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Adultery आखिर ससुरजी घुस ही गए मेरी चुत में
#5
किताब छुपा कर मेने कहा : हाँ, कहानियाँ की किताब है रात आप से कहूँगी.ख़ुश हो कर वो चला गया. कितना भोला था ? उस की जगह दूसरा होता तो मुज़े छेड़े बैना नहीं जाता. दो दिन दरमियान मेने देखा की लोग प्रदीप की हाँसी उड़ा रहे थे. कोई कोई भाभी कहती : देवर्जी, देवरानी ले आए हो तो उन से क्या करोगे ? उन के दोस्त कहते थे : भाभी गरम हो जाय और तेरी समाज में ना आय तब मुज़े बुला लेना. एक ने तो सीधा पूछा : प्रदीप, चूत कहाँ होती है वो पता है ? मुज़े उन लोगों की मज़ाक पसंद ना आई. अब में मेरे ससुरजी के दिल का दर्द समाज सकी. मुज़े उन दोनो पैर तरस भी आया. मैने निर्धार किया की मैं बाज़ी अपने हाथ ले लूंगी और सब की ज़ुबान बंद करवा दूँगी, चाहे मुज़े जो कुछ भी करना पड़ेतीसरी रात सुहाग रात थी. मेरी उमर की दो काज़ीन ननदो ने मुझे सजाया सँवारा और शयन कमरे में छोड़ दिया. दुसरी एक चाची प्रदीप को ले आई और दरवाज़ा बंद कर के चली गयी में घुमटा तान कर पलंग पर बैठी थी. घुँघट हटाने के बदले प्रदीप ने नीचे झुक कर झाँखने लगा. वो बोला : देख लिया, मैने देख लिया. तुम को मैने देख लिया. चलो अब मेरी बारी, मे छुप जाता हूँ तुम मुझे ढूँढ निकालो.छोटे बच्चे की तरह वो चुपा छुपी का खेल खेलना चाहता था. मुझे लगा की मुझे ही लीड लेनी पड़ेगी. घुँघट हटा कर मेने पूछा : पहले ये बताओ की मैं तुम्हे पसंद हूँ या नहीं. प्रदीप शरमा कर बोला : बहुत पसंद हो. मुहे कहानियाँ सुनाएगी ना ? में : ज़रूर सुना उंगी. लेकिन थोड़ी देर मुझ से बातें करो. प्रदीप : कौन सी कहानी सुनाएगी ? वो किताब वाली जो तुम पढ़ रही थी वो? में : हाँ, अब ये बताओ की में तुमारी कौन हूँ प्रदीप : वाह, इतना नहीं जानती हो ? तू मेरी पत्नी हो और में तेरा पतिमें : पति पत्नी आपस में मिल कर क्या करते हें ? प्रदीप : में जनता हूँ लेकिन बता उंगा नहीं. में :क्यूं ? प्रदीप : वो जो सुलेमान है नाकहता है की पति पत्नी गंदा करते हें. मैने पूछा नहीं की सुलेमान कौन था, मैं बोली : गंदा माइने क्या ? नाम तो कहो, में भी जानू तो प्रदीप : चोदते हें. लंबा मुँह कर के में बोली : अच्छा ? बीन बोले उस ने सिर हिला कर हा कही. गंभीर मुँह से फिर मेने पूछा : लेकिन ये चोदना क्या होता है ? प्रदीप : सुलेमान ने कभी मुज़े ये नहीं बताया. शरमा ने का दिखावा कर के मेने कहा : में जानती हूँ कहूँ ? प्रदीप : हाँ, हाँ. कहो तोउस रात प्रदीप ने बताया की कभी कभी उस का लंड खड़ा होता था. कभी कभी स्वप्न दोष भी होता था. रसिकलाल सच कहते थे, उन्हों ने प्रदीप का खड़ा लंड देखा होगा. मेने आगे बातें चलाई : ये कहो, मुझ में सब से अच्छा क्या लगता है तुम्हे ? मेरा चहेरा ? मेरे हाथ ? मेरे पाँव ? मेरे ये..? मेने उन का हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया. प्रदीप : कहूँ ? तेरे गाल. में : मुझे पप्पी दोगे ?प्रदीप : क्यूं नहीं ? उस ने मेरे गाल पैर किस की. मेने उस के गाल पैर की. उनके लिए ये खेल था. मैने जैसा मुँह से मुँह लगाया की उस ने झटके से छुड़ा लिया और बोला : छी छी, ऐसा गंदा क्यूं करती हो ? में : गंदा सही, तुम्हे मीठा नहीं लगता ? प्रदीप : फिर से करो तो. मैने फिर मुँह से मुँह लगा कर किस किया.प्रदीप : अच्छा लगता है करो ना ऐसी पप्पी. मैने किस करने दिया. मैने मुँह खोल कर उस के होठ चाटे तब फिर वो ही सिलसिला दोहराया. मेने पूछा : प्यारे, पप्पी करते करते तुम को ओर कुछ होता है ? प्रदीप शरमा कर कुछ बोला नहीं. मैने पूछा : नीचे पिसब की जगह में कुछ होता है ना ?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: आखिर ससुरजी घुस ही गए मेरी चुत में - by neerathemall - 18-08-2022, 04:46 PM



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