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Adultery मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth)
#2
मै शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ मेरी मम्मी मेरे साथ करती ही रहती थी. और फिर हम दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए । 


मैने और मम्मी ने बस अभी खाना खत्म ही किया था। रोज की तरह ही  मम्मी अपनी पसंद का टीवी सीरीअल देखने वाली थी। मुझे उनके सीरीअल इतने पसंद न आते थे। फिर भी अपनी मम्मी की खुशी के लिए वो उनके साथ बैठकर उन्हे देख लेता था। कभी कभी उन सीरीअल को देखकर मै सोचता था जैसे कि उन सीरीअल की दुनिया मे सिर्फ औरतें ही रह गई थी जो सब कुछ करती थी फिर चाहे वो घर संभालना हो या बिजनेस या फिर कोई साजिश करना। आदमी तो सिर्फ जैसे नाम के लिए होते थे। उनका कोई ज्यादा काम नहीं होता था। मेरी अपनी लाइफ भी टीवी की लाइफ से बहुत अलग नहीं थी। मै मम्मी के साथ रहता था वो भी लड़कियों की तरह। 


भले मुझ को टीवी सीरीअल इतने पसंद न थे, फिर भी मै उन्हे गौर से देखता था।  उनसे मै कुछ न कुछ सीखता था। शायद मुझे इन सब की कभी जरूरत न पड़े,
 पर यदि मै अपने एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम के लिए जो दवाइयाँ लेता था, उसने अपना असर न दिखाया तो मेरे पास एक औरत की तरह जीवन बीताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहेगा।



“काश ऐसा दिन कभी न आए जब उसे पूरी तरह से लड़की बन कर रहना पड़े।”, मै मन ही मन सोचता और भगवान से प्रार्थना करता। मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी पर इतना मुझे समझ आता था कि सोसाइटी मे औरत का जीवन कई संघर्षों से भर होता है।


बेटा, मेरे सीरीअल का समय हो रहा है। तू जाकर कपड़े बदल आ। मैं भी सीरीअल शुरू होने के पहले सारे बर्तन समेट कर आती हूँ “, मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान वापस वर्तमान मे आया।

मम्मी, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। कपड़े मैं बाद मे बदल लूँगा।”, मैने मम्मी से कहा।


“न.. मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ। कहो”, मम्मी ने मुझे लड़की की तरह कहने के लिए प्यार से कहा। “बेटा, तू यदि सही तरह से बोलने की प्रैक्टिस न करे तो तुझे आगे चलकर मुश्किल होगी न?”, मम्मी ने प्यार से समझाया। ये सब आखिर इसलिए तो हो रहा था ताकि यदि मुझे भविष्य मे लड़की बनना पड़े तो मुझे मुश्किलों का सामना न करना पड़े।

“अच्छा मम्मी, मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ।”, मैने थोड़ा अनमने मन से कहा।


नहीं, बर्तन तो मैं समेट लूँगी। तू जाकर कपड़े बदल ले। तुझे भी आराम लगेगा। “, मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा| 


अपने कमरे मे मैने जाकर अपनी अलमारी खोली। वहाँ २-३ मैक्सियाँ थी जिसमे से एक मैक्सी मैने पहनने के लिए निकाल ली। अपनी सलवार कुर्ती उतार कर कुछ देर तो मैने अपनी काया को देखा। एक तरफ तो मेरे स्तन उभर रहे थे और वहीं दूसरी तरफ मेरी पेन्टी के अंदर मेरे पुरुष लिंग मे भी उम्र के साथ कुछ बदलाव आ रहे थे। किसी भी किशोर किशोरी के लिए उसके तन मे आने वाले बदलाव कन्फ्यूज़ करने वाले होते है, पर मेरे लिए तो यह बदलाव और भी अजीब थे। मै लड़का हू या लड़की ये तो मै खुद नहीं समझ पाता था।


इससे पहले कि मै  अपनी स्थिति को सोचकर और परेशान होता, मैने झट से मैक्सी पहन ली। वो कॉटन की सॉफ्ट सी मैक्सी थी। चाहे जो भी हो, मुझे मैक्सी पहनकर कंफरटेबल महसूस होता था। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे,  मैक्सी मे मुझे सीने के पास और कसाव महसूस होने लगा था। आखिर मेरे स्तन जो धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। 


