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बहु की योजना ( INCEST)
#10
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३४ 
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कमरे में पहुंची तो रवि चित्त  कमर पे लेते थे और उनका महालण्ड उनकी घनी  झांटों में से सीधा छत  को छूने का प्रयास कर रहा था। मैंने अपना  साया उतारा और हौले से बिस्तर पे चढ़  गयी। और फिर अपना थूक से भरा मुंह खोल कर उनके सब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में गपक लिया। इतना मोटा था उनका सुपाड़ा कि मेरे मुंह के कोनें दर्द से चरमरा उठे। रवि की आँखें धीरे धीरे खुलीं और मेरे मुंह को अपने लण्ड में पा कर आनंद से फिर बंद हो गईं। 
मैंने अपनी जीभ की नोक को उनके बड़े खुले पेशाब के छेद में घुसा दिया। मैं  अपने रवि की आनंद भरी कराह से प्रस्संचित हो कर उनके लण्ड की मुंह-सेवा करने लगी। मैंने उनके लण्ड को चूसा , साथ साथ उनके सांड जैसे बड़े अंडकोष को सहलाते हुए मसल भी दिया। फिर मैंने उनकी जांघों को उठा कर रवि के घने बालों से ढकी गांड के छल्ले को जीभ से चुभला कुरेद कर उन्हें सिसकियाँ भरने के लिए मजबूर कर रही थी। 
"शालू अब अपनी चूत टिका दो लण्ड के ऊपर ," रवि दांत भेंच आकर बोले। 
अँधा क्या चाहे दो आँख या एक आँख वाला मूसल। मैं कूद कर अपनी गीली रस से भरी चूत को उनके भीमकाय लण्ड के ऊपर दबाने लगी। एक एक इंच करने उनके हाथ  भर लम्बा बोतल से भी मोटा लण्ड मेरी चूत खोलता फैलता मेरे अंदर गायब होने लगा। 
 मैंने सुबह सुबह के मीठे ठंडी होले होले बहती  रजनीगंधा से सुगन्धित हवा के जैसे रवि की लण्ड को धीमे धीमे चोदने लगी। 
इस चुदाई से रवि का लण्ड घण्टों तक मेरी चूत चोद सकता था। पर मैं कहाँ उतनी देर तक उनका मूसल झेल पाती  थी। रवि ने मेरे उछलते मचलते स्तनों को सहलाते हुए मुझे अपनी पसंद कि रफ्तार से अपनी चूत को उनके लण्ड से चोदने दिया। मैं मुघकिल से पांच मिनट बाद ही भरभरा कर झड़ उठी। पर मैंने आधे घंटे और रुक रुक कर रवि के लण्ड के ऊपर अपनी चूत पटकती रही और कई बार और झड़ गयी। 
"अब आप पटवार सम्भालो ," मैंने फुसफुसा कर कहा। 
रवि ने मुझे पकड़ कर बिस्तर पे पटक  दिया और फिर शुरू  हुई उनकी मनपसंद चुदाई। तेज़, ज़ोरदार, दनादन धक्कों के साथ स्तनों को मसलते मरोड़ते पर मेरे चरम-आनंद की लड़ी बिना टूटे निरंतर मेरे शरीर को तूफान के प्रहरों की तरह मुझे तड़पा रहीं थी। 
जब उन्होंने अपने उर्वर वीर्य की बारिश की तो मैं एक और झड़ गयी। मैं थक कर चूर चूर हो गयी। 
"शालू रानी , अब तो तुम्हार शर्बत की थैली पूरी भरी होगी  ," हाय कितना प्यारा लगता है इन्हें मेरा सुनहरी शर्बत। 
"सॉरी सुबह मैं जल्दी उठी तो इतनी ज़ोर से आ रहा था की रुका ही नहीं गया।  पर थोड़ा बहुत तो होगा ज़रूर। पर आपका तो ज़रूर भरा हुआ है," मैं भी उनके गरम सुनहरी शर्बत की पूरी दीवानी थी। 
