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Adultery मैं इधर उधर भी मुंह मार लेती हूं
#5
( वो मेरी बुर में लन्ड घुसाने लगा ) जब तक हूं हर रात बारह बजे दरवाजा खोल दूंगी फिर दो घंटे मजे देकर चले जाना ” और हरीश का मुसल लन्ड मेरी बुर में गपागप अंदर बाहर होने लगा तो मैं चूतड हिलाना शुरू की, जानती थी की इस देहाती का लन्ड इतनी जल्दी बुर में रस नही झाड़ेगा इसलिए तेजी से चूतड हिलाते हुए चुदाने लगी और हरीश पूरे गति से बुर चोदने में मस्त था ” उह उई आह आह ओह और तेज चोद चोद मुझे मैं तो साली रण्डी बन गई ” और हरीश का लौड़ा तो मेरे कोमल जननांग को धक्का दे देकर मस्त कर रहा था, मैं अपनी बुर की चिकनाहट से खुश थी कारण की साले का गधा सा लन्ड तेजी से बुर में दौड़ रहा था और वो मेरे सीने से लगे बूब्स को पकड़ दबाए जा रहा था तो मैं चूतड हिला हिलाकर अब थकान महसूस करने लगी ” हरिश अब जरा रुको ” वो लन्ड बुर से निकाल लिया तो मैं अब बेड पर लेट गई और हरीश मेरे जांघो को फैलाकर लन्ड बुर में घुसाने लगा, बुर तो फैल चुकीं थीं लेकिन इसका ९ इंच लंबा लन्ड बुर में पूरी तरह समा नहीं रहा था फिर भी चूतड ऊपर नीचे कर चुदाने लगी और हरीश अब मेरे ऊपर लेटकर गाल चूम लिया ” आप बहुत्त सेक्सी हैं
( मैं उसके कमर पर हाथ रख चूतड उछालने लगी ) फिर भी मेरे पति मुझ पर ध्यान नहीं देते ” और बुर की गर्मी के कारण उसका लन्ड चुभने लगा तो पिछले ८-९ मिनट से चुदाई जारी थी तो उसको अपने ऊपर लिटाकर चूतड उछाल उछाल कर चुदाने में मस्त थी और मेरी मुंह से सेक्सी आवाजें ” आह उह उई और तेज बस करो झड़ जाओ ना मेरी बुर को शांत कर दो
( हरीश मेरे गाल चूम लिया ) जरूर दीपा रानी मेरा लन्ड भी अब सुस्त पड़ने वाला है ” और मैं चूतड स्थिर कर चुदाने लगी तो उसके छाती से मेरी कोमल बूब्स रगड़ खा रही थी, उसका लन्ड पूरी तरह से टाईट और गर्म था, पता नही इस साले का लौड़ा कब झड़ेगा और हरिश अब चोदता हुआ हांफने लगा ” दीपा चूतड उछाल ना मेरा रस निकलने पर है ” और मैं चूतड उछालने लगी, उसके लन्ड से वीर्य का फव्वारा निकल पड़ा तो मेरी बुर वीर्य से लबालब भर गई, कुछ देर वो मेरे ऊपर लेटा रहा तो मैं उसके गाल चूम ली ” अब रात को लेकिन कंडोम खरीद लेना ” फिर वो उठा और लुंगी पहन कमरे से चला गया तो मैं वाशरूम घुसी फिर अपने बुर को साफ की और स्नान कर साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट पहन लेट गई, कुछ देर बाद सासू मां ससुर जी और बेटा वापस आया फिर दिन सबके साथ बातें करने में गुजर गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: मैं इधर उधर भी मुंह मार लेती हूं - by neerathemall - 16-08-2022, 03:06 PM



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