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Adultery मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth)
#5
क्यों? क्या परेशानी है इसमे?”

मम्मी.. तुम देख रही हो न! इसकी पीठ कितनी गहरी है। ऐसे ब्लॉउज़ को पहनने से अच्छा तो मैं ब्रा के साथ ही साड़ी पहन लेती हूँ।”, मैने कहा।

“छी, कैसी बातें करती है? हाँ ये ब्लॉउज़ थोड़ा मॉडर्न है। मैंने सोचा कि कम से कम एक ब्लॉउज़ तो थोड़ा फैशनेबल सिलूँ। मुझे क्या पता था कि तू वही साड़ी चुनेगी जिसके साथ का मैंने ये ब्लॉउज़ सिया था।”

“तो तभी तुम्हारे चेहरे पर वो खुशी थी। हाँ? मैं तभी जान गई थी कि जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है।”, मैने कहा, “मैं नहीं पहनूँगी ये ब्लॉउज़। मैं कोई दूसरी साड़ी पहन लूँगी।”


“बेटा तू ज्यादा ईमोशनल ड्रामा मत कर हाँ। जैसा बोल रही हूँ, मेरी बात मान ले। देखना अच्छी लगेगी तू इसमे।”, मम्मी हार नहीं मानने वाली थी।

“ठीक है। दो मुझे ब्लॉउज़।”, मम्मी के हाथ से ब्लॉउज़ लिया और खड़े होकर उसे पहनने लगा। “दुनिया मे शायद मैं अकेली हूँ जिसकी मम्मी उससे एक्सपोस करा रही है।”

बेटा यदि तुझे ड्रामा करना आता है तो मैं भी तेरी मम्मी हूँ। अब नखरे करना बंद कर।”

“ठीक है ठीक है।”, मैने ब्लॉउज़ के हुक लगाते हुए कहा। जब मम्मी ने इसके पहले कल उसे ब्लॉउज़ ट्राई कराया था तो उसमे बाँहें थी और थोड़ी ढीली भी थी। इस ब्लॉउज़ मे तो स्लीव भी नहीं थी और ऊपर से उसके स्तनों पर बेहद टाइट भी लग रहा था। टाइट न सही पर बिल्कुल चुस्त फिट आ रहा था। ये सब मेरी पुशअप ब्रा का कमाल था।


बेटा। सच कह रही हूँ। तू तो अभी से बहुत सुंदर लग रही है। बिल्कुल जैसे मैंने सोचा था। चल अब जरा इधर आ, मैं तुझे साड़ी पहना दूँ”

मम्मी कि बात सुन मै शर्मा गया या यूं कहे कि मै शर्मा गई। ब्रा, पेटीकोट और अब ब्लॉउज़ पहनकर अब मै शायद मन से भी लड़की बनने लगा था।

मम्मी ने मेरी चुनी हुई साड़ी को खोला तो मम्मी उसकी खूबसूरती को देखते ही रह गई। मैने इस साड़ी को पहले इस तरह से देखा नहीं था। मम्मी के पास आकर मैने साड़ी के कपड़े को छूकर देखा तो उसने महसूस किया कि ऐसा कपड़ा आजके पहले उसने कभी नहीं पहना था। कुछ तो खास बात थी उस साड़ी के स्पर्श मे। 


और फिर मम्मी ने साड़ी का एक छोर लेकर मेरे सामने ही घुटनों के बल खड़ी हो गई, अब मुझे साड़ी जो पहनानी थी। पहली साड़ी पहनने का पल जितना खूबसूरत एक बेटी के लिए होता है उतना ही खूबसूरत ये उसकी मम्मी के लिए भी होता है। 


मम्मी ने साड़ी का एक छोर पकड़ और मेरे की दाई ओर पेटीकोट के अंदर उसका एक हिस्सा डालकर वो मेरी कमर पर लपेटने लगी। धीरे धीरे अपनी उंगलियों से मेरी कमर मे साड़ी को पेटीकोट के अंदर डालती हुई मम्मी साड़ी को ऐसे करीने से लपेट रही थी कि साड़ी मे एक भी सिलवट न पड़े।


