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Incest मेरी हवस का नाम कंचन दीदी
#3
मैं बात करते हुए दीदी की चूचियों को ताड़ रहा था. दीदी की सांसे तेज चलनी लगी थी, सायद मेरी बातों से वो गरम हो रही थी. हर सांस के साथ चूचियां हवा में उछल रही थी.

दीदी: कोई है नजर में तेरे बड़ी औरत जिसे तू पसंद करता है
मैं: दीदी आप बुरा तो नहीं मानोगी
दीदी: बोल ना भाई…शर्मा क्यू रहा है
मैं: दीदी मुझे आप बहुत अच्छी लगती हो
दीदी: क्या मैं….. साले अपनी बड़ी बहन पर ही गन्दी नजर रखता है
मैं: दीदी मैंने बोला था आपको बुरा लग जायेगा…
दीदी: अच्छा ठीक है… चल बुरा नहीं मानती… क्या अच्छा लगता है मुझमे
मैं: उफ्फ्फ दीदी आप ऊपर से निचे तक माल हो. आपका बदन जवानी के रस से भरा हुआ है..तरबूज के जैसी बड़ी बड़ी चूचियां, पतली कमर और आपकी भारी गांड सब कयामत है
दीदी: आआह्ह्ह्हह भाई और क्या सोचता है मेरे बारे में
मैं: दीदी मैं आपकी इन आमो को दबा दबा कर चूसना चाहता हूँ, आपकी चौड़ी गदरायी चुत्तड़ को मसलना चाहता हूँ. और अपना लंड आपकी बूर में डाल कर चोदना चाहता हूँ
दीदी: आअह्ह्ह्ह भाई मैं तेरी बड़ी बहन हूँ तू मेरे बारे में ऐसा सोचता है
मैं: दीदी आप जैसी माल के लिए तो मैं बहनचोद भी बन जाऊ. देख अपने भाई का लंड तेरी गदरायी जवानी देख कर कैसा अकड़ गया है
मैंने दीदी का हाथ अपने लंड पर रख दिया और अपना हाथ दीदी की चूचियों पर रख दिया और दबाने लगा.. दीदी भी मेरे लंड को सहला रही थी..
दीदी: ओह्ह्ह्हह रोहित मेरे भाई .. मुझे नहीं पता था की तेरे जैसा जवान लड़का मुझे चोदना चाहता है..
मैं: आह्ह्ह्ह कंचन दीदी आप तो मेरे लिए काम की देवी हूँ.. जिसे मैं भोगने के लिए तड़प रहा हूँ
दीदी: अह्ह्ह्हह भाई… बहुत दिनों बाद जवान लंड खाऊँगी मैं
दीदी ने मेरी पैंट उतार दी और मेरे लंड को सक करने लगी. दीदी मेरे ९” के लौड़े को मुंह में डालकर बहुत सेक्सी अंदाज में चूस रही थी..
दीदी: उफ्फ्फ्फ़ बहुत प्यारा लंड है भाई तेरा…
मैं: अह्ह्ह्ह दीदी ऐसे ही चुसो.. कंचन मेरी जान अपने भाई का लंड लोगी ना अपनी चुत में
दीदी: हाँ भाई ऐसा जवान और बड़ा लंड लेने के लिए मेरी चुत भी मचल रही है
दीदी ने चूस कर मेरा लंड झाड़ दिया. मैंने दीदी को पीछे से पकड़ लिया और चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलने लगा. दीदी अह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्हह की आवाजे निकल रही थी.. इतनी बड़ी बड़ी चूचियों को दबाने का अलग ही मजा होता है. अब मैं उनकी नंगी पीठ को किश करने लगा और ब्लाउज की डोरी खोल दी. ब्लाउज में कैद दो बड़े बड़े तरबूज अब हवा में उछल रहे थे. दीदी की चूचियां मेरी उम्मीद से भी बड़ी थी. मैं चूचियों को चूस चूस कर दबा रहा था. मैं बहुत देर तक दीदी की चूचियों से खेलता रहा और दीदी की भारी चुत्तड़ो को भी खूब दबाया. फिर मैंने दीदी की साड़ी उतर दी और पेटीकोट भी. दीदी अब नंगी मेरी बिस्तर पर लेटी थी. मैंने दीदी की चिकनी बूर को चूसने लगा.. दीदी की आहे निकल रही थी और चुत काफी गीली हो गयी थी..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: मेरी हवस का नाम कंचन दीदी - by neerathemall - 29-08-2022, 05:00 PM



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