16-08-2022, 05:09 PM
और मैं उसके साथ आज्ञाकारी बच्चे की तरह चल पड़ा। मेरी पहली बार नीयत बिगड़ने लगी। हम कभी साथ में चलते तो मैं कभी उसके पीछे होकर उसे निहारता। बला की खूबसुरत लग रही थी वो, आगे से भी और पीछे से भी।
मेरी नीयत उसे पकड़ कर चूमने की होने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा ही था तो वो बोल पड़ी- मनोज, ऐसा ना करो, हाथ छोड़ो।
मैंने उसे देखा और उसका हाथ छोड़ दिया, सोचने लगा कि इसे क्या काम आ गया है जो इसने मुझे यहाँ बुलाया है।
उसके ऐसा कहने से मेरा मूड खराब हो चुका था, फिर भी मैं उसके साथ जा रहा था। हम दरभंगा-हाऊस के अन्दर गये तो मैं यह देखकर काफ़ी हर्षित हुआ। यह गंगा नदी के किनारे है और बगल में काली मन्दिर भी है। मुझे नदी किनारे बैठना बहुत पसन्द था और अभी भी पसन्द है।
तो पूनम ने वहाँ एक कोने का जगह देखी और हम वहाँ बैठ गये। हम कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे लेकिन एक-दूसरे को नहीं देख रहे थे।थोड़ी देर बाद मैंने ही बोलना शुरू किया और पूछा- क्या बात है पूनम, मुझे यहा क्यों बुलाया है?
उसने कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही मन नहीं लग रहा था, तो मैंने सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ। क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?
मैंने कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं है, लेकिन मैं चिन्तित हो गया था कि क्या हो गया भला।
"मेरा मन आज कुछ उचाट हो रहा था, तो सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा हैं कि तुम्हें अच्छा नहीं लगा, तो चलो, हम यहाँ से चलते हैं !"
"अरे कहा ना, ऐसी कोई बात नहीं है।"
"पक्की बात?" उसने पूछा।
"हाँ सच कह रहा हूँ।" और मैं मुस्कुरा दिया।
वो मुझसे उसके घर के बारे बात करने लगी। बात-बात में उसने बताया कि उसकी छोटी बहन की मौत उसकी वज़ह से हुई, और कह कर रोने लगी क्योंकि आज उसकी छोटी बहन का जन्मदिन था और इसीलिये वो मिलना मुझसे चाहती थी।
मैंने डरते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, हल्के से दबाया और कहा- ऐसा मत करो पूनम, तुम्हारी बहन को दुख होगा। और जिसका समय हो जाता है उसे जाना ही पड़ता है ना ! दुखी होने से गया हुआ वापिस नहीं आता ! तुम खुश रहोगी तो उसकी आत्मा को भी सुकून मिलेगा।
और उसे मैंने अपने तरफ़ हौले से खींचा, उसने अपना सर मेरे कन्धे पर रख दिया और उसने अपनी आँखें बन्द कर ली।
मैं धीरे-धीरे उसके कन्धे और उसके बांह को सहलाने लगा। वो अभी भी रो रही थी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछने लगा, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी।
वो अभी बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके कपोल सुर्ख हो गये थे, उसके होंठ पतले थे। मैंने पहली बार उसका चेहरा इतने करीब से देखा था। मन हो रहा था कि मैं उसके होठों को चूम लूँ पर डर भी लग रहा था।
मैं वैसे ही उसका चेहरा पकड़े रहा तो उसने अपनी आँखें खोली और पूछने लगी- ऐसे क्या देख रहे हो?
