03-09-2022, 04:25 PM
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२२
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मुझे और भैया को बचपन से ही पापा ने अनेक तरह की शराबों से परिचित करा दिया था। इस से जब हम विश्यविद्यालय में गए तो शराब हमारे लिए कोई भी नवीन आकर्षण नहीं रखती थी।
खाने पर साधारण पारिवारिक वार्तालाप भी कितना सुखदायक होता है।
"तो रवि बेटा होली का क्या कार्यक्रम है ," सासुजी ने पूछा।
“ अरे भाई हमें तो लगा था कि कार्यक्रम पहले से ही निश्चित हो चूका है ," ससुरजी जोड़ा लगाया।
“ डैडी, मम्मी को यह नहीं पता कि कौन किस तरफ पहले जा रहा है ," रवि ने अपने पिता को समझाया।
"मम्मी मैं और शालू पहले उसके मायके जायेंगें फिर हफ्ते बाद वहाँ से कम्मो, प्रताप और रज्जो को लेकर हफ्ते के लिए यहाँ वापस आयेंगें। शायद शालू के पापा और मम्मी भी एक दो दिनों के लिए आ जाएँ," रवि ने विस्तार से समझाया।
"रज्जो दीदी आ रहीं हैं ?,' बबलू की खुशी छुपाये नहीं छुप पा रही थी।
मुझे पता था कि रजनी मेरी छोटी बहिन और बबलू एक दुसरे को ईमेल, टेक्स्ट, फेस-टाइम , स्काइप करते रहते हैं।
"अच्छा जी मेरे देवर को मेरी बहिन के आने से इतनी खुशी क्यों हो रही है ? क्या मेरे देवर जी का अपनी भाभी से मन भर गया ?" मैंने हँसते हुए बबलू को चिड़ाया।
"अरे बेटे को लगता है कि उसकी भाभी को, जिसकी बबलू पूजा करता है, तो बड़े भैया ने हथिया लिया वो कम से कम भाभी की बहिन को तो पकड़ ले," मम्मी ने भी मेरा साथ दिया।
बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
"बबलू , यार तुम्हारे बड़े भाई होने के नाते मेरी तुम्हे इज़ाज़त है जब तुम चाहो चाहो अपनी भाभी को पकड़ सकते हो ," रवि ने भी मेरे बेचारे देवर की टांग खींची।
"आप सब लोग तो। ….," शर्म से लाल बबलू हँसते हुए परिवार पर झल्लाया।
"मेरे देवर को क्यों छेड़ रहे हैं आप सब। मेरे देवर का तो प्राकर्तिक हक़ है अपनी भाभी पर। उसे किसी से भी पूछने की ज़रुरत नहीं है ," मेरे कहने मात्र से बबलू के चेहरे पर मुस्कान छा गयी और उसके चौड़े कंधे और भी चौड़े हो गए।
"भई मैं तो शालू बेटी से इत्तेफ़ाक़ करता हूँ," ससुरजी ने मेरा साथ दिया, “बबलू मेरे और मेरी भाभी के बीच में कोई भी नहीं आ सकता था। "
"आ सकता था , अभी भी कोई नहीं आ सकता है ," सासु जी ने जोड़ा।
“ बिलकुल ठीक है , बबलू मियां आपकी भाभी और आपके बीच का मामला बिलकुल आप दोनों के बीच है ," रवि ने भी मौके की नज़ाकत समझ कर अपने शरमाते भाई को प्रोत्साहित किया।
"जीजू ज़रूर आयेंगें ना भैया," नीलू चहक कर बोली।
"क्यों नन्ही ननंद जी तुम्हे क्या मिर्च लग गयी मेरे भैया के आने से या ना आने से ," मैंने नीलू की आँखों में झांक कर तीर मारा।
"बस मैं … ऐसा है कि अं .......... कि मैं जीजू से …… ,” बेचारी के ज़बान ने काम ही करना बंद कर दिया।
"अरे शालू, होली पर जीजू का साथ ना हो तो होली कैसी ? रवि और शालू तुम लोग मेरे दामाद जी को लेकर ज़रूर आना। होली पर साली को जीजू और सासु माँ को भी दामाद का साथ तो ज़रूर मिलना चाहिए," सासुजी ने मेरी नीलू के खींचाई की रेड़ मार दी।
"नीलू रानी आपके जीजू ज़रूर आयेंगें ," मैंने भी आत्मसंपर्पण कर दिया।
नीलू के चेहरे पर मानों हज़ार वॉट के बल्ब जल उठे।
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२३
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ससुरजी ने पूछा , " क्या भाभी और भैया भी आ रहें हैं ?"
