16-08-2022, 02:17 PM
मेरी उम्र इस समय 29 साल है, मैंने MCA किया हुआ है और फिलहाल मैं अपनी किराने की दुकान संभालता हूँ.
आप सबको थोड़ा अजीब लगेगा कि MCA किया हुआ बंदा किराने की दुकान पर क्यों?
इसके पीछे भी एक वजह है और वो वजह ये है कि मेरी ये दुकान करीब बहुत साल पुरानी है.
मुझसे पहले मेरे पापा ये दुकान संभालते थे, पर आज से करीब 8 साल पहले एक लंबी बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी.
घर में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा होने की वजह से घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी.
जब मेरे पापा थे, तब मैंने एक दो जगह नौकरी भी करके देखा.
पर मुझे और मेरे पापा, दोनों को लगा कि नौकरी से ज्यादा अच्छा अपना बिज़नेस ही है.
दुकान भी अच्छी खासी चलती थी और ठीक ठाक आमदनी भी हो जाती थी.
जब तक पापा थे, तब तक मैं नौकरी करता रहा.
पर पापा के जाने के बाद मैंने अपनी दुकान ही चलाने का फैसला किया.
और आज मैं अपने पापा से भी अच्छी तरह अपनी दुकान चला रहा हूँ.
मुझे पढ़ने का शौक बचपन से ही था और जब थोड़ा बड़ा हुआ, तो मेरा रुझान कम्प्यूटर की तरफ झुक गया.
अपने इसी शौक की वजह से मैंने एक प्राइवेट कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में एड्मिशन ले लिया.
मैंने जिस इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया था, उसकी 4 ब्रांच और भी थीं.
मैं दोपहर में अपने भाई को दुकान पर बैठा कर कम्प्यूटर सीखने जाने लगा.
कम्प्यूटर सीखते हुए मुझे यही कोई दो ढाई महीने ही हुए होंगे कि तभी इस कहानी की नायिका सारिका की एन्ट्री होती है.
दरअसल जो सर मुझे पढ़ाते थे, वो बाक़ी की ब्रांचों में भी पढ़ाने जाते थे.
एक दिन दोपहर में जब मैं सर के साथ बैठकर कम्प्यूटर सीख रहा था, तभी एक बहुत ही खूबसूरत लड़की भी वहीं पास में आकर बैठ गयी और सर से बात करने लगी.
मैंने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया.
सफेद ड्रेस में वो पूरी अप्सरा लग रही थी.
अब मेरा ध्यान कंप्यूटर पर कम … और उस पास बैठी लड़की पर ज्यादा था.
बार बार मैं उससे नजरें बचा कर उसे ही देखने की कोशिश करने में लगा था.
वो सर से बात करने में बिजी थी, पर बीच बीच में मेरी और उसकी नजरें मिल ही जाती थीं.
तब मैं अपनी नजरें उस पर से हटा लेता.
मुझे ये डर लग रहा था कि अगर मैं उसे ऐसे ही घूरता रहा तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेगी.
पर मेरे ना चाहते हुए भी मेरी नजरें बार बार उसे ही देख रही थीं.
उसने भी ये बात नोटिस कर ली थी पर उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया.
उसकी और सर की बातों से पता चला कि वो दूसरे ब्रांच की स्टूडेंट है और जो मैं सीख रहा हूँ, वही वो भी सीख रही थी.
देर से दाखिला लेने की वजह से वो पाठ्यक्रम में मुझसे थोड़ा पीछे थी, इस हिसाब से मैं उसका सीनियर हुआ.
करीब आधा घंटा वो सर से बात करती रही और मेरा ध्यान भटकाती रही.
आप सबको थोड़ा अजीब लगेगा कि MCA किया हुआ बंदा किराने की दुकान पर क्यों?
इसके पीछे भी एक वजह है और वो वजह ये है कि मेरी ये दुकान करीब बहुत साल पुरानी है.
मुझसे पहले मेरे पापा ये दुकान संभालते थे, पर आज से करीब 8 साल पहले एक लंबी बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी.
घर में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा होने की वजह से घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी.
जब मेरे पापा थे, तब मैंने एक दो जगह नौकरी भी करके देखा.
पर मुझे और मेरे पापा, दोनों को लगा कि नौकरी से ज्यादा अच्छा अपना बिज़नेस ही है.
दुकान भी अच्छी खासी चलती थी और ठीक ठाक आमदनी भी हो जाती थी.
जब तक पापा थे, तब तक मैं नौकरी करता रहा.
पर पापा के जाने के बाद मैंने अपनी दुकान ही चलाने का फैसला किया.
और आज मैं अपने पापा से भी अच्छी तरह अपनी दुकान चला रहा हूँ.
मुझे पढ़ने का शौक बचपन से ही था और जब थोड़ा बड़ा हुआ, तो मेरा रुझान कम्प्यूटर की तरफ झुक गया.
अपने इसी शौक की वजह से मैंने एक प्राइवेट कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में एड्मिशन ले लिया.
मैंने जिस इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया था, उसकी 4 ब्रांच और भी थीं.
मैं दोपहर में अपने भाई को दुकान पर बैठा कर कम्प्यूटर सीखने जाने लगा.
कम्प्यूटर सीखते हुए मुझे यही कोई दो ढाई महीने ही हुए होंगे कि तभी इस कहानी की नायिका सारिका की एन्ट्री होती है.
दरअसल जो सर मुझे पढ़ाते थे, वो बाक़ी की ब्रांचों में भी पढ़ाने जाते थे.
एक दिन दोपहर में जब मैं सर के साथ बैठकर कम्प्यूटर सीख रहा था, तभी एक बहुत ही खूबसूरत लड़की भी वहीं पास में आकर बैठ गयी और सर से बात करने लगी.
मैंने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया.
सफेद ड्रेस में वो पूरी अप्सरा लग रही थी.
अब मेरा ध्यान कंप्यूटर पर कम … और उस पास बैठी लड़की पर ज्यादा था.
बार बार मैं उससे नजरें बचा कर उसे ही देखने की कोशिश करने में लगा था.
वो सर से बात करने में बिजी थी, पर बीच बीच में मेरी और उसकी नजरें मिल ही जाती थीं.
तब मैं अपनी नजरें उस पर से हटा लेता.
मुझे ये डर लग रहा था कि अगर मैं उसे ऐसे ही घूरता रहा तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेगी.
पर मेरे ना चाहते हुए भी मेरी नजरें बार बार उसे ही देख रही थीं.
उसने भी ये बात नोटिस कर ली थी पर उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया.
उसकी और सर की बातों से पता चला कि वो दूसरे ब्रांच की स्टूडेंट है और जो मैं सीख रहा हूँ, वही वो भी सीख रही थी.
देर से दाखिला लेने की वजह से वो पाठ्यक्रम में मुझसे थोड़ा पीछे थी, इस हिसाब से मैं उसका सीनियर हुआ.
करीब आधा घंटा वो सर से बात करती रही और मेरा ध्यान भटकाती रही.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.