23-08-2022, 08:47 PM
अगले दिन आशा को विकास का कॉल आया, उसने आशा को किसी काम से ऑफिस बुलाया था। आशा ऑफिस गई। वहा उसकी मुलाकात विकास के बड़े भाई विवेक से हुई। विवेक अपने ऑफिस की एक और ब्रांच खोलने और अपने व्यवसाय को बड़ाने के लिए 6 महीने से बाहर था। आशा का काम विवेक को बहुत पसंद आया था। विवेक ने उसे नौकरी पर रखने के लिए ऑफिस बुलाया था। आशा बहुत खुश हुई और उसने नौकरी के लिए हां कर दी।
इधर रानू एक कोचिंग क्लास में इंटरव्यू के लिए गई थी, उसे बचपन से ही पढ़ाने का बड़ा शौक था। उसका चयन हो गया था। उसी कोचिंग पर रानू का एक हमउम्र भी था, वो भी वहा पड़ता था। उसका नाम जीतेश था, सब लोग उसे जीत के नाम से बुलाते थे।
दिया, रितेश, ईशा, जॉनी और नेहा ने मिलकर इवेंट मैनजमेंट का बिजनेस शुरू किया। आशा और रानू को जब भी समय मिलता या जिस दिन उनकी छुट्टी रहती वो भी इवेंट मैनेजमेंट में अपना सहयोग देने पहुंच जाते।
आशा और रानू दोनो अपना काम मन लगाकर कर रहे थे। इधर विवेक आशा को पसंद करने लगा था। उधर जीत को रानू पसंद आने लगी थी। हालांकि आशा और रानू दोनो के दिल में अभी तक ऐसा कुछ भी नही था। विवेक और जीत दोनो ही आशा और रानू से पांचों सहेलियों और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बारे में जान गए थे। विवेक ने अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम के लिए इसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को काम सोपा था। कार्यक्रम बहुत अच्छे से हो रहा था। मि विनोद के ड्रिंक में किसी ने कोई दवाई मिला दी थी। नेहा मि विनोद की हालत देख कर समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ है। नेहा मि विनोद को लेकर ऊपर रूम में गई।
विनोद: मेरी जाने मन संगीता (विनोद को पत्नी का नाम संगीता था) तुम आ गई।
नेहा कुछ भी नही बोली, उसने विवेक को काल करने का सोचा। इतने में मि विनोद नेहा को संगीता समझ कर उसे पीछे से गले लगाया। नेहा एकदम से घबरा गई और मि विनोद को धक्का देकर हटाने लगी। नेहा का संतुलन बिगड़ा, नेहा बिस्तर पर गिर पड़ी और मि विनोद नेहा के उपर थे। विनोद ने नेहा को संगीता समझ कर स्मूच करना शुरू कर किया और अपने हाथो से कपड़ो के उपर से बूब्स भी दबाने लगे। नेहा मि विनोद को हटाने की कोशिश करने लगी। विनोद ने नेहा के हाथो को अपने हाथो में ले लिया और जोरो से होठों को चूमने लगे। विनोद ने एक हाथ से नेहा के कपड़ो के अंदर हाथ डाला और बोबे दबाने लगे। बोबे दबाते दबाते चुचियों को दबाया। नेहा का विरोध पूरी तरह से कमजोर हो गया था। नेहा के विरोध में अब वो बात नही थी की वो मि विनोद को रोक सके। विंड ने नेहा को नंगा करना शुरू किया। नेहा मि विनोद का साथ तो नही दे रही थी, पर विरोध भी नही कर रही थी। नेहा के नंगे जिस्म को चूमने के बाद विनोद भी पूरे नंगे हो गए थे। नेहा जानती थी की अगर मि विनोद का लंड एक बार उसकी चुत में गया तो बिना झड़े रुकेगा नही और अभी यहा कंडोम भी नही है। उसने विनोद के लंड को पकड़ा अपने हाथो से हिलाने लगी। थोड़ी देर तक नेहा लंड के साथ खेलती रही, पर विनोद अभी तक झड़े नही थे। नेहा की चुत की आग शांत नहीं हो रही थी। नेहा ने विनोद को बिस्तर पर लेटाया और विनोद के ऊपर चढ़ गई। नेहा ने विनोद का लंड पकड़ कर अपनी गांड पर रखा। नेहा विनोद के लंड को अपनी गांड के अंदर नही कर पा रही थी। विनोद ने नेहा की कमर को पकड़ कर एक जोर का झटका मारा और लंड नेहा की गांड में घुस गया। नेहा की दर्द के मारे चीख निकल गई। नेहा उछल कर लंड को अपनी गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर विनोद ने कमर को पकड़ रखा था और वो नीचे की और धकेल रहे थे। मि विनोद लंड के गांड में घुसते ही अपने चरम पर पहुंच चुके थे। 2–3 झटको मे ही झड़ने लगे। विनोद के लंड की पिचकारी नेहा की गांड भरती उसके पहले ही नेहा ने लंड निकाला। नेहा ने तुरंत अपने कपड़े पहने और वहा से चली गई।
अगले दिन विवेक ने दिया, रितेश, जॉनी, ईशा, नेहा और रानू को ऑफिस में बुलाया था। रानू की क्लास होने के कारण वो नही आई। सभी लोगो का विवेक ने स्वागत किया और कार्यक्रम के लिए धन्यवाद भी करा। सब लोग जा चुके थे। केबिन में सिर्फ विवेक और आशा ही थे।
विवेक: आप लोगो की दोस्ती को देख कर बहुत अच्छा लगा। आप लोगो की दोस्ती ऐसी ही रहे।
आशा: धन्यवाद सर।
विवेक: आशा..