सासूजी की बड़ी बहिन भी ससुरजी के बड़े भाई से बिहाई थीं ठीक मेरे और कम्मो की तरह। फर्क सिर्फ इतना है कि दोनों सगी बहनें हैं ।
"राजू, अपनी भाभी का इंतज़ार है कि अपनी साली का ?" सासु जी ने बाण छोड़ा।
“भाभी या साली….. !! बस भाभी आ जाएँ। आप हमें क्यों कह रही हो तुम्हे भी तो अपने जेठ से ज़्यादा जीजू के आने की कितनी बेसब्री है ," ससुरजी ने भी मौका नहीं छोड़ा।
सासुजी का सुंदर चेहरा शर्म से लाल हो गया।
सासू जी ने एक और बाण छोड़ा , "आप भी बहुत चालक हैं। पत्नी की बड़ी दीदी तो थोड़ी मुश्किल हाथ में आती पर आपने सरला दीदी को सिर्फ भाभी ही बना के रखा है। "
"विम्मो तुम भी तो कम नहीं हो। भैया तुम्हारी बड़ी बहिन के पति और छोटे भाई की पत्नी होने के लिहाज़ से तुम्हे छोटी बहन भी तो बना सकते थे पर तुम दोनों एक दुसरे से सिर्फ जीजा-साली जैसे पेश आते हो। " ससुरजी भी कम नहीं थे।
हम सब इस नोक-झोंक का खूब मज़ा ले रहे थे।
मुझे लगा की यह वास्तव में सहीं मौका है ," मम्मी आप इन्हें बताएं की होली पर जब यह मेरे मायके जायेंगें तो इन्हें कम्मो के नंदोई की तरह पेश आना चाहिए या भैया की तरह?''
मेरे इनका मुंह लाल हो गया, " पहले शालू तुम बोलो की पीहर में होली पर प्रताप तुम्हारे नंदोई होंगे या भैया?'
रवि ने सोचा की मैं लाजवाब हो जाऊँगी ," चाहो तो मम्मी से पूछ लीजिये। होली पर तो कम्मो के रिश्ते से भैया मेरे नंदोई होंगे। आप क्या कहतीं है मम्मी ?"
सासू माँ ने मुस्करा कर कहा, " रवि बेटा इस बात में बहु रानी सही है। होली पर कम्मो के तुम नंदोई हो जैसे प्रताप शालू के। होली पर तो नंदोई सलहज का रिश्ता ही सही है। "
" हाँ भाई होली पर तो नन्द का पति नंदोई हुआ। बाकि साल चाहे तुम और प्रताप, भैया बने रहो पर होली नंदोई का रिश्ता ही सही है।" डैडी ने भी मेरे दिल के तार बजा दिये। मैंने इठला कर अपनी जीत के मुस्कराहट उन पैर फेंक दी। और अपने ससुर जी की तरफ मोहिनी मुस्कान फेंकना भी नहीं भूली।
पूरे भोजन के दौरान इसी तरह का हांसी-मज़ाक चलता रहा। और हम सब एक के बाद सबके तीरों का निशाना बनते रहे।
ससुरजी ने शयनकक्ष की ओर जाते हुए रवि से कहा ," बेटा मैं कल तुम्हारी टेक-ओवर की मीटिंग सम्भाल लूँगा। तुम्हे आने की कोई ज़रुरत नहीं हैं। तुम चाहो तो शालू बिटिया के साथ अपने ससुराल के लिए खरीदारी कर लो। "
मेरी बांछे खिल गयी। खरीदारी से ज़यादा महत्वपूर्ण था कि हम अब सुबह तक चुदाई कर सकते हैं।
मैंने प्यार से ससुर जी को चूम कर शुभ रात्रि कहा,"शालू बिटिया नंदोई तो अभी दूर है लेकिन आज रवि को सोने नहीं देना," ससुरजी ने प्यार से मुझे चूमा और मेरे आश्चर्य-चकित चेहरे को देख कर हंस दिए।
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२४
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रवि ने शयन कक्ष में घुसते हे मेरे चीर्ण हरण करना शुरू कर दिया। मेरी साड़ी खींच कर दूर फैंक दी। मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने के बजाय उसे फाड़ कर मुझसे अलग फैंक दिया। मेरी ब्रा को तो एक क्षण भी नहीं लगा मुझसे बिछड़ने में।
