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बहु की योजना ( INCEST)
#11
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३७ 
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जब मैं देर दोपहर के बाद अपने कमरे  पहुंची तो रवि आलसपन से अपनी लण्ड को सहलाते किताब पढ़ रहे थे। 
"यह किताब का कमल है या आपके लण्ड में खुजली  हो रही है ?"मैंने हँसते हुए पूछा। 
"किताब तो नॉन-फिक्शन  है मेरा हाथ तो तुम्हारा काम कर रहा है ," उन्होंने मेरी ओर उस प्यार भरी दृष्टि से देखा जो मुझे माँ की तरह पिघला देती है। 
मैं आ तो गईं हूँ अब आप को मेरा काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है ,"मैंने  मम्मी का दिया गाउन उतार  फेंका। 
"यह तुम्हारा गाउन तो नहीं है। तुमने कपडे कब बदले ?"रवि ने पूछा 
मैंने उनका लण्ड का सुपाड़ा अपने मुंह में ले कर पहले तो चुभलाया फिर अपने और मम्मी के बीच में दोपहर की कहानी विस्तार से सुना दी। 
रवि ने बार बार अपनी माँ के शरीर के हिस्सों के आकार , सुंदरता के बारे में कई बार पूछा। मैंने नाटकीय अंदाज़ में झुंझला कर कहा ,"देखों अगली बार मैं मम्मी नंगी तस्वीर ले कर आऊंगीं। देखो कम से काम उनकी कच्छी तो ले आई हूँ। "
मैंने झट से अपने गाउन से मम्मी की गन्दी पहनी कच्छी अपने उनको दे दी। 
ओह्हो क्या उत्तेजित प्रभाव हुआ उन के ऊपर। उन्होंने अपनी मम्मी की कच्ची के आगे पीछे वाले निशानों को पहले कई बार सुंघा फिर पागलों की तरह मुंह में  भर कर चूसा। मैं भी वासना की गर्मी से जल उठी अपने पति का मातृप्रेम देख कर। ईडिपस का प्यार तो हर बेटे में सुपत बैठा होता है। सिर्फ एक बहाने, उकसाव और प्रेरणा के इन्तिज़ार में। 
"अजी यदि आपका अपनी बीवी से मन भर गया है तो आपकी माँ अपने कमरे में नंगी बिस्तर पे लेटीं हैं। अपना खड़ा लण्ड वहां क्यों नहीं ले जाते," मैंने अपने रवि को और भी चिढ़ाया। यह मेरी गलती थी। 
रवि ने मुझे पेट के बल अपनी जांघों के ऊपर पटक कर जो मेरे चूतड़ों के ऊपर थप्पड़ों की बरसात शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं पहले चीखी। फिर वास्तव में आंसूं बहा कर रोयी र्दद से। फिर सिसक सिसक कर झड़ते हुए पागल से हो गयी। फिर रवि ने मुझे बिस्तर पर पटक पर पट्ट पटक कर मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरी सुखी गांड में अपना घोड़े जैसा लण्ड ठूंस दिया। मुझे जो दर्द हुआ सो हस अपर उनको भी बहुत दर्द हुआ होगा।  मैं दर्द से बिलबिला कर चिल्लायी। वो दर्द और वासना के ज्वर से जलते हुए गुर्राए। और उनका लण्ड मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ाने लगा। मैं दर्द से हाहाकार मचाती पहले आधे घंटे तो रोटी चिल्लाती रही  फिर हमेशा की तरह सिसकारियाँ मारते जब झड़ने लगी तो उन्हें और भी ज़ोर से अपनी गांड मारने को उत्साहित करने लगी। 
रवि कहाँ पीछे हटने वाले थे। उन्होंने अपनी पत्नी की गांड की तौबा बुलवाने का बीड़ा उठाया था और वो जो सोच लेते थे वो पूरा ज़रूर करते थे। 
