03-09-2022, 04:22 PM
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६
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मैं पहले बबलू के कमरे की तरफ चल दी। मेरे मस्तिष्क में छह महीने पहले हुई घटना एक चलचित्र की तरह तेज़ी से सक्रिय हो गयी। बबलू उस समय आठवीं में था। मैं उस से और नीलू से इतनी घुल मिल गयी थी कि दोनों की विश्वास-पात्र बन गयी थी। इस वजह से मैंने उनके कमरों के दरवाज़ों को प्रवेश करने से पहले खटखटाना छोड़ दिया। बबलू तब किशोरावस्था के द्वार से दो तीन महीने दूर था।
मेरे मायके और मेरी ससुराल में एक दूसरे को पूरी व्यक्तिगता और एकांतता देने की परम्परा है। उस दिन मैं बबलू के कमरे में दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गयी और जैसी ही मैं उसके अंदर के कमरे में पहुँची और उस दृश्य के प्रभाव से बिलकुल भौचक्की हो कर मानों कालीन ने मेरे पाँव जकड़ लिए।
नन्हा बबलू पलंग पर बिलकुल नंगा था और अपने लंड को अपने हाथ से सहला रहा था। उसके हाथों में एक बड़ी से तस्वीर थी।
पहले तो मैं हिल भी नहीं पायी पर जब बबलू ने चीख कर 'सॉरी भाभी ' कहा तो मैं जगी। मुझे अपने पर बहुत गुस्सा आया। बढ़ते हुए लड़के की एकान्तता में इस तरह विघ्न डालना कितने शर्म की बात थी।
पहले बबलू ने घबरा कर तस्वीर तकिये के नीचे छुपा ली। फिर उसने ने जल्दी से अपने को चादर से ढक लिया और उसका सुंदर चेहरा शर्म और घबराहट से लाल हो गया।
लेकिन बेचारे को इस नाज़ुक और बेढंगी परिस्थिति में ख्याल ही नहीं रहा कि हल्की रेशमी सफ़ेद चादर में उसका लिंग खम्बे की तरह उठा हुआ था।
मुझे हंसी आ गयी। बबलू का चेहरा और भी लाल हो गया इस बार उसने कुछ गुस्से से और कुछ मिलीजुली शर्म से। उसने ज़ोर से कहा, "भाभी आप भी ……"
और अपना सर बेचारगी से हिला कर नीचे झुका लिया। मुझे अब समझ आया कि मैं तो सिर्फ उसे बच्चा समझ कर अपने को मन ही मन में डांट रही थी , पर यहाँ स्थिति थोड़ी और भी गम्भीर थी।
मैं जल्दी से उसके पास बिस्तर पर बैठ गयी और उसके लाल चेहरे को अपनी दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया और पूरी गम्भीरता से कहा, "सॉरी बबलू। रिअली आई ऍम वैरी सॉरी। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। यह मेरी गलती है। तुम्हे अपने कमरे में पूर्ण एकांत मिलने का पूरा हक़ है। और मैंने बेवकूफी से तुम्हारे एकांत में बाधा डाली है। यह मेरे व्यवहार की अयोग्ता का नतीज़ा है। प्लीज़ बबलू अपनी बुद्धू भाभी को माफ़ कर दो। "
मैं ने और भी कई बार माफी मांगी पर बबलू ने अपना सर मेरे हाथों से झटक कर फिर नीचे कर लिया।
मेरे अनगिनत अनुनय ने बबलू के ऊपर कोई भी वास्तविक प्रभाव नहीं छोड़ा। मानों वो किसी संगमरमर की सुंदर मूरत बन गया था। मेरे दिल को बहुत धक्का लगा और मुझे साफ़ लगने लगा कि मैंने बबलू के प्यार और विश्वास तो ठेस पहुँच दी है और शायद अब वो मुझ पर कभी विश्वास नहीं करेगा।
मेरी आँखों में आंसू भर आये ,"बबलू, लगता है कि तुम मुझे माफ़ नहीं करोगे। मैं समझती हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे ऊपर से उठ गया है। तुम्हारा और नीलू का प्यार, दोस्ती और विश्वास मेरे लिए इस नए घर में स्थापित होने की नींव बन गए थे। शायद मैं इस उपहार के लायक ही नहीं हूँ।”
“यदि तुम मुझे माफ़ न भी करो तो प्लीज़ मुझसे घृणा नहीं करना। मैं तुम्हारी घृणा नहीं बर्दाश्त कर पाऊन्गी। " मैं अब अपने रोने को नहीं रोक पा रही थी।
