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Adultery जब फँसा चूत में केला
#11
वह मेरा हाथ खींचकर वहाँ पर लगा देती है,”करो।”
मेरा हाथ पड़ा रहता है।
“डू इट यार !”
मैं कोई हरकत नहीं करती, मर जाना बेहतर है।
“लेट अस डू इट फॉर हर (चलो हम इसका करते हैं)।”
मैं हल्के से बाँह उठाकर पलकों को झिरी से देखती हूँ। करण सकुचाता हुआ खड़ा है। बस मेरे उस स्थल को देख रहा है।
हीना की हँसी,”सुंदर है ना?”
शर्म की एक लहर आग-सी जलाती मेरे ऊपर से नीचे निकल जाती है, बेशर्म लड़की…!
“क्या सोच रहे हो?”
करण दुविधा में है, इजाजत के बगैर किसी लड़की का जननांग छूना ! भलामानुस है।
तनाव के क्षण में हीना का हँसी-मजाक का कीड़ा जाग जाता है,”जिस चीज की झलक भर पाने के लिए ऋषि-मुनि तरसते हैं, वह तुम्हें यूँ ही मिल रही है, क्या किस्मत है तुम्हारी !”
मैं पलकें भींच लेती हूँ। साँस रोके इंतजार कर रही हूँ ! टांगें खोले।
“कम ऑन, लेट्स डू इट…”
बिस्तर पर मेरे दोनों तरफ वजन पड़ता है, एक कोमल और एक कठोर हाथ मेरे उभार पर आ बैठते हैं, बालों पर उंगलियाँ फेरने से गुदगुदी लग रही है, कोमल उंगलियाँ मेरे होंठों को खोलती हैं अन्दर का जायजा लेती हैं, भगनासा का कोमल पिंड तनाव में आ जाता है, छू जाने से ही बगावत करता है, कभी कोमल, कभी कठोर उंगलियाँ उसे पीड़ित करती हैं, उसके सिर को कुचलती, मसलती हैं, गुस्से में वह चिनगारियाँ सी छोड़ता है। मेरी जांघें थरथराती हैं, हिलना-डुलना चाहती हैं, पर दोनों तरफ से एक एक हाथ उन्हें पकड़े है, न तो परिस्थिति, न ही शरीर मेरे वश में है।
“यस … ऐसे ही…” हीना मेरा हाथ थपथपाती है तब मुझे पता चलता है कि वह मेरे स्तनों पर घूम रहा था। शर्म से भरकर हाथ खींच लेती हूँ।
हीना हँसती है,”अब यह भी हमीं करें? ओके…”
दो असमान हथेलियाँ मेरे स्तनों पर घूमने लगती हैं। नाइटी के ऊपर से। मेरी छातियाँ परेशान दाएं-बाएँ, ऊपर-नीचे लचककर हमले से बचना चाह रही हैं पर उनकी कुछ नहीं चलती। जल्दी भी उन पर से बचाव का, कुछ नहीं-सा, झीना परदा भी खींच लिया जाता है, घोंसला उजाड़कर निकाल लिए गए दो सहमे कबूतर … डरे हुए ! उनका गला दबाया जाता है, उन्हें दबा दबाकर उनके मांस को मुलायम बनाया जा रहा है- मजे लेकर खाए जाने के लिए शायद।
उनकी चोंचें एक साथ इतनी जोर खींची जाती है कि दर्द करती हैं, कभी दोनों को एक साथ इतनी जोर से मसला जाता है कि कराह निकल जाती है। मैं अपनी ही तेज तेज साँसों की आवाज सुन रही हूँ। नीचे टांगों के केन्द्र में लगातार घर्षण, लगातार प्रहार, कोमल उंगलियों की नाखून की चुभन… कठोर उंगलियों की ताकतवर रगड़ ! कोमल कली कुचलकर लुंज-पुंज हो गई है।
सारे मोर्चों पर एक साथ हमला… सब कुछ एक साथ… ! ओह… ओह… साँस तो लेने दो…
“हाँ… लगता है अब गर्म हो गई है।” एक उंगली मेरी गुदा की टोह ले रही है।
मैं अकबका कर उन्हें अपने पर से हटाना चाहती हूँ, दोनों मेरे हाथ पकड़ लेते हैं, उसके साथ ही मेरे दोनों चूचुकों पर दो होंठ कस जाते हैं, एक साथ उन्हें चूसते हैं !
मेरे कबूतर बेचारे !जैसे बिल्ली मुँह में उनका सिर दबाए कुचल रही हो। दोनों चोंचें उठाकर उनके मुख में घुसे जा रहे हैं।
हरकतें तेज हो जाती हैं।
“यह बहुत अकड़ती थी। आज भगवान ने खुद ही इसे मुझे गिफ्ट कर दिया।” हीना की आवाज…. मीठी… जहर बुझी….
“तुम इसके साथ?”
“मैं कब से इसका सपना देख रही थी।”
“क्या कहती हो?”
“बहुत सुन्दर है ना यह !” कहती हुई वह मेरे स्तनों को मसलती है, उन्हें चूसती है। मैं अपने हाँफते साँसों की आवाज खुद सुन रही हूँ। कोई बड़ी लहर मरोड़ती सी आ रही है….
“पिहू, जोर लगाओ, अन्दर से ठेलो।” करण की आवाज में पहली बार मेरा नाम… हीना की आवाज के साथ मिली। गुदा के मुँह पर उंगली अन्दर घुसने के लिए जोर लगाती है।
यह उंगली किसकी है?
