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बहु की योजना ( INCEST)
#9
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२९ 
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रवि मेरी गांड के आशिक हैं। मुझे  भी चाहे शुरू में कितना भी दर्द हो अपनी गांड को उनके हाथ भर लम्बे खम्बे जैसे मोटे लंड के सामने समर्पित करने से पीछे नहीं  हटती थी। और पीछे हटना  चाहती भी तो उनके मर्दाने विशाल शक्तिशाली शरीर के सामने मेरी क्या बिसात चलती। 
रवि ने मेरे दोनों गोर मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर मेरी फड़कती गांड के छेद के ऊपर अपने होंठो और जीभ से तारी हो गए।  उन्हें   मेरी गांड को तैयार करने की पूरी कला आती है। मैं अपनी गांड के ऊपर रवि के  चुम्मन से सनसना उठी। रवि ने अपनी जीभ से मेरे नन्हे तंग मलाशय के द्वार को जब कुरेदा तो मेरे शरीर में मानों बिजली सी दौड़ उठी। 
रवि जब  मेरे भंगाकुर [ क्लिटोरिस ] को मसलते हुए मेरी धीरे धीरे फैलती गांड के छेद को अपनी जीभ की नोक से चोदने लगे तो मैं बिलकुल गनगना उठी। 
" ऊओह भगवान…………… ..हां ऐसे  ही रवि ………… ईईईईईई  मेरी गांड चाटिये …………. उउन्न्न्न्न्न ……………,” मैं गांड चटाई के आनंद से अभिभूत हो गयी। 
रवि ने मन लगा कर मेरी गांड की जिव्हा-चुदाई करते हुए मेरी चूत और भग-शिश्न को मसलते रहे।  मैं बिना देर लगाये भरभरा कर झड़ गयी। 
रवि मेरे साथ के लम्बे अरसे से सम्भोग  के अनुभव से पता था  यह सुनहरी मौका है। मेरी गांड उनकी चूमने चाटने से तैयार थी और मैं ताज़े चरम-अनद के प्रभाव से थोड़ी शिथिल। बस  रवि के पास मौका था मेरे हज़ारों प्यार भरे तानों, उल्हानों  के बदले में अपने लौहे के हथोड़े से जवाब देने की - सौ सोनार की एक लौहार की - मेरी तौबा बोलने वाली थी। 
रवि ने अपना ने अपना मोटा हथियार मेरी गांड के फड़कते छेद के ऊपर सटा दिया।  मैं अभी भी रतिरस के प्रभाव से उनींदी थी। 
रवि ने अपने सेब जैसे मोटे सुपाड़े को को मेरे मलाशय के नन्हे दरवाज़े के ऊपर ताकत से दबाया।  कुछ देर तक तो कुछ नहीं हुआ। फिर मेरी निगोड़ी गांड मुंह बा कर उनके लंड के दवाब से  खुलने लगी। अचानक उनका मोटा गांड-फाड़ू सुपाड़ा फचक से मेरी गांड में घुस गया। 
" नहींईईई ………. उउउन्न्न्न्न्न्न्न …………. रवीईईईई ……….धीईईईईई ……………. रेएएएएएएएएएए ………….,” मैं इस गांड-चुदाई के शुरुआत से बहुत  परिचित थी। पर फिर भी बिलबिला उठी गांड से उपजे दर्द से। उनका लंड मानों जैसे मेरी गांड के छेद को तार तार  कर के फाड़ने वाला था। 
रवि ने मेरी कांपती गुदाज़ कमर को कस कर जकड़ लिया फिर एक दमदार धक्का लगाया। मैं चीख उठी दर्द के मारे।  पर रवि  और मुझ पर रहम किये बिना तीन चार बलशाली धक्कों से अपना पूरा विकराल हाथ भर का बोतल जैसा मोटा लंड जड़ तक मेरे मलाशय में ठूंस दिया। 