आशा: जी सर।
विवेक: मुझे तुमसे कुछ बात करना है।
आशा: बोलिए सर
विवेक: तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुमसे ...
आशा: (विवेक ने अपनी बात पूरी खत्म भी नही की और आशा बीच में ही बोल दी) आपकी तारीफ के लिए शुक्रिया। आपकी और मेरी जीवन शैली में बहुत फर्क है, आप अमीर परिवार से हो और मैं मध्यमवर्गीय परिवार से, आपका और हमारा रहन सहन बहुत अलग है, रिश्ता बराबरी वालो में ही कीजिए सर। आपको मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो मैं आपसे माफी मांगती हुं। (आशा फाइल उठाकर बाहर आ गई और अपने काम में लग गई)
आशा रोज ऑफिस आती और अपना काम करती। विवेक से वैसे ही बात करती जैसे पहले करती थी। विवेक आशा से बात करने में असहज महसूस करता था। विवेक ने उसे नए काम देना भी बंद कर दिए थे। जो भी काम रहता आशा उसे पूरी ईमानदारी से करती और बचे हुए समय में ऑफिस के साथियों के साथ काम करती।
इधर जीत रानू पर पूरी तरह से लट्टू हो गया था। एक शाम जीत ने रानू से अपने प्यार का इजहार करने के लिए रानू को कैफे में बुलाया।
जीत: रानू मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। तुम्हे अपनी दुल्हन बनाना चाहता हुं।
रानू: पहले प्यार, फिर शादी और उसके बाद तलाक। (रानू ने ये बात इसलिए कही की वो जानना चाहती थी, ये सिर्फ प्यार है या आकर्षण, रानू को भी जीत पसंद था)
जीत: तलाक क्यों..!!
रानू: और तुम्हे मेरे साथ अच्छा नहीं लगेगा, मेरी बाते पसंद नही आयेगी तो तलाक तो लेना पड़ेगा।
जीत: पर मुझे तो तुम पसंद हो, तुम्हारी बाते पसंद है। फिर ऐसा क्यों बोल रही।
रानू: मैं अपने पति को अपने वश में रखूंगी। लोग तुम्हे जोरू का गुलाम कहेंगे, क्या तुम ये सुन पाओगे। मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती हुं, क्या तुम्हे और तुम्हारे घर वालो को ये पसंद आएगा। एक खास बात, मैने अभी तक किसी को प्यार नही किया और मैं वर्जिन भी नही हुं। अब तुम आराम से सोचो, अपने घर वालो से इस बारे में बात करो, फिर मुझसे शादी का सोचना। मैं तुम्हारे घर वालो से मिलने के बाद ही प्यार और शादी के बारे में विचार करूंगी।
रानू की बातो ने तो जीत को सोचने पर मजबूर किया। दोनो वहा से चले गए।
जीत ने 3 दिन बाद रानू को फिर से मिलने बुलाया।
जीत: तुम्हारी बातो ने मुझे सोचने पर मजबूर किया की मैंने तुम्हे पसंद कर के शायद गलती कर दी। पर जब मैने तुम्हारी बातो को गहराई से सोचा तो मुझे समझ आया की तुम सही हो, हर बार शादी बाद औरतों ने ही तो समझोता किया है, उन्हें भी तो अपनी जिंदगी जीने का हक है। जब तक पत्नी खुश नहीं है तो पति को वो खुश कैसे रख पाएगी। तुम वो लड़की हो जो मेरे दिल में बस गई हो, तुमसे प्यार अब पहले से भी ज्यादा हो गया है। मैं चाहता हूं की तुम मुझे अच्छे से जानो, समझो और तुम्हे लगता है की मैं तुम्हारे लायक हूं तो मुझे बता देना, मैं तुम्हे घर वालो से मिलवा दूंगा। एक खास बात, तुम मेरा पहला प्यार हो और मैं अभी तक वर्जिन ही हूं।