वाकई उन्होंने इतना ताज़ा गरम गरम खारा पर मेरे लिए  मीठा शर्बत पिलाया कि मेरा पेट भर गया। मैंने भी ज़ोर लगा कर कम से कम एक कप तो पिला ही दिया  उन्हें। 
फिर हमने बारी बारी से एक दूसरे को  शरीर  के दुसरे ज़रूरी विसर्जन करते हुए देखा। हमे एक दुसरे की उस महक से भी आनंद की उत्तेजना हो जाती है। मैंने हमेशा की तरह उन्हें अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किया और उन्होंने भी मुझे। स्नानघर में उन्होंने मुहे एक बार और चोदा। हवा में उठा कर। मेरी चीखें निकल पड़ी। पर आनंद से  भरी चीखें।  
आखिर नहा धो कर हमने देर वाला नाश्ता किया और खरी-दारी के लिए निकल पड़े। 

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३५ 
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बाज़ार से वापस आये तो गर्मी के चलते फिरते पसीने से भीग गयी थे हम। उन्होंने कपडे उतार कर थोड़ी देर सोने का इरादा बना लिया। मैंने नहाने से पहले सोचा कि सासूमाँ को खरीदारी दिखा दूँ। 
मैं  उनको हलकी नींद की भारी भारी साँसे भरते छोड़ के मम्मी की कमरे की ओर चल पड़ी। साड़ी खरीदारी उनके बिस्तर पे पटक कर थोड़ा ज़ोर से बोली , 'मम्मी मम्मी। "
"यहाँ हूँ टब में ,"स्नानघर से मम्मी की आवाज़ आयी। 
मैं झट से अपने सास -ससुर के कमरे से सलग्न स्नानघर से घुस गयी। पानी और झागों से भरे टब में सासूमाँ आराम से लेते किताब पढ़  रहीं थीं। 
"मम्मी मैंने सोचा की नहाने से पहले आपको खरीदारी की चीज़ें दिखा दूँ," अचानक मुझे अपने ब्लाऊज़ के कांगें मेरे पसीने से तरबतर महसूस हुईं। 
"तो चल बेटी यहाँ ही नहा ले और मुझे विस्तार से बता की क्या क्या ख़रीदा मेरे समधन के परिवार के लिए ,"यदि मम्मी ने अपनी बहू को अपने साथ नहाने के निमंत्रण को थोड़ा सा या  कुछ भी अजीब महसूस किया तो उनकी आवाज़ में ज़रा सा भी संदेह नहीं था। मानों यह तो रोज़ मर्रा की बात थी। 
"मम्मी मैं पसीने से तरबतर हूँ।  आप बेहोश तो नहीं हो जाएँगी ,"मैंने भी मम्मी के सुझाव को साधारण तरह से लिया पर मेरे पेट में खलबली मची थी और मेरे दिल के जलतरंग बज रही थी। मैं ऐसा ही तो सानिध्य अपनी ससुराल में बनाना चाह  रही थी। 
जैसे जैसी मैंने अपने कपडे उतारने लगी  मम्मी की प्यार भरी निगाहें  मेरे बदन को देख रहीं थीं। मैंने भी मम्मी को ध्यान से देखा। 
मेरी सासू माँ का बदन ठीक मेरी प्यारी जन्मदात्री मम्मी के जैसा था। 
गोरा गोल सुंदर चेहरा  तरह नैसर्गिक सुंदर नासिका जिसे कई पुरुष घूरते रह जाते बिना सोचे। गोल गोल कंधे और भारी भरी बाहें। बयालीस या चवालीस [४२-४४] की छाती पर ढल्के  ढल्के अत्यन्त भारी भारी ईई [डबल ई ] के विशाल स्तन। उनकी भरी दो तहों से सजी चौतीस या पैंतीस इंचों  की कमर फिर उनके तूफानी सैंतालिस या अड़तालीस [४७-४८ ] के विशाल  नितम्ब , यह सब साढ़े पांच फुट और पिचहत्तर [७५] किलो के प्रभाव से रेत - घड़ी जैसे अकार का था.