" हाय माँ मैं मर गयीईईईई उउउन्न्न्न्न्न्न नहीईईईई आअन्न्न्न्न्न्न्न्न ," मैं गांड फटने की पीड़ा से बिखल उठी। हमेशा की तरह मेरी आँखों में ना चाहते हुए  भी आंसू भर गये।  पर मुझे गर्व है अपने पति पर की उन्होंने मेरे बिलखने चीखने और टसुए बहाने के ऊपर कुछ ध्यान भी नहीं दिया। बस उन्होंने अपना लंड , लगभग आधा , मेरी गांड से बहार निकाल  कर एक ही ठोकर से फिर से जड़ तक ठूंस दिया। 

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३० 
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अब क्या देर थी, देर और रुकावट थी, रवि के लंड के लिए।  अपनी पत्नी की गांड के समर्पण को स्वीकार कर उन्होंने उसका लतमर्दन प्रारम्भ कर दिया। 
रवि ने मेरी गांड को बलशाली धक्कों से जब मारना शुरू किया तो मैं पूरी हिल उठी।  हर धक्के से मेरा गुदाज़ बदन सर से चुत्तडों तक हिल उठता। रवि ने जब मेरी गांड में कई धक्के लगाने के बाद एक लय सी बना ली तो वो मेरे कांपते हुए शरीर के  ऊपर  थोड़ा सा झुक गए और अपने लम्बे मज़बूत बाज़ुओं को  बड़ा कर मेरे दोनों फड़कते चूचियों के कोमल फलों को अपने विशाल हाथों में भर कर मसलना भी शुरू कर दिया। 
मैं तो अब दो तरफा के कामवासना के आक्रमण से सिसक गयी। 
रवि  मेरी गांड की बेहिचक चुदाई हचक हचल के करने लगे। कई बार की तरह कुछ देर में मेरा दर्द ना जाने कहाँ गायब हो गया।   मेरी चूत में फिर से रस की बाढ़ आ गयी। 
" हाय माँ  चोदो मेरी गांड रवीईईईई आआन्न्न्न्न्न भगवाआआआआआन ," मैं नादान  गांड-चुदाई के आनंद के तलैया  फिर से  गोते लगाने लगी। 
रवि मेरी चालाक  योजनाओं के प्रभाव से बहुत उत्तेजित थे।  आखिर होली पर उन्हें अपनी बड़ी छोटी बहन की चुदाई का पूरा  अंदेश था। फिर सासु माँ के परिपक्व मातृत्व भरी सुंदरता की चाहत उन्होंने पहली बार शब्दों में ढाल दी थी। 
मुझे अब पूरा भरोसा था की इस होली पर हमारे परिवार के प्रेम में एक और अध्याय खुलने वाला है। 
मेरे योनि मार्ग के सुरंग में हलचल मच उठी। मेरी चूचियों की मसलन का दर्द गांड की चुदाई के दर्द के साथ मिल कल इतना आन्नददायी और मीठा हो चला था कि मैं कुछ ही देर में  रति-निष्पति के द्वार पे दस्तक दे रही थी। 
" रवीईईई मैं झड़ने आआन्न्न्न्न्न्न्न उउउन्न्न्न्न्न्न्न ," मैं भभक कर झड़ने लगी। 
रवि ने बिना रुके और धीमे हुए मेरी गांड का मर्दन उसी निर्ममता से करते रहे जैसे वो शुरू हुए थे। 
मेरी गांड चुदाई के मोहक सुगंध से कमरा की हवा मोहक हो गयी। मुझे पता था की रवि का लंड इस सुगंध से और भी तनतना जायेगा। 
और ठीक ऐसा ही हुआ। रवि का लंड मानों एक इंच और मोटा लम्बा हो गया।  मेरी गांड से अब अश्लील फच फच जैसी मनोहक आवाज़ें रवि और मेरी कामवासना को और भी उकसाने  लगीं। 
रवि ने घंटे भर मेरे गांड भीषण ताकत भरे धक्कों से मार मार कर मुझे अनगिनत बार झाड़ दिया।  मैं अविरल चरम-आनंद की बाढ़ से शिथिल होने लगी।  अब मैं मुश्किल से अपनी गांड हवा में उठा पा रही थी।  रवि ने मेरी कामोन्माद के अतिरेक से उपजी दुर्बलता को समझ लिया और अपनी चुदाई की रफ़्तार और भी बड़ा दी। रवि ने एक भयंकर धक्के से अपना लंड मेरी गांड में ठूंस कर जब अपना गरम उर्वर वीर्य का फव्वारा छोड़ा तो मैं बिलबिला कर फिर से झड़ गयी। 