रानू को जीत की बात ने बहुत प्रभावित किया। दोनो वहा से चल दिए। धीरे धीरे रानू और जीत करीब आने लगे थे। एक दिन रानू और जीत क्लास से घर जा रहे थे, अचानक जोरो से बारिश होने लगी। रानू और जीत भीग गए थे। जीत रानू को अपने घर लेकर गया। रानू को तोलिया दे कर जैसे ही जाने लगा, रानू को छिपकली दिखी और वो देख कर डर के मारे जीत से चिपक गई। जीत ने रानू को कस के गले लगाया। रानू को अपने सीने से चिपकाने की वजह से जीत की धड़कन बड़ चुकी थी। जीत ने उसे बस गले लगा रखा था, जीत की ओर से कोई हरकत नहीं थी। रानू ने उसकी बड़ी हुई धड़कन को महसूस किया। तभी अचानक लाइट भी चली गई। रानू ने जीत के होंठों से अपने होंठ मिला लिए। 5 सेकंड में लाइट आ भी गई।एक दम से लाइट आ भी गई। जीत को तो जैसे झटका लग गया हो। रानू ने जीत की आंखों में देखा और एक बार फिर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए। लंबे चुम्बन के बाद दोनो के होठ अलग हुए। रानू ने जीत के चेहरे पर चूमना शुरू कर दिया। जीत का हाथ रानू के बोबे पर आ गया। रानू ने बिना किसी विरोध के उसके होंठों पर फिर से अपने होठ रख दिए। दोनो एक बार फिर से चूमने लगे और जीत बहुत ही हल्के हाथों से रानू के बूब्स मसलने लगा। जीत का लंड कड़क हो चुका था, जिसका एहसास रानू की चुत पर ही रहा था। रानू की चुत काम रस से भीग चुकी थी। रानू ने अपना कुर्ता निकाल दिया, रानू जीत के सामने ब्रा और सलवारमे थी। रानू ने जीत का चेहरा अपनी ब्रा पर रख दिया। जीत ने ब्रा के आस पास के खुले बूब्स को चूमना शुरू किया। जीत ने एक हाथ बोबे पर रख कर मसला और दुसरे बोबे की चूची को ब्रा के उपर से ही मुंह में ले लिया और उसकी चूची को दबाया। रानू ने जीत की पैंट के ऊपर से ही जीत के लंड को पकड़ा और अपने हाथो से जीत के लंड को दबाने लगी। जीत का ये पहला अनुभव था, थोड़ी देर में ही जीत झड़ चुका था। किसी के आने की आहट ने दोनो को दूर होने पर मजबूर कर दिया, रानू वाशरूम में चली गई और जीत भी कमरे के बाहर आ गया। जीत ने देखा उसकी बहन रिचा आ रही है। उसने अपनी बहन रिचा को रानू के लिए कपड़े लाने को कहा। रिचा कपड़े लेने गई और जीत ने वाशरूम के बाहर से रानू को कहा की वो कपड़े लेकर आ रहा है। रिचा कपड़े लेकर आई और जीत को देने के बजाय खुद रानू को देने चली गई। जीत भी पीछे पीछे आने लगा। रिचा ने जीत से कहा– अब क्या कपड़े आप ही पहनाओगे उसे? जीत रिचा की बात सुनकर शर्मिंदा हो गया, उसे अहसास हुआ की उसे भी तो कपड़े बदलने है और कमरे से बाहर चला गया। रानू ने जीत के लिए वाशरूम का दरवाजा अटका रखा था, पुरा बंद नही था। रानू बहुत ही ज़्यादा उत्तेजित हो गई थी, उसने अपने सारे कपड़े निकाल