03-09-2022, 04:19 PM
(This post was last modified: 03-09-2022, 05:47 PM by SEEMA SINGH. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.)
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शालू
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१
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शरद ऋतू की कठोरता शांत हो चली थी। ऐसे ही मौसम के ढलते हुए दिन में मैं प्रसन्नचित हो अपने ससुर जी का पसंदीदा भोजन बना रही थी। घर में अनेको नौकर हैं पर मुझे कभी कभी अपना प्यार दिखाने का सरूर चढ़ जाता है। वैसे मेरे उनको भी यह व्यंजन बहुत अच्छे लगते है।
"शालू बेटी, कोई मदद चाहिए ? मुझे पता है कि तुमने रसोईयों को बाहर निकाल दिया पर सास की मदद हाज़िर है ?" मेरी सासूजी ने प्यार से पूछा। वो विशाल रसोई के पास पारिवारिक-भवन में कोई बड़ी भारी सी किताब पड़ रहीं थीं । उन्होंने अपनी किताब को पुस्तक-चिन्ह लगा कर सोफे पर रख दी।
मेरी सास, विमला प्रकाश , अत्यंत सुंदर, सुशील और शांत महिला हैं। उनकी सुंदरता चवालीस [ ४४ ] साल की उम्र में समय के कठोर प्रभाव से मद्दिम होने के बजाय परिपक्वता और जीवन के अनुभवों की तिलिस्मी माया के प्रभाव से और भी प्रफुल, सम्मोहक और उज्जवल हो गयी है। कुछ उन्हें स्थूल कहें पर मेरे स्त्रीत्व के निगाहों में वो उम्र के उस मोड़ के भरेपूरे सुडौल शरीर की स्वामिनी हैं। ठीक मेरी मम्मी की तरह।
मैंने मुस्करा कर स्नेह से उन्हें निश्चित करने का प्रयास किया , "मांजी आप आराम से बैठें । आपको तो मम्मी ने बता ही दिया है कि मेरी खाना पकाने की योग्यता लाटरी की तरह है कभी निकल आती है कभी बिलकुल ज़ीरो। "
सासुजी खिलखिला कर हंस दी , उनकी मधुर जलतरंग के संगीत जैसी प्यार भरी हँसी , "शालू बेटी तुम्हारे हाथ का बनाया हुआ खाना तो तुम्हारे डैडी और मम्मी के लिए प्रसाद की तरह है। वैसे ही तुम्हारे बाबूजी और मेरे लिए, तुम जो कुछ भी प्यार से बनाओगी उस से अच्छा और क्या हो सकता है। "
मैं अपनी सास से प्यार से मुग्ध हो गयी। मेरे सासु जी मेरे मम्मी की तरह भरे-पूरे शरीर की स्वामिनी हैं। उनका शरीर, चार बच्चों को जनम देने के बाद, प्राकर्तिक रूप से मातृक उभारों से खिल उठा था। उनके भारी बड़े वक्षस्थल उनके ब्लाऊज़ में मुश्किल से समा पाते हैं। उनकी गोल भरी कमर और आकर्षित रूप से उभरा हुआ उदर उनके विशाल भारी और किसी भी पुरुष की दिल की धड़कन बड़ा देने वाले नीतिम्ब साड़ी में भी छुप नहीं पाते हैं।
"नहीं मांजी, यह तो आपका माँ का प्यार बोल रहा है वरना मेरे भैया तो जब मैं रसोई में जाती थी तो डर जाते थे ," मैं भी खिलखिला कर हंस दी।
"अरे भाई मैं क्या मिस कर रहा हूँ? हमारी बहु और और प्राणप्रिय अर्धांग्नी किस बातपर इतने खुश हैं?" मैं तुरंत पीछे से आने वाली भारी मर्दानी अव्वाज की तरफ मुड़ गयी।
मेरे ससुरजी, राज प्रकाश, छियालीस [ ४६ ] की उम्र पर मेरे पापा से एक साल बड़े थे। पर मेरे पापा की तरह छेह फुट से लम्बे और भारी -भरकम मज़बूत काठी के कामाकर्षक पुरुष हैं। उनकी बढ़ती उम्र के साथ उनकी बढ़ती तोंद से वो और भी सुंदर लगते हैं।
"बाबू जी, आज आप जल्दी आ गए, " मैंने ख़ुशी से अपने ससुरजी को देखा और उनके खुले आलिंगन में समा गयी।
उन्होंने मेरे व्यंजन की तैयारी से पता लगा लिया कि मैं उनके लिए खाना बना रहीं हूँ , "हमें भविष्य वाणी से पता चल गया था कि हमारी प्यारी बहु-बेटी हमारे लिए रसोई में कितना उद्योग कर रही है। हमसे और हमारे लालच से ऑफिस में रुका नहीं गया।"
