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Adultery मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth)
#7
----------_--------पापा------------------



तभी फोन बजने लगा मम्मी ने उठाया। 
कब आ रहे हो तुम? तुम्हारा कबसे इंतज़ार कर रही हूँ मैं।”

“तुम तो जानती ही हो मेरा काम। अभी भी ३ दिन और बचे है। मैं भी तो घर आने को उतना ही बेताब हूँ तभी तो इतनी रात को जागकर तुम्हें फोन कर रहा हूँ।”, पापा ने कहा।

“अब इतना लंबा इंतज़ार नहीं किया जाता मुझसे । अकेली पड़ चुकी हूँ मैं। अब थक भी गई हूँ। , मम्मी बोली।

“बस कुछ दिन और संभाल लो । तब हमारे पास इतने पैसे होंगे कि बेटे के इलाज मे जितनी भी जरूरत होगी हम उसे पूरा कर सकेंगे।”, पापा ने कहा। 

“बेटा कैसा है?”, पापा ने मम्मी से पूछा।

“अच्छा है।”


“मनिशा वो खुश तो है न?”, एक चिंतित पिता ने पूछा।

“हाँ। बहुत खुश है।”, मम्मी ने कहा और फिर थोड़ा रुककर बोली, “पता है आज मैंने उसे पहली बार साड़ी पहनाई है। बहुत खूबसूरत लग रहा है साड़ी में। अभी अंदर कमरे मे साड़ी पहनकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा है।”


साड़ी! हमारा बेटा इतना बड़ा हो गया है।”, पापा की आवाज मे एक अजीब सा दर्द था।  जो अपने बेटे की स्थिति जानता थे। अपने बेटे को धीरे धीरे यूं बेटी बनते देख कहीं न कहीं उसे दुख भी होता था। मम्मी को डर लगता था कि कहीं पापा मुझ को इस तरह देखकर अंदर से टूट न जाए।


मनिशा। मैं बेटे को देख सकता हूँ?”, पापा ने मम्मी से पूछा।

, तुम उसे इस तरह देख सकोगे? तुम क्यों खुद को दर्द देना चाहते हो राजीव?”, मम्मी ने कहा।

मनिशा, यदि मैं अपने बेटे को इस वक्त सहारा न दे सका तो मैं आगे कैसे उसका साथ पाऊँगा? हम दोनों मे दूरी न बढ़ जाएगी। मैंने इस बारे मे बहुत सोचा है और मैंने तय किया है कि उसकी इस यात्रा मे मैं उसके साथ रहूँगा और उसे इस तरह से झूठलाकर नहीं जियूँगा।”



“ठीक है। मैं अभी अंदर जाकर बात कराती हूँ। शायद अब तक वाईफाई भी चालू हो गया होगा।”,मम्मी बोली और फोन लेकर अंदर आ गई।

मम्मी की बात सुनते ही मेरे चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। मै अपने पापा से वो कैसे नजरे मिलाएगा इस वक्त? वो भी जब उसने साड़ी पहना हुआ है और ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से लड़की लग रहा है? अपने पापा के लिए तो वो बेटा ही था। अब कैसे बात करेगा वो पापा से? अचानक ही उसे खुद पर शर्म महसूस होने लगी। जिस साड़ी से वो बहुत खुश था वही साड़ी उसे अब एक जंजाल लगने लगी।



मम्मी जो ही मेरे हाथ मे फोन पकड़ाया, मेरी नजरे झुक गई। अपने पिता से ये साड़ी ये बिंदी ये ब्लॉउज़ और ये लिप्स्टिक अब कैसे छिपाता मै। और नजरे झुकाए हुए ही मैने सिर्फ इतना कहा, “पापा” 

 
“बेटा”, पापा की आवाज भी अपने बेटे को देख लड़खड़ा गई।


मैने सुबकते हुए ही कहा, “आई ऐम सॉरी पापा”

“अरे सॉरी किस लिए बेटा?”

