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Adultery मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth)
#8
मेरी कहानी अब मेरी बेटी मानसी की जुबानी - 

मेरे बेटे मनीष का मानसी बनने का सफर

 -------------- शादी में मिलन -----------


शाम हो चुकी थी मै अपनी मम्मी के साथ उनकी सहेली के बेटी की शादी में चल दिया। मम्मी मुझे रास्ते भर कहती रही बेटा अब तुझे लड़की बनकर ही सबसे मिलना है। 


लड़की की शादी वाले घर में न जाने कितने काम होते है. और ऐसे ही एक घर में किसी अच्छी औरत की तरह मम्मी भी सभी कामो में हाथ बताने में व्यस्त थी. आज कुछ घंटो में संगीत शुरू होने के पहले कुछ रस्में हो रही थी जिसमे मैं दुल्हन की मदद कर रही थी जो की मेरी हमउम्र थी. 

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यकीन ही नहीं होता था कि  मैं लीला को जानती भी नहीं थी और आज मैं उसकी शादी में अच्छी सहेली बनकर वहां थी. तभी दुल्हन की माँ मेरे पास आई और बोली, “मानसी, ३ घंटे में संगीत शुरू हो जाएगा. जा तू भी  जाकर साड़ी बदलकर तैयार हो जा. और सीधे संगीत वाले हॉल में आ जाना. आज बहुत मस्ती करनी है तुम लड़कियों को! खूब नाचना गाना है.. तू अच्छा सा लहंगा या साड़ी पहन कर आना. हाँ.”


“जी चाची. हाँ मुझे भी तैयार होने में समय लगेगा.”, मैं अपने बिखर चुके बालों को कानो के पीछे फंसती हुई अपनी साड़ी को समेटते हुए बोली. अब तो अपने हाथों से साड़ी के आँचल को बार बार अपने ब्लाउज के ऊपर ठीक करना जैसे मेरी आदत हो गयी है.

अपने कमरे में आकर हाथ-मुंह अच्छी तरह से धोकर अब मैं तैयार होने लगी थी. मैंने पहले से ही संगीत में पहनने के लिए एक हलकी ऑरेंज रंग की सैटिन साड़ी चूस करके रखी थी. वैसे तो दिन में भी मैंने नीली रंग की सैटिन साड़ी पहनी थी, पर मेरा सैटिन से प्यार ही इतना है कि दोबारा पहनने से खुद को रोक नहीं सकी मैं. वैसे भी आज संगीत में डांस करते वक़्त सैटिन या फिर शिफ्फौन की साड़ी ही बेस्ट होती… लहंगा तो मैं शादी के वक़्त पहनने वाली थी तो आज साड़ी ही ठीक रहेगी. मैंने सोचा… और अपनी पहनी हुई साड़ी उतारकर एक ओर  करके रखने लगी. 


उसके बाद अपना ब्लाउज उतारने के लिए हुक खोलने लगी. सच कह रही हूँ … बूब्स के ऊपर ब्लाउज उतारते और पहनते वक़्त हुक लगाने खोलने में बड़ा मज़ा आता है. भले  ब्लाउज टाइट हो तो उसको किसी भी बूब्स पर पहनने का मज़ा ही कुछ और है. और इस साड़ी के साथ तो मेरा ब्लाउज भी डिज़ाइनर वाला है… कितनी खुश थी मैं उसको पहनते वक़्त. फिर अच्छी तरह से मेकअप करने के बाद मैंने पेटीकोट बदला और अपनी साड़ी पहननी शुरू की. सैटिन की साड़ी बदन पर चढ़ते ही मेरे जिस्म में कुछ कुछ होने लगा.