"अजी मैं यही तो कह रही थी ," सासुजी भी अपनी किताब बंद कर रसोई में आ गयीं , "आपकी प्यारी बहु सिर्फ आपके लिए इतनी मेहनत कर रही है।"
"मांजी , अपने परिवार के लिए ख़ुशी से कुछ् करने को मेहनत थोड़ी ही कहते हैं," मैंने अपना चेहरा उठाया जिससे ससुरजी मुझे गाल पे चूम सकें।
"चलिए बाबू जी , आप फ्रेश हो लीजिये मैं आपके लिए ड्रिंक बना देती हूँ ," मैंने उनके चौड़े सीने से भरे सिल्क के कोट के ऊपर हाथ सहलाते हुए कहा।
मुझे मुक्त कर ससुरजी ने सासुजी को आलिंगन ले कर उन्हें भी प्यार से चूमा और अपने शयन-कक्ष की ओर चले गए।
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२
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शादी से पहले मेरी ननद कामिनी या कम्मो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। हमारी दोस्ती अपने अपने बड़े भैया की बड़ाई से एक दुसरे भाई के लिए उत्पन्न आकर्षण से और भी दृढ़ हो गयी। जैसे किसी ने हमारी कहानी पहले से ही लिख दी हो कम्मो के भैया रवि के माता पिता ने जब मेरे परिवार से मिले तो हम दोनों की शादी तय हो गयी एक दुसरे के भाई के साथ। मेरी शादी के एक महीने में ही कम्मो और मेरे भैया प्रताप का विवाह भी हो गया।
मेरी शादी को अब सात महीने हो चले थे। मेरे ससुराल में मुझे एक दिन भी अकेलेपन का आभास नहीं हुआ। अपने ससुराल में एक ही दिन में इतनी घुल-मिल गयी कि मानों मैं इसी परिवार में जन्मी और बड़ी हुई हूँ। सासु और ससुर जी न सिर्फ शारीरिक रूप से मुझे अपने डैडी और मम्मी के जैसे लगते थे पर उनके प्यार और व्यवहार से भी मुझे बिलकुल अपने माता-पिता की याद दिलाते थे।
"मांजी आप क्या लेंगी ?" मैंने सासु जी से पूछा।
"रोज़ वाली ड्रिंक, शालू बेटी," सासु जी ने मेरे गाल को प्यार से सहलाया और अपनी किताब उठाने के लिए चल दीं।
मैं बार की तरफ मुड़ने ही वाली थी कि नन्हे क़दमों के दौड़ने की तक-तक के साथ मेरी छोटी ननद ने मुझे 'भाभी, भाभी ' पुकारते हुए अपनी नन्ही बाँहों में जकड़ लिया।
नीलू ने अभी अभी किशोरावस्था में कदम रखा था। पर उसका सुंदर गोरा चेहरा अभी भी बचपने के नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण था।
नीलू अब आंठवी कक्षा में प्रविष्ट हो गयी थी और उसकी ड्रेस भी बदल गयी थी। नीलू नीले स्कर्ट और सफ़ेद कमीज़ में बहुत सुंदर लगती थी। उसके बचपने के भरे गोल मटोल शरीर में अचानक लम्बाई और कुछ छरहरापन आने लगा था। नीलू की छाती पे उलटे रखे कप की तरह दो उठाने उसकी कमीज़ को भर रहीं थी।
नीलू की कमीज़ उसके पसीने से गीली थी। वो बहुत खेल-कूद में हिस्सा लेती थी और रोज़ अपने भाई बबलू के साथ टेनिस खेल कर ही कॉलेज से वापिस आती थी।
"मेरे प्यारी ननद ने आज कितनों की टेनिस कोर्ट से छुट्टी कर दी ?" मैंने प्यार से नीलू के पसीने और खेलने की महनत से दमकते चेहरे को कई बार चूमा।
"भाभी , आज तो आपकी ननद एक सेट से मैच हार गयी। टाई में मैच चला गया था पर मेरी सर्विस बाहर चली गयी, " नीलू ने बुरा सा मुंह बना कर मेरे वक्षस्थल में अपना मुंह छुपा लिया।
मैंने उसके घुंघराले घने लम्बे जंगली फूलों की तरह बिखरे, बालों को प्यार से चूम कर नीलू को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया , "अरे नीलू खेल में हार-जीत तो होगी ही। बताओ तुम आखिरी बार कब मैच हारीं थीं ?"
