03-09-2022, 04:22 PM
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३
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मैंने बबलू को छेड़ा जबकि सच यह था कि जिस दिन मैं उसके कॉलेज से आने के बाद उसके आलिंगन को मिस कर देती थी तो मुझे दिन में कुछ खालीपन सा लगता था। मेरे अंदर तेज़ी से बढ़ते मातृत्व की अनुभूति से मैं अभिभूत हो गयी थी। मेरे अंदर छुपी हुई माँ को बबलू और नीलू जैसे बच्चों की चाहत उबलने लगी थी।
"भाभी , आपको मैंने कब इस से कम प्यार किया है ?" मेरा नन्हा सा देवर बहुत ही गुणी और बुद्धिमान है।
"तो फिर भाभी की पुच्ची कहाँ है?" मैंने अपने शरीर को बालक जैसे सुंदर चेहरे के मालिक अपने देवर बबलू के पूर्ण विकसित मर्दों जैसे शरीर से और भी चिपका दिया।
ज्यों ही मैंने मुड़ने का प्रयास किया बबलू ने मुझे और भी कस कर जकड़ लिया। उसने अपना चेहरा मेरे बालों में से उठा कर मेरे गाल को तीन प्यार भरे चुम्बनों से गीला कर दिया।
"यह तो तुम्हारी पुच्ची है। अब मेरी बारी है ," मैंने अपना मुंह मोड़ कर बबलू के लाल गोरे गाल को कस कर अनगिनत चुम्बनों से भर दिया।
बबलू ने एक हल्की सी 'ऊँह ' की आवाज़ के साथ मुझे अपनी भीमकाय शक्तिशाली बाँहों में कस कर अपने शरीर से और भी कस कर लिपटा लिया।
मेरे भारी विशाल चूतड़ों के ऊपर एक सख्त उभार चुभने लगा। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि यह बबलू के बड़े लिंग की सख्ती थी।
मैंने धीरे से हंस कर फुसफुसाई ," मेरे बच्चे देवर जी ने यह क्या छुपा रखा है आपने कॉलेज के निक्कर में ?"
बबलू भी हौले से फुसफुसाया ,"भाभी आपको पता है कि यह क्या है। यह आपकी वजह से ही तो ऐसा हो जाता है। "
मैं शर्म से लाल हो गयी ,"चलो अब बबलू अपनी मम्मी को किस दो और नाश्ता करके नहा-धो लो। "
बबलू ने अपने कसी हुई बाँहों को बहुत देर में ढीला किया। मुझे छोड़ने से पहले उसने अपने सख्त होते उरुसंधी को मेरे चूतड़ो के ऊपर ज़ोर से दबाया।
"बबलू साहिब, अब चलिए महाशय नाश्ता कीजिये और ऊपर जा कर नहा लीजिये। मैं आज बाबूजी के पसंद के व्यंजन बना रहीं हूँ, " मैं तब ऊंची आवाज़ में बोली
" दैट इज़ ग्रेट। आई लव यू भाभी, " नटखट बबलू ने भी साधारण आवाज़ में उत्तर दिया पर मुझे मुक्त करने से पहले अपने गरम मुंह को मेरी गर्दन की संवेदन शील त्वचा में मसल दिया। मैं सिहर उठी।
बबलू से मेरी नज़दीकी मेरे ससुराल आने के एक महीने में ही हो गयी थी।
"अरे बबलू तू तो भाभी के आने के बाद अपने माँ को बिलकुल ही भूल गया है ," सासुजी ने अपने जिगर के टुकड़े को चिढ़ाया।
"मम्मी भला कोई भी बेटा अपनी माँ को भूल सकता है ? और फिर आप ही तो कह रहीं थीं कि बड़ी भाभी माँ के समान होती है ," मैंने मुस्करा कर बबलू की चतुरता के लिए उसके चौड़े कूल्हों को सहला कर अपनी प्रशंसा ज़ाहिर की।
बबलू ने तेज़ी से मुड़ कर अपने होंठों से मेरे होंठों को चूम लिया और दौड़ कर रसोई से पारिवारिक-भवन की ओर भाग गया।
मैं कुछ क्षण बिलकुल हिल उठी। बबलू ने तब तक कभी भी मेरे होंठों पे चुम्बन करने का प्रयास नहीं किया था।