"अरे तेरे जैसे सुंदर बेटी के पसीने की सुगंध तो मोहक होती है। मैं बेहोश हुई तो तेरे सुंदरता की बिजली से होऊंगीं ,"मम्मी  मुझे जगा दिया।  तब तक मैं सिर्फ कच्छी और कंचुकी [ब्राथी। 
"अब आएगी भी या मैं उतारूँ उठ कर ,"मम्मी  भर्रायी आवाज़ में कहा। 
मुझे लगा कि सिर्फ मैं ही नहीं पर वो भी मेरे मेरी मम्मी के दिए सौंदर्य से प्रभावित हो गईं थीं। मैंने इठला कर कहा टब के पास खड़े हो कर कहा ," आप ही उतरिये इन पसीने से भीगीं चीज़ों को मम्मी।
मम्मी टब में कड़ी हो गईं और उनका पानी से भीगा बदन देख आकर मेरी चूर में सैलाब उठ चला। 
मम्मी ने हर स्त्री की प्राकर्तिक दक्षता दिखाए हुए मेरी ब्रा एक क्षण में उतार दी। फिर उन्होंने मेरी कच्छी नीचे खींची और मैंने बारी बारी से टांग टब के किनारे रख कर उन्हें अपनी कच्छी उतारने में मदद  की। 
"चल मेरे पास आ. देखूं तो कितन पसीना आया तुझे ,"मम्मी की अनोखी  में  चमक थी। 
मैंने भी नादान  बच्ची की तरह अपनी बाहें ऊपर उठा कर कहा ,"देखिये मेरी बगलें पूरी पसीने से तरबतर हैं। "
मम्मी ने मुझे अपने पास खींच कर मेरी  बगलों को प्यार से चुम कर कहा ," यह बेटी  का पसीना तो माँ के लिए इत्र की सुगंध जैसा है। "
मम्मी की इच्छा तो कुछ और भी करने की थी पर शायद उन्हें लगा की मैं डर ना  जाऊं। 
"रवि क्या कर रहा है? कहीं अपनी सुंदर बिहाता के वियोग में मचल ना  रहा हो ?" मम्मी ने मेरे गालों को चूमता हुए पूछा। 
मैंने मौका देखा कर मामी और मेरे बीच होने वाले सानिध्य को और भी आसान बनाने का प्रयास करते हुए कहा ," मम्मी कल साड़ी रात खुद नहीं सोये और मुझे भी नहीं सोने दिया। सुबह दुबारा शुरू हो गए। अब थोड़ी थकन महसूस हुई होगी तभी सो गएँ हैं," मैंने भी अपनी बाहें मम्मी के बदन के ऊपर दाल दीं। 
"बिलकुल तेरे डैडी की तरह है मेरा बेटा। उन्होंने भी देर रात तक जगाया और सुबह काम पे जाने से पहले दो बार रगड़ा। मैं तो बिकुल थक गयी थी ,"मम्मी ने भी निसंकोच जो मुझे डैडी ने सुबह  बताया था उसको दोहराया। 
"मम्मी पर यदि  हमारे वो इतना परेशान न करें तो हमें ही परेशानी होगी ," मेरे पसीने से भीगे स्तन मम्मी के पानी से भीगे स्तनों से रगड़ रहे थे। 
" तू बहुत बुद्धिमान है बेटी। सही कह रही है। यदि स्त्री का जीवन साथी उसके  शरीर की चाहत से दीवाना हो उसे  परेशान ना करे तो उसे दुःख ही होगा आराम नहीं।  आ जा अब टब में मैं तेरे कंधे मालिश कर देतीं हूँ।  सारे थकन कन्धों से ही शुरू होती है ,"मम्मी ने मेरा हाथ पकड़ कर वृहत टब में मुझे खींच लिया।  मेरे ससुराल और पीहर के स्नानघर के टब विशाल हैं।  तीन चार शरीरों के लिए भी काफी बड़े  हैं। 
मैं मम्मी के आगे उनकी खुली टांगों के बीच में बैठ गयी। 
मम्मी ने जैतून के तेल हाथों पे रगड़ कर मेरे कन्धों की मालिश करने लगीं। मेरी कमर उनके विशाल स्तनों को दबा रही थी। मेरे नितम्ब उनकी घनी झांटों की मीठी खुजलाहट से आनन्दित हो रहे थे। 
मैंने और भी अपनी कमर को अपनी सास की पहाड़ों जैसी चूचियों  के ऊपर दबा दिया। 
मैं मम्मी के हाथों के जादू से बिलकुल ढीली हो गयी। मेरी आँखें आधी  बंद हो गईं। 
"शालू बेटी क्या थोड़े  नीचे  भी मालिश करूँ ?" मेरे आनंद से अधखुली आँखों और अधखुले मुंह मेरी स्थिति का विवरण दे रहे थे। मम्मी की आवाज़ मुझे दूर पहाड़ी आती महसूस हुई। 
"हूँ माम्म्म्म ," मैं नींद में सोती सी बुदबुदाई। 
मम्मी के जैतून तेल से लिसे हाथ साबुन के झागों के स्तर के  नीचे तैरते मेरे उरोज़ो के ऊपर आ गए, "बेटी तेरे स्तनों का नाप है ?"