जब रवि ने डेढ़ घंटे बाद मेरी गांड में अपना वीर्य की बौछार छोड़ी तो मेरी गांड बिलकुल चरमरा गयी थी।  मैं बिलकुल भी अचंभित नहीं थी उनके लण्ड के ऊपर अपनी  गांड के रस के अलावा ताज़े लाल खून को देख कर। 
रवि ने मुझे चुम कर मुझे अपने मुंह के ऊपर बैठा कर मेरी गांड की चुदाई के प्रसाद को अपने मुंह में भर कर सटक  लिया। 
फिर मैंने उनके 'गंदे'   सुगन्धित लण्ड को चूस कर थूक से चमका दिया। 
"रानी आज तो हमें कुछ खास चाहिए ," रवि की आँखों में एक खास चमक थी। 
" जो आप चाहो ," मैंने उनके मर्दाने चुचूक को दांतों से काटते हुए कहा। 
जो उन्होंने मुझसे माँगा उसने तो मुझे चौंका दिया ," रवि क्या  आपको घिन्न नहीं आयेगी। "
"शालू रोज़ तो तुम्हारी गांड तो चूस कर साफ़ करता हूँ। घिन्न का क्या काम? तुम्हारे शरीर की हर चीज़ मेरे लिए नायाब है रानी।  यदि ये मुझे तुझे बताना पड़े तो मेरा प्यार शायद असफल रहा," रवि के शब्दों को सुन कर मैं तो रुआंसी हो गयी। 
मैंने उनके होंठों को चूम चूम कर कहा ," आपको  आज से मुझसे सिर्फ एक बार कहने की ज़रुरत है। जो आप कहेंगें वो मैं करूंगीं। समझे आप। आप अब मेरे  पूर्णतया स्वामी हैं मेरे मन और मेरे तन के। पर आप भी मेरा ध्यान रखेंगें ना "
रवि की आँखों में गीलापन आ गया ,"शालू तू तो मेरे जीवन का चिराग है। तेरे बिना तो सुबह का सवेरा भी आधी  रात लगेगी। "
मैं अपने रवि से चिपक गयी। 
स्नानघर में रवि और मैंने एक और सीमा उलांघ  ली उस दिन। रवि ने बिना हिचक मन भर कर मेरा प्रसाद लिया और फिर मैंने उनका। अब हमारे बीच कुछ भी व्यक्तिगत नहीं बचा था। अब हम दो शरीर एक जान हो गए थे। 
बिस्तर में मेरा 'गन्दा' मुंह रवि ने अपने 'गंदे' मुंह से  प्यार से चूमा और अगले तीन घंटों तक मेरी चूत और गांड की ऐसी हालत कर दी की मैं लगभग बेहोश हो गयी। 
जब हम रात के खाने से पहल के ड्रिंक्स के लिए पहुंचे तो मैं टांगें चौड़ा कर चल रही थी। लेकिन मुझे बहुत प्रसन्ता हुई जब मैंने देखा कि मम्मी भी मेरे जैसी हालत  थीं। 
रात के खाने की मेज पर रवि और मम्मी के बीच और  डैडी के बीच गहरी आशापूर्ण नज़रों  का आदान प्रदान हुआ। घर में प्यार के एक और रूप की सम्भावना के आचार उभरने लगे। 
मेरी योजना की सफलता के आसार और भी सुलभ हो चले थे। 
बबलू और नीलू मुझसे थोड़ा नाराज़ लग रहे थे। आज पहला दिन था जब मैं उनके कॉलेज के आने के बाद उनके कमरे  गयी थी। 
"बबलू ,नीली आप दोनों  का काम पूरा कर लिया?" मैंने वैसे तो साधारण आवाज़ में पूछा था पर मेरी आँखों ने उन्हें कुछ और ही बताया था। 
"भाभी कर तो लिया है अपर आपक एक बार चेक कर लीजिए ," बबलू  ने मेरा अर्थ तुरंत समझ लिया। 
नीलू थोड़ी सुस्त थी पर बहुत नहीं ," हाँ भाभी मेरा भी। प्लीज़। "
"अरे भाभी आज थक गईं हैं। कल चेक कर लेंगीं ,"मम्मी ने मेरा ख्याल  रखते हुए कहा। 