मैं ना चाहते हुए भी शर्म से लाल हो मुस्करा उठी।
मैंने नाश्ता रसोई की डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और दोनों को आवाज़ दीं , "नीलू, बबलू चलो नाश्ता कर लो। "
तब तक ससुरजी नहाने के बाद कपड़े बदल कर वापस आ गए। दोनों बच्चों को चुम्बन दे कर ससुरजी ने उन्हें रसोई की तरफ धकेल दिया।
नीलू और बबलू ने नाश्ते पर आक्रमण शुरू कर दिया।
मैं ससुर और सासु जी के ड्रिंक बनाने लग गयी। मैं जब पारिवारिक-भवन में प्रविष्ट हुई तो मुझे उनके वार्तालाप के आखिरी वाक्य सुनाई पड़े ,"राजू [ प्यार से सासुजी ससुरजी को केवल घर में राजू पुकारती हैं ] शालू बिटिया के आने से सारे घर में और भी खुशी आ गयी है। हम सौभाग्यशाली हैं कि शालू हमारी बहु है ," सासुजी ने ससुर जी से भावुक आवाज़ में कहा।
इस से पहले ससुरजी कुछ बोलते मैं अपने उबलते खुशी के आंसुओं को दबा कर भवन में प्रविष्ट हो गयी।
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४
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"बाबू जी आज मैंने सोचा कि आप ग्लेनफिडिक के बजाय लफ़रोए [Laphroaig] पसंद करेंगें। मांजी आपकी बेलीज़ [Bailey’s] ,” मैंने दोनों को उनके ड्रिंक थमा दिए।
"शालू तुम तो मेरे विचार पढ़ लेती हो ," ससुरजी ने चहक कर मेरी प्रशंसा की। ससुरजी वैसे तो ज़्यादातर ग्लेनफिडिक स्कॉच पीते थे पर उनकी सबसे पसंदीदा स्कॉच लफ़रोए है।
"बाबू जी, मांजी , सौभाग्यशाली तो मैं हूँ कि मुझे आपने अपने परिवार में शामिल किया। और एक दिन भी मुझे अपने मम्मी पापा की कमी नहीं महसूस होने दी। " मैं और भी भावुक हो गयी और मेरी आँखें भर गयीं।
ससुरजी ने हलके से मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी चौड़ी गोद में बिठा लिया। मैंने अपने बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द दाल दीं और अपना मुंह उनकी मांसल गर्दन में छुपा लिया । उनके ताज़े नहाये हुए शरीर से मेरे पापा जैसी मर्दानी सुगंध आ रही थी।
"अरे बेटी तुम्हारे आंसू हमसे नहीं देखे जाते। यहाँ तुम हो और वहां तुम्हारे माता-पिता ने हमारी कम्मो को प्यार से अभिभूत कर दिया है," सासूजी ने मेरे बालों को वात्सल्य भरे प्यार से सहलाया।
मैं हलके से सुबकी और फिर गीला मुंह उठा कर बोली , "आपने मुझे कभी भी बहु की तरह नहीं समझा। आपने मुझे पहले दिन से ही कम्मो के तरह पूरी स्वत्रंता देदी है। "
ससुरजी ने मेरे गीले गालों को चूमा और भवशील क्षणों को हल्का करने के लिए चहकते हुए कहा ,"फिर बेटा यह बाबूजी और मांजी कौन है ? इस घर में तो सिर्फ डैडी और मम्मी हैं। "
सासु जी भी हलके से हंस दी।
मैं शर्म से लाल हो गयी और शर्माते हुए खिलखिला दी, "सॉरी डैडी। " मैंने आगे झुक कर सासुजी को चूम कर उनसे भी क्षमा माँगी "सॉरी मम्मी। "
दोनों ने मुझे अपने बाँहों में कस लिया।
आखिर में हम लोगों उस प्रेम भरे क्षण को स्वीकार कर अलग हो गए।
"हम लोग ऊपर जा रहें हैं ," नीलू ज़ोर से बोली और दोनों भाई बहिन एक दुसरे को प्यार से चिड़ाते हुए अपने कमरों की तरफ दौड़ गए।