नीलू बहुत ही अच्छी टेनिस की खिलाड़ी है। उस उम्र में भी वो अपने बड़ी उम्र की लड़कियों को आराम से हरा देती थी।
"आं .......... आं भाभी हारने से तब भी बुरा लगता है," नीलू ने मेरे भारी वक्ष स्थल में मचल कर अपना चेहरा रगड़ा।
मेरे दोनों विशाल स्तनों में मातृत्व की सिहरन दौड़ गयी ,"इस हार से अब तुम और भी प्रयास करोगी। उस से तुम्हारा गेम और भी मज़बूत हो जायेगा। इस हार में तुम्हारी आने वाली कई जीत छुपीं हुई हैं। "
आखिर में नीलू ने मुस्करा कर मेरे होंठो को चूम लिया , "भाभी आप कितनी अच्छीं हैं। "
"पर मेरी सुंदर ननद से अच्छी नहीं हूँ ," नीलू का पसीने और खेलने के परिश्रम से लाल दमकता चेहरा अपनी बड़ाई सुनने की शर्म से और भी लाल हो गया।
"चलो अब थोड़े नाश्ता के बाद फिर नहा-धो कर कॉलेज का काम ख़त्म कर लो ," मैंने प्यार से नीलू को सासु जी की तरफ मोड़ दिया।
"देखा नीलू , भाभी की बात कितनी सही है ," सासु जी ने अपनी नन्ही परी जैसी अवर्णीय सुंदर बेटी को गले से लगा लिया।
मैंने उन दोनों की तरफ मुड़ कर नीलू से पूछा , "नीलू, बबलू कहाँ है ?"
"भाभी वो बाहर अपने दोस्तों से बात करने के लिए रुक गया था ," नीलू अभी अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि दो लम्बी भुजाओं ने मुझे पीछे से पकड़ लिया।
"भाभी मैं आ गया ," बबलू ने मुझे खींच कर अपने आलिंगन में भींच लिया। बबलू ने तभी-तभी किशोरावस्था में पहले पद-चिन्ह बनाये थे।
बबलू नीलू से एक साल बड़ा था और इसी साल नवीं कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। उसके किशोरे अवस्था में आते ही उसकी लम्बाई ने एक साल में ही बाँध तोड़ दिए। वो तब भी मेरे से कम से कम दो या तीन इंच ऊंचा था। उसका शरीर अपने पापा और भाई की तरह चौड़ा और मज़बूत है। उसका बालकों जैसे अत्यंत सुंदर और गोरा चेहरा टेनिस खेलने की मेहनत से चमक रहा था।
बबलू और कम्मो के बीच में बब्बू यानि विकास था जो सत्रह साल का हो चला था और देहरादून के बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था।
मैंने अपने हाथ को पीछे ले जा कर उसके पसीने से गीले घुंगराले बालों में उंगलिया फेहराईं, "आज मेरे नन्हे देवर को भाभी पर बहुत प्यार आ रहा है ?"