 साड़ी का निचला हिस्सा मेरे पैरों को छु रहा था। अपनी मम्मी को इतनी गंभीरता के साथ साड़ी पहनाते हुए देखकर मेरा दिल बहुत खुश हो रहा था। और ज्यों ज्यों साड़ी मेरे तन पर लिपटती जाती, मुझे एक कोमलता का एहसास होता।

 मम्मी ने अब साड़ी को मेरे कूल्हों पर लपेटकर अपने हाथों से उसकी सिलवटे दूर कर दी थी। यूं तो साड़ी हल्की थी पर फिर भी उसका भार अब मै महसूस कर रही थी। कितना अच्छा लग रहा था मुझे। अपने अंदर होने वाली खुशी को मै खुद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर एक कपड़े को पहनकर ऐसी खुशी क्यों महसूस हो रही है? शायद मै समझ रहा था कि साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है बल्कि नारीत्व का एक हिस्सा है जो उसके अंदर की नारी को जीवंत स्वरूप दे रहा था।


ब्लॉउज़ और साड़ी के बीच मेरी नाभि और कमर की खूबसूरती कई गुना बढ़ा चुकी थी। नाभि भी भला खूबसूरत लग सकती है? मैने तो सोचा तक नहीं था। पर आज जैसे मेरी नाभि दिख रही थी, उसकी खूबसूरती देखने लायक थी।


मम्मी ने साड़ी को लपेटते हुए मेरी नाभि के नीचे तक लाकर अब उठ खड़ी हुई। उन्होंने अब साड़ी के दूसरे लंबे छोर को पकड़ और उसमे कुछ मोड़ बनाती हुई एक बार फिर मेरी कमर से लपेटते हुए सामने लाकर ब्लॉउज़ पर से ले जाते हुए करीने से मेरे कंधे पर रखा। अब साड़ी का वो छोर मेरे कंधे से होते हुए पीछे से  घुटनों तक लटक रहा था। मम्मी ने थोड़ा पीछे होकर उस छोर की लंबाई को देखा। लंबाई से संतुष्ट होकर उन्होंने मेरी नाभि के नीचे फंसी हुई साड़ी को निकाल अपनी उंगलियों से वहाँ प्लेट बनाने लगी।


बेटा तुझे साड़ी पहनना सीखने मे थोड़ा समय लगेगा। पर जब तू सीख लेगी न, देखना तुझे बहुत अच्छा लगेगा। पर आज तू पहली बार साड़ी पहन रही है इसलिए मैं तुझे सीखा नहीं रही हूँ। पर फिर भी कुछ बातों का ध्यान रखना। साड़ी मे यहाँ कमर के नीचे यूं कम से कम ५ प्लेट बननी चाहिए। और ये देख रही है .. ? ये कंधे से लटका हुआ खुला छोर? इसको पल्लू कहते है और ये कम से कम घुटनों तक आना चाहिए।”

“मम्मी, मैं जानती हूँ पल्लू क्या होता है!”, मै हँसते हुए बोला।


फिर मम्मी ने कंधे पर रखे हुए पल्लू को पकड़ा और फिर उसे बड़े ही नजाकत से बराबर हिस्सों मे मोड़ने लगी। और फिर अपनी उंगलियों से उस पल्लू की लंबाई को बिल्कुल सीध मे खींचकर उन्होंने मेरे कंधे पर एक बार फिर रखा और फिर थोड़ा खींचकर उसकी लंबाई सही की। 


मैने पहली बार कुछ इस तरह पहना था जिसमे मेरी कमर खुली रहे।  साड़ी मेरे कंधों पर से होते हुए  नाभि के बिल्कुल करीब से जाती हुई बेहद सुंदर लग रही थी। और दूसरा हिस्सा मेरे स्तनों पर चढ़कर  ब्लॉउज़ को ढँक रहा था। साड़ी की खूबसूरती वाकई मे उसके पहनने के तरीके मे भी होती है। पुशअप ब्रा की वजह से मेरे  स्तन बड़े लग रहे थे और बड़े स्तनों पर  साड़ी और भी खिल रही थी। 


[Image: d7c5448d19c0058d47ec721f788393bb-indian-...gender.jpg]