मैंने बिलकुल परम्परागत माँ की तरह चीख कर पूछा ,"तुम दोनों ने नाश्ता अच्छे से खाया कि नहीं?" पर दोनों तब तक दूर जा चुके थे।
"शालू यह दोनों तुम्हे समय से पहले ही मातृत्व की तकलीफों से परिचित करा रहें हैं। " सासुजी मुकरा कर बोलीं।
"मम्मी यदि मेरे दो इन दोनों की तरह हुए तो मैं अपने को बहुत सौभाग्यशाली समझूंगी। मैं खाना शुरू कर दूं अब। फिर इन दोनों के होम-वर्क को चेक करती हूँ। " मैंने रसोई की तरफ पैर बढ़ाये।
सासुजी ने ससुर जी से कहा , "जबसे शालू ने इन दोनों की पढ़ाई की बागडोर सम्भाली है तबसे इन दोनों ग्रेड्स पहले तीन में पहुँच गए है "
"शालू बेटी ने इकोनॉमिक्स में मास्टर की डिग्री की है। उस यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के दाखिले के लिए लाखों तरस जाते हैं। शालू को गोल्ड-मेडल मिला था." ससुरजी ने गर्व से सासु जी को बताया।
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५
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मैंने अगले आधे घंटे में तीनों व्यंजनों को शुरू कर दिया। यह मेरी मम्मी की व्यंजन-विधि थीं और तीनों धीरी ऊष्मा में बनाई जाती हैं।
मैं ससुरजी और सासुजी को बताने चली कि मैं ऊपर जा रहीं हूँ।
"शालू बेटी, तुम तो उनके होम-वर्क के लिए उनकी माँ से भी बढ़ कर ख्याल रखती हो। अब जरा थोड़ी देर अपने डैडी के गोद में बैठ कर उनको भी सुख दे दो , " ससुरजी जब उनका मन होता है तो बड़े चुलबुले और मज़ाकिया बन जाते हैं ठीक मेरे पापा की तरह।
मैं झट से ससुरजी की गोद में बैठ गयी ," डैडी, मैं अब अपने को नीलू और बबलू के बारे में अपने बच्चो की तरह ही समझती हूँ इसीलिए कभी-कभी मैं उन्हें कुछ ज़यादा ही बढ़ावा देती हूँ पढ़ाई करने में। "
ससुरजी ने प्यार भरे गर्व से मुझे चूमा। मैंने उनका खाली गिलास ले कर उसे फिर से भरने चल दी। सासुजी ने भी अपनी बेलीज़ ख़तम कर दी थी।
"मम्मी मेरे डैडी की गोद में नहीं बैठ जाइयेगा। आज यह मेरे सीट है," मैंने चुलबुला कर सासुजी को चिढ़ाया।
"अरे बाबा किसकी हिम्मत है हमारी बेटी की सीट छीनने की। तुम्हारे डैडी की गोद तुम्हारे लिए बिलकुल तैयार मिलेगी। " हम तीनों अपने बचपने के मज़ाक से हंस दिए।
मैंने वापस आ कर दोनों उनके गिलास थमाए और झटक कर ससुर जी की भारी-भरकम गोद में बैठ गयी। मेरी बाहें उनके गले का हार बन गयी और मैंने अपना चेहरा उनके चौड़े सीने पर रख दिया। हम तीनों ने घर-बार की रोज़मर्रा की बातों से सलग्न हो गए।
आखिर में सासुजी ने कहा ,"शालू तुम्हारा दिल नहीं नहीं मानेगा बिना जाए। "
मैं अपने व्याकुलता को इतने आसानी से ज़ाहिर करने के लिए थोड़ी शर्मिंदा हो गयी।
"ठीक है बेटा , तुम उन दोनों को निपटा आओ फिर इकट्ठे ड्रिंक लेंगें। " ससुरजी ने भी हामी भरी।
"मैं जब रवि आ जायेंगें तो अपने लिए बना लूगीं, " मैंने ससुर जी की गोद खाली कर दी। ससुर जी सफ़ेद कुर्ते-पजामे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। और मैं न चाहते हुए भी दिमाग में से इस ख्याल को नहीं निकल पायी कि 'ठीक मेरे पापा की तरह'।