 मैं खुद को आईने में देखकर हंसती रही. आज तो पूरी रात यूँ ही खुबसूरत दिखूंगी मैं… न जाने कितने लडको की नज़रे रहेंगी मुझ पर! फिर मैंने दीपिका पदुकोने के तरह अपनी साड़ी की पतली पतली प्लेट बनाकर अपने ब्लाउज पर पिन कर दी. इस तरह से क्लीवेज और कमर दिखाती हुई पतली प्लेट के साथ साड़ी पहनना आजकल मेरी जैसी दुबली पतली और लम्बी लड़कियों में फैशन है.

२ घंटे खुद को सँवारने के बाद बार बार अपने मेकअप को ठीक करने के बाद जब मैं संतुष्ट हो गयी तो अपनी एक पर्स उठायी और उसमे अपने मेकअप का सारा सामान रख दिया. आखिर मेरी जैसी लड़की को किसी सामान्य लड़की के मुकाबले मेकअप का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है.. क्या पता कब ज़रुरत पड़ जाए. और फिर अपनी बड़ी सी पर्स को कंधे पर टांग कर देखने लगी कि वो मेरी साड़ी से मैच कर रही है या नहीं. अब मैंने हील्स पहनी और फिर एक बार अपने सुन्दर बालों को स्टाइल करके घर के निचे आ गयी.


घर के निचे से शादी के मेहमान कार से उस हॉल जा रहे थे जहाँ संगीत होना था. वो हाल घर से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर था… तो मैंने सोचा कि क्यों न पैदल ही जाया जाए. वैसे भी सैटिन साड़ी पहनकर चलने में भी कितना मज़ा आता है! पर चाची जी ने मुझे देखा तो उन्होंने एक लड़के को मेरे साथ भेज दिया ताकि मैं अकेली खुबसूरत सजी संवारी लड़की सड़क पर न चलू. “हाय… अब तो सड़क पर मुझे कोई छेड़ भी नहीं पायेगा.”, मैं थोड़ी सी उदास हो गयी. पर जल्दी ही मैं उस चम्पू लड़के के साथ हॉल पहुच गयी. वहां पर लीला और उसकी सहेलियां बहने हॉल में जाने को तैयार थी. कितनी खुबसूरत लग रही थी सभी अपनी रंग-बिरंगी साड़ियों और लहंगे में.. और आज उनकी तरह मैं भी उनके साथ इसमें शामिल हो रही थी. मेरा तो सपना सच हो रहा था.

मुझे आते देख लीला तुरंत मेरे पास आई और मेरा हाथ खिंच कर मुझे एक और हमारी उम्र की लड़की से मिलवाने ले आई. थोड़ी कम हाइट की, गोल गोल चेहरे वाली, भरी-पूरी बदन वाली ये लड़की ऐसी लगती थी जैसे एक बच्चे की माँ हो. पर लीला ने कहा, मानसी, ये रश्मि है… मेरी चचेरी बहन सोम्या की सहेली है. ये भी तुम्हारी तरह स्कूल वाली है. वैसे तो आसपास मेरी सभी बहने तुम्हारे साथ रहेगी पर तुम दोनों अकेली न फील करो इसलिए तुम्हारा परिचय करा रही हूँ.”


रश्मि ने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी. उसके भरे-पुरे तन के अनुरूप उसने खुला पल्ला रखा हुआ था जिससे उसका पेट छिप रहा था पर क्लीवेज साफ़ दीखता था. जैसी भी हो सेक्सी तो लग रही थी रश्मि. उसको देखकर साफ़ पता चल रहा था कि उसको साड़ी पहनने की आदत नहीं है और बस स्पेशल मौके पर ही दूसरो की मदद से पहन पाती होगी. आजकल की लडकियां भी न.. समझती नहीं कि साड़ी कितनी आसानी से रोज़ पहनी जा सकती है.