इस से पहले मैं बिलख कर रो पडूं मैं जल्दी से बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गयी और न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सुबक निकल पड़ी , "बबलू मैं तुम्हारे कमरे में कभी भी नहीं घुसूँगी और जब तक तुम नहीं चाहोगे मैं तुमसे कुछ भी नहीं बोलूँगीं। यह ही मेरी सज़ा है कि मैं तुम्हारे प्यार से वंचित हो गयी हूँ। " अब मेरे सुबकने लगी और मेर चेहरा आंसुओं से भीग गया।
मैं जब तक मुड़ पाती मुझे बबलू के चीख सुनाई पड़ी , "भाभी ! भाभी !" बबलू लपक कर बिस्तर से उठा और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। उसने अपना मुंह मेरी गरदन में छुपा लिया और सुबकते हुए बोला, “भाभी, आपका मेरे कमरे आना तो मेरे दिन का सबसे अच्छा समय होता है। मैं सारा दिन कॉलेज में आपके आने के बारे में ही सोचता रहता हूँ। मैं आपसे गुस्सा नहीं था। मुझे तो डर था कि आप मुझे नाराज़ हो जाओगी और मुझे हेट करने लगोगी। "
हम दोनों और भी ज़ोर से एक दुसरे से लिपट गए।
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७
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बबलू उस समय मेरे कद से एक इंच **छोटा था। हम दोनों कुछ देर बाद शांत हुए , "बबलू मैं क्यों तुमसे नाराज़ हो जाती? बताओ तो मुझे। क्या कोई माँ अपने बेटे को हेट कर सकती है ?" मैं ज़ोर से सुबकी औए आंसू से गीले बबलू के गालों को पागलों की तरह चुम्बनों से भर दिया।
बबलू के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी।
"पहले आप मुझे बताओ कि आपने मुझे माफ़ कर दिया है ," बबलू ने अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द और भी ज़ोर से कस दीं।
"बबलू गलती तो मेरी है। चलो हम दोनों ही एक दूसरे को माफ़ कर देतें हैं ," मेरे थरकते होंठों पर भी एक भीनी सी मुस्कान थिरक उठी।
तब हम दोनों को अहसास हुआ कि बबलू पूरा नंगा था।
बबलू घबरा कर मुझसे छूटने का पर्यास करने लगा पर मैंने उसे कस कर पकड़ लिया ,"बबलू नंग्न-पन और. … उम ....... सड़ …… अर …… जो तुम कर रहे थे उससे शर्मिंदा होने या बुरा मानने की कोई भी ज़रुरत नहीं है। "
बबलू ने शर्मा कर अपना सुंदर मुंह मेरे गर्दन में दबा दिया और फुसफुसा कर बोला , "भाभी आपको मुझे वो सब करते हुए देख कर बुरा नहीं लगा। "
मैं हलके से हंस दी , "बबलू यदि तुम्हारी उम्र के लड़के यदि वो न करें तो बहुत विचित्र होगा। मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। मैं तो बस तुम्हारी प्राइवेसी में दखल देने से डर गयी, " मैंने बबलू के घुंगराले घने बालो को चूमते हुए पूछा, "वैसे मुझे यह तो बताओ कि ये 'वो' को कहते क्या हैं। "
बबलू ने मुझे और भी कस कर पकड़ लिया और अपना मुंह मेरे गर्दन में कस कर दबा लिया।
मैं समझी कि बबलू शर्मा रहा है सो मैंने फिर से पूछा , "बबलू तुम मुझे चिढ़ा रहे हो? बताओ न उसे तुम क्या कहते हो? " मैं नहीं चाहती थी कि बबलू के मन या दिमाग में इस आकस्मिक प्रसंग की वजह से कोई अनहोनी गाँठ न बन जाये।
"नहीं भाभी मुझे वास्तव में नहीं पता ," बबलू अब मुझे बेल की तरह लिपट गया। बबलू तब भी बहुत हृष्ट-पुष्ट बच्चा था। उसका शारीरिक विकास अपनी उम्र के बच्चों से कई साल आगे था और अब भी है।
मैं अब भौचक्की हो गयी पर मैंने अपने अविश्वास को दबाया और चहकते हुए कहा , "आहा ,बबलू मियां आपकी भाभी को पता है कि उसे क्या कहते है। "
बबलू ने फुफुसा कर कहा ,"भाभी आप मुझे समझाओगे ?"