“आपको मुझे इस तरह देखना जो पड़ रहा है। पापा मैं आगे से ये सब कुछ नहीं करूंगा। मैं आपका बेटा ही रहूँगा।”, मै अब भी सुबक रहा था।

“बेटा जरा मेरी ओर एक बार देखना।”

पापा के कहने पर आखिर मैने विडिओ की ओर देखा।

“बेटा पता है जब तुम्हारा जनम होने वाला था। तब तो हमको पता भी नहीं था कि हमारा बेटा पैदा होने वाला है या बेटी। पर मैंने तभी तुम्हारी मम्मी से कहा था कि हमारी जो भी संतान होगी मैं उसे हमेशा प्यार करूंगा। और बेटा, अब जो भी हो रहा है वो तुम्हारे या हमारे वश मे तो है नहीं। तुम दुखी क्यों होते हो? बस इतना याद रखना कि तुम्हारे पापा तुमसे हमेशा प्यार करते है। और जो भी होगा, तुम रहोगे तो हमारे बेटे ही न? अब रोना बंद करो और जरा मुस्कुराओ।”, पापा ने कहा।


और मै किसी तरह अपने आँसू पोंछ कर मुस्कुराने की कोशिश करने लगा।


पापा से बात करके मेरे दिल का बोझ भी उतर गया था।

“ऐसे क्या देख रही हो, मम्मी?”, मैने अपनी साड़ी मे लजाते हुए मम्मी से पूछा। मेरी नजरे कभी मम्मी के चेहरे को देखती तो कभी अपने हाथ मे पकड़े हुए पल्लू को जिसपर के फूलों के प्रिन्ट उसे लुभा रहे थे।

“कुछ नहीं, बस अपनी खूबसूरत बेटी को निहार रही हूँ। किसी की नजर न लगे मेरी बेटी को।”, मम्मी खिलखिलाकर बोली।

मम्मी तुम भी न कभी कभी इतनी ओल्ड फ़ैशनड हो जाती हो!”, 

“ठीक है। तू कहती है तो मैं थोड़ी मॉडर्न हो जाती हूँ। अब जरा इधर देख।”, मम्मी ने कहा और अपने हाथ मे पकड़े हुए फोन मे कैमरा ऑन कर मेरी फोटो खींचने की कोशिश करने लगी।

“मम्मी! ये क्या कर रही हो?”, मैने मम्मी के कैमरा के आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“अरे फ़ोटो ही तो खींच रही हूँ। तू जरा एक स्माइल तो करना।”, मम्मी बोली।


मुझे पोज करना नहीं आता मम्मी”, मैने कहा।

“अरे इतना भी मुश्किल नहीं है। तू एक बार कोशिश तो कर।”, मम्मी बोली।

 कहा, “रुक मैं बताती हूँ तुझे।”

“सबसे पहले तो अपने घुटनों को पास लेकर आ। लड़कियां घुटनों को यूं दूर दूर नहीं रखती।”, मम्मी ने कहा।

मैने भी कहे अनुसार अपने दोनों घुटनों को बेहद पास ले आया। इतने पास कि  जांघें आपस मे स्पर्श करने लगी। इतने पास कि पेन्टी के अंदर मेरा लिंग कुछ दब सा गया था। जांघों का स्पर्श उसके लिए एक नया अनुभव था।


 अक्सर मै सलवार या पेंट पहना होता था इसलिए हमेशा मेरी जांघों के बीच कोई कपड़ा हुआ करता था। पर आज  पेन्टी से नीचे उसके पैर पूरी तरह से पेटीकोट के अंदर खुले हुए थे। उस स्पर्श से मुझे लगा जैसे मै अपने ही शरीर से कितना अनजान था। अपनी ही चिकनी जांघें उसे छूआती हुई अच्छी लग रही थी। फिर मम्मी ने पास आकर  कमर की नीचे की प्लेटस को सुंदर तरीके से सजाया। 

“मम्मी इस पल्लू को कहाँ रखूँ?”, मुझको अब भी समझ नहीं आ रहा था कि अपने पल्लू का क्या करे।


इसे यूं सामने लाकर अपने हाथ से पकड़ लेना।”, मम्मी ने मेरी बांह के नीचे से पल्लू को सामने लाकर मेरी गोद मे रखा। अब पल्लू और साड़ी दोनों ही खूबसूरत लग रही थी।  पोज लगभग तैयार था।

बेटा क्यों न हम छत पर चलकर फोटो खींचे? वहाँ रोशनी अच्छी आएगी।”, मम्मी ने कहा।

“नहीं मम्मी वहाँ किसी ने मुझे देख लिया तो क्या करूंगी मैं?”,  पर मम्मी आज ऐसे कहाँ मानने वाली थी।

“तू चिंता क्यों करती है? कोई नहीं देखेगा तुझे। छत पर एक ओर जहां दीवार है न, हम वहाँ जाकर फोटो खींचेंगे।”, मम्मी ने अपनी बात से मुझे मानने के लिए मजबूर कर ही दिया।

