16-08-2022, 02:31 PM
मैं सारिका की मंशा समझ गया, चूकि सारिका को बुर चुसाई का आनन्द तो मैं पहले से ही देता आया था.
अब तो उसे बुर चुदाई का आनन्द देना था इसलिए आज मैं कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहता था.
इतने देर में सारिका अपना टॉप निकाल चुकी थी, अब उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर सिर्फ ब्रा बची थी.
आज मैं सारिका को पूरी तरह गर्म करके चोदना चाहता था ताकि उसे भी चुदाई का भरपूर आनन्द मिले.
इसलिए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उसे किस करने लगा.
सारिका भी मेरा पूरा साथ देने लगी.
किस के दौरान मेरे हाथ कभी सारिका की पीठ सहलाते तो कभी उसके नितंबों को.
हमारे जीभ एक दूसरे में उलझे पड़े थे.
कुछ मिनट की किसिंग के बाद मैं पहले उसके गालों को, फिर गले पर फिर कंधे पर किस करते हुए नीचे आने लगा.
आज मैंने उसके मम्मों को चूसा तो कुछ अलग बात थी बल्कि अभी तक छुआ तक नहीं था.
उसके कंधे पर किस करने के बाद मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और सारिका की नाभि को चूमने लगा.
गुदगुदी के कारण सारिका ने हंसते हुए मेरे मुँह को अपनी नाभि से हटा दिया.
अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी सलवार को पैंटी सहित उसके जांघों तक नीचे खींच दिया.
आज सारिका की बुर एकदम साफ थी मतलब आज ही उसने बुर की झांटों को साफ़ किया था.
उसकी सफाचट बुर देखकर मेरी आंखों में तो चमक सी आ गयी.
मैंने शरारती अंदाज में सारिका के चेहरे की तरफ देखा तो सारिका ने शर्म वश अपने हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया.
मेरे लिए यही सही मौका था और मैंने देर न करते हुए अपने होंठ सारिका की बुर के ऊपरी भाग पर रख दिया.
अपनी बुर पर मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही सारिका के मुँह से आह सी निकल गयी और वो मेरे ऊपर झुक सी गयी.
अब मैं शुरू हो गया.
चूँकि सारिका खड़ी थी और मैं घुटनों पर था, तो इस आसन में मेरी जीभ सारिका की बुर की गहराई तक तो पहुंचना मुश्किल था, फिर भी जितना संभव हुआ, मैंने अपनी जीभ को बुर की दरार में चलाना शुरू कर दिया.
इधर मेरी जीभ ने हरकत शुरू की ही थी कि सारिका के मुँह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं जो मेरा जोश और बढ़ा रही थीं.
जांघों तक सलवार और पैंटी के फंसे होने की वजह से सारिका अपने दोनों पैर और चौड़ी नहीं कर पा रही थी, फिर भी वो जितना संभव हो रहा था, उतना अपने पैर चौड़े करने की कोशिश कर रही थी ताकि मैं उसकी बुर को गहराई तक चाट सकूं.
मुझे भी ऐसे चाटने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी तो मैंने उसकी सलवार और पैंटी को उसके शरीर से अलग कर दिया और उसकी टांगों को चौड़ा करके अपनी जीभ बुर की दरार में फिराने लगा.
सारिका ने दीवार का सहारा लेकर अपनी एक टांग को मेरे कंधे पर रख दिया और मेरे बालों को सहलाने लगी.
अब सारिका की बुर एकदम खुल चुकी थी तो मैं अपनी जीभ सारिका के बुर की दरार में ऊपर से नीचे तक चलाने लगा.
सारिका एकदम मदमस्त होकर सिसकारियां ले रही थी.
अब तो उसे बुर चुदाई का आनन्द देना था इसलिए आज मैं कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहता था.
इतने देर में सारिका अपना टॉप निकाल चुकी थी, अब उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर सिर्फ ब्रा बची थी.
आज मैं सारिका को पूरी तरह गर्म करके चोदना चाहता था ताकि उसे भी चुदाई का भरपूर आनन्द मिले.
इसलिए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उसे किस करने लगा.
सारिका भी मेरा पूरा साथ देने लगी.
किस के दौरान मेरे हाथ कभी सारिका की पीठ सहलाते तो कभी उसके नितंबों को.
हमारे जीभ एक दूसरे में उलझे पड़े थे.
कुछ मिनट की किसिंग के बाद मैं पहले उसके गालों को, फिर गले पर फिर कंधे पर किस करते हुए नीचे आने लगा.
आज मैंने उसके मम्मों को चूसा तो कुछ अलग बात थी बल्कि अभी तक छुआ तक नहीं था.
उसके कंधे पर किस करने के बाद मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और सारिका की नाभि को चूमने लगा.
गुदगुदी के कारण सारिका ने हंसते हुए मेरे मुँह को अपनी नाभि से हटा दिया.
अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी सलवार को पैंटी सहित उसके जांघों तक नीचे खींच दिया.
आज सारिका की बुर एकदम साफ थी मतलब आज ही उसने बुर की झांटों को साफ़ किया था.
उसकी सफाचट बुर देखकर मेरी आंखों में तो चमक सी आ गयी.
मैंने शरारती अंदाज में सारिका के चेहरे की तरफ देखा तो सारिका ने शर्म वश अपने हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया.
मेरे लिए यही सही मौका था और मैंने देर न करते हुए अपने होंठ सारिका की बुर के ऊपरी भाग पर रख दिया.
अपनी बुर पर मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही सारिका के मुँह से आह सी निकल गयी और वो मेरे ऊपर झुक सी गयी.
अब मैं शुरू हो गया.
चूँकि सारिका खड़ी थी और मैं घुटनों पर था, तो इस आसन में मेरी जीभ सारिका की बुर की गहराई तक तो पहुंचना मुश्किल था, फिर भी जितना संभव हुआ, मैंने अपनी जीभ को बुर की दरार में चलाना शुरू कर दिया.
इधर मेरी जीभ ने हरकत शुरू की ही थी कि सारिका के मुँह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं जो मेरा जोश और बढ़ा रही थीं.
जांघों तक सलवार और पैंटी के फंसे होने की वजह से सारिका अपने दोनों पैर और चौड़ी नहीं कर पा रही थी, फिर भी वो जितना संभव हो रहा था, उतना अपने पैर चौड़े करने की कोशिश कर रही थी ताकि मैं उसकी बुर को गहराई तक चाट सकूं.
मुझे भी ऐसे चाटने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी तो मैंने उसकी सलवार और पैंटी को उसके शरीर से अलग कर दिया और उसकी टांगों को चौड़ा करके अपनी जीभ बुर की दरार में फिराने लगा.
सारिका ने दीवार का सहारा लेकर अपनी एक टांग को मेरे कंधे पर रख दिया और मेरे बालों को सहलाने लगी.
अब सारिका की बुर एकदम खुल चुकी थी तो मैं अपनी जीभ सारिका के बुर की दरार में ऊपर से नीचे तक चलाने लगा.
सारिका एकदम मदमस्त होकर सिसकारियां ले रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.