मेरे शरीर में एक अनजानी सी सिरहन दौड़ गयी।
"पहले बबलू अपनी भाभी को आराम से बिस्तर में बैठने को तो कहो ," मैंने बबलू को प्यार से बिस्तर की तरफ धकेलने का प्रयास किया। उस समय भी बबलू मेरे लिए बहुत शक्तिशाली था। अचानक उसे अपने और लंड के नंगे होने का अहसास हुआ।
"सॉरी भाभी, मैं जल्दी से कुछ पहन लेता हूँ। " बबलू ने मुझसे छूटना चाहा पर मैंने उसे और भी कस कर पकड़ लिया ,"मेरे प्यारे देवर जी अब तो गाड़ी निकल चुकी है स्टेशन से । जैसे कि कहते है घोड़े के भागने के बाद अस्तबल के द्वार को बंद करने का क्या फायदा। जैसे कि कहते हैं यह जहाज तो अब जलयात्रा के लिए निकल पड़ा। जैसे कि कहते हैं कि अब पछताये का होत जब चिड़िया चुग गयीं खेत। "
बबलू खिलखिला के हंस पड़ा और मुझसे छूटने की कोशिश बंद कर दी , "भाभी आखिरी वाला मुहावरा इस स्थिति के लिए ठीक नहीं है। "
मैं जानती थी कि बबलू मेरे गलत मुहावरे को पकड़ लेगा पर नीलू और बबलू दोनों मेरे गलत-शलत मुहाविरों पर खूब हँसते हैं।
बबलू मेरे साथ आराम से बिस्तर पर बैठ गया।
हम दोनों गुदगुदे सिरहाने पर कमर टिका कर बिस्तर में बैठ गए। मेरी बाहें अभी भी बबलू के चारों तरफ थी। मुझे उसकी बाँहों को अपने शरीर से लिपटा पा कर बहुत अच्छा लग रहा था।
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८
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"भाभी बताओं न उसे क्या कहते हैं ," बबलू ने मुझे हलके से हिलाया। मेरी आँखे मेरे नियंत्रण की, मेरे निर्देशों की अवज्ञा कर बबलू की गोरी चिकनी पर मांसल भारी जाँघों के बीच में लेते उसके लंड पर जा कर रुक गयीं। मैं पहले उसका लिंग ध्यान से नहीं देख पायी थी। उसके लंड गोरा, चिकना, और बहुत मोटा था। अब तक बिचारा बिलकुल शिथिल हो गया था पर फिर भी उसकी लम्बाई और मोटाई किसी साधारण लंड से बहुत ज़यादा थी। बबलू का लंड पर अभी तक एक भी बाल नहीं उगा था। मुझे लगा कि जब तक बबलू पूरा बड़ा होगा तो शायद वो अपने बड़े भैय्या के महाकाय लंड से भी आगे निकल जाए। इस विचार से मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गयी।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी दृष्टि को बबलू के मोटे लम्बे लंड से दूर कर पायी। मैं हंस कर बोली ,"अच्छा तो यह बताओ तुम अपने उसको क्या कहते हो ?"
बबलू शरमाया , "किसको भाभी!"
मैंने उसके लाल गाल को चूम कर फिर से पूछा ," यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे उसको पकड़ कर पूछ सकती हूँ?"
बबलू थोडा घबरा गया ,"अंह … अंह, भाभी पुझे तो सिर्फ कॉलेज के किताबों वाला नाम ही मालूम है। इसे पीनिस कहते हैं। "
मेरे दिल हुआ कि मैं बबलू को पागलों की तरह चूम लूँ। वास्तव मैं मेरे गंदे दिमाग तो उसके सारे शरीर को चूमने के विचार से भरा हुआ था।
"मेरे अनाड़ी देवर मियां ," मुझे तब तक विश्वास हो गया था कि बबलू और नीलू मेरी विनोदपूर्णता को अच्छे से समझ चुके थे और उसे अनाड़ी बुलाने से बुरा नहीं लगेगा, "पीनिस तो कॉलेज की किताबों में या शिष्टाचार के माहौल में ठीक लगता है पर निजी समय में तो उसे कुछ और ही कहते हैं। "
अब तक बबलू का दिलचस्पी पूरी जाग कर उत्तेजित हो गयी थी। उसका गुणी और अत्यंत मेधावी मस्तिष्क नई जानकारी और ज्ञान के लिए हमेशा बूखा रहता है।
"ठीक है, यदि तुम्हारी भाभी ने तुम्हे यह सब सिखाया तो उसे क्या गुरुदक्षिणा दोगे?" मैंने फिर से बबलू के लाल पर दमकते हुए सुंदर चेहरे को चूम लिया।
"जो आप मांगेंगीं," बबलू ने मुझे अपनी बाँहों में भींच कर कहा।
"देवर जी वचन देने से पहले सोच लेना चाहिए। क्या पता आपको मैं क्या मांग लूँ ?” मैं नाटकीय शैली में इठला कर बोली, "जब मैं मांगूं और आप देना न चाहें। "
बबलू ने मेरी आँखों में अपनी हल्की भूरी आँखे डाल कर हलके से कहा ,"भाभी मुझे पता है कि आप वो सब नहीं मांगेंगी जो मेरे पास देने को है ही नहीं। पर जो कुछ भी मेरे पास है और आप मांगें तो वो आपका है। "
मेरे दिल में हिचक उठ गयी ,"बबलू इतना प्यार करोगे तो मैं रो पडूँगी। " मेरा हृदय में बबलू का प्यार समा गया।
बबलू ने मेरे माथे पे प्यार से पुच्ची रख दी ,"भाभी यदि आप रोईं तो मैं भी रो दूंगा।"
"अरे मर्द थोड़े ही रोते हैं अनाड़ी देवर, " मैंने बात हलकी करने का प्रयास किया।
"अच्छा तो वायदा करो कि मैं जब आपको दूसरा शब्द भी सिखा दूंगी तो मुझे आप बताओगे कि आपको अपने पीनिस से खेलने की क्यों ज़रूरत पड़ी ?” मैंने बिना सोचे बबलू कि चिकनी पर चौड़ी छाती पे गहरा चुम्बन टिका दिया।
बबलू अचानक सोच में पड़ गया।
मैंने जल्दी से बात सम्भाली , "देखो जी देवर मियां, अभी कुछ देर हम दोनों ने रो कर एक दुसरे को प्यार करने का और विश्वास करने का आश्वासन दिया है। यदि आप मुकरे तो मुखे दुख होगा। "
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९
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बबलू ने ये सुन कर एक क्षण भी नहीं व्यतीत नहीं होने दिया , "भाभी यदि आप वचन दें कि नाराज़ नहीं होंगी ?"
