने अशोक से उस दिन के बारे मे कुछ नहीं कहा । मैं इसी सोच मे डूबी थी के अशोक ने मेरा ध्यान तोड़ते हुए कहा - "पदमा !"
मैं - जी ?
अशोक - एक कप चाय बना दो जरा ।
मैं - अभी लाई ।
इतना बोलकर मैं अपने सोफ़े से उठी और कीचेन मे जाकर चाय बनाने लगी अभी मैं चाय का सामान डालकर चाय को गैस पर चढ़ाने ही वाली थी के पीछे से अशोक ने आकर मुझे बाहों मे भर लिया ।
मैं(हँसते हुए ) - क्या हुआ चाय नहीं पीनी क्या ?
अशोक - अरे जिसके पास तुम्हारे जैसी बीवी हो वो कुछ ओर क्यूँ पिए ?
मैं - अच्छा जी । पर अभी तो दिन है कोई आ गया तो ?
अशोक - अरे कोन आएगा सब अपने घर मे है इस टाइम ।
इतना कहकर अशोक पीछे से मेरी गर्दन और पीठ पर चूमने लगे ।
अशोक के चूमने का असर मुझपर भी होने लगा और मैं भी मस्ती मे टूटने लगी । फिर अशोक ने मुझे अपनी ओर घुमाया मेरे बूब्स अशोक की सीने के नीचे दब गए फिर अशोक ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए ओर उन्हे चूमने लगा । मैंने भी अपने होंठ अशोक की खातिर खोल दिए ओर फिर हम दोनों किस करने लगे अशोक ने मुझे अपनी गोद मे उठाया और बेडरूम की मे ले गया वहाँ अशोक ने बिना देरी कीये मेरी साड़ी खोल दी और नीचे बेठकर पेटीकोट के नीचे हाथ डाल मेरी पेन्टी वो पकड़कर खींचने लगा । पेन्टी को नीचे आने मे ज्यादा वक्त नहीं लगा और थोड़ी ही देर मे पेन्टी मेरे शरीर से अलग नीचे फर्श पर पड़ी थी फिर अशोक ने मुझे बेड पर लेटाया और खुद मेरे ऊपर आ गए अशोक ने अपना बनियान भी उतार दिया और मुझे गर्दन और होंठों पर चूमते हुए मेरा पेटीकोट ऊपर की ओर सरकाने लगे । पेटीकोट ऊपर आते ही मेरी नग्न गीली हो चुकी योंनि अशोक के सामने आ गई अशोक ने भी बिना देरी कीये अपनी पेंट की जीप खोली और अपना लिंग बाहर निकालकर उसे मेरी योनि मे द्वार पर लगा दिया ।
लिंग का स्पर्श होते ही मेरी योनि लपलपाने लगी और खुद ही अशोक के लिंग को अपनी ओर खींचने लगी जल्द ही अशोक का लिंग मेरी योनि के अंदर समा गया ओर मुझे एक असीम शांति मिली । मैंने कसकर अशोक को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और अशोक ने ऊपर से मेरी योनि मे धक्के लगाने शुरू कर दिए । मैं आनंद के सागर मे डूबने लगी और आहें भरने लगी - " आह आह .. .. ओह .. हाँ ... आह ... "
पर मेरा ये मज़ा ज्यादा देर नहीं चल सका और अशोक हर बार की तरह मुश्किल से 5 मिनट मे ही अपने चरम पर पहुँच गया , और मुझे ऐसे ही प्यासी छोड़ दिया ।
पर मैं कुछ ना कह सकी कहती भी क्या ? अशोक दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गए ओर मैं उठकर बाथरूम मे चली गयी खुद को साफ करने ।
बाथरूम से निकलकर देखा तो अशोक वहाँ नहीं थे । मैंने फर्श पर पड़ी अपनी पेन्टी और साड़ी उठाई और उन्हे पहनकर मैं कमरे से बाहर आई तो हॉल वाले बाथरूम से पानी के चलने की आवाज आ रही थी । मैं समझ गई की ये अशोक ही है । थोड़ी ही बाद अशोक बाथरूम से बाहर आए ओर सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगे । मैं भी रात के खाने की तैयारी करने लगी । इसके बाद का समय नॉर्मल गुजरा कोई खास बात नहीं हुई ओर हम दोनों लगभग 9 बजे सो गए ।