"नहीं ठीक है मम्मी कल शनिवार है। इनको कॉलेज के लिए जल्दी भी नहीं उठना। रात  में चेक कर लूंगीं तो कम से कम  इनका सारा  सप्ताहंत [वीकेंड] खाली रहेगा," फिर मैंने शरमाते हुए कहा ,"और वैसे भी आपके बेटे को पूरे दिन की खुराक शायद मैंने वैसे ही दे  दी है। "
"बेटी इस  खुराक का कोई अंत नहीं है क्यों रवि? ," डैडी  मुस्कुरा कर कहा। ज़रूर मम्मी ने डैडी को सबकुछ बता दिया था। 
"रवि बेटा तेरा क्या  ख्याल है ? क्या डैडी सही कह रहें हैं ?" मम्मी ने बहुत ही गूढ़ रहस्मयी मुस्कान अपने बेटे की ओर फेंकते हुए पूछा। 
"मम्मी , खुराक थोड़े ही है। यह तो समोर्गासबोर्ड है जब मन चाहे खा लो ,"पहली बार रवि अपनी माँ  आँख मिला कर द्विअर्थिय बात की। 
"अरे विम्मो रवि बेटा सही  तो कह रहा है। यदि भोजन स्वादिष्ट हो तो रोकटोक कैसी ?" डैडी  मुस्कुराते हुए कहा। 
"मम्मी डैडी और आपके बेटे मिली  भगत कर रहें हैं। समोर्गासबोर्ड पर तो बहुत सारे खाने के पदार्थ फैले होथें हैं।  यहाँ तो एक ही खाने के पदार्थ की शामत आती है," मैंने अनकही इच्छाओं को और उकसाया। 
"शालू बेटी तेरा कहना है की घर में जो भी खाने के लिए तैयार हो उस से भूख मिटा लेनी चाहिए ?" मम्मी ने तो गेंद मैदान के बाहर पहुंचा दी। 
"शालू बेटी और मेरी प्यारी अर्धांगिनी हमने और हमारे बेटे ने कब कहा की हम मिल बाँट कर नहीं खाते। हमारे परिवार में तो सब कुछ सबका है ," डैडी ने मुस्कराते हुए आँखे चमकाते  हुए कहा। 
"पापा इस समोर्गा ,...... ुरर समोर्गासबो     जो भी भैया ने कहा  उस खाने में सब शामिल हैं ना ,"मेरी नादान ननंद ने सबसे ज़्यादा गहरी बात कह दी। 
"बेटी इसे समोर्गासबोर्ड कहतें हैं। और हमारे परिवार में खाने का हर कतरे का हिस्सा  सबके लिए होता है ," मम्मी ने हंस कर कहा। 
"तो फिर ठीक है मम्मी। मैं और नीलू भी जब चाहें इस जो भी भैया ने कहा उस से जो कुछ पसंद आये खा सकतें हैं ,"मेरे बबलू ने इस रात की कहानी पर अपनी मोहर लगा दी। 
मम्मी ने अपने नन्हे सुंदर बेटे को देख कर कहा ," बबलू तेरे लिए और नीलू के लिए तो कोई रोकटोक कभी भी नहीं है"
डैडी की आँखें अपनी नन्ही बेटी के दमकते सुंदर मुंह के ऊपर टिक गईं। 
मम्मी और मेरी आँखें मिलीं और दोनों ने बिना कुछ कहें एक दुसरे को बधाई दी। 
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३८ 
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खाने के बाद डैडी, मम्मी और रवि और स्कॉच पीने के लिए रुक गए और मैं नीली और बबलू को उनके कमरे की ओर ले गयी। 
"बबलू तू कपड़े बदल मैं पहले नीलू के कॉलेज का काम देख आकर तेरे कमरे में आतीं हूँ ," मुझे पता था कि बबलू को यह इंतज़ाम  पसंद आएगा। मेरी मम्मी ने मुझे बरसों पहले से ही अपने पुरुषों की मनोस्थिति समझने की क्षमता प्रदान कर  दी थी। 
कमरे में पहुंचते ही मैंने नीलू को गोद में उठा कर उसके कपड़े उतार  फेंकें, "भाभी आप नहीं उतारोगी  आज। "
मैंने भी अपनी सलवार कुरता उतार दिया।  मैंने उस रात ब्रा और कच्छी नहीं पहनी थी। 