"मम्मी मेरी ब्रा तो अड़तीस डी डी [डबल डी ] है पर लगता है आपके बेटे ने इन्हे मसल मसल कर बड़ा कर दिया है," मैंने भी शर्म लिहाज़ छोड़ कर खुल कर कहा। 
"फिक्र  मत कर जब तक तेरे दो तीन बच्चे हो जाएंगें तब तक तेरे स्तन यदि मेरे जैसे पैंतालीस डबल ई ना हो जाएँ तो कहना ," मम्मी ने अपने हाथों से मेरे स्तनों को मालिश के नाम से मसलना प्रारम्भ कर दिया। 
"मम्मी यदि मेरे स्तन आपके और मम्मी जैसे हो जाएँ तो मैं खुशनसीब समझूंगीं अपनेआप को।  आप और मेरी मम्मी दुनिया में मेरे लिए सबसे सुंदर स्त्रियां हैं ," मैं सच कह रही थी। 

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३६ 
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"बेटी माँ का सौंदर्य तेरी और कम्मो जैसी बेटियों के साथ बंधा होता है। जब उन्हें तुम दोनों जैसी इंद्र-परियों सी सुंदर और पुरुषों जितनी समर्थ बेटियां की माँ कहलाने का अघिकार मिल जाता है तो उनके जीवन का उदेश्य पूरा हो जाता है," मम्मी ने मेरे दोनों चूचुकों को अब बिना हिचक अंगूठे और ऊँगली के बीच दबा कर मसल दिया। 
मैंने भी मम्मी की स्वंत्रता का फायदा उठाया, "मम्मी डैडी ने सिर्फ आगे की मारी या पीछे की भी तौबा बुलवा दी। "
"अरे शालू रात में तो दोनों की हालत ख़राब कर दी। जब तेरे डैडी  मुझे घोड़ी बना कर मेरी मारते हैं तो दोनों छेदों को बदल बदल कर मुझे तो पागल बना देतें हैं। पर तू भी ज़िम्मेदार है मेरी सुबह की शामत  की ," मम्मी ने बिना हिचक बोलीं।  अब सिर्फ कुछ अश्लील शब्दों के आने की देर थी और सास-बहू के बीच सब दीवारें गिरने वालीं थीं। 
"मम्मी मैंने क्या किया। डैडी आपके रूप के दीवाने है। इस में आपके रूप का दोष है मेरे नाम कहाँ से आ गया ,"मुझे आभास तो था कि मम्मी कहाँ जा रहीं थीं। पर भोलेपन में ही मेरी भलाई थी। 
"बेटी सुबह दो बार मेरी तौबा बुला कर जब वो बाग़ में घूम कर वापस आये तो मैं थकी थकी सोने जा रही थी। उन्होंने ने बेदर्दी से मुझे खींच आकर मेरी चूत और गांड का मलीदा बना दिया। जब मैंने पूछा तो बोले तेरी बहू मुझे मिल गयी और उसने ये हाल कर दिया मेरे लण्ड का। जो शिकायत करनी है उस से कर जा कर।  तभी मैं तुझ से शिकायत कर रहीं हूँ।"अब मम्मी ने आखिरी दीवार भी गिरा दी। 
"हाय मम्मी जब डैडी ने मुझे पीछे से आलिंगन में बाँधा तो उनका घोड़े जैसा मूसल  मेरी पीठ में गढ़ रहा था। मैं तो पागल हो गयी, इतना बड़ा लगा मुझे ," मैं भी अब खुल कर मैदान में आ गयी। 
"है ही घोड़े जैसा शालू बेटी। मैंने रवि का तो नहीं देखा कई सालों से पर जब उसे नहलाती थी  तो तब भी उसका आकार बता रहा था की बाप की टक्कर लेगा  बड़ा होके ," मम्मी ने अब मेरे स्तनों को मर्दों की तरह दबाना मसलना शुरू कर दिया था। 
मैं सिसक उठी और बोली ,"हाय मम्मी धीरे धीरे। आपके बेटे ने साड़ी रात मसला है इन्हें। शायद एक दिन हम दोनों बाप-बेटे के लण्ड को आमने सामने नाप सकें, नहीं मम्मी?"