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मुझे देखते ही रश्मि इतने जोर से मुस्कुराई और मुझसे ऐसे जोरो से गले लग गयी जैसे कि मुझे सालो से जानती हो. उसके और मेरे बूब्स भी उसके गले लगाने से दब गए थे. मैं तो थोड़ी आश्चर्य में थी पर औरतों की ख़ुशी के बीच मैं भी खुश थी तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

तब तक लीला अपनी बहनों और सहेलियों के साथ सीढ़ी चढ़कर ऊपर हॉल की तरफ जाने लगी. संगीत शुरू होने वाला था. उनको अपना लहंगा उठाकर जाते देखने का दृश्य बड़ा ही सुन्दर था. मैंने भी उनके पीछे बढ़ने के लिए अपनी उँगलियों से अपनी साड़ी की प्लेट पकड़ी और साड़ी को सलीके से ऊपर उठाकर सीढ़ियों पर चढ़ने को तैयार होने लगी जैसे औरतें अपनी साड़ी उठाकर चढ़ती है. पर तभी रश्मि ने जोर से अपनी कुंहनी से मेरे बूब्स पर वार किया… और मैं आश्चर्य से सिर्फ “आउच” कह सकी. और फिर उसने मेरी बांह को पकड़ कर उससे जोर से अपने बूब्स दबा दिए.. और बोली, मानसी, चलो न हम भी चलते है.”


“चल ही तो रही हूँ.”, मैंने अपने बूब्स पर हाथ रखते हुए कहा. और फिर एक बार अपनी साड़ी उठायी और पर्स संभाले चढ़ने लगी. मुझे देखकर रश्मि ने भी साड़ी उठायी और अपने खुले पल्ले से स्ट्रगल करते हुए मेरे पीछे पीछे आने लगी. पिछले दो महीनो में मैं बहुत सी लड़कियों से सहेली की तरह गले मिली हूँ… और हमारे बूब्स भी एक दुसरे को छूआते रहे है पर रश्मि ने जैसे अपने बूब्स जोरो से मेरी बांह में दबाये थे.. वैसा आजतक किसी लड़की ने मेरे साथ नहीं किया था. 


मैं यही सोच रही थी कि अपनी उँगलियों के बीच प्लेट के निचे मुझे उसके बूब्स के स्पर्श की वजह से मेरा खड़ा होता हुआ लंड महसूस हुआ. “ओहो… ये क्या हो रहा है? मेरी नाज़ुक पेंटी तो इस खड़े होते लंड को छुपा नहीं पाएगी.”, मैं मन ही मन सोचने लगी. वो तो प्लेट पकड़ कर साड़ी उठाने के बहाने से वो लोगो की नजरो से छुपा हुआ था. मैं मन ही मन अपने तने हुए लिंग की वजह से शर्म से पानी पानी हो रही थी. किस्मत से ऊपर हाल पहुचते तक वो वापस नार्मल हो गया. कहाँ घर से निकलते वक़्त मैं आज लडको के सपने देख रही थी और कहाँ एक लड़की मुझे छेड़ रही थी!


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मानसी… प्लीज़ मेरा पर्स एक बार संभालना… मैं ज़रा एक बार फेसबुक पर अपनी फोटो तो डाल लू.”, रश्मि ने कहा और धम्म से अपना पर्स मेरी गोद पर रख दिया. मेरे खड़े लंड पे!! और फिर किसी तरह अपने बिखरते गिरते खुले पल्ले को संभालती हुई किसी तरह अपने फ़ोन से फेसबुक पर कुछ कुछ मेसेज करने लगी. और कुछ देर के बाद फ़ोन को मेरी गोद में रखे हुए उसके पर्स में रखकर अपना एक हाथ मेरी गोद पर रख कर स्टेज की ओर देखने लगी जहाँ लीला की सहेलियां इस वक़्त डांस कर रही थी. “अब क्या होगा मेरा? रश्मि को मेरी कमर के निचे की असलियत पता चल गयी तो?”, मुझे चिंता होने लगी.