मैंने नीलू के नीम्बूओं को बेदर्दी से मसलते हुए हुए उसके मीठे होंठो को चूसने लगी। नीलू की सिसकारियाँ निकलते कुछ नहीं देर नहीं लगी। 
मैंने उसे बिस्तर पर धकेल दिया और इस बार मैं उसके ऊपर उलटी लेट गयी, ६९ जैसे। नीलू को एक क्षण भी नहीं लगा समझने में। मैं उसकी और वो मेरी चूत ज़ोर से चूसने चाटने लगी। सिर्फ फर्क था तो वो कि मेरी चूत पर घनी घुंघराली झांटों की झाड़ी थी और नीलू की चूत पर एक रेशमी रेशा नहीं था , बिलकुल चिकनी चूत थी मेरी नन्ही ननद की। 
मैंने  उसकी और नीलू ने मेरी चूत ज़ोर ज़ोर से और हर तरीके से चूसी  और एक घंटे में हम दोनों अनेकों बार झड़ गए।
जब हमारी साँसे वापस धरातल पर आईं तो मैंने नीलू को चूम कर कहा ,"मेरी नन्ही नन्द मैंने इन्तिज़ाम कर लिया है तुम्हारे लिए और तुम अब मेरी और तुम्हारे भैया की चुदाई देख सकती हो। "
नीलू खिलखिला कर बोली ,"सच भाभी। ओह भाभी आप कितनी अच्छी हो। "
मैंने नीलू को प्यार से चुम शुभरात्रि कह बबलू के कमरे की ओर चल दी। मैंने कपड़े  पहनने की बजाय सिर्फ उन्हें अपने हाथों  में उठा लिया। 
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बबलू जैसा मैंने सोचा था बबलू पूर्ण नग्न अपने तन्नाए लण्ड को सहलाते हुए मेरा इन्तिज़ार कर रहा था। 
आज मैंने भी एक और सीमा उलाँघने का निर्णय कर लिया था। 
मैंने अपने कपड़े कुर्सी पे फेंक कर बिस्तर पे चढ़ गयी। बबलू ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरे खुले मुंह को चूमने लगा। 
मैं फिर से गरम हो गयी। मेरा देवर अभी मुश्किल से किशोरावस्था के दुसरे वर्ष में पहुंचा था पर परिपक्व पुरुष की तरह मुझे उत्तेजित करने में समर्थ था। 
"बबलू आज मैं तुम्हारा लण्ड नहीं चुसूंगीं ," मैंने कहा और बबलू का उतरा मुंह देख कर हंस दी ,"आज रात मेरे देवर राजा तुम्हारी भाभी  तुम्हारे गोर चिकने मोटे लम्बे लण्ड को अपनी चूत से चोदगी। "
बबलू का चेहरा कमल के फूल की तरह खिल उठा, "सच भाभी आप चिढ़ा तो नहीं रही हो मुझे। "
मैंने जवाब देने की बजाय अपनी गीली चूत बबलू के तन्नाए लण्ड के ऊपर दबा कर अपने नितम्ब नीचे दबाये। मेरी बुरी तरह चुदी चूत चरमरा गयी बबलू के अप्राकृतिक लम्बे मोटे लण्ड को अपनी चूत में लेते हुए। 
मैंने जब बबलू के लण्ड के ऊपर  उछलना शुरू किया तो उसके मासूम सुंदर चेहरे पर जो आनंद और आश्चर्य का मिश्रण छाया था उसे देख कर मेरा मातृत्व प्यार सारे बाँध कूद कर बाहर आ गया। 
"बबलू तुम वायदा करो चाहे तुम कितने भी बड़े हो जाओ और शादी भी कर लो पर मेरे छोट देवर और बेटा बने रहोगे ," मैं अनुचित वासना के ज्वर से जल उठी थी। 
"भाभी सारी  ज़िंदगी मैं आपका देवर और बेटा हूँ और रहूँगा ," बबलू ने मेरे मचलते स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए कहा। 
और फिर बबलू के कमरे में में मेरी सिसकारियाँ गूंजने लगीं। मैं छह बार झड़ गयी अगले आधे घंटे में पर बबलू का लण्ड क़ुतुब मीनार की तरह खड़ा था। 
