16-08-2022, 02:19 PM
(This post was last modified: 16-08-2022, 02:20 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
इसलिए मैंने अपना हाथ हटा लिया और उसके चेहरे को देखने लगा.
मैं- दर्द हुआ क्या?
मेरा सवाल सुनकर वो हल्के से मुस्कुराई, फिर ना में सिर हिलाया.
मैं समझ गया कि मेरा उसके मम्मे को दबाना उसे अच्छा लगा.
फिर भी कन्फर्म करने के लिए मैंने पूछ लिया- फिर क्या हुआ … अच्छा लगा ना?
इस बार उसने शर्माते हुए हां में सर हिलाया.
उसके बाद तो मैं टूट सा पड़ा उसके दोनों मम्मे मेरे दोनों हाथों में आ गए थे.
कभी हाथों से, तो कभी अपने मुँह से … जी भरके मैंने सारिका के चूचों से कपड़ों के ऊपर से ही खेला.
जितना अभी तक हम दोनों के बीच में हुआ था, मैं उतने में ही बहुत खुश था.
इसलिए उससे आगे कुछ करने का ना तो मैंने कोई कोशिश की और ना ही मेरा मन हुआ.
उस दिन सारिका करीब 45-50 मिनट मेरे घर पर रही और हमने जी भरके एक दूसरे को प्यार किया.
उसके बाद सारिका मेरे घर से चली गयी, पर जाते जाते हमने एक दूसरे को टाइट वाली झप्पी और किस किया.
उस दिन के बाद हम जब भी मिलते या जब भी हमें मौका मिलता, तब किस के साथ साथ मैं उसके चूचों से भी खेलने लगता.
इसके बाद हम एक दूसरे से पूरी तरह खुल गए थे, अब हमारे बीच सेक्स की भी बातें होने लगी थी.
इस घटना के कुछ दिन बाद मेरा बर्थडे था और सारिका ने मेरा बर्थडे स्पेशल बनाने के लिए मुझे किसी ऐसी जगह का इंतजाम करने को बोला जहां हम दोनों के सिवाए और कोई ना हो.
मुम्बई जैसे शहर में ऐसी जगह खोजना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम था.
मेरे पास और भी कई ऑप्शन थे जैसे लॉज, होटल या गेस्ट हॉउस.
पर मैं सारिका को ऐसी किसी जगह पर लेकर जाना नहीं चाहता था.
मैं भी कभी पहले न तो किसी लॉज में और ना ही किसी होटल में गया था और ना ही मुझे इन सब के बारे में कुछ मालूम था.
और मैं सारिका को मना भी नहीं कर सकता था और उसे किसी लॉज या होटल में चलने को बोल भी नहीं सकता था.
दो तीन दिन ऐसे ही निकल गए और मैं किसी ऐसी जगह का इंतजाम तो दूर, मैं किसी ऐसी जगह के बारे में पता तक नहीं लगा पाया था.
सारिका जब भी फ़ोन करती, जगह के बारे में जरूर पूछती, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं होता.
थक हार कर मैंने उसे लॉज और होटल के ऑप्शन के बारे में बता दिया.
होटल और लॉज हम दोनों के लिए नया था, तो स्वभाविक डर भी हमारे मन में था.
और उन दिनों इंटरनेट पर एमएमएस बनाए जाने की खबरों की बाढ़ भी आई हुई थी, जो हमारे डर को और भी ज्यादा बढ़ा रही थी.
फिर मैंने अपने कुछ लफ़ंडर दोस्तों से लॉज और होटलों के बारे में पूछताछ की, जो अपनी अपनी माशूकाओं को लेकर लॉज या होटल में जाया करते थे.
उनकी बातों से पता चला कि सब लॉज एक जैसे नहीं होते, कुछ लॉज या होटेल अपने ग्राहकों की गोपनीयता की सुरक्षा का भी ख्याल रखते हैं.
मैं- दर्द हुआ क्या?
मेरा सवाल सुनकर वो हल्के से मुस्कुराई, फिर ना में सिर हिलाया.
मैं समझ गया कि मेरा उसके मम्मे को दबाना उसे अच्छा लगा.
फिर भी कन्फर्म करने के लिए मैंने पूछ लिया- फिर क्या हुआ … अच्छा लगा ना?
इस बार उसने शर्माते हुए हां में सर हिलाया.
उसके बाद तो मैं टूट सा पड़ा उसके दोनों मम्मे मेरे दोनों हाथों में आ गए थे.
कभी हाथों से, तो कभी अपने मुँह से … जी भरके मैंने सारिका के चूचों से कपड़ों के ऊपर से ही खेला.
जितना अभी तक हम दोनों के बीच में हुआ था, मैं उतने में ही बहुत खुश था.
इसलिए उससे आगे कुछ करने का ना तो मैंने कोई कोशिश की और ना ही मेरा मन हुआ.
उस दिन सारिका करीब 45-50 मिनट मेरे घर पर रही और हमने जी भरके एक दूसरे को प्यार किया.
उसके बाद सारिका मेरे घर से चली गयी, पर जाते जाते हमने एक दूसरे को टाइट वाली झप्पी और किस किया.
उस दिन के बाद हम जब भी मिलते या जब भी हमें मौका मिलता, तब किस के साथ साथ मैं उसके चूचों से भी खेलने लगता.
इसके बाद हम एक दूसरे से पूरी तरह खुल गए थे, अब हमारे बीच सेक्स की भी बातें होने लगी थी.
इस घटना के कुछ दिन बाद मेरा बर्थडे था और सारिका ने मेरा बर्थडे स्पेशल बनाने के लिए मुझे किसी ऐसी जगह का इंतजाम करने को बोला जहां हम दोनों के सिवाए और कोई ना हो.
मुम्बई जैसे शहर में ऐसी जगह खोजना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम था.
मेरे पास और भी कई ऑप्शन थे जैसे लॉज, होटल या गेस्ट हॉउस.
पर मैं सारिका को ऐसी किसी जगह पर लेकर जाना नहीं चाहता था.
मैं भी कभी पहले न तो किसी लॉज में और ना ही किसी होटल में गया था और ना ही मुझे इन सब के बारे में कुछ मालूम था.
और मैं सारिका को मना भी नहीं कर सकता था और उसे किसी लॉज या होटल में चलने को बोल भी नहीं सकता था.
दो तीन दिन ऐसे ही निकल गए और मैं किसी ऐसी जगह का इंतजाम तो दूर, मैं किसी ऐसी जगह के बारे में पता तक नहीं लगा पाया था.
सारिका जब भी फ़ोन करती, जगह के बारे में जरूर पूछती, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं होता.
थक हार कर मैंने उसे लॉज और होटल के ऑप्शन के बारे में बता दिया.
होटल और लॉज हम दोनों के लिए नया था, तो स्वभाविक डर भी हमारे मन में था.
और उन दिनों इंटरनेट पर एमएमएस बनाए जाने की खबरों की बाढ़ भी आई हुई थी, जो हमारे डर को और भी ज्यादा बढ़ा रही थी.
फिर मैंने अपने कुछ लफ़ंडर दोस्तों से लॉज और होटलों के बारे में पूछताछ की, जो अपनी अपनी माशूकाओं को लेकर लॉज या होटल में जाया करते थे.
उनकी बातों से पता चला कि सब लॉज एक जैसे नहीं होते, कुछ लॉज या होटेल अपने ग्राहकों की गोपनीयता की सुरक्षा का भी ख्याल रखते हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.