मेरे साये के नाड़े की क्या हिम्मत थी कि वो मेरे स्वामी के पुरुषत्व के सामने टिक सके।
मेरी सफ़ेद कॉटन के अँगिया ही मेरा आखिरी अवरोध थी और उसको भी फाड़ कर फैंक दिया उन्होंने।
"आज मेरी खैर नहीं है, है ना?" मैंने वासना के अतिरेक से कांपती आवाज़ में बोला।
"आज मैं तुम्हारी चूत और गांड फाड़ दूंगा ," रवि ने दांत किचकिचाते हुए कहा।
मेरी चूत में मानो सैलाब आ गया। मैंने बेसब्री से रवि के दानवीय शरीर से उनका सफ़ेद कुरता पजामा खींचने की कोशिश में उतनी सफल नहीं हुई जितने रवि मेरे चीर्ण -हरण में हुए थे।
रवि ने खुद को नंग्न कर मेरे शरीर को अपने विशालकाय शरीर से धक लिया। मैं अपने पति के भीमकाय शरीर के नीचे मानों गायब हो गयी।
रवि ने मेरे चेहरे को हलके, गीले कसमसाते चुंबनो से भर दिया। उनके होंठ मेरी गर्दन की कोमल संवेदन शील त्वचा को चिढ़ाते तरसाते मेरी भारी सांसों से फड़कते उरोज़ों के ऊपर आ कर उन्होंने मेरे शरीर पर कयामत धा दी।
मेरे उरोज़ों को मसल और चूस चूस कर लाल कर दिया। मेरी सिकारियां अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
रवि मेरे पूरे शरीर को चूमते हुए मेरी गदराई भारी जांघों के बीच में पहुँच गए। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी घनी घुंघराली झांटों को फैला कर मेरी चूत के द्वार और भग-शिश्न को चूमना-चाटना शुरू कर दिया। मेरी सिस्कारियों में मेरी वासना में लिपटी चीखें भी मिल गयीं। रवि ने निर्ममता से मेरी सूखी गांड में अपनी तर्जनी धूंस दी उंगली और हथेली के जोड़ तक।
मैं बिलबिला कर चीख उठी, "हाय माँ , मैं मर गयी। कितने बेदर्द हो आप। अपने पत्नी की गांड फाड़ना चाहते हो ?"
" शालू ऊँगली से ही इतना चीखती हो अब जब तुम्हारे नंदोई अपना हाथी जैसा लंड तुम्हे गांड में ठूँसेंगें तो कितना चिल्लाओगी," उन्होंने ने खाने के समय की मेरी इठलाने का पूरा बदला लेने का इरादा बना लिया लगता था।
" मेरे राजा, मेरे स्वामी, आपकी आँखों में भी तो अपनी सलहज की चूत और गांड के विचार से अनोखी चमक है ," मैंने अपने दातों तले निचला होंठ दबा कर गांड में उपजे दर्द की चीख को दबाने की अनर्थक कोशिश की।
रवि ने मेरे भग्नासे को काट कर मेरी चीख को और बुलंद कर दिया।
रवि की तर्जनी ने मेरे मलाशय को पूरे तरह से तलाशा। रवि की जीभ और उंगली ने मेरे भग्नासे और गांड को तभी छोड़ा जब मैं चीख़्ती चिल्लाती झड़ गयी।
रवि ने मेरी गांड से निकली अपनी उंगली को चूस कर चटकारा भरते हुए अपने महाकाय लंड को मेरी फड़कती चूत के ऊपर स्थापित कर दिया।
रवि के विशाल मांसल कूल्हों की एक भयंकर ठक्कड़ से उनका आधा लंड मेरी चूत में समां गया। मेरे गले की चीत्कार रवि के बहरे कानों पे से कमल की पंखुड़ियों के ऊपर से पानी की तरह ढल कर गायब हो गयीं।
रवि ने मेरे दोनों चूचियों को वहशियों की तरह से मड़ोड़ कर एक दूसरा धक्का लगाया और मेरी चीख ने उनके विशाल लंड की कुछ और इंचों का स्वागत किया।
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मुझे और भैया को बचपन से ही पापा ने अनेक तरह की शराबों से परिचित करा दिया था। इस से जब हम विश्यविद्यालय में गए तो शराब हमारे लिए कोई भी नवीन आकर्षण नहीं रखती थी।