मैं अपने बनते हुए व्यंजनों को हिला कर जाने के लिए मुड़ ही रही थी कि मम्मी डैडी के वार्तालाप की कड़ी सुनाई पड़ी ।
“"आँहाँ , राजू आपकी बहू ने आपके औज़ार को जगा दिया दीखता है। मैं तो समझती थी कि अब कम्मो आपकी गोद में नहीं बैठती तो शायद आपके महाराज को थोड़ी शांती मिल जाये। पर आपकी शालू बेटी भी कम्मो की तरह ही प्रभावशाली है ," मुझे सासुजी की प्यार भरा प्रबोधन सुनाई पड़ा।
"विम्मो, पिता हूँ पर पुरुष भी तो हूँ। कम्मो इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर है। और शालू भी उससे बाईस नहीं तो बीस तो है," ससुरजी ने हंस कर कहा।
"मैं आपको उल्हाना थोड़े ही दे रहीं हूँ मैं तो आपके पुरुषत्व की प्रशंसा कर रहीं हूँ कि आप अपनी बेटियों को पिता कि तरह प्यार दे सकते हैं पर उन्हें अत्यंत सुंदर स्त्रियों की तरह भी देख सकते हैं। यह तो सिर्फ आत्मविश्वासी पुरुष ही कर सकते हैं ," सासुजी ने शायद ससुरजी को चूमा था।
"पर मैं आपको बता दूं विम्मो जब शालू बेटी मेरी गोद में बैठी थी तो मुझे उतना ही यतन करना पड़ा जितना कम्मो के साथ करना पड़ता था ," ससुरजी ने सासुजी को बताया।
"इसमें क्या आश्चर्य की बात है। दोनों ही आपकी बेटियां है ," सासुजी ने अधिकार भरे लाड़ से कहा।
मैं थोड़ी शरमाई पर मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा। मेरे पापा का भी यही हाल होता है जब मैं उनकी गोद में बैठती हूँ।
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मैंने बबलू को छेड़ा जबकि सच यह था कि जिस दिन मैं उसके कॉलेज से आने के बाद उसके आलिंगन को मिस कर देती थी तो मुझे दिन में कुछ खालीपन सा लगता था। मेरे अंदर तेज़ी से बढ़ते मातृत्व की अनुभूति से मैं अभिभूत हो गयी थी। मेरे अंदर छुपी हुई माँ को बबलू और नीलू जैसे बच्चों की चाहत उबलने लगी थी।
"भाभी , आपको मैंने कब इस से कम प्यार किया है ?" मेरा नन्हा सा देवर बहुत ही गुणी और बुद्धिमान है।
"तो फिर भाभी की पुच्ची कहाँ है?" मैंने अपने शरीर को बालक जैसे सुंदर चेहरे के मालिक अपने देवर बबलू के पूर्ण विकसित मर्दों जैसे शरीर से और भी चिपका दिया।
ज्यों ही मैंने मुड़ने का प्रयास किया बबलू ने मुझे और भी कस कर जकड़ लिया। उसने अपना चेहरा मेरे बालों में से उठा कर मेरे गाल को तीन प्यार भरे चुम्बनों से गीला कर दिया।
"यह तो तुम्हारी पुच्ची है। अब मेरी बारी है ," मैंने अपना मुंह मोड़ कर बबलू के लाल गोरे गाल को कस कर अनगिनत चुम्बनों से भर दिया।
बबलू ने एक हल्की सी 'ऊँह ' की आवाज़ के साथ मुझे अपनी भीमकाय शक्तिशाली बाँहों में कस कर अपने शरीर से और भी कस कर लिपटा लिया।
मेरे भारी विशाल चूतड़ों के ऊपर एक सख्त उभार चुभने लगा। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि यह बबलू के बड़े लिंग की सख्ती थी।
मैंने धीरे से हंस कर फुसफुसाई ," मेरे बच्चे देवर जी ने यह क्या छुपा रखा है आपने कॉलेज के निक्कर में ?"