"प्रॉमिस , वायदा, वचन, क्रॉस माय हार्ट एंड होप तो डाई , स्कॉट्स ऑनर, टिट फॉर टैट ," मैंने पूरी गम्भीरता से कहा।
बबलू खिलखिला के हंस दिया और ज़ोरों से हँसता रहा। मैंने नासमझी का नाटक किया जिससे उसे और भी हंसी आ गयी। उस सुंदर निर्दोष बालक की स्वछन्द हंसी से मेरा हृदय भी मुक्त महसूस करने लगा।
"भाभी अब बताइये ना प्लीज़ ," बबलू ने अपनी उम्र के बालकों जैसे ही हट की।
"अच्छा देवर जी सुनिये, जिस को आप कॉलेज की किताबों में पीनिस की तरह जानते हैं उसको निजी समय व्यक्तिगत समय में लंड कहते हैं। उसके और भी नाम हैं कुछ शलील और कुछ अश्लील। गुप्तांग, जनेन्द्रिय, लिंग, शिश्न, जंग बहादुर, महाराज ,लवड़ा, लौड़ा। " मेरी साँसे अब तेज़ हो चली थी। मैंने उन पर काबू रखने की पूरी कोशिश की, "मेरा ज्ञान भी थोडा सीमित है पर मैं तुम्हारे बड़े भैय्या से पूछूंगी शायद उन्हें और भी नाम पता हों। "
मैंने गौर से, बबलू का सुंदर चेहरा जो अब एकागर्ता में डूबा हुआ था, को एकटक देख रही थी। बबलू बहुत गुणी और अत्यंत मेधावी है। उसके होठ बिना आवाज़ निकले हिल रहे थे और शीघ्र उसने मुस्करा कर पूछा ," भाभी अब दूसरी बात का नाम बताइये।"
मैंने अपनी टांगों को कस कर जोड़ लिया ,"बबलू मुझे तो तीन ही नाम पता हैं । हस्त-मैथुन, सड़का मारना, और हिलाना । "
बबलू की आँखें अब चमक रहीं थीं, "भाभी मैं कुछ और पूछूं। प्रॉमिस आप बुरा तो नहीं मान जाएंगीं ?"
"प्यारे देवर जी यदि आप अपने वायदे से नहीं मुकरे तो मैं किसी भी सवाल का बुरा नहीं मानूँगी ," मैंने अपनी सलाह की उपेक्षा कर दी - कोई भी वचन सोच समझ कर देना चाहिए।
"भाभी, वैजाइना और ब्रेस्ट्स को क्या कहते हैं?" बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो उठा था और उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन और भी तीव्र हो गयी।
"बबलू जी आप तो मेरा सारा ज्ञान भण्डार खाली करने की योजना बना रहें है, " मैं प्रार्थना कर रही थी कि मेरा हथोड़े की तरह धड़कते हृदय की धड़कन सिर्फ मुझे ही सुनाई दे रही थी।
“"प्लीज़ भाभी, " बबलू का उत्साह का कोई अंत नहीं था।
"ठीक है शिष्य महाराज तो ध्यान से सुनो। ब्रेस्ट्स को वक्षस्थल, सीना, स्तन, छाती, आँचल, झोंका, और चूचियाँ भी कहते हैं। कुछ और भी नाम हैं पर मुझे इस समय इतने ही याद आ रहें हैं ," मैंने बबलू के बुदबुदाते होंठों के रुकने की प्रतीक्षा की, "मेरे बालक, सीधे, नन्हे, और बहुत ही प्यारे देवर मियां क्यों कि आप बहुत ही अच्छे शिष्य लग रहें हैं मैं आपको एक और बात बता देती हूँ जो आपने पूछी ही नहीं। "
बबलू ने गम्भीरता और एकाग्रता से मेरे चेहरे पे दृष्टि टिका दी।
"ब्रेस्ट्स के आगे लगे निप्प्ल को स्तनाग्र, वक्षाग्र , चूची, चूचुक भी कहते हैं। " मैं अपनी झाँगों के बीच में गीलापन महसूस कर कुछ घबरा सी गयी।
"भाभी थैंक्स, और बाकी के ?” मेरा शिष्य का ध्यान अत्यंत केंद्रित था।
"वैजाइना को योनि, योनिमार्ग , स्त्रीजननांग , स्त्री धन, महारानी, सहेली, और चूत भी कहते हैं," और इसके साथ इन सब नाम वाले मेरी जगह पूरी गीली हो गयी।
"मेरे प्यारे बालक देवर जी अब आप की बारी है," मेरे शब्द मेरी बिगड़ती हालत को शायद बिलकुल छुपा न पा रहें हों।
