16-08-2022, 01:25 PM
जब हम होश में आए तो देखा कि राक्षस हम लोगों के पास ही खड़ा है और हमें देख रहा है। फिर वह हमारे और निकट आया और हममें से एक-एक को उठाकर हाथ में घुमा-फिरा कर देखने लगा। जैसे कसाई लोग बकरियों और भेड़ों को उनकी मोटाई का अंदाज लगाने के लिए देखते हैं। सबसे पहले उसने मुझे पकड़ा लेकिन दुबला-पतला देख कर रख दिया। फिर उसने हर एक को इसी तरह देखा और अंत में कप्तान को सब से मोटा-ताजा पाकर उसे एक हाथ से पकड़ा और दूसरे हाथ से एक छड़ उसके शरीर में आर-पार कर दी और फिर आग जला कर कप्तान को भून कर खा गया। फिर अंदर जा कर सो गया। उसके खर्राटे बादल की गरज की तरह आते रहे और रात भर हमें भयभीत करते रहे। दिन निकलने पर वह जागा और घर से बाहर चला गया।
हम सब अपनी दशा पर रोने लगे। हमारी समझ ही में नहीं आ रहा था कि उस भयंकर राक्षस से किस प्रकार प्राण बच सकते हैं। हम सबने अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया। घर से बाहर निकल कर हमने फल-फूल खाकर भूख बुझाई। हमने चाहा कि रात को उस घर में न जाएँ किंतु और कोई स्थान था ही नहीं जहाँ रात बिताते, फिर राक्षस तो हमें ढूँढ़ निकालता ही। अतएव हम उसी मकान में आ गए। कुछ रात बीतने पर वह राक्षस फिर आया। उसने फिर हम लोगों को पहले की तरह उठा-उठा कर देखा और हमारे एक साथी को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक मोटा-ताजा पाकर उसके शरीर में छड़ घुसेड़कर भूनकर खा गया।
सवेरे जब वह बाहर गया तो हम लोग बाहर निकले। हमारे कई साथियों ने कहा कि इस प्रकार की कष्टदायक मृत्यु से अच्छा है हम लोग समुद्र में डूब मरें। किंतु हममें से एक ने कहा कि हम लोग * है और हमारे लिए आत्महत्या बड़ा पाप है। हमें यह न करना चाहिए कि राक्षस से बचने के लिए स्वयं अपनी हत्या कर लें। उसकी बात मानकर हम आत्महत्या से रुक गए और सोचने लगे कि कैसे जान बच सकती हैं।
मुझे एक उपाय सूझा। मैंने कहा, 'देखो, यहाँ सागर तट पर बहुत-सी लकड़ियाँ और रस्सियाँ मौजूद हैं। हम लोग इनकी चार-पाँच नावें बना लें और किसी जगह छुपाकर रख दें। यदि किसी प्रकार अवसर मिले तो हम उन पर निकल भागेंगे। अधिक से अधिक यही तो होगा कि नावें डूब जाएँगी। किंतु राक्षस के हाथों मरने से तो वह मौत कहीं अच्छी होगी।'
मेरे सुझाव को सब लोगों ने पसंद किया। हम लोगों को नाव बनाना आता था और हमने दिन भर में चार-पाँच ऐसी छोटी-छोटी नावें बना लीं जिनमें तीन-तीन आदमी आ सकते थे। शाम को हम फिर उस घर के अंदर गए। राक्षस ने हर रोज की तरह हम लोगों को उठा-उठाकर देखा और एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति को सलाख में भेद कर भून दिया और खा गया। जब वह सो गया और उसके खर्राटे बहुत गहरे हो गए तो मैंने अपने साथियों को अपनी योजना बताई और हमने उस पर कार्य करना आरंभ कर दिया।
वहाँ कई सलाखें पड़ी हुई थीं और आग अभी तक खूब जल रही थी। मैंने और नौ अन्य होशियार और साहसी लोगों ने एक-एक सलाख को आग में लाल कर दिया। फिर उस राक्षस की आँख में हम सभी ने उन सलाखों को घुसेड़ दिया जिससे वह बिल्कुल अंधा हो गया। उसने अपने हाथ इधर-उधर मारने शुरू किए। हम लोग उससे बच कर कोनों में जा छुपे। अगर वह किसी को पा जाता तो कच्चा ही खा जाता। फिर वह चिंघाड़ता हुआ घर के बाहर भाग गया और हम लोग समुद्र के तट पर आकर उन नावों पर चढ़ गए जिन्हें हमने पहले से बना रखा था। हम चाहते थे कि सवेरा होने पर यात्रा आरंभ करें। तभी हमने देखा कि दो राक्षस उस राक्षस के हाथ पकड़े अपने बीच में लिए आते हैं जिसे हमने अंधा किया था। अन्य कई राक्षस भी उनके पीछे दौड़े आते थे। हमने उन्हें देखते ही नावें समुद्र में डाल दीं और तेजी से उन्हें खेने लगे। राक्षस समुद्र में तैर नहीं सकते थे किंतु उन्होंने तट पर से ही बड़ी-बड़ी चट्टानें हमारी ओर फेंकना शुरू किया। केवल एक नाव को छोड़ कर जिस पर मैं और मेरे दो साथी बैठे थे सारी नावें राक्षसों की फेंकी चट्टानों से डूब गईं। हम अपनी नाव को तेजी से खेकर इतनी दूर आ गए जहाँ पर उनकी चट्टानें आ नहीं सकती थीं।
