16-08-2022, 05:09 PM
बात उस समय की है जब मैं पटना में रह कर इन्जिनीयरिंग की तैयारी कर रहा था, तब मेरी उम्र करीब 19 साल थी। मैंने जरूरत के हिसाब से सारे ट्यूशन लेने शुरु कर लिये थे। मेरी अंग्रेजी थोड़ी कमजोर थी, तो मैं अंग्रेजी के लिए भी ट्यूशन पढ़ता था।
वहाँ मेरी मुलाकात बहुत लड़के-लड़कियों से हुई। मेरी अंग्रेजी भी सुधरने लगी। मेरी मुलाकात वहाँ पूनम से हुई। पूनम देखने में साधारण सी लम्बी सी पतली सी लड़की थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मुझे उसकी सादगी बहुत पसन्द आई। पहली ही मुलाकात में मैं उसे चाहने लगा था। मैंने उससे बात करने की ठानी।
उस दिन हमारा भाषण यानि speech की क्लास थी, सो मैंने उसे स्टेज पर आमन्त्रित किया। वो शायद स्टेज पर नहीं आना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे फिर भी बुला लिया।
उसने स्टेज पर जाकर अपना भाषण खत्म किया। उसने काफ़ी अच्छा भाषण दिया।
जब हमारी क्लास खत्म हुई, तो मैंने उससे पूछा- तुम जाना क्यो नहीं चाहती थी?
वो बोली- मुझे घबराहट हो रही थी।
मैंने उससे मुस्कुराते हुए फिर पूछा- अब तो नहीं हो रही ना घबराहट?
तो उसने मुस्कुराते हुए ही बोला- नहीं !
मैंने बोला- बहुत अच्छा !
और हम चले गये।
पूनम के बारे में बता दूँ, तो वो 18 साल की साधारण सी दिखने वाली लड़की थी, असल में वो काफ़ी सुन्दर थी, पढ़ाई में भी अच्छी थी। उसके साथ कुछ भी गलत करने का मन नहीं कर सकता था।
मेरा मन उससे दोस्ती करने का हुआ तो मैंने उससे कहा- पूनम, मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।
तो उसने कहा- ठीक है।
उसके बाद से हम हमेशा साथ में ही बैठते थे। तो दोस्तो के ताने आने शुरु हो गये कि कभी तो हमारे साथ भी समय गुजारो। पर हम दोनों ने इस बात पर गौर नहीं किया। हम अंग्रेजी की क्लास के बाद ख़ुदाबक्श लाईब्रेरी जाते थे, साथ में पढ़ाई करने के लिए। हमारी दोस्ती धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। हम अब ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताने लगे।
ऐसे ही तीन महीने बीत गये, मुझे अब लग रहा था कि मैं उससे प्यार करने लगा था। पर मैं सही समय का इंतजार करने लगा उससे अपने मन की बात बोलने के लिए।
मैंने बात करने के लिये उसे अपने हॉस्टल के नज़दीक के PCO का नम्बर दे दिया था।
एक दिन उसने खुद से मुझे फ़ोन किया और कहा- मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ।
मैंने कहा- हाँ, तो ठीक है, हम क्लास में मिलते हैं ना।
तो उसने कहा- नहीं, क्लास में नहीं, कहीं और ! तुम दरभंगा हाऊस आ सकते हो?
मैंने बोला- दरभंगा हाऊस? यह कहाँ है?
"तुम्हें नहीं पता?"
"नहीं !"
"एक काम करो, लाईब्रेरी के पास आ जाओ, हम वहीं से चलते हैं।"
मैंने कहा- ओ के, ठीक है, मैं आता हूँ।
मैं तैयार होकर वहाँ के लिए निकला। मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि वो अभी तक नहीं आई है। मैंने थोड़ा इंतजार किया, थोड़ा और किया, अब मुझे गुस्सा आने लगा, अभी कुछ बोलने ही वाला था कि वो मुझे दिखी। मेरा दिल धक से रह गया। वो काले रंग के सूट में थी और क्या बताऊँ वो किसी हुस्नपरी से कम नहीं लग रही थी।
इत्तेफ़ाक से मैंने पर्पल शर्ट, ब्ल्यू जीन्स के साथ पहना था।
वो मुस्कुराते हुये आई और बोली- काफ़ी देर से खड़े हो क्या?