लिए थे और नंगी हो चुकी थी। रानू आंखे बंद कर के अपने बूब्स से खेल रही थी और बोल रही थी, आह जीत मेरे बूब्स को मसलों, इन्हे निचोड़ दो, तुम मेरे नंगे बदन को प्यार करो। चूंकि दरवाजा पुरी तरह से बंद नही था, रिचा दरार में से नजारा देख भी रही थी और रानू की मादक सिसकरिया और अश्लील बाते सुन भी रही थी। रिचा को भी आनंद आने लगा था, वो वही रुकी और आगे के मजे लेने लगी। रानू की सिसकियां बड़ रही थी। रानू ने अपना एक हाथ और बोल रही थी, जीत अब मत तड़पाओ मुझे अपना लंड मेरी चुत में डालो, मुझे चोदो..। रिचा के हाथ के कपड़े नीचे गिर गए थे, रिचा कपड़े उठाने के लिए झुकी और उस से दरवाजा खुल गया। रानू की आंखे खुली और उसने रिचा को देखा। रिचा की नजर रानू की चूचियों पर थी। रानू ने भी देखा की रिचा की चूचियां कड़क है। रानू समझ गई की इसने अभी नजारे के मजे लिए है, रानू तो वासना के आगोश में ही थी। रानू रिचा के पास आई और अपना हाथ उसके बूब्स पर रखा। रिचा कुछ विरोध करती, उसके पहले ही रानू ने उसके होंठों को चूम लिया और उसके बूब्स दबाने लगी और रिचा की कड़क चुचियों को मसला। रानू की इस हरकत ने रिचा को भी उत्तेजित किया। रानू ने जब देखा कि रिचा को और अब कोई विरोध नहीं है तो उसने रिचा को नंगा करना शुरू किया। रिचा को नंगा करने के बाद रिचा को पलंग पर लेटाया। रानू रिचा की चुत से खेलने लगी।
रानू: कितनी मस्त चुत है तुम्हारी
रिचा: ओह... आ... आ....ह.... ऐसी ही करती रहो।
रानू: और दर्द के मजे लोगी
रिचा: हां, प्लीज..
रानू: प्यार से नही, गंदी बातो से मनाओ मुझे।
रिचा: मेरी चुत को मत तड़पाओ, इसे प्यार करो।
रानू: (हल्के से चुत पर चिमटी करते हुए) थोड़ा और गंदा
रिचा: मेरी चुत को रंडी की चुत बना दो। चोद चोद के चुत फाड़ दो।
रानू ने अपनी चुत को रिचा की चुत से रगड़ना शुरू किया। रिचा भी रानू का साथ देने लगी थी। रानू और रिचा एक दूसरे को बूब्स को मसलने लगे। रानू ने रिचा को अपने नीचे लेटाया और ६९ की पोजीशन बनाई। रानू रिचा की चुत चाटने लगी और रिचा रानू की। रानू उठी और रिचा की चुत में ऊंगली करने लगी और तब तक ऊंगली करी जब तक रिचा झड़ नही गई। रिचा और रानू के इस काम लीला का आनंद दो आंखे और ले रही थी, वो जीत था जो चोरी छीपे ये नजारा देख रहा था। रिचा कमरे से जा चुकी थी, रानू भी तैयार हो गई थी। जीत कमरे में आया।
रानू: तुम्हारा चेहरा लटका हुआ क्यों है। (रानू जब रिचा के साथ काम लीला के मजे ले रही थी उसने जीत को देख लिया था। वो समझ चूंकि थी की जीत को ये सब पसंद नही आया।)
जीत: (जीत ये सब देखने के बाद रानू से अपना रिश्ता खत्म करना चाहता था, पर कुछ कह नहीं पा रहा था।) कुछ नही, तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हे छोड़ देता हुं।
रानू: अब तो आप मुझे छोड़ोगे ही।
जीत: (थोड़ा सा गुस्से में) कहना क्या चाहती हो!