खाने पर साधारण पारिवारिक वार्तालाप भी कितना सुखदायक होता है।
"तो रवि बेटा होली का क्या कार्यक्रम है ," सासुजी ने पूछा।
“ अरे भाई हमें तो लगा था कि कार्यक्रम पहले से ही निश्चित हो चूका है ," ससुरजी जोड़ा लगाया।
“ डैडी, मम्मी को यह नहीं पता कि कौन किस तरफ पहले जा रहा है ," रवि ने अपने पिता को समझाया।
"मम्मी मैं और शालू पहले उसके मायके जायेंगें फिर हफ्ते बाद वहाँ से कम्मो, प्रताप और रज्जो को लेकर हफ्ते के लिए यहाँ वापस आयेंगें। शायद शालू के पापा और मम्मी भी एक दो दिनों के लिए आ जाएँ," रवि ने विस्तार से समझाया।
"रज्जो दीदी आ रहीं हैं ?,' बबलू की खुशी छुपाये नहीं छुप पा रही थी।
मुझे पता था कि रजनी मेरी छोटी बहिन और बबलू एक दुसरे को ईमेल, टेक्स्ट, फेस-टाइम , स्काइप करते रहते हैं।
"अच्छा जी मेरे देवर को मेरी बहिन के आने से इतनी खुशी क्यों हो रही है ? क्या मेरे देवर जी का अपनी भाभी से मन भर गया ?" मैंने हँसते हुए बबलू को चिड़ाया।
"अरे बेटे को लगता है कि उसकी भाभी को, जिसकी बबलू पूजा करता है, तो बड़े भैया ने हथिया लिया वो कम से कम भाभी की बहिन को तो पकड़ ले," मम्मी ने भी मेरा साथ दिया।
बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
"बबलू , यार तुम्हारे बड़े भाई होने के नाते मेरी तुम्हे इज़ाज़त है जब तुम चाहो चाहो अपनी भाभी को पकड़ सकते हो ," रवि ने भी मेरे बेचारे देवर की टांग खींची।
"आप सब लोग तो। ….," शर्म से लाल बबलू हँसते हुए परिवार पर झल्लाया।
"मेरे देवर को क्यों छेड़ रहे हैं आप सब। मेरे देवर का तो प्राकर्तिक हक़ है अपनी भाभी पर। उसे किसी से भी पूछने की ज़रुरत नहीं है ," मेरे कहने मात्र से बबलू के चेहरे पर मुस्कान छा गयी और उसके चौड़े कंधे और भी चौड़े हो गए।
"भई मैं तो शालू बेटी से इत्तेफ़ाक़ करता हूँ," ससुरजी ने मेरा साथ दिया, “बबलू मेरे और मेरी भाभी के बीच में कोई भी नहीं आ सकता था। "
"आ सकता था , अभी भी कोई नहीं आ सकता है ," सासु जी ने जोड़ा।
“ बिलकुल ठीक है , बबलू मियां आपकी भाभी और आपके बीच का मामला बिलकुल आप दोनों के बीच है ," रवि ने भी मौके की नज़ाकत समझ कर अपने शरमाते भाई को प्रोत्साहित किया।
"जीजू ज़रूर आयेंगें ना भैया," नीलू चहक कर बोली।
"क्यों नन्ही ननंद जी तुम्हे क्या मिर्च लग गयी मेरे भैया के आने से या ना आने से ," मैंने नीलू की आँखों में झांक कर तीर मारा।
"बस मैं … ऐसा है कि अं .......... कि मैं जीजू से …… ,” बेचारी के ज़बान ने काम ही करना बंद कर दिया।
"अरे शालू, होली पर जीजू का साथ ना हो तो होली कैसी ? रवि और शालू तुम लोग मेरे दामाद जी को लेकर ज़रूर आना। होली पर साली को जीजू और सासु माँ को भी दामाद का साथ तो ज़रूर मिलना चाहिए," सासुजी ने मेरी नीलू के खींचाई की रेड़ मार दी।
"नीलू रानी आपके जीजू ज़रूर आयेंगें ," मैंने भी आत्मसंपर्पण कर दिया।
नीलू के चेहरे पर मानों हज़ार वॉट के बल्ब जल उठे।
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ससुरजी ने पूछा , " क्या भाभी और भैया भी आ रहें हैं ?"