हम सब अपनी दशा पर रोने लगे। हमारी समझ ही में नहीं आ रहा था कि उस भयंकर राक्षस से किस प्रकार प्राण बच सकते हैं। हम सबने अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया। घर से बाहर निकल कर हमने फल-फूल खाकर भूख बुझाई। हमने चाहा कि रात को उस घर में न जाएँ किंतु और कोई स्थान था ही नहीं जहाँ रात बिताते, फिर राक्षस तो हमें ढूँढ़ निकालता ही। अतएव हम उसी मकान में आ गए। कुछ रात बीतने पर वह राक्षस फिर आया। उसने फिर हम लोगों को पहले की तरह उठा-उठा कर देखा और हमारे एक साथी को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक मोटा-ताजा पाकर उसके शरीर में छड़ घुसेड़कर भूनकर खा गया।
सवेरे जब वह बाहर गया तो हम लोग बाहर निकले। हमारे कई साथियों ने कहा कि इस प्रकार की कष्टदायक मृत्यु से अच्छा है हम लोग समुद्र में डूब मरें। किंतु हममें से एक ने कहा कि हम लोग * है और हमारे लिए आत्महत्या बड़ा पाप है। हमें यह न करना चाहिए कि राक्षस से बचने के लिए स्वयं अपनी हत्या कर लें। उसकी बात मानकर हम आत्महत्या से रुक गए और सोचने लगे कि कैसे जान बच सकती हैं।
मुझे एक उपाय सूझा। मैंने कहा, 'देखो, यहाँ सागर तट पर बहुत-सी लकड़ियाँ और रस्सियाँ मौजूद हैं। हम लोग इनकी चार-पाँच नावें बना लें और किसी जगह छुपाकर रख दें। यदि किसी प्रकार अवसर मिले तो हम उन पर निकल भागेंगे। अधिक से अधिक यही तो होगा कि नावें डूब जाएँगी। किंतु राक्षस के हाथों मरने से तो वह मौत कहीं अच्छी होगी।'
मेरे सुझाव को सब लोगों ने पसंद किया। हम लोगों को नाव बनाना आता था और हमने दिन भर में चार-पाँच ऐसी छोटी-छोटी नावें बना लीं जिनमें तीन-तीन आदमी आ सकते थे। शाम को हम फिर उस घर के अंदर गए। राक्षस ने हर रोज की तरह हम लोगों को उठा-उठाकर देखा और एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति को सलाख में भेद कर भून दिया और खा गया। जब वह सो गया और उसके खर्राटे बहुत गहरे हो गए तो मैंने अपने साथियों को अपनी योजना बताई और हमने उस पर कार्य करना आरंभ कर दिया।
वहाँ कई सलाखें पड़ी हुई थीं और आग अभी तक खूब जल रही थी। मैंने और नौ अन्य होशियार और साहसी लोगों ने एक-एक सलाख को आग में लाल कर दिया। फिर उस राक्षस की आँख में हम सभी ने उन सलाखों को घुसेड़ दिया जिससे वह बिल्कुल अंधा हो गया। उसने अपने हाथ इधर-उधर मारने शुरू किए। हम लोग उससे बच कर कोनों में जा छुपे। अगर वह किसी को पा जाता तो कच्चा ही खा जाता। फिर वह चिंघाड़ता हुआ घर के बाहर भाग गया और हम लोग समुद्र के तट पर आकर उन नावों पर चढ़ गए जिन्हें हमने पहले से बना रखा था। हम चाहते थे कि सवेरा होने पर यात्रा आरंभ करें। तभी हमने देखा कि दो राक्षस उस राक्षस के हाथ पकड़े अपने बीच में लिए आते हैं जिसे हमने अंधा किया था। अन्य कई राक्षस भी उनके पीछे दौड़े आते थे। हमने उन्हें देखते ही नावें समुद्र में डाल दीं और तेजी से उन्हें खेने लगे। राक्षस समुद्र में तैर नहीं सकते थे किंतु उन्होंने तट पर से ही बड़ी-बड़ी चट्टानें हमारी ओर फेंकना शुरू किया। केवल एक नाव को छोड़ कर जिस पर मैं और मेरे दो साथी बैठे थे सारी नावें राक्षसों की फेंकी चट्टानों से डूब गईं। हम अपनी नाव को तेजी से खेकर इतनी दूर आ गए जहाँ पर उनकी चट्टानें आ नहीं सकती थीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