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मैं पहले बबलू के कमरे की तरफ चल दी। मेरे मस्तिष्क में छह महीने पहले हुई घटना एक चलचित्र की तरह तेज़ी से सक्रिय हो गयी। बबलू उस समय आठवीं में था। मैं उस से और नीलू से इतनी घुल मिल गयी थी कि दोनों की विश्वास-पात्र बन गयी थी। इस वजह से मैंने उनके कमरों के दरवाज़ों को प्रवेश करने से पहले खटखटाना छोड़ दिया। बबलू तब किशोरावस्था के द्वार से दो तीन महीने दूर था।
मेरे मायके और मेरी ससुराल में एक दूसरे को पूरी व्यक्तिगता और एकांतता देने की परम्परा है। उस दिन मैं बबलू के कमरे में दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गयी और जैसी ही मैं उसके अंदर के कमरे में पहुँची और उस दृश्य के प्रभाव से बिलकुल भौचक्की हो कर मानों कालीन ने मेरे पाँव जकड़ लिए।
नन्हा बबलू पलंग पर बिलकुल नंगा था और अपने लंड को अपने हाथ से सहला रहा था। उसके हाथों में एक बड़ी से तस्वीर थी।
पहले तो मैं हिल भी नहीं पायी पर जब बबलू ने चीख कर 'सॉरी भाभी ' कहा तो मैं जगी। मुझे अपने पर बहुत गुस्सा आया। बढ़ते हुए लड़के की एकान्तता में इस तरह विघ्न डालना कितने शर्म की बात थी।
पहले बबलू ने घबरा कर तस्वीर तकिये के नीचे छुपा ली। फिर उसने ने जल्दी से अपने को चादर से ढक लिया और उसका सुंदर चेहरा शर्म और घबराहट से लाल हो गया।
लेकिन बेचारे को इस नाज़ुक और बेढंगी परिस्थिति में ख्याल ही नहीं रहा कि हल्की रेशमी सफ़ेद चादर में उसका लिंग खम्बे की तरह उठा हुआ था।
मुझे हंसी आ गयी। बबलू का चेहरा और भी लाल हो गया इस बार उसने कुछ गुस्से से और कुछ मिलीजुली शर्म से। उसने ज़ोर से कहा, "भाभी आप भी ……"
और अपना सर बेचारगी से हिला कर नीचे झुका लिया। मुझे अब समझ आया कि मैं तो सिर्फ उसे बच्चा समझ कर अपने को मन ही मन में डांट रही थी , पर यहाँ स्थिति थोड़ी और भी गम्भीर थी।
मैं जल्दी से उसके पास बिस्तर पर बैठ गयी और उसके लाल चेहरे को अपनी दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया और पूरी गम्भीरता से कहा, "सॉरी बबलू। रिअली आई ऍम वैरी सॉरी। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। यह मेरी गलती है। तुम्हे अपने कमरे में पूर्ण एकांत मिलने का पूरा हक़ है। और मैंने बेवकूफी से तुम्हारे एकांत में बाधा डाली है। यह मेरे व्यवहार की अयोग्ता का नतीज़ा है। प्लीज़ बबलू अपनी बुद्धू भाभी को माफ़ कर दो। "
मैं ने और भी कई बार माफी मांगी पर बबलू ने अपना सर मेरे हाथों से झटक कर फिर नीचे कर लिया।
मेरे अनगिनत अनुनय ने बबलू के ऊपर कोई भी वास्तविक प्रभाव नहीं छोड़ा। मानों वो किसी संगमरमर की सुंदर मूरत बन गया था। मेरे दिल को बहुत धक्का लगा और मुझे साफ़ लगने लगा कि मैंने बबलू के प्यार और विश्वास तो ठेस पहुँच दी है और शायद अब वो मुझ पर कभी विश्वास नहीं करेगा।
मेरी आँखों में आंसू भर आये ,"बबलू, लगता है कि तुम मुझे माफ़ नहीं करोगे। मैं समझती हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे ऊपर से उठ गया है। तुम्हारा और नीलू का प्यार, दोस्ती और विश्वास मेरे लिए इस नए घर में स्थापित होने की नींव बन गए थे। शायद मैं इस उपहार के लायक ही नहीं हूँ।”
“यदि तुम मुझे माफ़ न भी करो तो प्लीज़ मुझसे घृणा नहीं करना। मैं तुम्हारी घृणा नहीं बर्दाश्त कर पाऊन्गी। " मैं अब अपने रोने को नहीं रोक पा रही थी।