( The Next Day)
अगले दिन सुबह रोज की तरह मैं 6 बजे उठी और फ्रेश होकर अशोक के लिए नाश्ता रेडी करने लगी । अशोक भी लगभग 7 बजे उठे और अपना सारा काम निपटाकर नाश्ता करके 8 बजे घर से ऑफिस के लिए निकल गए । अशोक के जाने के बाद मैं भी अपने घर मे बचे हुए कामों मे व्यस्त हो गई । सारा काम निपटाकर आराम करने बैठी तो देखा 9:30 बज रहे थे । थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं रात को सुखाए हुए कपड़े लेने छत पर चली गई अब इतनी सर्दी तो रही नहीं थी के धूप लेने की जरूरत पड़े तो मैं बस छत पर थोड़ी देर घूमकर कपड़े लेकर नीचे आ गई । कपड़े लाते हुए मुझे ध्यान आया कि कल गुप्ता जी नितिन से कह रहे थे कि मेरे कपड़े तैयार हो गए है । तो मैं उन्हे ले आती हूँ , पर गुप्ता जी के साथ उस दिन की बात को याद करके मैं एक बार को सिहर गयी । पता नहीं गुप्ता जी क्या सोचेंगे । फिर मैंने सोचा जो हुआ उसमे गुप्ता जी की भी तो गलती थी अकेले मेरी थोड़े ही शुरुवात तो उन्होंने ही की थी उसके बाद मुझसे भी गलती हो गई । ये बात सोचकर मैंने ऊपर से लाए हुए कपड़े बेडरूम मे रखे और घर से बाहर निकलकर गेट को लॉक किया और गली मे चल दी ।
गली मे चलते हुए मुझे एक बार फिर मोहल्ले वालों की उन्ही कटीली नज़रों का सामना करना पड़ा जो अपनी नज़रों से ही मेरे जिस्म के हुस्न को पी रही थी । चलते चलते मैं गुप्ता जी की दुकान के नीचे आ गई और बाहर बनी सीढ़ियों से ऊपर जाने लगी । ऊपर जाकर मैंने गुप्ता जी की दुकान के दरवाजे पर नॉक किया । गुप्ता जी अंदर ही थे और वो अंदर से ही बोले - " कौन हैं ? आ जाओ । "
गुप्ता जी के इतना कहने पर मैंने दरवाजा खोला और उनकी दुकान मे प्रवेश किया । मुझे देखते ही गुप्ता जी एकदम से खुश हो गए उनका चेहरा खिल गया
अपनी खुशी जाहिर करते हुए वो बोले - " आओ आओ , पदमा । कैसी हो ?"
मैं( सहजता से ) - मैं , अच्छी हूँ गुप्ता जी आप कैसे है ?
गुप्ता जी - मैं भी अच्छा हूँ पदमा । आओ बेठो ।
ये कहकर गुप्ता जी ने मुझे पास मे रखे स्टूल पर बैठने का इशारा किया । मैं उसपर बैठ गई ।
गुप्ता जी के कमरे आज भी हीटर लगा हुआ था इसलिए कमरे मे काफी गरमाई थी थी , पर आज वो कम गर्मी के पॉइंट पर सेट था ।
मैं - गुप्ता जी , अपने हीटर क्यों लगा रखा है अब तो इतनी सर्दी नहीं होती ।
गुप्ता जी - अरे पदमा ये तो बस थोड़ी देर के लिए ही लगाया है। क्या हैं ना सुबह-सुबह थोड़ी ठंड रहती है इसलिए थोड़ी देर के लिए लगा देता हूँ , ताकि कमरा गरम हो जाए । अब तुमने याद दिला दिया तो ये लो बंद कर देता हूँ ।
इतना कहकर गुप्ता जी ने हीटर बंद कर दिया । और बोले - " तुम बताओ कहाँ रह गई थी इतने दिन से ? "
मैं - वो गुप्ता जी बस आने का टाइम ही नहीं लगा । सुबह घर पर काफी काम होता है और फिर दोपहर मे वरुण को टयूशन पढ़ाने मे लग जाती हूँ तो टाइम ही नहीं मिलता ।
गुप्ता जी ने इतना सुन मेरी ओर देखा और कहा -
गुप्ता जी - वरुण .. .. ?? ये सीमा जी का लड़का ?