मैं थकने लगी थी।  मैंने बबलू से पूछा ,"बबलू  मैं थक गईं हूँ। अब तुम मेरे ऊपर आ जाओ। और इसी  तरह ज़ोर से  चोदना मुझे। "
बबलू  की चमकती आंखों ने मुझे जवाब दे दिया। 
बबलू ने मुझे बिस्तर पे पलट आकर मेरे ऊपर आ कर जो मुझे चोदा वो उसके भैया से बहुत दूर नहीं था। 
मैं झड़ने लगी तो रुकी ही नहीं। बबलू ने दनादन अपना लण्ड मेरी चूत में पेलना  शुरू किया तो रुका ही नहीं। 
मैं थक कर बिस्तर पर पस्ट लेट गयी और आखिरकार बबलू ने अपने किशोर लण्ड के गाढ़े ऊर्वर  वीर्य की बौछार मेरे गर्भाशय पे शुरू की तो मुझे लगा मानों उसका लण्ड झड़ना बंद करेगा ही नहीं। 
आखिर में उसका लण्ड ढीला पड़ गया।  मैंने मौका देख कर कहा , "बबलू  और मैं ऐसी घनघोर चुदाई के बाद कुछ खास करते हैं। तुम भी परखना चाहोगे की तुम्हें अच्छा लगेगा कि नहीं ?"
बबलू ने सुन कर खुल कर हामी भरी। 
मैं तो अपने अविकसित किशोरावस्था के दुसरे साल में टहलते देवर के लण्ड से बहते मूत्र को पी कर दो बार झड़ गयी।  पर जब बबलू का लण्ड मेरे मूत्र को पीते तन्ना गया तो मैं ख़ुशी से पागल हो गयी। 
मैंने कमोड के ऊपर झुक कर बबलू कोआमंत्रित  किया  फिर से मेरी चूत मारने को। 
और बबलू ने इस बार मेरी चूत की नानी याद दिला दी। बबलू ने सारे सीखे तरीकों को इस्तेमाल किया। उसे मेरे लटकते मटकते स्तनों को दिल भर कर मरोड़ा मसला। जब वो मेरी चूत में झड़ा तो मैं अनेकों बार झड़ कर थक गयी थी और मेरी चूत और चूचियाँ चरमरा उठीं थीं बबलू की निर्मम चुदाई और रगड़ाई से। 
मैं कमोड  के ऊपर  निश्चेत ढलक कर लेट गयी। बबलू ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ कर चूमते हुए प्यार से लिपटा लिया। बबलू अब बच्चा नहीं मर्द बन गया था। अपनी भाभी की मदद से। मेरे हृदय में दिवाली के पटाखे फूट रहे थे। 
बबलू ने मुझे अपनी आश्चर्यजनिक ताकत दिखते हुए बाहों में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और अपने जादू से तनतनाते हुए लण्ड से मेरी दुखती चूत को फिर से भर दिया। इस बार मैं बबलू के नीचे दबी उसके लण्ड की भयंकर रफ़्तार से चुदती रही और झड़ती रही। इस बार बबलू ने मुझे घंटे भर चोदा और मैं थक कर पस्त  लेट गयी बिस्तर पर। 
बबलू आखिर बच्चा था और वो मेरे ऊपर से धलक कर बिस्तर पर लेता तो दो क्षण में गहरी नींद में सो गया। 
मैं उसका मासूम चेहरा देखती रह गयी।  आखिरकार मैंने  बबलू के प्यार से अपने को बाहर खींचा और अपने अप्तिदेव के आगोश के समाने के लिए अपने शयनगृह की ओर चल पड़ी। 
जब मैंने रवि को बबलू और नीलू के साथ बिताए घंटों का विवरण दिया तो उन्होंने मेरी पहले से ही थकी चूत और गांड की क़यामत मचा दी। 
पर यह ही तो प्यार की व्यक्ति थी। और मैं उस प्यार की प्रतारणा और आनंद में डूबने लगी। 

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सीमा सिंह 
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RE: बहु की योजना - by SEEMA SINGH - 03-09-2022, 04:35 PM



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