इस से पहले मैं बिलख कर रो पडूं मैं जल्दी से बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गयी और न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सुबक निकल पड़ी , "बबलू मैं तुम्हारे कमरे में कभी भी नहीं घुसूँगी और जब तक तुम नहीं चाहोगे मैं तुमसे कुछ भी नहीं बोलूँगीं। यह ही मेरी सज़ा है कि मैं तुम्हारे प्यार से वंचित हो गयी हूँ। " अब मेरे सुबकने लगी और मेर चेहरा आंसुओं से भीग गया।
मैं जब तक मुड़ पाती मुझे बबलू के चीख सुनाई पड़ी , "भाभी ! भाभी !" बबलू लपक कर बिस्तर से उठा और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। उसने अपना मुंह मेरी गरदन में छुपा लिया और सुबकते हुए बोला, “भाभी, आपका मेरे कमरे आना तो मेरे दिन का सबसे अच्छा समय होता है। मैं सारा दिन कॉलेज में आपके आने के बारे में ही सोचता रहता हूँ। मैं आपसे गुस्सा नहीं था। मुझे तो डर था कि आप मुझे नाराज़ हो जाओगी और मुझे हेट करने लगोगी। "
हम दोनों और भी ज़ोर से एक दुसरे से लिपट गए।
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बबलू उस समय मेरे कद से एक इंच **छोटा था। हम दोनों कुछ देर बाद शांत हुए , "बबलू मैं क्यों तुमसे नाराज़ हो जाती? बताओ तो मुझे। क्या कोई माँ अपने बेटे को हेट कर सकती है ?" मैं ज़ोर से सुबकी औए आंसू से गीले बबलू के गालों को पागलों की तरह चुम्बनों से भर दिया।
बबलू के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी।
"पहले आप मुझे बताओ कि आपने मुझे माफ़ कर दिया है ," बबलू ने अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द और भी ज़ोर से कस दीं।
"बबलू गलती तो मेरी है। चलो हम दोनों ही एक दूसरे को माफ़ कर देतें हैं ," मेरे थरकते होंठों पर भी एक भीनी सी मुस्कान थिरक उठी।
तब हम दोनों को अहसास हुआ कि बबलू पूरा नंगा था।
बबलू घबरा कर मुझसे छूटने का पर्यास करने लगा पर मैंने उसे कस कर पकड़ लिया ,"बबलू नंग्न-पन और. … उम ....... सड़ …… अर …… जो तुम कर रहे थे उससे शर्मिंदा होने या बुरा मानने की कोई भी ज़रुरत नहीं है। "
बबलू ने शर्मा कर अपना सुंदर मुंह मेरे गर्दन में दबा दिया और फुसफुसा कर बोला , "भाभी आपको मुझे वो सब करते हुए देख कर बुरा नहीं लगा। "
मैं हलके से हंस दी , "बबलू यदि तुम्हारी उम्र के लड़के यदि वो न करें तो बहुत विचित्र होगा। मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। मैं तो बस तुम्हारी प्राइवेसी में दखल देने से डर गयी, " मैंने बबलू के घुंगराले घने बालो को चूमते हुए पूछा, "वैसे मुझे यह तो बताओ कि ये 'वो' को कहते क्या हैं। "
बबलू ने मुझे और भी कस कर पकड़ लिया और अपना मुंह मेरे गर्दन में कस कर दबा लिया।
मैं समझी कि बबलू शर्मा रहा है सो मैंने फिर से पूछा , "बबलू तुम मुझे चिढ़ा रहे हो? बताओ न उसे तुम क्या कहते हो? " मैं नहीं चाहती थी कि बबलू के मन या दिमाग में इस आकस्मिक प्रसंग की वजह से कोई अनहोनी गाँठ न बन जाये।
"नहीं भाभी मुझे वास्तव में नहीं पता ," बबलू अब मुझे बेल की तरह लिपट गया। बबलू तब भी बहुत हृष्ट-पुष्ट बच्चा था। उसका शारीरिक विकास अपनी उम्र के बच्चों से कई साल आगे था और अब भी है।
मैं अब भौचक्की हो गयी पर मैंने अपने अविश्वास को दबाया और चहकते हुए कहा , "आहा ,बबलू मियां आपकी भाभी को पता है कि उसे क्या कहते है। "
बबलू ने फुफुसा कर कहा ,"भाभी आप मुझे समझाओगे ?"