मम्मी ने मेरे चूचुकों को और भी ज़ोर से मरोड़ा ,"यह तो तेरे सुंदर चूचियों का कसूर है मेरा या मेरे बेटे का नहीं। तू सच में ऐसी स्थिति से शर्माएगी या घबरायेगी  नहीं ?"
"मम्मी यदि आप मेरे साथ हो तो मैं क्यों शर्माऊंगीं या घबराऊंगीं। " मैंने सिसकते हुए कहा। मेरे  नितम्ब  अब स्वतः मटकने लगे। 
अब सासू माँ और मेरे बीच साड़ी दीवारें गिर गईं। 
मम्मी  हाथ मेरी खुली टांगों के बीच ले गईं और शीघ्र स्त्री की प्राकर्तिक दीक्षता  से मेरी चूत के भगोष्ठों को फैला कर मेरे दाने को ढूंढ लिया।  मैं हलकी सी चीख भरी सिसकारी मार कर फुसफुसाई ,"हाँ मम्मी वहीँ हैं उन्न्नन्न। "
मम्मी को सिर्फ नाममात्र का इशारा चाहिए था। उन्होंने मेरी चूत को अपनी दक्ष उँगलियों के नृत्य से पागल कर दिया। एक हाथ से मेरे स्तनों को और दुसरे हाथ से मेरी चूत को जो तरसाया मम्मी ने वो मुझे आज तक याद है। 
मैं ना जाने कितनी बार झड़ी पर मम्मी मुझे एक के बाद दूसरी ऊंचाईं पर  फिर से पहाड़  धकेल देतीं। 
मैं सिसक सुबक कर झड़ती रही। आखिर में मेरा भग-शिश्न इतना संवेदनशील हो गया की मम्मी की उँगलियाँ दर्दीली हो चलीं। मुझे मम्मी को कुछ कहना नहीं पड़ा।  दो स्त्रियों के प्रेम एक दूरसंवेदन या टेलीपैथी होती है जिस से विचार भर की काफी होतें  है। शब्दों की कोई ज़रुरत नहीं होती। 
"मम्मी अब मेरी बारी आपकी मालिश करने की ,"मैंने पीछे मुड़ कर मम्मी के होंठों को चुम लिया बिना शर्म और डर के। 
"बेटी तूने कसी  साथ किया था पहली बार ,"मम्मी  मुंह को चूमते हुए पूछा। 
"अपनी मम्मी  साथ।  और आपने? ,"मैंने बिना हिचे सच बोला। 
"पहली बार अपनी बड़ी बहन  सरिता दीदी के साथ। लेकिन सबसे अधिक बार अपनी मम्मी और सरला दीदी के साथ ,"मम्मी ने  साथ जगह बदल ली। 
अब मेरी  बारी थी मम्मी की 'मालिश ' की। मैंने बिना किसी नाटक के सीधे सीधे मम्मी के पहाड़ों जैसे विशाल अपने वज़न से ढल्के भारी स्तनों को खूब ज़ोर से मसला दबाया और रगड़ा। जितनी ज़ोर से मैं मसलती मरोड़ती उतनी ही ऊँची सिसकारी उबलती मम्मी के मुंह से। 
फिर मैंने मम्मी की खूब घनी घुंघराली झांटों से ढकी चूत की अपनी उँगलियों से सता तरसा चिढ़ा कर खूब मस्ती ली। मैंने मम्मी के मोटे लम्बे भाग-शिश्न को कई बार इतनी ज़ोर से मसला कि किसी साधारण स्त्री तो दर्द से चिल्ला उठती पर मम्मी वासना से सुबक कर और भी उत्तेजित हो जातीं। 
एक घंटे बाद मम्मी ने चीख सी मारी और मेरे ऊपर धलक गईं। मैंने उनका हांफता मुंह अपनी ओर मोड़ कर उनके मुंह, जीभ और होंठो को बेसब्री से चूसने लगी। . आखिर में हम ने वाकई स्नान पूरा किया। लेकिन नहाते हुए मम्मी को पेशाब लगा। जब मम्मी कमोड की ओर मुड़ीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया। उन्होंने मेरी आँखों में झाँका और हम दोनों को कुछ भी बोलने की आवशयक्ता नहीं थी। 