रानू: वही जो आप नहीं कह पा रहे। मैं जानती हुं, आपने मुझे और रिचा को काम लीला करते हुए देखा है और आपको बिलकुल भी पसंद नही आया। आप मर्दों का अच्छा है, हम औरते वही करे जो आपको अच्छा लगे। हमारी तो कोई ख्वाहिश ही नहीं है।
जीत: तुम अपनी वासना को ख्वाहिश का नाम न दो।
रानू: ये सही है, तुम जब अपनी बहन और प्रेमिका की चुदाई का आनंद ले रहे थे, वो भी वासना ही थी। तुम्हारे लंड से जो रस निकाला है ना वो भी वासना का ही अंजाम है।
जीत को अपनी गलती का अहसास हुआ, उसने रानू से माफ़ी मांगी। रानू ने जीत के लंड को बाहर निकाला और चूसने लगी। जीत के लिए आज का दिन उसकी जिंदगी का सबसे हसीन दिन था। इस बार रिचा दरवाजे के उस और थी और जीत की नजरे उस से मिली, जीत ने रानू को रोका नहीं और मुस्कुराते हुए रिचा को जाने को कहा। जीत ने अभी तक चुदाई का आनंद नही लिया था, पर वो खुश बहुत था।
इधर रानू एक कोचिंग क्लास में इंटरव्यू के लिए गई थी, उसे बचपन से ही पढ़ाने का बड़ा शौक था। उसका चयन हो गया था। उसी कोचिंग पर रानू का एक हमउम्र भी था, वो भी वहा पड़ता था। उसका नाम जीतेश था, सब लोग उसे जीत के नाम से बुलाते थे।
दिया, रितेश, ईशा, जॉनी और नेहा ने मिलकर इवेंट मैनजमेंट का बिजनेस शुरू किया। आशा और रानू को जब भी समय मिलता या जिस दिन उनकी छुट्टी रहती वो भी इवेंट मैनेजमेंट में अपना सहयोग देने पहुंच जाते।
आशा और रानू दोनो अपना काम मन लगाकर कर रहे थे। इधर विवेक आशा को पसंद करने लगा था। उधर जीत को रानू पसंद आने लगी थी। हालांकि आशा और रानू दोनो के दिल में अभी तक ऐसा कुछ भी नही था। विवेक और जीत दोनो ही आशा और रानू से पांचों सहेलियों और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बारे में जान गए थे। विवेक ने अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम के लिए इसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को काम सोपा था। कार्यक्रम बहुत अच्छे से हो रहा था। मि विनोद के ड्रिंक में किसी ने कोई दवाई मिला दी थी। नेहा मि विनोद की हालत देख कर समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ है। नेहा मि विनोद को लेकर ऊपर रूम में गई।
विनोद: मेरी जाने मन संगीता (विनोद को पत्नी का नाम संगीता था) तुम आ गई।
नेहा कुछ भी नही बोली, उसने विवेक को काल करने का सोचा। इतने में मि विनोद नेहा को संगीता समझ कर उसे पीछे से गले लगाया। नेहा एकदम से घबरा गई और मि विनोद को धक्का देकर हटाने लगी। नेहा का संतुलन बिगड़ा, नेहा बिस्तर पर गिर पड़ी और मि विनोद नेहा के उपर थे। विनोद ने नेहा को संगीता समझ कर स्मूच करना शुरू कर किया और अपने हाथो से कपड़ो के उपर से बूब्स भी दबाने लगे। नेहा मि विनोद को हटाने की कोशिश करने लगी। विनोद ने नेहा के हाथो को अपने हाथो में ले लिया और जोरो से होठों को चूमने लगे। विनोद ने एक हाथ से नेहा के कपड़ो के अंदर हाथ डाला और बोबे दबाने लगे। बोबे दबाते दबाते चुचियों को दबाया। नेहा का विरोध पूरी तरह से कमजोर हो गया था। नेहा के विरोध में अब वो बात नही थी की वो मि विनोद को रोक सके। विंड ने नेहा को नंगा करना शुरू किया। नेहा मि विनोद का साथ तो नही दे रही थी, पर विरोध भी नही कर रही थी। नेहा के नंगे जिस्म को चूमने के बाद विनोद भी पूरे नंगे हो गए थे। नेहा जानती थी की अगर मि विनोद का लंड एक बार उसकी चुत में गया तो बिना झड़े रुकेगा नही और अभी यहा कंडोम भी नही है। उसने विनोद के लंड को पकड़ा अपने हाथो से हिलाने लगी। थोड़ी देर तक नेहा लंड के साथ खेलती रही, पर विनोद अभी तक झड़े नही थे। नेहा की चुत की आग शांत नहीं हो रही थी। नेहा ने विनोद को बिस्तर पर लेटाया और विनोद के ऊपर चढ़ गई। नेहा ने विनोद का लंड पकड़ कर अपनी गांड पर रखा। नेहा विनोद के लंड को अपनी गांड के अंदर नही कर पा रही थी। विनोद ने नेहा की कमर को पकड़ कर एक जोर का झटका मारा और लंड नेहा की गांड में घुस गया। नेहा की दर्द के मारे चीख निकल गई। नेहा उछल कर लंड को अपनी गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर विनोद ने कमर को पकड़ रखा था और वो नीचे की और धकेल रहे थे। मि विनोद लंड के गांड में घुसते ही अपने चरम पर पहुंच चुके थे। 2–3 झटको मे ही झड़ने लगे। विनोद के लंड की पिचकारी नेहा की गांड भरती उसके पहले ही नेहा ने लंड निकाला। नेहा ने तुरंत अपने कपड़े पहने और वहा से चली गई।
अगले दिन विवेक ने दिया, रितेश, जॉनी, ईशा, नेहा और रानू को ऑफिस में बुलाया था। रानू की क्लास होने के कारण वो नही आई। सभी लोगो का विवेक ने स्वागत किया और कार्यक्रम के लिए धन्यवाद भी करा। सब लोग जा चुके थे। केबिन में सिर्फ विवेक और आशा ही थे।
विवेक: आप लोगो की दोस्ती को देख कर बहुत अच्छा लगा। आप लोगो की दोस्ती ऐसी ही रहे।
आशा: धन्यवाद सर।
विवेक: आशा..