शालू
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शरद ऋतू की कठोरता शांत हो चली थी। ऐसे ही मौसम के ढलते हुए दिन में मैं प्रसन्नचित हो अपने ससुर जी का पसंदीदा भोजन बना रही थी। घर में अनेको नौकर हैं पर मुझे कभी कभी अपना प्यार दिखाने का सरूर चढ़ जाता है। वैसे मेरे उनको भी यह व्यंजन बहुत अच्छे लगते है।
"शालू बेटी, कोई मदद चाहिए ? मुझे पता है कि तुमने रसोईयों को बाहर निकाल दिया पर सास की मदद हाज़िर है ?" मेरी सासूजी ने प्यार से पूछा। वो विशाल रसोई के पास पारिवारिक-भवन में कोई बड़ी भारी सी किताब पड़ रहीं थीं । उन्होंने अपनी किताब को पुस्तक-चिन्ह लगा कर सोफे पर रख दी।
मेरी सास, विमला प्रकाश , अत्यंत सुंदर, सुशील और शांत महिला हैं। उनकी सुंदरता चवालीस [ ४४ ] साल की उम्र में समय के कठोर प्रभाव से मद्दिम होने के बजाय परिपक्वता और जीवन के अनुभवों की तिलिस्मी माया के प्रभाव से और भी प्रफुल, सम्मोहक और उज्जवल हो गयी है। कुछ उन्हें स्थूल कहें पर मेरे स्त्रीत्व के निगाहों में वो उम्र के उस मोड़ के भरेपूरे सुडौल शरीर की स्वामिनी हैं। ठीक मेरी मम्मी की तरह।
मैंने मुस्करा कर स्नेह से उन्हें निश्चित करने का प्रयास किया , "मांजी आप आराम से बैठें । आपको तो मम्मी ने बता ही दिया है कि मेरी खाना पकाने की योग्यता लाटरी की तरह है कभी निकल आती है कभी बिलकुल ज़ीरो। "
सासुजी खिलखिला कर हंस दी , उनकी मधुर जलतरंग के संगीत जैसी प्यार भरी हँसी , "शालू बेटी तुम्हारे हाथ का बनाया हुआ खाना तो तुम्हारे डैडी और मम्मी के लिए प्रसाद की तरह है। वैसे ही तुम्हारे बाबूजी और मेरे लिए, तुम जो कुछ भी प्यार से बनाओगी उस से अच्छा और क्या हो सकता है। "
मैं अपनी सास से प्यार से मुग्ध हो गयी। मेरे सासु जी मेरे मम्मी की तरह भरे-पूरे शरीर की स्वामिनी हैं। उनका शरीर, चार बच्चों को जनम देने के बाद, प्राकर्तिक रूप से मातृक उभारों से खिल उठा था। उनके भारी बड़े वक्षस्थल उनके ब्लाऊज़ में मुश्किल से समा पाते हैं। उनकी गोल भरी कमर और आकर्षित रूप से उभरा हुआ उदर उनके विशाल भारी और किसी भी पुरुष की दिल की धड़कन बड़ा देने वाले नीतिम्ब साड़ी में भी छुप नहीं पाते हैं।
"नहीं मांजी, यह तो आपका माँ का प्यार बोल रहा है वरना मेरे भैया तो जब मैं रसोई में जाती थी तो डर जाते थे ," मैं भी खिलखिला कर हंस दी।
"अरे भाई मैं क्या मिस कर रहा हूँ? हमारी बहु और और प्राणप्रिय अर्धांग्नी किस बातपर इतने खुश हैं?" मैं तुरंत पीछे से आने वाली भारी मर्दानी अव्वाज की तरफ मुड़ गयी।
मेरे ससुरजी, राज प्रकाश, छियालीस [ ४६ ] की उम्र पर मेरे पापा से एक साल बड़े थे। पर मेरे पापा की तरह छेह फुट से लम्बे और भारी -भरकम मज़बूत काठी के कामाकर्षक पुरुष हैं। उनकी बढ़ती उम्र के साथ उनकी बढ़ती तोंद से वो और भी सुंदर लगते हैं।
"बाबू जी, आज आप जल्दी आ गए, " मैंने ख़ुशी से अपने ससुरजी को देखा और उनके खुले आलिंगन में समा गयी।
उन्होंने मेरे व्यंजन की तैयारी से पता लगा लिया कि मैं उनके लिए खाना बना रहीं हूँ , "हमें भविष्य वाणी से पता चल गया था कि हमारी प्यारी बहु-बेटी हमारे लिए रसोई में कितना उद्योग कर रही है। हमसे और हमारे लालच से ऑफिस में रुका नहीं गया।"
