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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#64
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -12

बेहोशी का इलाज - दुर्गंध वाली चीज़



अब चीजें हद से पार और मेरे नियंत्रण से बाहर जा चुकी थीं. मेरा पूरा बदन जल रहा था और मेरी साँसें उखड़ गयी थीं. मुझे यकीन था की दीपू को मेरी टाँगें स्थिर रखने में मुश्किल हो रही होगी क्यूंकी उत्तेजना से वो अपनेआप अलग हो जा रही थीं. क्या उसे अंदाज हो गया होगा की मैं नाटक कर रही हूँ ? नहीं ऐसा नहीं था, क्यूंकी उसने ज़रूर कुछ कहा होता. मैंने अपने बदन को कम से कम हिलाने डुलाने की कोशिश की लेकिन मेरे चेहरे पर गोपालजी की भारी साँसों, उसके दातों का मेरे नरम होठों को काटना और मेरे मुँह में घूमती उसकी जीभ मुझे बहुत कामोत्तेजित कर दे रहे थे. मैं तकिया पे सर रखे बिस्तर पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में आँखें बंद किए लेटी थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पति के साथ मेरी कामक्रीड़ा चल रही है.

दीपू – जी , मैडम में कोई फ़र्क पड़ा ?

गोपालजी – हाँ …दीपू. ये हल्का हल्का रेस्पॉन्स दे रही है.

दीपू – मुझे भी इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

गोपालजी – लेकिन ये अभी पूरी तरह से होश में नहीं आई है.

गोपालजी जब बोल रहा था तो उसके होंठ मेरे होठों को छू रहे थे और इससे मुझे ऐसी सेक्सी फीलिंग आ रही थी की मैं बयान नहीं कर सकती. अब गोपालजी ने मेरे चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और मेरी चूचियों से अपने हाथ भी हटा लिए. गोपालजी ने ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को इतना मसला था की वो अब दर्द करने लगी थीं.

दीपू – जी , एक और उपाय है जो गांव में मैंने देखा है , कोई भी दुर्गंध वाली चीज़ सुंघाते थे.

दुर्गंध वाली चीज़ , क्या होगी मैं सोचने लगी लेकिन मैं अनुमान लगा ही नहीं सकती थी की उस चालाक बुड्ढे के मन में क्या है.

गोपालजी – आहा….ये तो बहुत बढ़िया उपाय है. ये मेरे दिमाग़ में पहले क्यूँ नहीं आया ?

अब मुझे ऐसा लगा की दीपू जो की मेरे पैरों के पास बैठा था अब खड़ा हो गया है.

दीपू – जी, मेरी मामी जब हल्का सा होश में आने लगती थी तो उसको कुछ सुंघाते थे.

गोपालजी – क्या सुंघाते थे ?

दीपू – कोई भी चीज़ जिससे तेज दुर्गंध आए. अक्सर चप्पल सुंघाते थे.

गोपालजी – अपनी चप्पल दो.

छी.. छी.. छी …..अब मुझे इसकी चप्पल सूंघनी होंगी. एक बार तो मेरा मन किया की नाटकबाजी छोड़कर उठ जाऊँ ताकि इसकी चप्पल ना सूंघनी पड़े लेकिन गोपालजी ने उठने का कोई इशारा नहीं किया था इसलिए मैं वैसे ही लेटी रही.

गोपालजी – चलो , ये भी करके देखते हैं.

वो दीपू की चप्पल को मेरी नाक के पास लाया. शुक्र था की उसने मेरी नाक से छुआया नहीं. मैंने बदबू सहन कर ली और आँखें नहीं खोली.

दीपू – जी, कुछ ऐसी चीज़ चाहिए जिससे दुर्गंध आए.

गोपालजी – मेरे पास एक उपाय है, पर वो शालीन नहीं लगेगा.

दीपू – क्या उपाय ?

गोपालजी – रहने दो.

दीपू – जी, अभी शालीनता की फिकर करने का समय नहीं है. मैडम को कैसे भी जल्दी से होश में लाना है.

गोपालजी – रूको फिर.

फिर मुझे कोई आवाज़ नहीं आई और मुझे उत्सुकता होने लगी की हो क्या रहा है. लेकिन आँखें बंद होने से मुझे कुछ पता नहीं लग पा रहा था. गोपालजी मुझे क्या सुंघाने वाला है ?

अचानक मुझे दीपू के हंसने की आवाज़ सुनाई दी.

दीपू – हा..हा..हा……ये सही सोचा आपने.

गोपालजी – मैं चार दिन से इस बनियान (बंडी) को पहने हूँ, इसलिए इसमें ……

वाक….जैसे ही गोपालजी अपनी बनियान को मेरी नाक के पास लाया उसकी बदबू से मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया. उससे पसीने की तेज बदबू आ रही थी पर मैंने आँखें नहीं खोली. लेकिन मैंने मन बना लिया की अब बहुत हो गया और अब जो भी चीज़ ये दोनों मुझे सुंघाएँगे मैं नाटक बंद कर होश में आ जाऊँगी.

दीपू – नहीं….इससे भी कुछ नहीं हुआ.

गोपालजी – एक बार देखो तो दरवाज़े पे कुण्डी लगी है ?

दीपू – जी क्यूँ ?

गोपालजी – जो कह रहा हूँ वो करो.

दीपू की तरह मेरे मन में भी ये सवाल आया की गोपालजी ऐसा क्यूँ कह रहा है लेकिन मैंने ये सोचा की अगर दरवाज़ा बंद है तो ये तो मेरे लिए अच्छा है वरना अगर कोई आ जाए तो सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में दो मर्दों के सामने ऐसे आँखें बंद किए हुए लेटी देखकर मेरे बारे में क्या सोचेगा . ये तो मेरे लिए बदनामी वाली बात होगी.

दीपू – जी दरवाज़े पे कुण्डी लगी है.

गोपालजी – ठीक है फिर. अब आखिरी उपाय है. लेकिन मुझे पूरा यकीन है की इसको सूँघकर मैडम होश में आ जाएगी.


कहानी जारी रहेगी
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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 22-08-2022, 02:30 AM



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