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Adultery मैं इधर उधर भी मुंह मार लेती हूं
#2
मैं २८ वर्ष की शादीशुदा महिला हूं और मेरा बेटा पांच साल का हो चुका है तो भी उसके पीछे काफी समय देना होता है और पहले की तरह जिंदगी जीना अब संभव ही नहीं की पति के ऑफिस जाते ही शॉपिंग के लिए निकल जाऊं या अपने लवर्स के साथ शारीरिक संबंध बनाऊं फिर भी मौका निकालकर मजे ले लेती हूं लेकिन मेरे हब्बी का मेरे में दिलचस्पी कम हो चुकी है और वो अब महीने में दो तीन बार ही मेरे साथ सेक्स करते हैं लेकिन मैं इधर उधर भी मुंह मार लेती हूं तो बदन की आग शांत रहती है। ये बात कुछ महीने पहले की है जब मुझे पति के साथ ससुराल जाना पड़ा, इटावा शहर में ही मेरे सास और ससुर जी रहते थे तो कभी कभार ही वहां जाना होता था, मैं तो पहले की तरह ना अपने बदन को फिट रख सकी और ना ही गुप्तांग शेप में रहे, संभव था, मेरे बूब्स की साईज बड़ी हो चुकी थी तो उस पर ४० सी साईज की ब्रा लगाकर ही उसे संभालती हूं, बदन थोड़ा मांसल तो चूतड गोल और गुंबदाकार लेकिन करती भी क्या आखिर पिछले ७ साल से शारीरिक संबंध बना रही थी। हम सब इटावा सुबह सुबह पहुंचे फिर घर जाकर फ्रेश हुए और मैं चाय पीकर आराम करने लगी तो घर में एक नौकर दिखा जोकि हाल फिलहाल ही यहां काम करने आया था और उसको देखते ही मैं समझ गई की ये गबरू जवान मुझे खुब मजे देगा, पति तो दो दिन बाद काम पर लौट जाते और मुझे यहां एक सप्ताह रुकना था तो सोचने लगी की नौकर हरीश को ही अपने वश में किया जाए ताकि देहाती लन्ड का स्वाद मिले और मैं दो दिनों तक तो पति, ससुर और सासू मां की सेवा में ही लगी रही फिर पति के जाते ही अब थोड़ी छूट मिल गई और मैं हरीश को एक सुबह बोली ” चाय बन जाए तो लेकर गार्डन में ही आ जाना
( वो मुझे देख बोला ), जी मालकिन ” और मैं गार्डन में कुर्सी पर बैठ गई, नवंबर का महीना था इसलिए धूप की रोशनी अच्छी लग रही थी और मैं हरीश के आते ही जानबूझकर अपने नाईट गाऊन को थोडा ऊपर खिसका ली, घुटनों के ऊपर ड्रेस किए बैठी थी और हरीश टेबल पर प्याला रखा फिर जाने लगा तो मैं बोली ” इधर सुनो हरीश
( वो मुड़ा फिर मेरे पास आया ) जी मालकिन बोलिए
( मैं बोली ) मेरे कमर में हल्का दर्द सा है तुक मार्केट से एक दवाई लेते आओगे
( वो मुझे देख बोला ) जी जरूर लेकिन कमर की दर्द तो मालिश से ठीक हो जाएगी
( मैं बोली ) बिल्कुल सही तो तुमको मालिश करना आता है
( वो मेरी बात सुनकर अचंभित रह गया ) वो मुन्नी है ना उससे करवा लीजिए
( मैं उसे देख मुस्कुराई ) ठीक है अभी तुम जाओ ” फिर हरीश चला गया, लगभग १०:३० बजे मेरी सासू मां, ससुर जी साथ में मेरे बेटे को लेकर मार्केट चले गए तो मैं घर में अकेली थी और फिर सोची की मालिश करवा ही लूं।
हरीश की उम्र ३० साल होगी तो लंबाई ५ फिट १० इंच के आसपास, चौड़ी छाती तो कसरती बदन और उसको देख मैं समझ गई थी की ये मेरे जिस्म की आग बुझा देगा साथ ही मैं तो भोजन बदल बदलकर करने वाली में से हूं ताकि तन की भूख बरकरार रह सके और मुन्नी जब मेरे पास आई ” दीदी अब एक डेढ़ घंटे में आती हूं
( मैं बोली ) ठीक है ” मैं तो घर में अकेली थी और फिर हरीश को देखने के लिए गार्डन की ओर गई तो वो पौधों में पानी दे रहा था, मुझे देखा और फिर मैं बोली ” मेन गेट लॉक करके अंदर आओ ” मैं बेडरूम गई तो साथ में तेल की शीशी भी थी और थोड़ी देर बाद हरीश अंदर आया तो उसकी आहट सुनाई दी ” रूम में आ जाओ ” वो लुंगी और फूल साईज का बनियान पहन रखा था, रूम में आया तो मैं बेड पर बैठी हुई थी ” जरा मेरी कमर मालिश कर दो फिर स्नान करके नाश्ता कर लूंगी ” वो दुविधा में था और मैं नाईट गाउन पहने पैर सीधा किए बैठी हुई थी तो हरीश मेरे पैर के पास बैठ गया और मैं करवट लेकर लेट गई फिर अपनी नाईट गाउन के डोरी को खोल दी, उसकी ओर देखी तो वो मेरे पैर से लेकर मोटे चिकने जांघो को देख रहा था ” क्या हरीश तुझे देखने से मेरी दर्द कम नही हो जाएगी, तेल की शीशी लो और मालिश करो
( वो मेरे पैर से लेकर घुटनों तक तेल गिराया तो मैं चित लेटी हुई थी और हलके हाथों से मालिश करने लगा ) तुम अच्छे से मालिश करो
( हरीश के हाथ का स्पर्श मुझे मजा देने लगा ) लेकिन मालकिन कमर की मालिश के लिए तो कपड़ा उतारना होगा
( मैं नाईट गाऊन कमर तक उठा दी ) फिलहाल तो ठीक है इतने की तो मालिश करो ” और मेरे नग्न जांघो सहित पेंटी पर उसकी नजर थी, भले ही नजर झुकाए वो मेरे पैर से जांघ तक तेल की मालिश कर रहा था लेकिन मुझे तो यकीन था कि हरीश मेरे बदन को छूकर मेरे पर लट्टू हो जायेगा फिर क्या था, ओखली में मूसल का धक्का पड़ेगा और मैं देख रही थी की हरिश का हाथ मेरे जांघो पर है तो उसका चेहरे देखने लायक था। हरीश अब मेरे जांघ के ऊपरी हिस्से को सहलाने लगा तो उसका हाथ मेरी पैंटी पार जा रही थी और मैं करवट होकर बोली ” अब जांघों के पिछले भाग का मालिश कर दे
( वो मेरे मोटे जांघो के ऊपर तेल लगाकर मालिश करने लगा तो मेरे बदन में अब सुरसुरी होने लगी ) आह उह बहुत अच्छे और ऊपर
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: मैं इधर उधर भी मुंह मार लेती हूं - by neerathemall - 16-08-2022, 03:05 PM



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