 सीढ़ी पर पहुंचते ही मम्मी ने मुझे रोक और बोली, “देख सीढ़ी पर चढ़ते वक्त साड़ी पर थोड़ा ध्यान देना होता है। यदि ध्यान नहीं दोगी तो खुद ही अपनी साड़ी पर पैर रख दोगी और फिर या तो तुम गिर पड़ोगी या तुम्हारी साड़ी खुल जाएगी। इसलिए जरा ध्यान से मेरी ओर देखना कि कैसे चढ़ते है साड़ी पहन कर।”, मम्मी ने कहा। 


“सबसे पहले तो अपनी उंगलियों से यूं अपनी साड़ी की प्लेटस को ऐसे पकड़ते है और फिर उसे यूं इतना उठाओ कि साड़ी पर पैर पड़ने की संभावना न रहे।”, और फिर माँ बेटी सीढ़ी पर चढ़ने लगी।


 मैने देखा कि मेरा लंबा पल्लू सीढ़ियों से लग रहा है तो मैने अपनी मम्मी को चलते देखा कि वो कैसे अपने पल्लू को मैनेज कर रही है। मम्मी को देखकर मैने अपने दूसरे हाथ से अपने पल्लू को पीछे कमर और कूल्हों से होते हुए सामने अपनी नाभि के पास लाया और अपने हाथ मे उसे पकड़कर चढ़ने लगी।  एक औरत की भांति चलने मे मज़ा भी आ रहा था।


मेरी साड़ी के अंदर का पेटीकोट  कदमों को बड़े ही प्यार से रोकता भी था कि वो लड़कों की तरह लंबे लंबे कदम न ले सके सीढ़ी चढ़ते वक्त मेरी साड़ी  कूल्हों पर रगड़ खाती और  दिल मे कुछ गुदगुदी सी कर देती।  साड़ी तो साड़ी आज पुशअप ब्रा की वजह से मेरे स्तन भी बड़े लग रहे थे और जो रहरहकर मेरी बाँहों से रगड़ खाते और उसके स्त्रीत्व की भावना को और मजबूत करते। स्लीवलेस ब्लॉउज़ मे बाँहों मे ब्लॉउज़ की कटोरी मे मेरे स्तन छूआना मुझे बहुत लुभा रहा था। और फिर सीढ़ी चढ़ते वक्त जो उन्मे उछाल  महसूस करती तो अंदर ही अंदर खुद ही शर्मा जाती।


 दरवाजा खोलने के पहले मेरे अंदर एक डर आ गया था। यदि किसी ने उसे देख लिया तो  निश्चित मज़ाक उड़ाएगा। मम्मी ने मेरे चेहरे पर वो डर देख लिया था।

“अरे इतना घबरा क्यों रही है तू? मैं हूँ न तेरे साथ। मैं पहले देखकर आती हूँ कि छत पर हमें कोई देख तो नहीं सकेगा।”, मम्मी ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकालने लगी।  और अपनी दिशा बदलकर अब मेरे कंधे पर  साड़ी के साथ कुछ करने लगी।

“क्या कर रही हो मम्मी?”, मैने नर्वस होते हुए कहा।


“बस ये पिन खोल रही हूँ ताकि तेरा पल्लू खुला रहे मेरी साड़ी की तरह।”, मम्मी ने कहा।





“देख तू यूं ही चिंता कर रही थी। तुझे तो साड़ी संभालना अच्छे से आता है।”, मम्मी ने कहा और दरवाजे से छत पर चली गई। छत पर मम्मी ने इधर उधर देखा और जब सब कुछ साफ दिखाई दिया तो मम्मी ने संजु को छत पर आने का इशारा किया।




मम्मी की बात सुनकर मै मुस्कुरा दिया। 


 ठंडी ठंडी हवा अब मेरे ब्लॉउज़ से होकर  अंदर तक जा रही थी। अब तो मेरे उरोज़ों मे भी हल्की गुलाबी ठंड से रोंगटे खड़े हो रहे थे और मेरे निप्पल हल्के से फूलकर कड़े हो रहे थे। यह सब अनुभव मुझे ब्रा के अंदर  हो रहा था 

नोट: मेरी छत पर खींची हुई सभी तस्वीरें


[Image: IMG-20220822-212445.jpg]



[Image: IMG-20220822-212313.jpg]
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RE: मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth) - by Manu gupta - 22-08-2022, 09:29 PM



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