16-08-2022, 02:21 PM
सारिका मेरी तरफ देखते हुए अपना चेहरा उचका कर इशारों में ही पूछा कि क्या हुआ?
मैंने भी अपना सर ना में हिलाकर बता दिया कि कुछ नहीं.
उसके बाद कुछ देर तक सारिका के पेट को सहलाने के बाद मैंने उसकी सलवार के नाड़े को पकड़ लिया और हल्के हल्के से खींचने लगा.
सारिका भी समझ गयी कि अब मैं क्या करने वाला हूँ. उसने तुरंत ही मेरा हाथ पकड़ कर हटाते हुए कहा- नहीं बेबी, इससे आगे नहीं प्लीज!
दोस्तो, रिलेशनशिप में आने के बाद हम दोनों एक दूसरे को बेबी ही कहकर बुलाते थे.
मैं- बेबी प्लीज, एक बार. इसके आगे कुछ नहीं करूंगा. मैं सिर्फ एक बार देखना चाहता हूँ बस!
सारिका ने फिर से मना कर दिया और मैं उसे मनाता रहा.
कुछ देर तक मनाने के बाद मेरी मेहनत रंग लाई, सारिका मान गयी पर सिर्फ दिखाने के लिए, उसके आगे मुझे कुछ भी करने की इजाज़त नहीं थी.
मैंने उसके बगल में ही लेटे लेटे फिर से उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया और अपने एक हाथ से उसके सलवार के नाड़े को खोल दिया.
नाड़ा खोलते ही मैं अपना हाथ पैंटी के अन्दर डालने लगा.
उह! मेरा हाथ जैसे किसी तपती धधकती भट्टी की ओर बढ़ रहा था.
तभी मेरे हाथ को नर्म नर्म रेशमी रोमों का अहसास हुआ.
मैंने अपना हाथ पैंटी के अन्दर ही थोड़ा ऊपर उठाया और हथेली को एक कप सा बना कर, जिसमें मेरी चारों उंगलियां नीचे की ओर थीं, सारिका की तपती चूत पर रख दिया.
आआह…ह … क्या अहसास था वो.
उसकी चूत एकदम गर्म भट्टी की तरह तप रही थी. ऊपर से एकदम गर्म और नीचे से रिस रिस कर निकलता योनिरस.
‘आ … आ … आह!’
उत्तेजना वश सारिका मुझसे कसकर लिपट गयी, मेरी उंगलियां सारिका के योनिरस से पूरी तरह भीग गयी थीं.
मैंने अपने हाथ की तर्जनी उंगली को चूत के निचले हिस्से से शुरू करके, चूत की दरार में ऊपर-ऊपर, फिराना शुरू कर दिया.
तुरंत ही सारिका के जिस्म में थिरकन सी होने लगी.
मैंने अपनी उंगली का सिरा चूत की दरार के ऊपरी हिस्से पर स्थित चने के दाने के साइज़ के भगनासे पर लाकर रोक दिया.
पैंटी के अन्दर हाथ होने की वजह से मेरे हाथ को वो आजादी मिल नहीं पा रही थी जो मुझे चाहिए थी.
इसलिए मैंने फिर से अपना हाथ निकाल लिया और सारिका के बगल से उठकर बैठ गया.
सारिका फिर से मुझे देखने लगी.
उसके चेहरे पर वही सवाल था कि अब क्या हुआ?
अब मैं बैठे बैठे ही उसकी सलवार को नीचे सरकाने लगा.
पर उसके शरीर से सलवार को अलग करने के लिए भी मुझे सारिका के सहायता की ज़रूरत थी.
मैंने सारिका की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा और उसकी सलवार को फिर से नीचे की तरफ सरकाने लगा.
मैंने भी अपना सर ना में हिलाकर बता दिया कि कुछ नहीं.
उसके बाद कुछ देर तक सारिका के पेट को सहलाने के बाद मैंने उसकी सलवार के नाड़े को पकड़ लिया और हल्के हल्के से खींचने लगा.
सारिका भी समझ गयी कि अब मैं क्या करने वाला हूँ. उसने तुरंत ही मेरा हाथ पकड़ कर हटाते हुए कहा- नहीं बेबी, इससे आगे नहीं प्लीज!
दोस्तो, रिलेशनशिप में आने के बाद हम दोनों एक दूसरे को बेबी ही कहकर बुलाते थे.
मैं- बेबी प्लीज, एक बार. इसके आगे कुछ नहीं करूंगा. मैं सिर्फ एक बार देखना चाहता हूँ बस!
सारिका ने फिर से मना कर दिया और मैं उसे मनाता रहा.
कुछ देर तक मनाने के बाद मेरी मेहनत रंग लाई, सारिका मान गयी पर सिर्फ दिखाने के लिए, उसके आगे मुझे कुछ भी करने की इजाज़त नहीं थी.
मैंने उसके बगल में ही लेटे लेटे फिर से उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया और अपने एक हाथ से उसके सलवार के नाड़े को खोल दिया.
नाड़ा खोलते ही मैं अपना हाथ पैंटी के अन्दर डालने लगा.
उह! मेरा हाथ जैसे किसी तपती धधकती भट्टी की ओर बढ़ रहा था.
तभी मेरे हाथ को नर्म नर्म रेशमी रोमों का अहसास हुआ.
मैंने अपना हाथ पैंटी के अन्दर ही थोड़ा ऊपर उठाया और हथेली को एक कप सा बना कर, जिसमें मेरी चारों उंगलियां नीचे की ओर थीं, सारिका की तपती चूत पर रख दिया.
आआह…ह … क्या अहसास था वो.
उसकी चूत एकदम गर्म भट्टी की तरह तप रही थी. ऊपर से एकदम गर्म और नीचे से रिस रिस कर निकलता योनिरस.
‘आ … आ … आह!’
उत्तेजना वश सारिका मुझसे कसकर लिपट गयी, मेरी उंगलियां सारिका के योनिरस से पूरी तरह भीग गयी थीं.
मैंने अपने हाथ की तर्जनी उंगली को चूत के निचले हिस्से से शुरू करके, चूत की दरार में ऊपर-ऊपर, फिराना शुरू कर दिया.
तुरंत ही सारिका के जिस्म में थिरकन सी होने लगी.
मैंने अपनी उंगली का सिरा चूत की दरार के ऊपरी हिस्से पर स्थित चने के दाने के साइज़ के भगनासे पर लाकर रोक दिया.
पैंटी के अन्दर हाथ होने की वजह से मेरे हाथ को वो आजादी मिल नहीं पा रही थी जो मुझे चाहिए थी.
इसलिए मैंने फिर से अपना हाथ निकाल लिया और सारिका के बगल से उठकर बैठ गया.
सारिका फिर से मुझे देखने लगी.
उसके चेहरे पर वही सवाल था कि अब क्या हुआ?
अब मैं बैठे बैठे ही उसकी सलवार को नीचे सरकाने लगा.
पर उसके शरीर से सलवार को अलग करने के लिए भी मुझे सारिका के सहायता की ज़रूरत थी.
मैंने सारिका की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा और उसकी सलवार को फिर से नीचे की तरफ सरकाने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.