पर रश्मि एक कदम आगे थी. वो तो खुद ही अपने हाथ को पर्स के निचे से मेरी साड़ी की प्लेट के बीच डालती हुई मेरे खड़े लंड को महसूस कर रही थी. और उसे अपनी उँगलियों से उकसा भी रही थी. सच तो रश्मि को पता चल गया था. पर कैसे? मैं किसी तरह वहां उसे उसका पर्स पकड़ा कर अपनी पर्स और पल्लू से अपने खड़े लंड को छुपाती हुई वहां से उठना चाहती थी …


 रश्मि ने किसी से अभी कुछ कह दिया तो क्या होगा सोचकर ही मुझे डर लग रहा था. पर उसने मेरे उठते ही मेरा हाथ खिंच लिया और बोली, “मानसी, बैठो न कितना मज़ा आ रहा है यहाँ. कहाँ जाओगी तुम वैसे?” और वो मेरी ओर देखकर कुछ अलग तरह से हँसने लगी.

हाँ स्टेज पर सभी के डांस देखकर अच्छा तो लग रहा था. और फिर रश्मि ने सच जानते हुए भी मुझे आगे परेशान नहीं किया. पर फिर लीला ने सभी लड़कियों को साथ में अंत में डांस करने के लिए बुलाया.. जिसमे मैं और रश्मि भी शामिल थी. और पूरे डांस के समय रश्मि मेरे साथ साथ ही चिपकी रही. और तो और वो अपनी गांड को भी मेरे कमर के निचले हिस्से से रगड़ रगड़ कर डांस कर रही थी. सभी लोगो के बीच मेरे लंड को छुपा पाना कितना मुश्किल हो रहा था! 


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बार बार पल्लू से उसको ढंकते हुए मुझे बहुत शर्म आ रही थी. और फिर शर्म के मारे मैं किसी तरह रश्मि से बचती हुई बाथरूम की ओर भागी जहाँ मैं अपने इरेक्शन का कुछ कर सकू… न जाने कैसी ख़राब किस्मत थी मेरी. कहाँ मैं दुसरे लडको के लंड खड़े करने के सपने देख कर आई थी… और आज खुद को संभाल नहीं पा रही थी!


डांस करते वक़्त भी रश्मि मुझसे चिपक चिपक कर डांस कर रही थी … और मैं किसी तरह अपनी साड़ी की प्लेट के पीछे अपने खड़े लंड को छुपा रही थी.
बाथरूम में आकर मैं अपनी साड़ी को हिलाती हुई अपने जोशीले लंड को ठंडा करने की कोशिश करने लगी 


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और अपने पल्लू से अपने पसीने को पोंछने लगी. किसी तरह मेरा लंड थोडा नार्मल होने लगा. फिर मैंने अपनी पर्स से एक और पेंटी निकाली जो मैंने एक्स्ट्रा रखी थी, अब उसे पहनकर थोडा नार्मल रह सकूंगी मैं.



पर मेरी मुसीबत अब तक ख़त्म कहाँ हुई थी. मेरे पीछे पीछे मुझे ढूंढते हुए रश्मि भी बाथरूम आ गयी. उसको देखते ही मैं गुस्से में आ गयी और उस पर चीख उठी.. “तू चाहती है क्या है मुझसे रश्मि? हाँ, मेरा लंड है… तू क्यों पीछे पड़ी है मेरे? तुझे जिसे भी बताना है बता दे. मैं डरने वाली नहीं हूँ तुझसे”

मुझे चीखते देख रश्मि ने मेरा तुरंत मुंह बंद किया और बोली, “संजना… ये क्या कर रही है? धीरे बोल. सबको पता चल जायेगा”

संजना? ये तो मेरे फेसबुक के fake. प्रोफाइल का नाम था. उसको कैसे पता चला?