"अजी मैं यही तो कह रही थी ," सासुजी भी अपनी किताब बंद कर रसोई में आ गयीं , "आपकी प्यारी बहु सिर्फ आपके लिए इतनी मेहनत कर रही है।"
"मांजी , अपने परिवार के लिए ख़ुशी से कुछ् करने को मेहनत थोड़ी ही कहते हैं," मैंने अपना चेहरा उठाया जिससे ससुरजी मुझे गाल पे चूम सकें।
"चलिए बाबू जी , आप फ्रेश हो लीजिये मैं आपके लिए ड्रिंक बना देती हूँ ," मैंने उनके चौड़े सीने से भरे सिल्क के कोट के ऊपर हाथ सहलाते हुए कहा।
मुझे मुक्त कर ससुरजी ने सासुजी को आलिंगन ले कर उन्हें भी प्यार से चूमा और अपने शयन-कक्ष की ओर चले गए।
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शादी से पहले मेरी ननद कामिनी या कम्मो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। हमारी दोस्ती अपने अपने बड़े भैया की बड़ाई से एक दुसरे भाई के लिए उत्पन्न आकर्षण से और भी दृढ़ हो गयी। जैसे किसी ने हमारी कहानी पहले से ही लिख दी हो कम्मो के भैया रवि के माता पिता ने जब मेरे परिवार से मिले तो हम दोनों की शादी तय हो गयी एक दुसरे के भाई के साथ। मेरी शादी के एक महीने में ही कम्मो और मेरे भैया प्रताप का विवाह भी हो गया।
मेरी शादी को अब सात महीने हो चले थे। मेरे ससुराल में मुझे एक दिन भी अकेलेपन का आभास नहीं हुआ। अपने ससुराल में एक ही दिन में इतनी घुल-मिल गयी कि मानों मैं इसी परिवार में जन्मी और बड़ी हुई हूँ। सासु और ससुर जी न सिर्फ शारीरिक रूप से मुझे अपने डैडी और मम्मी के जैसे लगते थे पर उनके प्यार और व्यवहार से भी मुझे बिलकुल अपने माता-पिता की याद दिलाते थे।
"मांजी आप क्या लेंगी ?" मैंने सासु जी से पूछा।
"रोज़ वाली ड्रिंक, शालू बेटी," सासु जी ने मेरे गाल को प्यार से सहलाया और अपनी किताब उठाने के लिए चल दीं।
मैं बार की तरफ मुड़ने ही वाली थी कि नन्हे क़दमों के दौड़ने की तक-तक के साथ मेरी छोटी ननद ने मुझे 'भाभी, भाभी ' पुकारते हुए अपनी नन्ही बाँहों में जकड़ लिया।
नीलू ने अभी अभी किशोरावस्था में कदम रखा था। पर उसका सुंदर गोरा चेहरा अभी भी बचपने के नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण था।
नीलू अब आंठवी कक्षा में प्रविष्ट हो गयी थी और उसकी ड्रेस भी बदल गयी थी। नीलू नीले स्कर्ट और सफ़ेद कमीज़ में बहुत सुंदर लगती थी। उसके बचपने के भरे गोल मटोल शरीर में अचानक लम्बाई और कुछ छरहरापन आने लगा था। नीलू की छाती पे उलटे रखे कप की तरह दो उठाने उसकी कमीज़ को भर रहीं थी।
नीलू की कमीज़ उसके पसीने से गीली थी। वो बहुत खेल-कूद में हिस्सा लेती थी और रोज़ अपने भाई बबलू के साथ टेनिस खेल कर ही कॉलेज से वापिस आती थी।
"मेरे प्यारी ननद ने आज कितनों की टेनिस कोर्ट से छुट्टी कर दी ?" मैंने प्यार से नीलू के पसीने और खेलने की महनत से दमकते चेहरे को कई बार चूमा।
"भाभी , आज तो आपकी ननद एक सेट से मैच हार गयी। टाई में मैच चला गया था पर मेरी सर्विस बाहर चली गयी, " नीलू ने बुरा सा मुंह बना कर मेरे वक्षस्थल में अपना मुंह छुपा लिया।
मैंने उसके घुंघराले घने लम्बे जंगली फूलों की तरह बिखरे, बालों को प्यार से चूम कर नीलू को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया , "अरे नीलू खेल में हार-जीत तो होगी ही। बताओ तुम आखिरी बार कब मैच हारीं थीं ?"