मैं - हाँ वही । वो थोड़ा पढ़ाई मे कमजोर है ।
गुप्ता जी- अरे जब सारा दिन लड़कियों के पीछे भागा फिरेगा तो पढ़ाई मे तो कमजोर होगा ही ।
गुप्ता जी की बात सुन मैंने हैरानी से उनकी ओर देखा
और पुछा - " लड़कियों के पीछे .. ? कौन .. वरुण ?"
गुप्ता जी -ओर नहीं तो क्या कई बार तो मैंने ही देखा है उसे मोटरसाइकिल पर लड़कियां घूमाते हुए । एक बार तो उसने हद ही कर दी ।
मैं ( उत्सुकता से ) - अच्छा । ऐसा क्या किया ?
गुप्ता जी - अब क्या बताऊ पदमा , तुम भी सुनकर बुरा मान जाओगी ।
मैं - नहीं नहीं .. .. गुप्ता जी आप बताइए तो क्या किया वरुण ने ?
गुप्ता जी - पदमा , मेरे कमरे के पीछे एक ओर कमरा है जिसकी सीढ़िया पीछे से ऊपर की ओर जाती है । उस कमरे मे मैंने वरुण को एक लड़की के साथ चुदा ..... माफ करना । सेक्स करते देखा है ।
गुप्ता जी ने अपने पहले शब्द पूरे नहीं कीये पर वो क्या कहना चाहते थे ये समझ गई । और उनके मुहँ से ऐसे शब्द सुनकर मेरे मन मे एक टीस सी बन गई , मैंने अपनी नजरे नीचे झुका ली । वरुण के बारे मे ऐसी बात सुनकर मैं रोमांचित भी हुई ओर मुझे हैरानी भी हुई । पर मेरी उत्सुकता अभी शांत नहीं हुई थी ।
मैं - पर गुप्ता जी उस दूसरे कमरे की चाभी तो नीचे किराने वाले के पास रहती है ना , तो फिर वरुण वहाँ कैसे गया ?
गुप्ता जी - हाँ । तुम बिल्कुल ठिक कह रही हो पदमा चाभी तो किराने वाले के पास ही रहती है , पर उस किराने वाले से वरुण ने दोस्ती की हुई है और वो उसे पैसे भी देता है उसका रूम इस्तेमाल करने पर ।
मेरे लिए ये सारी बातें काफी शॉकइंग थी मुझे नहीं पता था के वरुण ये सब काम भी करने लगा है । एक बार को तो मुझे ही समझ नहीं आया के कहीं उसका टयूशन लेके मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी ।
गुप्ता जी आगे बोले - " पदमा ! "
मैंने बिना कुछ बोले गुप्ता जी की ओर देखा ।
गुप्ता जी - तुम उसका टयूशन ना ही पढ़ाओ तो अच्छा है । उसका तो कुछ होगा नहीं पर कहीं तुम्हें कोई परेशानी ना आ जाए ।
गुप्ता जी की बातों से मेरे मन मे भी एक डर बैठ गया कहीं वरुण को टयूशन पढ़ाने के चक्कर मे , मैं खुद किसी मुसीबत मे ना फँस जाऊ । मेरी सोच जारी थी फिर एक बार गुप्ता जी ने मेरा ध्यान तोड़ा -
गुप्ता जी - चलो , छोड़ो ये सब तुम अपनी बताओ ?
मैं( धीमी आवाज मे) - वो कल आपने अशोक से कहा था की मेरे कपड़ों की सिलाई पूरी हो गई तो मैं वो .... ....
गुप्ता जी ने पहले तो मेरी ओर हैरत से देखा फिर बोले - " पदमा क्या तुम भूल गई के तुमने मुझे सिर्फ ब्लाउज का माप दिया था पेटीकोट का नहीं "
गुप्ता जी की ये बात सुनकर मुझे सच मे याद आया की मैं पिछली बार पेटीकोट का माप नहीं दे पाई थी । मैं तो जैसे ये बात भूल ही गई थी ।
मैं - ओह हाँ गुप्ता जी । आप ठिक कह रहे है मुझे तो ये बात याद ही नहीं रही थी ।
गुप्ता जी - हम्म , इसलिए ही तो तुम्हें बुलवाया था । अब अगर तुम्हारी इजाजत हो तो क्या आज हम पेटिकोट का माप लेले ।