आशा: जी सर।
विवेक: मुझे तुमसे कुछ बात करना है।
आशा: बोलिए सर
विवेक: तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुमसे ...
आशा: (विवेक ने अपनी बात पूरी खत्म भी नही की और आशा बीच में ही बोल दी) आपकी तारीफ के लिए शुक्रिया। आपकी और मेरी जीवन शैली में बहुत फर्क है, आप अमीर परिवार से हो और मैं मध्यमवर्गीय परिवार से, आपका और हमारा रहन सहन बहुत अलग है, रिश्ता बराबरी वालो में ही कीजिए सर। आपको मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो मैं आपसे माफी मांगती हुं। (आशा फाइल उठाकर बाहर आ गई और अपने काम में लग गई)
आशा रोज ऑफिस आती और अपना काम करती। विवेक से वैसे ही बात करती जैसे पहले करती थी। विवेक आशा से बात करने में असहज महसूस करता था। विवेक ने उसे नए काम देना भी बंद कर दिए थे। जो भी काम रहता आशा उसे पूरी ईमानदारी से करती और बचे हुए समय में ऑफिस के साथियों के साथ काम करती।
इधर जीत रानू पर पूरी तरह से लट्टू हो गया था। एक शाम जीत ने रानू से अपने प्यार का इजहार करने के लिए रानू को कैफे में बुलाया।
जीत: रानू मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। तुम्हे अपनी दुल्हन बनाना चाहता हुं।
रानू: पहले प्यार, फिर शादी और उसके बाद तलाक। (रानू ने ये बात इसलिए कही की वो जानना चाहती थी, ये सिर्फ प्यार है या आकर्षण, रानू को भी जीत पसंद था)
जीत: तलाक क्यों..!!
रानू: और तुम्हे मेरे साथ अच्छा नहीं लगेगा, मेरी बाते पसंद नही आयेगी तो तलाक तो लेना पड़ेगा।
जीत: पर मुझे तो तुम पसंद हो, तुम्हारी बाते पसंद है। फिर ऐसा क्यों बोल रही।
रानू: मैं अपने पति को अपने वश में रखूंगी। लोग तुम्हे जोरू का गुलाम कहेंगे, क्या तुम ये सुन पाओगे। मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती हुं, क्या तुम्हे और तुम्हारे घर वालो को ये पसंद आएगा। एक खास बात, मैने अभी तक किसी को प्यार नही किया और मैं वर्जिन भी नही हुं। अब तुम आराम से सोचो, अपने घर वालो से इस बारे में बात करो, फिर मुझसे शादी का सोचना। मैं तुम्हारे घर वालो से मिलने के बाद ही प्यार और शादी के बारे में विचार करूंगी।
रानू की बातो ने तो जीत को सोचने पर मजबूर किया। दोनो वहा से चले गए।
जीत ने 3 दिन बाद रानू को फिर से मिलने बुलाया।
जीत: तुम्हारी बातो ने मुझे सोचने पर मजबूर किया की मैंने तुम्हे पसंद कर के शायद गलती कर दी। पर जब मैने तुम्हारी बातो को गहराई से सोचा तो मुझे समझ आया की तुम सही हो, हर बार शादी बाद औरतों ने ही तो समझोता किया है, उन्हें भी तो अपनी जिंदगी जीने का हक है। जब तक पत्नी खुश नहीं है तो पति को वो खुश कैसे रख पाएगी। तुम वो लड़की हो जो मेरे दिल में बस गई हो, तुमसे प्यार अब पहले से भी ज्यादा हो गया है। मैं चाहता हूं की तुम मुझे अच्छे से जानो, समझो और तुम्हे लगता है की मैं तुम्हारे लायक हूं तो मुझे बता देना, मैं तुम्हे घर वालो से मिलवा दूंगा। एक खास बात, तुम मेरा पहला प्यार हो और मैं अभी तक वर्जिन ही हूं।