मेरे शरीर में एक अनजानी सी सिरहन दौड़ गयी।
"पहले बबलू अपनी भाभी को आराम से बिस्तर में बैठने को तो कहो ," मैंने बबलू को प्यार से बिस्तर की तरफ धकेलने का प्रयास किया। उस समय भी बबलू मेरे लिए बहुत शक्तिशाली था। अचानक उसे अपने और लंड के नंगे होने का अहसास हुआ।
"सॉरी भाभी, मैं जल्दी से कुछ पहन लेता हूँ। " बबलू ने मुझसे छूटना चाहा पर मैंने उसे और भी कस कर पकड़ लिया ,"मेरे प्यारे देवर जी अब तो गाड़ी निकल चुकी है स्टेशन से । जैसे कि कहते है घोड़े के भागने के बाद अस्तबल के द्वार को बंद करने का क्या फायदा। जैसे कि कहते हैं यह जहाज तो अब जलयात्रा के लिए निकल पड़ा। जैसे कि कहते हैं कि अब पछताये का होत जब चिड़िया चुग गयीं खेत। "
बबलू खिलखिला के हंस पड़ा और मुझसे छूटने की कोशिश बंद कर दी , "भाभी आखिरी वाला मुहावरा इस स्थिति के लिए ठीक नहीं है। "
मैं जानती थी कि बबलू मेरे गलत मुहावरे को पकड़ लेगा पर नीलू और बबलू दोनों मेरे गलत-शलत मुहाविरों पर खूब हँसते हैं।
बबलू मेरे साथ आराम से बिस्तर पर बैठ गया।
हम दोनों गुदगुदे सिरहाने पर कमर टिका कर बिस्तर में बैठ गए। मेरी बाहें अभी भी बबलू के चारों तरफ थी। मुझे उसकी बाँहों को अपने शरीर से लिपटा पा कर बहुत अच्छा लग रहा था।
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८
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"भाभी बताओं न उसे क्या कहते हैं ," बबलू ने मुझे हलके से हिलाया। मेरी आँखे मेरे नियंत्रण की, मेरे निर्देशों की अवज्ञा कर बबलू की गोरी चिकनी पर मांसल भारी जाँघों के बीच में लेते उसके लंड पर जा कर रुक गयीं। मैं पहले उसका लिंग ध्यान से नहीं देख पायी थी। उसके लंड गोरा, चिकना, और बहुत मोटा था। अब तक बिचारा बिलकुल शिथिल हो गया था पर फिर भी उसकी लम्बाई और मोटाई किसी साधारण लंड से बहुत ज़यादा थी। बबलू का लंड पर अभी तक एक भी बाल नहीं उगा था। मुझे लगा कि जब तक बबलू पूरा बड़ा होगा तो शायद वो अपने बड़े भैय्या के महाकाय लंड से भी आगे निकल जाए। इस विचार से मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गयी।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी दृष्टि को बबलू के मोटे लम्बे लंड से दूर कर पायी। मैं हंस कर बोली ,"अच्छा तो यह बताओ तुम अपने उसको क्या कहते हो ?"
बबलू शरमाया , "किसको भाभी!"
मैंने उसके लाल गाल को चूम कर फिर से पूछा ," यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे उसको पकड़ कर पूछ सकती हूँ?"
बबलू थोडा घबरा गया ,"अंह … अंह, भाभी पुझे तो सिर्फ कॉलेज के किताबों वाला नाम ही मालूम है। इसे पीनिस कहते हैं। "
मेरे दिल हुआ कि मैं बबलू को पागलों की तरह चूम लूँ। वास्तव मैं मेरे गंदे दिमाग तो उसके सारे शरीर को चूमने के विचार से भरा हुआ था।
"मेरे अनाड़ी देवर मियां ," मुझे तब तक विश्वास हो गया था कि बबलू और नीलू मेरी विनोदपूर्णता को अच्छे से समझ चुके थे और उसे अनाड़ी बुलाने से बुरा नहीं लगेगा, "पीनिस तो कॉलेज की किताबों में या शिष्टाचार के माहौल में ठीक लगता है पर निजी समय में तो उसे कुछ और ही कहते हैं। "
अब तक बबलू का दिलचस्पी पूरी जाग कर उत्तेजित हो गयी थी। उसका गुणी और अत्यंत मेधावी मस्तिष्क नई जानकारी और ज्ञान के लिए हमेशा बूखा रहता है।
"ठीक है, यदि तुम्हारी भाभी ने तुम्हे यह सब सिखाया तो उसे क्या गुरुदक्षिणा दोगे?" मैंने फिर से बबलू के लाल पर दमकते हुए सुंदर चेहरे को चूम लिया।
"जो आप मांगेंगीं," बबलू ने मुझे अपनी बाँहों में भींच कर कहा।
"देवर जी वचन देने से पहले सोच लेना चाहिए। क्या पता आपको मैं क्या मांग लूँ ?” मैं नाटकीय शैली में इठला कर बोली, "जब मैं मांगूं और आप देना न चाहें। "
बबलू ने मेरी आँखों में अपनी हल्की भूरी आँखे डाल कर हलके से कहा ,"भाभी मुझे पता है कि आप वो सब नहीं मांगेंगी जो मेरे पास देने को है ही नहीं। पर जो कुछ भी मेरे पास है और आप मांगें तो वो आपका है। "
मेरे दिल में हिचक उठ गयी ,"बबलू इतना प्यार करोगे तो मैं रो पडूँगी। " मेरा हृदय में बबलू का प्यार समा गया।
बबलू ने मेरे माथे पे प्यार से पुच्ची रख दी ,"भाभी यदि आप रोईं तो मैं भी रो दूंगा।"
"अरे मर्द थोड़े ही रोते हैं अनाड़ी देवर, " मैंने बात हलकी करने का प्रयास किया।
"अच्छा तो वायदा करो कि मैं जब आपको दूसरा शब्द भी सिखा दूंगी तो मुझे आप बताओगे कि आपको अपने पीनिस से खेलने की क्यों ज़रूरत पड़ी ?” मैंने बिना सोचे बबलू कि चिकनी पर चौड़ी छाती पे गहरा चुम्बन टिका दिया।
बबलू अचानक सोच में पड़ गया।
मैंने जल्दी से बात सम्भाली , "देखो जी देवर मियां, अभी कुछ देर हम दोनों ने रो कर एक दुसरे को प्यार करने का और विश्वास करने का आश्वासन दिया है। यदि आप मुकरे तो मुखे दुख होगा। "
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बबलू ने ये सुन कर एक क्षण भी नहीं व्यतीत नहीं होने दिया , "भाभी यदि आप वचन दें कि नाराज़ नहीं होंगी ?"