माँ के चेहरे के भाव देखकर मुझे समझ आ गया था कि अब साड़ी पहनना हो चुका है। 


“अरे, अभी कहाँ? अभी तो तुझे गहने पहनाना है।”, मम्मी बोली। 

“हाँ ” फिर मम्मी २ कंगन दिए और कहा, “अच्छा अब जरा इन्हे पहन ले।”


 “रुक जरा। पहले ये मॉइस्चराइज़र हाथों पे लगा ले फिर कंगन आसानी से पहन सकेगी तू” और मम्मी ने  कलाई और हाथों पर मॉइस्चराइज़र लगाया और फिर मेरे हाथों को अपने हाथ मे लेकर उसे कुछ इस तरह से मोड़ा कि कंगन बेहद आसानी से मेरी कलाई मे चले गए। अपने दोनों हाथों मे कंगन को देखकर मेरी खुशी और बढ़ गई और चेहरे पर मुस्कान आ गई। 


“अब झुमके पहनने की बारी”, मम्मी चहकते हुए बोली। “पर मम्मी मेरे कानों मे तो छेद नहीं है।”, मैने कहा।

“तेरे कानों मे एक दिन छेद भी कर देंगे पर अभी तो मैंने ये खास झुमके लिए है जिसके लिए तुझे कानों मे छेद करने की जरूरत नहीं है।”, मम्मी ने कहा और मेरे कानों पर उन झुमकों को प्रेस करके पहना दिए। “मम्मी झुमकों को पहनकर मेरे कान भारी लग रहे है।”, मैने कहा। “बस कुछ समय की बात है, तुझे उनकी भी आदत हो जाएगी।”, मम्मी ने मेरे चेहरे को प्यार से अपने कोमल हाथों से छूकर कहा।

“मम्मी अब तो मैं तैयार हो गई हूँ न? अब मैं खुद को देख आऊँ?”, 

मम्मी मुस्कुराई और उस कमरे मे बिस्तर के एक किनारे बैठकर बोली, “बड़ी जल्दी है तुझे। मुझे एक बार तुझे पूरी तरह सजा तो लेने दे।”, मम्मी हंस पड़ी।


सुन .. तू यहाँ बिस्तर किनारे नीचे बैठ। मैं पहले तेरे बाल संवार दूँ। थोड़े बिखरे लग रहे है।”, मम्मी बोली।


मुझे साड़ी पहनकर बहुत खुशी हो रही थी। साड़ी संभालना या पहनना भले  मुश्किल हो पर उसकी खूबसूरती और उसके वजह से होने वाली खुशी की वजह मै जानता था । इतना प्यारा अनुभव तो मुझे कभी सलवार पहनकर नहीं हुआ था। क्योंकि मै अक्सर सलवार बिना दुपट्टे के पहनता था शायद इसलिए वो अनुभव नहीं कर सका था जो दुपट्टा मुझे करा सकता था। और फिर सलवार मे मेरी कमर यूं इस तरह खुली न होती थी और न ही मेरी पीठ इस तरह कभी खुली रहती थी। मेरे सलवार सचमुच बोरिंग थे।


मम्मी ने मेरे लंबे बालों को अपने हाथों मे लिया और फिर उन्हे कंघी से सँवारने लगी। बेटा, तेरे बाल सचमुच घने लंबे और सुंदर है। इतने घने बाल तो कभी मेरे भी न थे। इनको तू हमेशा संभालकर रखना और इन्हे कभी छोटा मत कराना। इतने लंबे बालों के साथ तो तेरे बालों मे कई तरह की स्टाइल भी की जा सकती है। अच्छा अब ये बात कि तुझे कैसे बाल रखना है?”


मैने कुछ देर सोचा पर मुझे हेयरस्टाइल का कोई अंदाज नहीं था। मै तो बस पोनीटेल और चोटी बनाना ही जानता था। “मम्मी तुम उन्हे ने खुला रख दो।”, मम्मी ने कुछ देर मेरे बालों को संवार और फिर उन लंबे बालों को सीधाकर मेरी पीठ पर छोड़ दिया। मेरे रेशमी बालों का स्पर्श मुझ को मेरी नंगी खुली पीठ पर महसूस हुआ। आज तो मुझे सब कुछ अच्छा लग रहा था।
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RE: मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth) - by Manu gupta - 21-08-2022, 09:17 PM



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