रानू को जीत की बात ने बहुत प्रभावित किया। दोनो वहा से चल दिए। धीरे धीरे रानू और जीत करीब आने लगे थे। एक दिन रानू और जीत क्लास से घर जा रहे थे, अचानक जोरो से बारिश होने लगी। रानू और जीत भीग गए थे। जीत रानू को अपने घर लेकर गया। रानू को तोलिया दे कर जैसे ही जाने लगा, रानू को छिपकली दिखी और वो देख कर डर के मारे जीत से चिपक गई। जीत ने रानू को कस के गले लगाया। रानू को अपने सीने से चिपकाने की वजह से जीत की धड़कन बड़ चुकी थी। जीत ने उसे बस गले लगा रखा था, जीत की ओर से कोई हरकत नहीं थी। रानू ने उसकी बड़ी हुई धड़कन को महसूस किया। तभी अचानक लाइट भी चली गई। रानू ने जीत के होंठों से अपने होंठ मिला लिए। 5 सेकंड में लाइट आ भी गई।एक दम से लाइट आ भी गई। जीत को तो जैसे झटका लग गया हो। रानू ने जीत की आंखों में देखा और एक बार फिर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए। लंबे चुम्बन के बाद दोनो के होठ अलग हुए। रानू ने जीत के चेहरे पर चूमना शुरू कर दिया। जीत का हाथ रानू के बोबे पर आ गया। रानू ने बिना किसी विरोध के उसके होंठों पर फिर से अपने होठ रख दिए। दोनो एक बार फिर से चूमने लगे और जीत बहुत ही हल्के हाथों से रानू के बूब्स मसलने लगा। जीत का लंड कड़क हो चुका था, जिसका एहसास रानू की चुत पर ही रहा था। रानू की चुत काम रस से भीग चुकी थी। रानू ने अपना कुर्ता निकाल दिया, रानू जीत के सामने ब्रा और सलवारमे थी। रानू ने जीत का चेहरा अपनी ब्रा पर रख दिया। जीत ने ब्रा के आस पास के खुले बूब्स को चूमना शुरू किया। जीत ने एक हाथ बोबे पर रख कर मसला और दुसरे बोबे की चूची को ब्रा के उपर से ही मुंह में ले लिया और उसकी चूची को दबाया। रानू ने जीत की पैंट के ऊपर से ही जीत के लंड को पकड़ा और अपने हाथो से जीत के लंड को दबाने लगी। जीत का ये पहला अनुभव था, थोड़ी देर में ही जीत झड़ चुका था। किसी के आने की आहट ने दोनो को दूर होने पर मजबूर कर दिया, रानू वाशरूम में चली गई और जीत भी कमरे के बाहर आ गया। जीत ने देखा उसकी बहन रिचा आ रही है। उसने अपनी बहन रिचा को रानू के लिए कपड़े लाने को कहा। रिचा कपड़े लेने गई और जीत ने वाशरूम के बाहर से रानू को कहा की वो कपड़े लेकर आ रहा है। रिचा कपड़े लेकर आई और जीत को देने के बजाय खुद रानू को देने चली गई। जीत भी पीछे पीछे आने लगा। रिचा ने जीत से कहा– अब क्या कपड़े आप ही पहनाओगे उसे? जीत रिचा की बात सुनकर शर्मिंदा हो गया, उसे अहसास हुआ की उसे भी तो कपड़े बदलने है और कमरे से बाहर चला गया। रानू ने जीत के लिए वाशरूम का दरवाजा अटका रखा था, पुरा बंद नही था। रानू बहुत ही ज़्यादा उत्तेजित हो गई थी, उसने अपने सारे कपड़े निकाल लिए थे और नंगी हो चुकी थी। रानू आंखे बंद कर के अपने बूब्स से खेल रही थी और बोल रही थी, आह जीत मेरे बूब्स को मसलों, इन्हे निचोड़ दो, तुम मेरे नंगे बदन को प्यार करो। चूंकि दरवाजा पुरी तरह से बंद नही था, रिचा दरार में से नजारा देख भी रही थी और रानू की मादक सिसकरिया और अश्लील बाते सुन भी रही थी। रिचा को भी आनंद आने लगा था, वो वही रुकी और आगे के मजे लेने लगी। रानू की सिसकियां बड़ रही थी। रानू ने अपना एक हाथ और बोल रही थी, जीत अब मत तड़पाओ मुझे अपना लंड मेरी चुत में डालो, मुझे चोदो..। रिचा के हाथ के कपड़े