सासूजी की बड़ी बहिन भी ससुरजी के बड़े भाई से बिहाई थीं ठीक मेरे और कम्मो की तरह। फर्क सिर्फ इतना है कि दोनों सगी बहनें हैं ।
"राजू, अपनी भाभी का इंतज़ार है कि अपनी साली का ?" सासु जी ने बाण छोड़ा।
“भाभी या साली….. !! बस भाभी आ जाएँ। आप हमें क्यों कह रही हो तुम्हे भी तो अपने जेठ से ज़्यादा जीजू के आने की कितनी बेसब्री है ," ससुरजी ने भी मौका नहीं छोड़ा।
सासुजी का सुंदर चेहरा शर्म से लाल हो गया।
सासू जी ने एक और बाण छोड़ा , "आप भी बहुत चालक हैं। पत्नी की बड़ी दीदी तो थोड़ी मुश्किल हाथ में आती पर आपने सरला दीदी को सिर्फ भाभी ही बना के रखा है। "
"विम्मो तुम भी तो कम नहीं हो। भैया तुम्हारी बड़ी बहिन के पति और छोटे भाई की पत्नी होने के लिहाज़ से तुम्हे छोटी बहन भी तो बना सकते थे पर तुम दोनों एक दुसरे से सिर्फ जीजा-साली जैसे पेश आते हो। " ससुरजी भी कम नहीं थे।
हम सब इस नोक-झोंक का खूब मज़ा ले रहे थे।
मुझे लगा की यह वास्तव में सहीं मौका है ," मम्मी आप इन्हें बताएं की होली पर जब यह मेरे मायके जायेंगें तो इन्हें कम्मो के नंदोई की तरह पेश आना चाहिए या भैया की तरह?''
मेरे इनका मुंह लाल हो गया, " पहले शालू तुम बोलो की पीहर में होली पर प्रताप तुम्हारे नंदोई होंगे या भैया?'
रवि ने सोचा की मैं लाजवाब हो जाऊँगी ," चाहो तो मम्मी से पूछ लीजिये। होली पर तो कम्मो के रिश्ते से भैया मेरे नंदोई होंगे। आप क्या कहतीं है मम्मी ?"
सासू माँ ने मुस्करा कर कहा, " रवि बेटा इस बात में बहु रानी सही है। होली पर कम्मो के तुम नंदोई हो जैसे प्रताप शालू के। होली पर तो नंदोई सलहज का रिश्ता ही सही है। "
" हाँ भाई होली पर तो नन्द का पति नंदोई हुआ। बाकि साल चाहे तुम और प्रताप, भैया बने रहो पर होली नंदोई का रिश्ता ही सही है।" डैडी ने भी मेरे दिल के तार बजा दिये। मैंने इठला कर अपनी जीत के मुस्कराहट उन पैर फेंक दी। और अपने ससुर जी की तरफ मोहिनी मुस्कान फेंकना भी नहीं भूली।
पूरे भोजन के दौरान इसी तरह का हांसी-मज़ाक चलता रहा। और हम सब एक के बाद सबके तीरों का निशाना बनते रहे।
ससुरजी ने शयनकक्ष की ओर जाते हुए रवि से कहा ," बेटा मैं कल तुम्हारी टेक-ओवर की मीटिंग सम्भाल लूँगा। तुम्हे आने की कोई ज़रुरत नहीं हैं। तुम चाहो तो शालू बिटिया के साथ अपने ससुराल के लिए खरीदारी कर लो। "
मेरी बांछे खिल गयी। खरीदारी से ज़यादा महत्वपूर्ण था कि हम अब सुबह तक चुदाई कर सकते हैं।
मैंने प्यार से ससुर जी को चूम कर शुभ रात्रि कहा,"शालू बिटिया नंदोई तो अभी दूर है लेकिन आज रवि को सोने नहीं देना," ससुरजी ने प्यार से मुझे चूमा और मेरे आश्चर्य-चकित चेहरे को देख कर हंस दिए।
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रवि ने शयन कक्ष में घुसते हे मेरे चीर्ण हरण करना शुरू कर दिया। मेरी साड़ी खींच कर दूर फैंक दी। मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने के बजाय उसे फाड़ कर मुझसे अलग फैंक दिया। मेरी ब्रा को तो एक क्षण भी नहीं लगा मुझसे बिछड़ने में।