मुझे ज्ञान नहीं कितनी बार उनके लंड ने मेरी गांड की दीवारों को अपनी गाढ़ी मलाई से नहलाया। मैं तो अपने प्रचंड चरमानंद की  लड़ी से थक कर चूर-चूर हो चली थी। 

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३१  
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जब हम दोनों को कुछ होश आया तो मुझे पता चला कि मेरी गांड की चुदाई के रस  से सने मेरे चूतड़ों  को रवि प्यार दुलार से चाट चूम कर साफ़ कर रहे थे। उन्होंने मेरी मलाशय के ढीले ताज़े चुदे मुंह बाये द्वार को भी प्यार से चूमा और जीभ से कुरेदा। 
मैंने भी हमेशा की तरह उनके अपनी गांड से निकले मेरे रस और उनके वीर्य से लिसे लंड को बिना हिचक चूस कर उसका सारा मज़ेदार स्वादभरा रस सटक गयी। 
रवि ने मेरे कान में फुफुसया , " शालू जानेमन, आज तो तुम्हारा शरबत पीने का बहुत मन कर रहा है।  पिलाओगी क्या। "
रवि  और मैं इस अनोखे [ कुछ लोगों के लिए शायद विकृति ] आनंददायी कामुक क्रिया को कई बार करते हैं। हमारी इच्छा कई बार करने के बाद भी शांत नहीं हुई। 
" मेरा तो सुब कुछ आपका है।  जो आपकी इच्छा वो ही मेरी इच्छा है ," मैने  आँख मटका कर रवि को प्यार से सहलाया। 
रवि ने मुझे बाँहों में उठा कर  शयनगृह से लगे स्नानगृह में ले चले। 
मैंने अपनी टाँगे फैला कर अपनी चूत आगे बड़ा दी। कई बार के अभ्यास से उपजी कार्यकुशलता दिखाते हुए मैंने अपने खारे सुनहरे शर्बत की धार को काबू में रखा।  रवि का मुंह भरने के बाद मैंने ज़ोर लगा कर उसे रोक लिया। 
रवि ने मेरी सुनहरी खारी सुगन्धित सौगात को नदीदेपन से निगल कर फिर तैयार हो गए।  मैंने भी अपने प्यारे पति के प्रतीक्षित मुंह को कई बार भर दिया और हर बार उन्होंने मेरे उपहार को उत्सुकता से स्वीकार कर सटक लिया। 
अब मेरी बारी थी उनके उतने ही, मेरे लिए मीठा पर वास्तव में, तीखा खारा सुनहरे शरबत का प्रसाद लेने की। 
उनके पास लंड है और मुझे उस से बहुत आसानी हो जाती है।  मैंने पहला मुंह भर कर उनका शर्बत सटका तो मेरी चूत गीली हो गयी। उन्होंने भी दक्षता दिखाते हुए अपनी धार को काबू में रखा। मैंने जी भर कर उनके सुनहरे शर्बत तो किसी लज़ीज़ मदिरा की तरह घूंट गयी। 
हमेशा की तरह इस क्रिया के समाप्त होते होते उनका लंड तनतना के खड़ा हो गया था। उस रात रवि ने, बिना जाने कि  उनके पिताजी और मेरे ससुरजी ने मुझे उनसे  सारी  रात चुदने का सुझाव दिया था ,वाकई सारी रात मुझे चोद -चोद कर सोने नहीं दिया।  जब हम देर रात बाद सोये तो मेरी चूत और गांड  की तो तौबा ही बोल चुकी थी। मेरे दोनों चुदाई की  सुरंगें उनकी घनघोर चुदाई से चरमरा गयीं थीं।  मेरे दोनों छेदों में बहुत दर्द  था - बड़ा मीठा बहुत चाहत भरा दर्द। ऐसा दर्द जो हर स्त्री के सौभाग्य में नहीं होता। 