बबलू भी हौले से फुसफुसाया ,"भाभी आपको पता है कि यह क्या है। यह आपकी वजह से ही तो ऐसा हो जाता है। "
मैं शर्म से लाल हो गयी ,"चलो अब बबलू अपनी मम्मी को किस दो और नाश्ता करके नहा-धो लो। "
बबलू ने अपने कसी हुई बाँहों को बहुत देर में ढीला किया। मुझे छोड़ने से पहले उसने अपने सख्त होते उरुसंधी को मेरे चूतड़ो के ऊपर ज़ोर से दबाया।
"बबलू साहिब, अब चलिए महाशय नाश्ता कीजिये और ऊपर जा कर नहा लीजिये। मैं आज बाबूजी के पसंद के व्यंजन बना रहीं हूँ, " मैं तब ऊंची आवाज़ में बोली
" दैट इज़ ग्रेट। आई लव यू भाभी, " नटखट बबलू ने भी साधारण आवाज़ में उत्तर दिया पर मुझे मुक्त करने से पहले अपने गरम मुंह को मेरी गर्दन की संवेदन शील त्वचा में मसल दिया। मैं सिहर उठी।
बबलू से मेरी नज़दीकी मेरे ससुराल आने के एक महीने में ही हो गयी थी।
"अरे बबलू तू तो भाभी के आने के बाद अपने माँ को बिलकुल ही भूल गया है ," सासुजी ने अपने जिगर के टुकड़े को चिढ़ाया।
"मम्मी भला कोई भी बेटा अपनी माँ को भूल सकता है ? और फिर आप ही तो कह रहीं थीं कि बड़ी भाभी माँ के समान होती है ," मैंने मुस्करा कर बबलू की चतुरता के लिए उसके चौड़े कूल्हों को सहला कर अपनी प्रशंसा ज़ाहिर की।
बबलू ने तेज़ी से मुड़ कर अपने होंठों से मेरे होंठों को चूम लिया और दौड़ कर रसोई से पारिवारिक-भवन की ओर भाग गया।
मैं कुछ क्षण बिलकुल हिल उठी। बबलू ने तब तक कभी भी मेरे होंठों पे चुम्बन करने का प्रयास नहीं किया था।
मैं ना चाहते हुए भी शर्म से लाल हो मुस्करा उठी।
मैंने नाश्ता रसोई की डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और दोनों को आवाज़ दीं , "नीलू, बबलू चलो नाश्ता कर लो। "
तब तक ससुरजी नहाने के बाद कपड़े बदल कर वापस आ गए। दोनों बच्चों को चुम्बन दे कर ससुरजी ने उन्हें रसोई की तरफ धकेल दिया।
नीलू और बबलू ने नाश्ते पर आक्रमण शुरू कर दिया।
मैं ससुर और सासु जी के ड्रिंक बनाने लग गयी। मैं जब पारिवारिक-भवन में प्रविष्ट हुई तो मुझे उनके वार्तालाप के आखिरी वाक्य सुनाई पड़े ,"राजू [ प्यार से सासुजी ससुरजी को केवल घर में राजू पुकारती हैं ] शालू बिटिया के आने से सारे घर में और भी खुशी आ गयी है। हम सौभाग्यशाली हैं कि शालू हमारी बहु है ," सासुजी ने ससुर जी से भावुक आवाज़ में कहा।
इस से पहले ससुरजी कुछ बोलते मैं अपने उबलते खुशी के आंसुओं को दबा कर भवन में प्रविष्ट हो गयी।
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"बाबू जी आज मैंने सोचा कि आप ग्लेनफिडिक के बजाय लफ़रोए [Laphroaig] पसंद करेंगें। मांजी आपकी बेलीज़ [Bailey’s] ,” मैंने दोनों को उनके ड्रिंक थमा दिए।
"शालू तुम तो मेरे विचार पढ़ लेती हो ," ससुरजी ने चहक कर मेरी प्रशंसा की। ससुरजी वैसे तो ज़्यादातर ग्लेनफिडिक स्कॉच पीते थे पर उनकी सबसे पसंदीदा स्कॉच लफ़रोए है।
"बाबू जी, मांजी , सौभाग्यशाली तो मैं हूँ कि मुझे आपने अपने परिवार में शामिल किया। और एक दिन भी मुझे अपने मम्मी पापा की कमी नहीं महसूस होने दी। " मैं और भी भावुक हो गयी और मेरी आँखें भर गयीं।