मैंने झूठ बोल दिया- अरे नहीं, मैं भी बस अभी अभी आया हूँ।
वो बोली- चलो।
वहाँ मेरी मुलाकात बहुत लड़के-लड़कियों से हुई। मेरी अंग्रेजी भी सुधरने लगी। मेरी मुलाकात वहाँ पूनम से हुई। पूनम देखने में साधारण सी लम्बी सी पतली सी लड़की थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मुझे उसकी सादगी बहुत पसन्द आई। पहली ही मुलाकात में मैं उसे चाहने लगा था। मैंने उससे बात करने की ठानी।
उस दिन हमारा भाषण यानि speech की क्लास थी, सो मैंने उसे स्टेज पर आमन्त्रित किया। वो शायद स्टेज पर नहीं आना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे फिर भी बुला लिया।
उसने स्टेज पर जाकर अपना भाषण खत्म किया। उसने काफ़ी अच्छा भाषण दिया।
जब हमारी क्लास खत्म हुई, तो मैंने उससे पूछा- तुम जाना क्यो नहीं चाहती थी?
वो बोली- मुझे घबराहट हो रही थी।
मैंने उससे मुस्कुराते हुए फिर पूछा- अब तो नहीं हो रही ना घबराहट?
तो उसने मुस्कुराते हुए ही बोला- नहीं !
मैंने बोला- बहुत अच्छा !
और हम चले गये।
पूनम के बारे में बता दूँ, तो वो 18 साल की साधारण सी दिखने वाली लड़की थी, असल में वो काफ़ी सुन्दर थी, पढ़ाई में भी अच्छी थी। उसके साथ कुछ भी गलत करने का मन नहीं कर सकता था।
मेरा मन उससे दोस्ती करने का हुआ तो मैंने उससे कहा- पूनम, मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।
तो उसने कहा- ठीक है।
उसके बाद से हम हमेशा साथ में ही बैठते थे। तो दोस्तो के ताने आने शुरु हो गये कि कभी तो हमारे साथ भी समय गुजारो। पर हम दोनों ने इस बात पर गौर नहीं किया। हम अंग्रेजी की क्लास के बाद ख़ुदाबक्श लाईब्रेरी जाते थे, साथ में पढ़ाई करने के लिए। हमारी दोस्ती धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। हम अब ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताने लगे।
ऐसे ही तीन महीने बीत गये, मुझे अब लग रहा था कि मैं उससे प्यार करने लगा था। पर मैं सही समय का इंतजार करने लगा उससे अपने मन की बात बोलने के लिए।
मैंने बात करने के लिये उसे अपने हॉस्टल के नज़दीक के PCO का नम्बर दे दिया था।
एक दिन उसने खुद से मुझे फ़ोन किया और कहा- मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ।
मैंने कहा- हाँ, तो ठीक है, हम क्लास में मिलते हैं ना।
तो उसने कहा- नहीं, क्लास में नहीं, कहीं और ! तुम दरभंगा हाऊस आ सकते हो?
मैंने बोला- दरभंगा हाऊस? यह कहाँ है?
"तुम्हें नहीं पता?"
"नहीं !"
"एक काम करो, लाईब्रेरी के पास आ जाओ, हम वहीं से चलते हैं।"
मैंने कहा- ओ के, ठीक है, मैं आता हूँ।
मैं तैयार होकर वहाँ के लिए निकला। मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि वो अभी तक नहीं आई है। मैंने थोड़ा इंतजार किया, थोड़ा और किया, अब मुझे गुस्सा आने लगा, अभी कुछ बोलने ही वाला था कि वो मुझे दिखी। मेरा दिल धक से रह गया। वो काले रंग के सूट में थी और क्या बताऊँ वो किसी हुस्नपरी से कम नहीं लग रही थी।
इत्तेफ़ाक से मैंने पर्पल शर्ट, ब्ल्यू जीन्स के साथ पहना था।
वो मुस्कुराते हुये आई और बोली- काफ़ी देर से खड़े हो क्या?
मैंने झूठ बोल दिया- अरे नहीं, मैं भी बस अभी अभी आया हूँ।
वो बोली- चलो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.