नीचे गिर गए थे, रिचा कपड़े उठाने के लिए झुकी और उस से दरवाजा खुल गया। रानू की आंखे खुली और उसने रिचा को देखा। रिचा की नजर रानू की चूचियों पर थी। रानू ने भी देखा की रिचा की चूचियां कड़क है। रानू समझ गई की इसने अभी नजारे के मजे लिए है, रानू तो वासना के आगोश में ही थी। रानू रिचा के पास आई और अपना हाथ उसके बूब्स पर रखा। रिचा कुछ विरोध करती, उसके पहले ही रानू ने उसके होंठों को चूम लिया और उसके बूब्स दबाने लगी और रिचा की कड़क चुचियों को मसला। रानू की इस हरकत ने रिचा को भी उत्तेजित किया। रानू ने जब देखा कि रिचा को और अब कोई विरोध नहीं है तो उसने रिचा को नंगा करना शुरू किया। रिचा को नंगा करने के बाद रिचा को पलंग पर लेटाया। रानू रिचा की चुत से खेलने लगी।
रानू: कितनी मस्त चुत है तुम्हारी
रिचा: ओह... आ... आ....ह.... ऐसी ही करती रहो।
रानू: और दर्द के मजे लोगी
रिचा: हां, प्लीज..
रानू: प्यार से नही, गंदी बातो से मनाओ मुझे।
रिचा: मेरी चुत को मत तड़पाओ, इसे प्यार करो।
रानू: (हल्के से चुत पर चिमटी करते हुए) थोड़ा और गंदा
रिचा: मेरी चुत को रंडी की चुत बना दो। चोद चोद के चुत फाड़ दो।
रानू ने अपनी चुत को रिचा की चुत से रगड़ना शुरू किया। रिचा भी रानू का साथ देने लगी थी। रानू और रिचा एक दूसरे को बूब्स को मसलने लगे। रानू ने रिचा को अपने नीचे लेटाया और ६९ की पोजीशन बनाई। रानू रिचा की चुत चाटने लगी और रिचा रानू की। रानू उठी और रिचा की चुत में ऊंगली करने लगी और तब तक ऊंगली करी जब तक रिचा झड़ नही गई। रिचा और रानू के इस काम लीला का आनंद दो आंखे और ले रही थी, वो जीत था जो चोरी छीपे ये नजारा देख रहा था। रिचा कमरे से जा चुकी थी, रानू भी तैयार हो गई थी। जीत कमरे में आया।
रानू: तुम्हारा चेहरा लटका हुआ क्यों है। (रानू जब रिचा के साथ काम लीला के मजे ले रही थी उसने जीत को देख लिया था। वो समझ चूंकि थी की जीत को ये सब पसंद नही आया।)
जीत: (जीत ये सब देखने के बाद रानू से अपना रिश्ता खत्म करना चाहता था, पर कुछ कह नहीं पा रहा था।) कुछ नही, तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हे छोड़ देता हुं।
रानू: अब तो आप मुझे छोड़ोगे ही।
जीत: (थोड़ा सा गुस्से में) कहना क्या चाहती हो!
रानू: वही जो आप नहीं कह पा रहे। मैं जानती हुं, आपने मुझे और रिचा को काम लीला करते हुए देखा है और आपको बिलकुल भी पसंद नही आया। आप मर्दों का अच्छा है, हम औरते वही करे जो आपको अच्छा लगे। हमारी तो कोई ख्वाहिश ही नहीं है।
जीत: तुम अपनी वासना को ख्वाहिश का नाम न दो।
रानू: ये सही है, तुम जब अपनी बहन और प्रेमिका की चुदाई का आनंद ले रहे थे, वो भी वासना ही थी। तुम्हारे लंड से जो रस निकाला है ना वो भी वासना का ही अंजाम है।
जीत को अपनी गलती का अहसास हुआ, उसने रानू से माफ़ी मांगी। रानू ने जीत के लंड को बाहर निकाला और चूसने लगी। जीत के लिए आज का दिन उसकी जिंदगी का सबसे हसीन दिन था। इस बार रिचा दरवाजे के उस और थी और जीत की नजरे उस से मिली, जीत ने रानू को रोका नहीं और मुस्कुराते हुए रिचा को जाने को कहा। जीत ने अभी तक चुदाई का आनंद नही लिया था, पर वो खुश बहुत था।