जब मैं सुबह देर से उठी तो वाकई मेरी चाल थोड़ी ख़राब थी। थोड़ी टांगें चौड़ानी पड़ रही थी। 

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३२   
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ना जाने दोनों स्त्रियों और मर्दों को भीषण चुदाई के बाद ज़ोरों से पेशाब क्यों आता है ! मैंने अपने उनके सुंदर चहरे को गहरी नींद  में सोते बड़ी देर तक सराहा। उनका महाकाय लण्ड गहरी नींद में पूरा तना हुआ था।  मेरी लार बड़ी मुश्किल से टपकने से रुक पायी। 
फिर अपने मूत्राशय के बढ़ते दवाब का अंदर करते हुए गुसलखाने में जा कर ज़ोर की छरछरहाती बौछार से अपने मूत्राशय को खाली करने लगी।  मेरे वो यदि मेरे पास होते  तो मेरा सुनहरी शर्बत ऐसे बर्बाद नहीं होने देते। 
फिर ना जाने क्यों मुझे सुबह की बेला की सौंधी सुगंध और ठंडी  बयार  अनुभव करने की तीव्र ईच्छा होने लगी।  मैं दबे पाँव एक हल्का सा सिल्क का साया  [ गाउन ] पहन कर अपने नंगे शरीर को नाम-मात्र के लिए ढक हमारे शयन-कक्ष से लगे बगीचे की और धीरे से निकल गयी। मैंने हलके से दरवाज़ा बंद किया जिस से उनकी आँख न खुल जाये। मेरा पूरा इरादा था  कि   जब वो उठे तो उनका हाथ भर लम्बा और कोहनी से मोटा लण्ड मेरे हाथ और मुँह में हो। 
मैं बेढब चौड़ी टांगों वाली चाल से धीमे धीमे बाग़ से लगे गलियारे में दौलती पूरव की ओर पहुँच कर मंत्रमुग्ध सुबह के बेला का आनंद लेने लगी। 
अचानक दो मज़बूत हाथों ने मुझे पीछे से घेर लिया। मुझे थोड़ी से चौकाहत हुई पर शीघ्र ही मैं थोड़ी से मटकाहत के साथ पीछे हो कर उन बलशाली बाँहों के स्वामी शरीर के ऊपर  धलक गयी। 
" हमारी प्यारी बहु-बिटिया किस विचार में खोयी हुए है ? ," मेरे ससुरजी की मर्दानी भारी प्यारी आवाज़ मेरे कानों  में गूँज उठी, " लगता है मेरी प्यारी बहु के पैरों में कुच्छ कांटा चुभ गया है।  तभी तो बेचारी मुश्किल  से चल पा रही है। "
ससुरजी कल रात के मज़ाक को सुबह तक चालू रख रहे थे। 
मैंने अपने हाथ उनके मेरे पेट के ऊपर उनके दोनों बंद हांथो के ऊपर रख कर कहा , " डैडी कोइ कांटा-वांटा नहीं चुभा।  यह तो आपके बेटे हैं ना उनका कमाल है यह आपकी बहु की बेढंगी चाल करने के पीछे। "
" अरे यह बात है तो मैं उसकी खूब खबर लूंगा जब  वो उठेगा ," ससुरजी  की बाहें मेरे गोल थोड़ी सी उभरी कमर और पेट के ऊपर और भी कस गयीं। 
" डैडी , इसमें उनका दोष नहीं है। दोष यदि किसीका दोष है तो, उनको जनम देने वाले बीज का है जिसकी वजह से घोड़े से भी विकराल लिंग का वरदान मिला है ," मैं भी और कस कर ससुरजी के बदन से चिपक गयी। ससुरजी भी कुर्ते पैजामे में थे। मेरे गुदाज़ चूतड़ उनकी जांघें सहला रहे थे। उनका भरा हुआ जांघों के बीच का उदंड हिस्सा मेरी पीठ में गढ़ रहा था। 