मेरे साये के नाड़े की क्या हिम्मत थी कि वो मेरे स्वामी के पुरुषत्व के सामने टिक सके।
मेरी सफ़ेद कॉटन के अँगिया ही मेरा आखिरी अवरोध थी और उसको भी फाड़ कर फैंक दिया उन्होंने।
"आज मेरी खैर नहीं है, है ना?" मैंने वासना के अतिरेक से कांपती आवाज़ में बोला।
"आज मैं तुम्हारी चूत और गांड फाड़ दूंगा ," रवि ने दांत किचकिचाते हुए कहा।
मेरी चूत में मानो सैलाब आ गया। मैंने बेसब्री से रवि के दानवीय शरीर से उनका सफ़ेद कुरता पजामा खींचने की कोशिश में उतनी सफल नहीं हुई जितने रवि मेरे चीर्ण -हरण में हुए थे।
रवि ने खुद को नंग्न कर मेरे शरीर को अपने विशालकाय शरीर से धक लिया। मैं अपने पति के भीमकाय शरीर के नीचे मानों गायब हो गयी।
रवि ने मेरे चेहरे को हलके, गीले कसमसाते चुंबनो से भर दिया। उनके होंठ मेरी गर्दन की कोमल संवेदन शील त्वचा को चिढ़ाते तरसाते मेरी भारी सांसों से फड़कते उरोज़ों के ऊपर आ कर उन्होंने मेरे शरीर पर कयामत धा दी।
मेरे उरोज़ों को मसल और चूस चूस कर लाल कर दिया। मेरी सिकारियां अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
रवि मेरे पूरे शरीर को चूमते हुए मेरी गदराई भारी जांघों के बीच में पहुँच गए। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी घनी घुंघराली झांटों को फैला कर मेरी चूत के द्वार और भग-शिश्न को चूमना-चाटना शुरू कर दिया। मेरी सिस्कारियों में मेरी वासना में लिपटी चीखें भी मिल गयीं। रवि ने निर्ममता से मेरी सूखी गांड में अपनी तर्जनी धूंस दी उंगली और हथेली के जोड़ तक।
मैं बिलबिला कर चीख उठी, "हाय माँ , मैं मर गयी। कितने बेदर्द हो आप। अपने पत्नी की गांड फाड़ना चाहते हो ?"
" शालू ऊँगली से ही इतना चीखती हो अब जब तुम्हारे नंदोई अपना हाथी जैसा लंड तुम्हे गांड में ठूँसेंगें तो कितना चिल्लाओगी," उन्होंने ने खाने के समय की मेरी इठलाने का पूरा बदला लेने का इरादा बना लिया लगता था।
" मेरे राजा, मेरे स्वामी, आपकी आँखों में भी तो अपनी सलहज की चूत और गांड के विचार से अनोखी चमक है ," मैंने अपने दातों तले निचला होंठ दबा कर गांड में उपजे दर्द की चीख को दबाने की अनर्थक कोशिश की।
रवि ने मेरे भग्नासे को काट कर मेरी चीख को और बुलंद कर दिया।
रवि की तर्जनी ने मेरे मलाशय को पूरे तरह से तलाशा। रवि की जीभ और उंगली ने मेरे भग्नासे और गांड को तभी छोड़ा जब मैं चीख़्ती चिल्लाती झड़ गयी।
रवि ने मेरी गांड से निकली अपनी उंगली को चूस कर चटकारा भरते हुए अपने महाकाय लंड को मेरी फड़कती चूत के ऊपर स्थापित कर दिया।
रवि के विशाल मांसल कूल्हों की एक भयंकर ठक्कड़ से उनका आधा लंड मेरी चूत में समां गया। मेरे गले की चीत्कार रवि के बहरे कानों पे से कमल की पंखुड़ियों के ऊपर से पानी की तरह ढल कर गायब हो गयीं।
रवि ने मेरे दोनों चूचियों को वहशियों की तरह से मड़ोड़ कर एक दूसरा धक्का लगाया और मेरी चीख ने उनके विशाल लंड की कुछ और इंचों का स्वागत किया।
सीमा सिंह