ससुरजी ने हलके से मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी चौड़ी गोद में बिठा लिया। मैंने अपने बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द दाल दीं और अपना मुंह उनकी मांसल गर्दन में छुपा लिया । उनके ताज़े नहाये हुए शरीर से मेरे पापा जैसी मर्दानी सुगंध आ रही थी।
"अरे बेटी तुम्हारे आंसू हमसे नहीं देखे जाते। यहाँ तुम हो और वहां तुम्हारे माता-पिता ने हमारी कम्मो को प्यार से अभिभूत कर दिया है," सासूजी ने मेरे बालों को वात्सल्य भरे प्यार से सहलाया।
मैं हलके से सुबकी और फिर गीला मुंह उठा कर बोली , "आपने मुझे कभी भी बहु की तरह नहीं समझा। आपने मुझे पहले दिन से ही कम्मो के तरह पूरी स्वत्रंता देदी है। "
ससुरजी ने मेरे गीले गालों को चूमा और भवशील क्षणों को हल्का करने के लिए चहकते हुए कहा ,"फिर बेटा यह बाबूजी और मांजी कौन है ? इस घर में तो सिर्फ डैडी और मम्मी हैं। "
सासु जी भी हलके से हंस दी।
मैं शर्म से लाल हो गयी और शर्माते हुए खिलखिला दी, "सॉरी डैडी। " मैंने आगे झुक कर सासुजी को चूम कर उनसे भी क्षमा माँगी "सॉरी मम्मी। "
दोनों ने मुझे अपने बाँहों में कस लिया।
आखिर में हम लोगों उस प्रेम भरे क्षण को स्वीकार कर अलग हो गए।
"हम लोग ऊपर जा रहें हैं ," नीलू ज़ोर से बोली और दोनों भाई बहिन एक दुसरे को प्यार से चिड़ाते हुए अपने कमरों की तरफ दौड़ गए।
मैंने बिलकुल परम्परागत माँ की तरह चीख कर पूछा ,"तुम दोनों ने नाश्ता अच्छे से खाया कि नहीं?" पर दोनों तब तक दूर जा चुके थे।
"शालू यह दोनों तुम्हे समय से पहले ही मातृत्व की तकलीफों से परिचित करा रहें हैं। " सासुजी मुकरा कर बोलीं।
"मम्मी यदि मेरे दो इन दोनों की तरह हुए तो मैं अपने को बहुत सौभाग्यशाली समझूंगी। मैं खाना शुरू कर दूं अब। फिर इन दोनों के होम-वर्क को चेक करती हूँ। " मैंने रसोई की तरफ पैर बढ़ाये।
सासुजी ने ससुर जी से कहा , "जबसे शालू ने इन दोनों की पढ़ाई की बागडोर सम्भाली है तबसे इन दोनों ग्रेड्स पहले तीन में पहुँच गए है "
"शालू बेटी ने इकोनॉमिक्स में मास्टर की डिग्री की है। उस यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के दाखिले के लिए लाखों तरस जाते हैं। शालू को गोल्ड-मेडल मिला था." ससुरजी ने गर्व से सासु जी को बताया।
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मैंने अगले आधे घंटे में तीनों व्यंजनों को शुरू कर दिया। यह मेरी मम्मी की व्यंजन-विधि थीं और तीनों धीरी ऊष्मा में बनाई जाती हैं।
मैं ससुरजी और सासुजी को बताने चली कि मैं ऊपर जा रहीं हूँ।
"शालू बेटी, तुम तो उनके होम-वर्क के लिए उनकी माँ से भी बढ़ कर ख्याल रखती हो। अब जरा थोड़ी देर अपने डैडी के गोद में बैठ कर उनको भी सुख दे दो , " ससुरजी जब उनका मन होता है तो बड़े चुलबुले और मज़ाकिया बन जाते हैं ठीक मेरे पापा की तरह।