" ओह, तो फिर ये तो मेरी गलती है।तो मेरी प्यारी बेटी मेरे लिए सज़ा देने का निर्णय बनायेगी ?" ससुरजी के हाथ धीरे धीरे मेरे पेट को सहलाते हुए ऊपर की ओर चलने लगे। 
" आपकी सज़ा यह है कि आप अपने बहु को हमेशा ऐसे ही डैडी की तरह अपने से लिपटा कर रखेंगें," मैं इठला उठी , " मेरी मम्मी कहतीं हैं कि ऐसा भीमकाय पुरुष तो सिर्फ बहुत सौभाग्यशाली लड़कियों को ही मिलता है। इस तरह तो आप दोषी नहीं दानशील है डैडी। " मैं अब अपनी कमर हौले-हौले ससुरजी के तेज़ी से तनतनाते लिंग पर रगड़ रही थी। 
ससुरजी ज़रूर मेरी कोमल पीठ के प्रयास से थोड़े प्रभावित होंगे , " बेटा तुम्हारी मम्मी बिलकुल ठीक कहतीं हैं। तो इस दानशील ससुर को क्या पुरस्कार मिलेगा। "
मैंने इठला कर ससुर जी के दोनों विशाल बलवान हाथों को अपने कोमल नन्हे हाथों से पकड़ कर धीरे धीरे ऊपर करने लगी और हलके से उन्हें अपने फड़कते उरोजों के ऊपर ले आयी।  बिना एक क्षण की देर लगाये ससुरजी के हाथ मेरे उरोजों के ऊपर हलके से कस गए।  मैं बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकारी दबा पायी। 
"डैडी, मेरी पीठ में इतना भारी क्या गढ़ रहा है ? क्या आप सारे  घर की चाभियों का गुच्छा अपने सोने के कपड़ों में रखते हैं ?" मैंने और भी इठला कर बोली। 
"बेटा खुद ही अपने हाथों से देख कर पता लगा लो कि क्या गढ़  रहा है तुम्हारी पीठ में ," ससुरजी के हाथों ने धीरे धीरे मेरे उरोजों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मेरे दोनों चुचूक तन कर सख्त हो गए। 
"डैडी, हमें पहले मम्मी से आज्ञा लेनी होगी की हमें  आपकी उस जगह को अपने हाथों से जांच-पड़ताल करने के लिए," मैं अपने ससुरजी के शरीर से और भी चुपक गयी। 
" चलिए तो आज ही अपनी मम्मी से पूछ लेना बेटी ," ससुरजी ने प्यार से मेरे सर को चूमा और मेरे कैसे मोठे लम्बे चूचुकों को अपनी हथेली के नीचे दबा कर मसल दिया।  अब मेरी सिसकारी निकल ही पड़ी। 
" डैडी, अब मैं चलती हूँ. यदि आपके बेटे जग गए और मैं उन्हें तैयार नहीं मिली तो वो बहुत उदास हो जाएंगें," मैंने ससुरजी के हाथों को और भी अपने स्तनों के ऊपर दबा दिया, " मम्मी भी तो आपका इन्तिज़ार कर रहीं होंगी?"
मेरे ससुरजी हंस कर बोले , " बेटे मैंने आने से पहले ही सुबह सवेरे की कसरत  तुम्हारी मम्मी के साथ दो बार कर ली है।  इसीलिए वो फिर से थक कर गहरी नींद  हैं। मैं भी अब तैयार होता हूँ ऑफिस जाने। "
 जब मेरे ससुरजी के हाथों ने मुझे मुक्त किया तो मुझे बिना वजह बुरा सा लगा। आखिर उनमे मैं अपने पापा को देखती हूँ ना। 
" ठीक है डैडी, मैं भी आपके सुपुत्र की सुबह की सेवा के लिए जातीं हूँ ," मैंने मुड़ कर अपने ससुरजी के उभरी तोंद के ऊपर हाथ रगड़ कर उनके खुले कुर्ते से झांकते  विशाल , बालों से भरे सीने को चूम लिया। 
सीमा सिंह 
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RE: बहु की योजना - by SEEMA SINGH - 03-09-2022, 04:26 PM



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