"प्रॉमिस , वायदा, वचन, क्रॉस माय हार्ट एंड होप तो डाई , स्कॉट्स ऑनर, टिट फॉर टैट ," मैंने पूरी गम्भीरता से कहा।
बबलू खिलखिला के हंस दिया और ज़ोरों से हँसता रहा। मैंने नासमझी का नाटक किया जिससे उसे और भी हंसी आ गयी। उस सुंदर निर्दोष बालक की स्वछन्द हंसी से मेरा हृदय भी मुक्त महसूस करने लगा।
"भाभी अब बताइये ना प्लीज़ ," बबलू ने अपनी उम्र के बालकों जैसे ही हट की।
"अच्छा देवर जी सुनिये, जिस को आप कॉलेज की किताबों में पीनिस की तरह जानते हैं उसको निजी समय व्यक्तिगत समय में लंड कहते हैं। उसके और भी नाम हैं कुछ शलील और कुछ अश्लील। गुप्तांग, जनेन्द्रिय, लिंग, शिश्न, जंग बहादुर, महाराज ,लवड़ा, लौड़ा। " मेरी साँसे अब तेज़ हो चली थी। मैंने उन पर काबू रखने की पूरी कोशिश की, "मेरा ज्ञान भी थोडा सीमित है पर मैं तुम्हारे बड़े भैय्या से पूछूंगी शायद उन्हें और भी नाम पता हों। "
मैंने गौर से, बबलू का सुंदर चेहरा जो अब एकागर्ता में डूबा हुआ था, को एकटक देख रही थी। बबलू बहुत गुणी और अत्यंत मेधावी है। उसके होठ बिना आवाज़ निकले हिल रहे थे और शीघ्र उसने मुस्करा कर पूछा ," भाभी अब दूसरी बात का नाम बताइये।"
मैंने अपनी टांगों को कस कर जोड़ लिया ,"बबलू मुझे तो तीन ही नाम पता हैं । हस्त-मैथुन, सड़का मारना, और हिलाना । "
बबलू की आँखें अब चमक रहीं थीं, "भाभी मैं कुछ और पूछूं। प्रॉमिस आप बुरा तो नहीं मान जाएंगीं ?"
"प्यारे देवर जी यदि आप अपने वायदे से नहीं मुकरे तो मैं किसी भी सवाल का बुरा नहीं मानूँगी ," मैंने अपनी सलाह की उपेक्षा कर दी - कोई भी वचन सोच समझ कर देना चाहिए।
"भाभी, वैजाइना और ब्रेस्ट्स को क्या कहते हैं?" बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो उठा था और उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन और भी तीव्र हो गयी।
"बबलू जी आप तो मेरा सारा ज्ञान भण्डार खाली करने की योजना बना रहें है, " मैं प्रार्थना कर रही थी कि मेरा हथोड़े की तरह धड़कते हृदय की धड़कन सिर्फ मुझे ही सुनाई दे रही थी।
“"प्लीज़ भाभी, " बबलू का उत्साह का कोई अंत नहीं था।
"ठीक है शिष्य महाराज तो ध्यान से सुनो। ब्रेस्ट्स को वक्षस्थल, सीना, स्तन, छाती, आँचल, झोंका, और चूचियाँ भी कहते हैं। कुछ और भी नाम हैं पर मुझे इस समय इतने ही याद आ रहें हैं ," मैंने बबलू के बुदबुदाते होंठों के रुकने की प्रतीक्षा की, "मेरे बालक, सीधे, नन्हे, और बहुत ही प्यारे देवर मियां क्यों कि आप बहुत ही अच्छे शिष्य लग रहें हैं मैं आपको एक और बात बता देती हूँ जो आपने पूछी ही नहीं। "
बबलू ने गम्भीरता और एकाग्रता से मेरे चेहरे पे दृष्टि टिका दी।
"ब्रेस्ट्स के आगे लगे निप्प्ल को स्तनाग्र, वक्षाग्र , चूची, चूचुक भी कहते हैं। " मैं अपनी झाँगों के बीच में गीलापन महसूस कर कुछ घबरा सी गयी।
"भाभी थैंक्स, और बाकी के ?” मेरा शिष्य का ध्यान अत्यंत केंद्रित था।
"वैजाइना को योनि, योनिमार्ग , स्त्रीजननांग , स्त्री धन, महारानी, सहेली, और चूत भी कहते हैं," और इसके साथ इन सब नाम वाले मेरी जगह पूरी गीली हो गयी।
"मेरे प्यारे बालक देवर जी अब आप की बारी है," मेरे शब्द मेरी बिगड़ती हालत को शायद बिलकुल छुपा न पा रहें हों।
सीमा सिंह