" बेटा देख  जितना मन करे तू उतना ही पीना ," मम्मी की आवाज़ में वासनामयी भारीपन था। 
" मम्मी तो अमृत की तरह है मेरे लिए।  सारा का सारा पी जाऊँगी मई।  आप देना तो शुरू कीजिये ," मैं भी अब अपनी सासुमाँ के साथ इस कुछों के लिए अप्राकृतिक पर हमारे लिए नैसर्गिक सानिध्य के विचार से मचल उठी थी। 
मैंने मम्मी के झरझरा के गिरते गरम सुनहरी शर्बत को प्यार और लदिदेपन से गटक लिया। मम्मी ने भी अब मेरी ओर देखा और मैंने भी अपना सुनहरा शर्बत की धार मम्मी के मुंह में खोल दी। 
मम्मी सुनहरा शेरबत पिलाने में माहिर थीं मेरी मम्मी की तरह। उन्होंने अपनी धार को रोक रोक कर मेरा खुला मुंह बार बार भर दिया। एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने दी मैंने।  आखिर अमृत की तरह होता हैं माँ का सुनहरी शर्बत। 
फिर ,सासूमाँ की बारी थी मेरा शर्बत पीने की।  मैंने भी सालों की दक्षता दिखाते  हुए अपनी धार को रोक रोक कर मम्मी का मुंह कई बार भर दिया।  मम्मी ने भी एक बूँद भी बर्बाद नहीं की। 
जब हम तैयार होने लगे तो मम्मी ने मेरी पसीने से भीगी कच्छी और ब्रा अपने पास रख ली, "यह तो आज तेरे डैडी को सताने के लिए इस्तेमाल करूंगीं। "
"मम्मी मुझे आप कल बताना की डैडी की कैसी प्रतिकिर्या हुई ,"मैंने मम्मी के होंठों को खूब ज़ोर से चूमते हुए कहा। फिर मुझे अचानक एक ख्याल आया। 
"मम्मी क्या आपके पास  कम से कम एक दिन पहनी कच्छी है बिना धुली। मैं आपके बेटे  के लिए इनाम की तरह इस्तेमाल करूंगीं उसे ,"मैंने हँसते हुए कहा। 
मम्मी झट से गंदे कपड़ों के बीच  अपनी कच्छी निकाल लायीं, "यह ले जा। बहुत निशान  हैं इसमें। इसे मैंने तेरे डैडी से चुदने के बाद बदली नहीं।"
मैंने देखा कि आगे और पीछे की जगह बहुत गाढ़े गहरे भूरे पीले निशान थे। मैंने उन्हें सूंघ कर कहा ,"हाय मम्मी इसे सूंघ कर तो आपके बेटे बिलकुल पागल हो जायेंगें और शामत आयेगी मेरी। "
मम्मी ने मुझे आलिंगन में बाँध कर चूमा और कहा ,"तू मेरे घर में भगवान् के निर्देश से आयी  है। तू वो करेगी जिस का सामर्थ्य  मुझमे नहीं था। "
मैं भावुक हो कर मम्मी से चिपक गईं। 
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सीमा सिंह 
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RE: बहु की योजना - by SEEMA SINGH - 03-09-2022, 04:34 PM



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