"बहुत खूबसूरत लग रही हो पूनम तुम !" मैंने बोला।
"हम्म, क्यों झूठ बोल रहे हो ! मैं और सुन्दर?" वो बोली।
"अरे नहीं, मैं सच बोल रहा हूँ !" मैंने कहा।
और मैंने अपना सिर उसके सिर से सटा दिया। हमारी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगी। मैं उसकी साँसों की खुशबू में खोने लगा। हम दोनों की आँखें बन्द होने लगी।
फ़िर मैंने अपनी आँखें खोली तो उसने भी अपनी आँखें खोल ली और हमने एक-दूसरे को देखा, फ़िर मैंने उसके कन्धों को पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। हमारी आँखें एक-दूसरे को देख रही थी। उसने फ़िर अपनी आँखें बन्द कर ली और मैं उसके लबों को चूमने लगा, थोड़ी देर में वो भी मेरा साथ देने लगी और मेरे होठों को चूसने लगी।
मैं अब उसको अपनी बाँहों में भींचने लगा। उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। हम एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे।
तभी एक पत्थर हमारे आगे आकर गिरा तो हमे होश आया कि हम किसी सार्वजनिक स्थल पर बैठे हुए हैं।
मेरी नीयत उसे पकड़ कर चूमने की होने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा ही था तो वो बोल पड़ी- मनोज, ऐसा ना करो, हाथ छोड़ो।
मैंने उसे देखा और उसका हाथ छोड़ दिया, सोचने लगा कि इसे क्या काम आ गया है जो इसने मुझे यहाँ बुलाया है।
उसके ऐसा कहने से मेरा मूड खराब हो चुका था, फिर भी मैं उसके साथ जा रहा था। हम दरभंगा-हाऊस के अन्दर गये तो मैं यह देखकर काफ़ी हर्षित हुआ। यह गंगा नदी के किनारे है और बगल में काली मन्दिर भी है। मुझे नदी किनारे बैठना बहुत पसन्द था और अभी भी पसन्द है।
तो पूनम ने वहाँ एक कोने का जगह देखी और हम वहाँ बैठ गये। हम कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे लेकिन एक-दूसरे को नहीं देख रहे थे।थोड़ी देर बाद मैंने ही बोलना शुरू किया और पूछा- क्या बात है पूनम, मुझे यहा क्यों बुलाया है?
उसने कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही मन नहीं लग रहा था, तो मैंने सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ। क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?
मैंने कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं है, लेकिन मैं चिन्तित हो गया था कि क्या हो गया भला।
"मेरा मन आज कुछ उचाट हो रहा था, तो सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा हैं कि तुम्हें अच्छा नहीं लगा, तो चलो, हम यहाँ से चलते हैं !"
"अरे कहा ना, ऐसी कोई बात नहीं है।"
"पक्की बात?" उसने पूछा।
"हाँ सच कह रहा हूँ।" और मैं मुस्कुरा दिया।
वो मुझसे उसके घर के बारे बात करने लगी। बात-बात में उसने बताया कि उसकी छोटी बहन की मौत उसकी वज़ह से हुई, और कह कर रोने लगी क्योंकि आज उसकी छोटी बहन का जन्मदिन था और इसीलिये वो मिलना मुझसे चाहती थी।
मैंने डरते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, हल्के से दबाया और कहा- ऐसा मत करो पूनम, तुम्हारी बहन को दुख होगा। और जिसका समय हो जाता है उसे जाना ही पड़ता है ना ! दुखी होने से गया हुआ वापिस नहीं आता ! तुम खुश रहोगी तो उसकी आत्मा को भी सुकून मिलेगा।
और उसे मैंने अपने तरफ़ हौले से खींचा, उसने अपना सर मेरे कन्धे पर रख दिया और उसने अपनी आँखें बन्द कर ली।
मैं धीरे-धीरे उसके कन्धे और उसके बांह को सहलाने लगा। वो अभी भी रो रही थी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछने लगा, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी।
वो अभी बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके कपोल सुर्ख हो गये थे, उसके होंठ पतले थे। मैंने पहली बार उसका चेहरा इतने करीब से देखा था। मन हो रहा था कि मैं उसके होठों को चूम लूँ पर डर भी लग रहा था।
मैं वैसे ही उसका चेहरा पकड़े रहा तो उसने अपनी आँखें खोली और पूछने लगी- ऐसे क्या देख रहे हो?
"बहुत खूबसूरत लग रही हो पूनम तुम !" मैंने बोला।
"हम्म, क्यों झूठ बोल रहे हो ! मैं और सुन्दर?" वो बोली।
"अरे नहीं, मैं सच बोल रहा हूँ !" मैंने कहा।
और मैंने अपना सिर उसके सिर से सटा दिया। हमारी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगी। मैं उसकी साँसों की खुशबू में खोने लगा। हम दोनों की आँखें बन्द होने लगी।
फ़िर मैंने अपनी आँखें खोली तो उसने भी अपनी आँखें खोल ली और हमने एक-दूसरे को देखा, फ़िर मैंने उसके कन्धों को पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। हमारी आँखें एक-दूसरे को देख रही थी। उसने फ़िर अपनी आँखें बन्द कर ली और मैं उसके लबों को चूमने लगा, थोड़ी देर में वो भी मेरा साथ देने लगी और मेरे होठों को चूसने लगी।
मैं अब उसको अपनी बाँहों में भींचने लगा। उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। हम एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे।
तभी एक पत्थर हमारे आगे आकर गिरा तो हमे होश आया कि हम किसी सार्वजनिक स्थल पर बैठे हुए हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.