नीलू बहुत ही अच्छी टेनिस की खिलाड़ी है। उस उम्र में भी वो अपने बड़ी उम्र की लड़कियों को आराम से हरा देती थी।
"आं .......... आं भाभी हारने से तब भी बुरा लगता है," नीलू ने मेरे भारी वक्ष स्थल में मचल कर अपना चेहरा रगड़ा।
मेरे दोनों विशाल स्तनों में मातृत्व की सिहरन दौड़ गयी ,"इस हार से अब तुम और भी प्रयास करोगी। उस से तुम्हारा गेम और भी मज़बूत हो जायेगा। इस हार में तुम्हारी आने वाली कई जीत छुपीं हुई हैं। "
आखिर में नीलू ने मुस्करा कर मेरे होंठो को चूम लिया , "भाभी आप कितनी अच्छीं हैं। "
"पर मेरी सुंदर ननद से अच्छी नहीं हूँ ," नीलू का पसीने और खेलने के परिश्रम से लाल दमकता चेहरा अपनी बड़ाई सुनने की शर्म से और भी लाल हो गया।
"चलो अब थोड़े नाश्ता के बाद फिर नहा-धो कर कॉलेज का काम ख़त्म कर लो ," मैंने प्यार से नीलू को सासु जी की तरफ मोड़ दिया।
"देखा नीलू , भाभी की बात कितनी सही है ," सासु जी ने अपनी नन्ही परी जैसी अवर्णीय सुंदर बेटी को गले से लगा लिया।
मैंने उन दोनों की तरफ मुड़ कर नीलू से पूछा , "नीलू, बबलू कहाँ है ?"
"भाभी वो बाहर अपने दोस्तों से बात करने के लिए रुक गया था ," नीलू अभी अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि दो लम्बी भुजाओं ने मुझे पीछे से पकड़ लिया।
"भाभी मैं आ गया ," बबलू ने मुझे खींच कर अपने आलिंगन में भींच लिया। बबलू ने तभी-तभी किशोरावस्था में पहले पद-चिन्ह बनाये थे।
बबलू नीलू से एक साल बड़ा था और इसी साल नवीं कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। उसके किशोरे अवस्था में आते ही उसकी लम्बाई ने एक साल में ही बाँध तोड़ दिए। वो तब भी मेरे से कम से कम दो या तीन इंच ऊंचा था। उसका शरीर अपने पापा और भाई की तरह चौड़ा और मज़बूत है। उसका बालकों जैसे अत्यंत सुंदर और गोरा चेहरा टेनिस खेलने की मेहनत से चमक रहा था।
बबलू और कम्मो के बीच में बब्बू यानि विकास था जो सत्रह साल का हो चला था और देहरादून के बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था।
मैंने अपने हाथ को पीछे ले जा कर उसके पसीने से गीले घुंगराले बालों में उंगलिया फेहराईं, "आज मेरे नन्हे देवर को भाभी पर बहुत प्यार आ रहा है ?"
सीमा सिंह