मैं कसमसा रही हूँ, दोनों ने मेरे हाथ-पैर जकड़ रखे हैं,”जोर से …. ठेलो।”
मैं जोर लगाती हूँ। कोई चीज मेरे अन्दर से रह रहकर गोली की तरह छूट रही है……. रस से चिकनी उंगली सट से गुदा के अन्दर दाखिल हो जाती है। मथानी की तरह दाएँ-बाएँ घूमती है।
आआआआह………. आआआआह………. आआआआह……….
“यस यस, डू इट…….!” हीना की प्रेरित करती आवाज, करण भी कह रहा है। दोनों की हरकतें तेज हो जाती हैं, गुदा के अन्दर उंगली की भी। भगनासा पर आनन्द उठाती मसलन दर्द की हद तक बढ़ जाती है।
ओ ओ ओ ओ ओ ह…………… खुद को शर्म में भिगोती एक बड़ी लहर, रोशनी के अनार की फुलझड़ी ……….. आह..
एक चौंधभरे अंधेरे में चेतना गुम हो जाती है।
“यह तो नहीं हुआ? वैसे ही अन्दर है !”… मेरी चेतना लौट रही है, “अब क्या करोगी?”
कुछ देर की चुप्पी ! निराशा और भयावहता से मैं रो रही हूँ।
“रोओ मत !” करण मुझे सहला रहा है, इतनी क्रिया के बाद वह भी थोड़ा-थोड़ा मुझ पर अधिकार समझने लगा है, वह मेरे आँसू पोंछता है,”इतनी जल्दी निराश मत होओ।” उसकी सहानुभूति बुरी नहीं लगती। कुछ देर सोचकर वह एक आइडिया निकालता है। उसे लगता है उससे सफलता मिल जाएगी।
“तुम मजाक तो नहीं कर रहे, आर यू सीरियस?” हीना संदेह करती है।
“देखो, वेजीना और एनस के छिद्र अगल-बगल हैं, दोनों के बीच पतली-सी दीवार है। जब मैंने इसकी गुदा में उंगली घुसाई तो वह केले के दवाब से बहुत कसी लग रही थी।”
अब मुझे पता चला कि वह उंगली करण की थी। मैं उसे हीना की शरारत समझ रही थी।
“तुम बुद्धिमान हो।” हीना हँसती है, “मैंने तुम्हें बुलाकर गलती नहीं की।”
तो यह बहाने से मेरी ‘वो’ मारना चाह रहा है। गंदा लड़का। मुझे एक ब्लू फिल्म में देखा गुदा मैथुन का दृश्य याद हो आया। वह मुझे बड़ा गंदा लेकिन रोमांचक भी लगा था- गुदा के छेद में तनाव। कहीं करण ने मेरी यह कमजोरी तो नहीं पकड़ ली? ओ गॉड।
“एक और बात है !” करण हीना की तारीफ से खुश होकर बोल रहा था,”शी इज सेंसिटिव देयर। जब मैंने उसमें उंगली की तो यह जल्दी ही झड़ गई।”
उफ !! मेरे बारे में इस तरह से बात कर रहे हैं जैसे कसाई मुर्गे के बारे में बात कर रहा हो।
“तो तुम्हें लगता है शी विल इंजॉय इट।”
“उसी से पूछ लो।”
हीना खिलखिला पड़ी,”पिहू, बोलो, तुम्हें मजा आएगा?”
वह मेरी हँसी उड़ाने का मौका छोड़ने वाली नहीं थी। पर वही मेरी सबसे बड़ी मददगार भी थी।
चुप्पी के आवरण में मैं अपनी शर्म बचा रही थी। लेकिन केला मुझे विवश किए था। मुझे सहायता की जरूरत थी। मेरा हस्तमैथुन करके उन दोनों की हिम्मत बढ़ गई थी। आश्चर्य था मैंने उसे अपने साथ होने दिया। अब तो मेरी गाण्ड मारने की ही बात हो रही थी।
मुझे तुरंत ग्लानि हुई ! छी: ! मैंने कितने गंदे शब्द सोचे। मैं कितनी जल्दी कितनी बेशर्म हो गई थी !
“पिहू, मजाक की बात नहीं। बी सीरियस।” हीना ने अचानक मूड बदल कर मुझे चेतावनी दी। उसका हाथ मेरे योनि पर आया और एक उंगली गुदा के छेद पर आकर ठहर गई।
“तुम इसके लिए तैयार हो ना?”
मेरी चुप्पी से परेशान होकर उसने कहा,”चुप रहने से काम नहीं चलेगा, यह छोटी बात नहीं है। तुम्हें बताना होगा तैयार हो कि नहीं। अगर तुम्हें आपत्ति्जनक लगता है तो फिर हम छोड़ देते हैं ! बोलो?”
मेरी चुप्पी यथावत् थी।
हीना ने करण से पूछा- बोलो क्या करें? यह तो बोलती ही नहीं।
“क्या कहेगी बेचारी ! बुरी तरह फँसी हुई है। शी इज टू मच इम्बैरेस्ड !” कुछ रुककर वह फिर बोला,”लेकिन अब जो करना है उसमें पड़े रहने से काम नहीं चलेगा। उठकर सहयोग करना होगा।”
“पिहू, सुन रही हो ना। अगर मना करना है तो अभी करो।”
“पिहू, तुम…. मैं नहीं चाहता, लेकिन इसमें तुम पर… कुछ जबरदस्ती करनी पड़ेगी, तुम्हें सहना भी होगा।” करण की आवाज में हमदर्दी थी। या पता नहीं मतलब निकालने की चतुराई।
कुछ देर तक दोनों ने इंतजार किया,”चलो इसे सोचने देते हैं। लेकिन जितनी देर होगी, उतना ही खतरा बढ़ता जाएगा।”
सोचने को क्या बाकी था ! मेरे सामने कोई और उपाय था क्या?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: जब फँसा चूत में केला - by neerathemall - 29-08-2022, 05:10 PM



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