“यार कब से तुझे फेसबुक पे मेसेज कर रही हूँ पर तू फ़ोन देख ही नहीं रही है.  नम्रता नाम है मेरा फेसबुक पर. फेसबुक पर हम दोस्त नहीं है पर तुम्हारी प्रोफाइल देखी थी मैंने. तुम्हे देखते ही पहचान गयी थी मैं. इसलिए तुम्हारी बगल से ही तुमको फ़ोन पर मेसेज किया पर तुमने अपना फ़ोन देखा ही नहीं. बार बार तुमको इशारे कर रही थी पर तुम समझ ही नहीं रही थी.”, रश्मि यानी नम्रता ने बोली.


और मैं हैरत में उसकी ओर देखते रह गयी. मैंने पर्स से फ़ोन निकाला तो उसके कई मेसेज थे. वो मेसेज पढ़ते ही मुझे हँसी आ गयी.

“तुम्हारी तरह मैं भी औरत बनकर रह रही हूँ बाहर की दुनिया में. किस्मत से सौम्या नाम की लड़की सहेली मिल गयी. और उसने मुझे कहा कि मैं ये शादी अटेंड करके देखू. सौम्या को भी नहीं पता है कि मैं क्या हूँ. लड़कियों के साथ शादी में मुझे अच्छा लग रहा है पर क्योंकि तुम भी मेरे जैसी हो, तो तुम्हारे साथ अपना राज़ शेयर करके मैं ज्यादा बेफिक्र होकर मस्ती करना चाहती थी.”, रश्मि ने कहा.

उसकी बातें सुनकर मैं मुस्कुरा दी. और उसके करीब आ गयी.

“मानसी.. मैं इसी बिल्डिंग में ऊपर के होटल में ठहरी हूँ. तुम संगीत के बाद मेरे पास आओगी तो खूब बात कर सकूंगी तुम से.”, उसने कहा.

“हाँ ज़रूर”, मैं मुस्कुराकर उसका हाथ पकड़कर बोली.


और फिर रश्मि ने मेरी ओर कुछ ख़ास नजरो से देखा और बोली, “वैसे मेरे बूब्स असली है. और मैं लंड भी अच्छा चूस लेती हूँ. तुम्हारे लंड की प्यास बुझानी हो तो मैं रहूंगी तुम्हारे लिए” रश्मि ने एक बार फिर मेरी साड़ी को वहां छुआ जहाँ मेरा लंड था.

मैं भी उसके और करीब आ गयी और बोली, “वैसे मैंने आजतक किसी का लंड चुसी नहीं हूँ… पर मुझे यकीन है कि मैं भी अच्छे से चूसूंगी. मेरी लंड चूसने की प्यास को बुझाने दोगी तुम?” मैंने भी उसकी साड़ी को वहां छुआ और उसके लंड को सहलाने लगी और उसके होंठो को चूमने लगी.

“रुक जाओ न मानसी.. कोई आ जाएगा.”, रश्मि बोली और शर्मा गयी.

हम दोनों संगीत के बाद की रात को लेकर उतावली हो चुकी थी. आज हम दोनों  मिलकर अपने सपने सच करने वाली थी. हम दोनों ने एक दुसरे का हाथ थामा और मुस्कुराते हुए बाहर चली आई. बाहर हम दोनों को इतने पास देखकर कुछ लड़के हमें घूरने लगे… और हम दोनों उन लडको को देखकर बस खिलखिलाकर हँस दी.


अब हमें किसी और लड़के की ज़रुरत नहीं थी. क्योंकि मेरे पास रश्मि थी… मैं तो अब बस बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी जब मैं उसके लंड को अपने हाथो में पकड़ कर हिलाऊंगी… और मेरी चूड़ियां खनकेगी.. और जब उसकी पेंटी में उसका लंड तन जाएगा… तब मैं उसे अपने बड़े रसीले होंठो से चूस लूंगी. यह सब सोचते सोचते ही मेरे लंड में हलचल हो रही थी. मैं रश्मि की कमर पे हाथ रखकर मुस्कुराने लगी और वो भी.
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RE: मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth) - by Manu gupta - 23-08-2022, 09:20 PM



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