मैं झट से ससुरजी की गोद में बैठ गयी ," डैडी, मैं अब अपने को नीलू और बबलू के बारे में अपने बच्चो की तरह ही समझती हूँ इसीलिए कभी-कभी मैं उन्हें कुछ ज़यादा ही बढ़ावा देती हूँ पढ़ाई करने में। "
ससुरजी ने प्यार भरे गर्व से मुझे चूमा। मैंने उनका खाली गिलास ले कर उसे फिर से भरने चल दी। सासुजी ने भी अपनी बेलीज़ ख़तम कर दी थी।
"मम्मी मेरे डैडी की गोद में नहीं बैठ जाइयेगा। आज यह मेरे सीट है," मैंने चुलबुला कर सासुजी को चिढ़ाया।
"अरे बाबा किसकी हिम्मत है हमारी बेटी की सीट छीनने की। तुम्हारे डैडी की गोद तुम्हारे लिए बिलकुल तैयार मिलेगी। " हम तीनों अपने बचपने के मज़ाक से हंस दिए।
मैंने वापस आ कर दोनों उनके गिलास थमाए और झटक कर ससुर जी की भारी-भरकम गोद में बैठ गयी। मेरी बाहें उनके गले का हार बन गयी और मैंने अपना चेहरा उनके चौड़े सीने पर रख दिया। हम तीनों ने घर-बार की रोज़मर्रा की बातों से सलग्न हो गए।
आखिर में सासुजी ने कहा ,"शालू तुम्हारा दिल नहीं नहीं मानेगा बिना जाए। "
मैं अपने व्याकुलता को इतने आसानी से ज़ाहिर करने के लिए थोड़ी शर्मिंदा हो गयी।
"ठीक है बेटा , तुम उन दोनों को निपटा आओ फिर इकट्ठे ड्रिंक लेंगें। " ससुरजी ने भी हामी भरी।
"मैं जब रवि आ जायेंगें तो अपने लिए बना लूगीं, " मैंने ससुर जी की गोद खाली कर दी। ससुर जी सफ़ेद कुर्ते-पजामे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। और मैं न चाहते हुए भी दिमाग में से इस ख्याल को नहीं निकल पायी कि 'ठीक मेरे पापा की तरह'।
मैं अपने बनते हुए व्यंजनों को हिला कर जाने के लिए मुड़ ही रही थी कि मम्मी डैडी के वार्तालाप की कड़ी सुनाई पड़ी ।
“"आँहाँ , राजू आपकी बहू ने आपके औज़ार को जगा दिया दीखता है। मैं तो समझती थी कि अब कम्मो आपकी गोद में नहीं बैठती तो शायद आपके महाराज को थोड़ी शांती मिल जाये। पर आपकी शालू बेटी भी कम्मो की तरह ही प्रभावशाली है ," मुझे सासुजी की प्यार भरा प्रबोधन सुनाई पड़ा।
"विम्मो, पिता हूँ पर पुरुष भी तो हूँ। कम्मो इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर है। और शालू भी उससे बाईस नहीं तो बीस तो है," ससुरजी ने हंस कर कहा।
"मैं आपको उल्हाना थोड़े ही दे रहीं हूँ मैं तो आपके पुरुषत्व की प्रशंसा कर रहीं हूँ कि आप अपनी बेटियों को पिता कि तरह प्यार दे सकते हैं पर उन्हें अत्यंत सुंदर स्त्रियों की तरह भी देख सकते हैं। यह तो सिर्फ आत्मविश्वासी पुरुष ही कर सकते हैं ," सासुजी ने शायद ससुरजी को चूमा था।
"पर मैं आपको बता दूं विम्मो जब शालू बेटी मेरी गोद में बैठी थी तो मुझे उतना ही यतन करना पड़ा जितना कम्मो के साथ करना पड़ता था ," ससुरजी ने सासुजी को बताया।
"इसमें क्या आश्चर्य की बात है। दोनों ही आपकी बेटियां है ," सासुजी ने अधिकार भरे लाड़ से कहा।
मैं थोड़ी शरमाई पर मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा। मेरे पापा का भी यही हाल होता है जब मैं उनकी गोद में बैठती हूँ।
सीमा सिंह