कभी कभी तो मुझे अपने बढ़ते स्तनों को देखकर गुस्सा आता था, पर कभी कभी मुझे ये भी लगता था कि काश मेरे स्तन मम्मी की तरह बड़े और भरे हुए होते। फिर भी वो इतने छोटे भी न थे कि कोई भी अनदेखा कर सके। मै अपने स्तनों का वजन  ब्रा और कंधों पर महसूस कर सकता था। और यदि किसी दिन मै ब्रा न पेहनु तो मेरी पीठ मे दर्द भी होने लगता था।



मैक्सी पहनकर जब मै चलता तो कमर के नीचे जो खुलापन  महसूस होता, वो मुझे अच्छा लगता था। मैक्सी की कोमलता मुझे लुभाती थी। अजीब सा दवन्द था मेरे मन मे भी। मुझे लगता था कि मैक्सी इतनी कंफरटेबल है कि लड़का हो या लड़की, हर किसी को मैक्सी पहनकर ही सोना चाहिए। खैर, अब तक मम्मी ने टीवी चालू कर दिया था तो मै भी चलकर अपनी मम्मी के पास आकर सोफ़े मे उनके बगल मे बैठ गया।
फिर भी यूं ही हँसते खेलते कब उस सीरीअल को देखते हुए आधा घंटा बीत गया, हम दोनों को पता ही नहीं चला। 


स्कूल से आने के बाद मेरा और मम्मी के बीच का रिश्ता कब माँ-बेटे से माँ-बेटी के रिश्ते मे बदल जाता था पता ही नहीं चलता था। रोज स्कूल जाने से पहले मै एक लड़के की तरह ही शुरुआत करता पर फिर धीरे धीरे रात होते तक लड़की के रूप मे पूरी तरह ढलने लगता। और इस वक्त मेरे लिए जितना संभव था, अपनी मम्मी की बेटी ही था।

अच्छा चल बेटा। अब रात हो गई है। तू जाकर अब सो जा। सुबह ६ बजे स्कूल के लिए उठना भी तो है।”, मम्मी ने गंभीर होते हुए कहा।

“ठीक है मम्मी।  गुड नाइट “


“अच्छा एक बात सुन.. चाहे तो चोटी खोलकर जूड़ा बनाकर सो जाना। और सोने के पहले दांतों को ब्रश करने के बाद, अपनी ब्रा उतारना मत भूलना”,  रात को लड़कियों को ब्रा उतारकर ही सोना चाहिए। दिन मे स्तनों को सपोर्ट चाहिए होता है पर रात को उन्हे खुला रखना स्तनों के आराम के लिए जरूरी है। अब ये बात एक मम्मी अपनी बेटी को नहीं सिखाएगी तो कौन सिखाएगा उसे?”, 


मम्मी ने ऐसे कहा जैसे ये कोई मामूली बात हो। मगर मेरे लिए ये बात मामूली कहाँ थी? एक लड़की की तरह हँसना, बाते करना और एक बेटी की तरह व्यवहार करना फिर भी थोड़ा आसान है। मगर शरीर मे आने वाला ये बदलाव मेरे लिए वास्तविकता थी जो उसे इस सच से वाकिफ कराता था कि मै शायद एक दिन पूरी तरह से लड़की ना बन जाए। इस सच को मै अनदेखा करना चाहता था मगर मेरे स्तन हर पल मुझे आभास कराते थे।

मम्मी
की कही हुई बात से मेरा मन विचलित हो गया था। फिर भी किसी तरह मै नजरे झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ चला था।


वही दूसरी ओर, मै अपने कमरे मे अपनी ब्रा उतारने के बाद अपनी मैक्सी पहने हुए सो गया। अपने पैरों को घुटनों के पास मोड़कर खुद को मैक्सी की गर्माहट मे खुद को ढाँढ़स बँधाते हुए इस सपने के साथ कि शायद एक दिन जब सो कर जागू तब सब कुछ ठीक हो चुका होगा, मेरी मुश्किलें खत्म हो जाएगी और मुझे एक दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि मै लड़का हू या लड़की।



जारी है।
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RE: मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth) - by Manu gupta - 19-08-2022, 01:20 PM



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