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Thriller सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा
#30
सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के कष्ट और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्यापारियों के साथ बसरा के बंदरगाह पर जाकर एक जहाज पर सवार हुआ। हमारा जहाज कई द्वीपों में गया जहाँ व्यापार करके हम लोगों ने अच्छा लाभ कमाया।

किंतु एक दिन हमारा जहाज तूफान में फँस गया। इसके कारण हम लोग सीधे मार्ग से भटक गए। अंत में एक द्वीप के पास जाकर जहाज ने लंगर डाल दिया और पाल खोल डाले। कप्तान ने ध्यान देकर द्वीप को देखा फिर उसकी आँखों में आँसू बहने लगे। हमने इसका कारण पूछा तो उसने कहा, 'अब हम लोगों का भगवान ही रक्षक है। क्योंकि इस द्वीप के समीप ही जंगली लोगों के द्वीप हैं। उनके शरीर पर लाल-लाल बाल होते हैं। इन वन-वासियों से भटके हुए जहाजियों पर बड़े-बड़े संकट आए हैं। वे हम लोगों से आकार में छोटे है किंतु हम उनके आगे विवश हैं। यदि उनमें से एक भी हमारे हाथ से मारा जाए तो वे हमें चीटियों की तरह चारों ओर से घेर लेंगे और हमारा सफाया कर देंगे।'

हम सब लोग इस बात को सुनकर बहुत घबराए किंतु कर ही क्या सकते थे। कुछ देर में जैसा कप्तान ने कहा था वैसा ही हुआ। जंगली लोगों का एक बड़ा समूह, जिनके शरीर छोटे-छोटे थे और लाल रंग के बालों से भरे हुए थे, तट पर आए और तैर कर जहाज के चारों ओर आ गए। वे अपनी भाषा में कुछ कहने लगे किंतु वह हमारी समझ में नहीं आया। वे बंदरों की तरह आसानी से जहाज पर चढ़ आए। उन्होंने पालों को लपेट दिया और लंगर की रस्सी काटकर जहाज को किनारे पर खींच लाए। उन्होंने हमें जहाज से उतार लिया और घसीटते हुए अपने द्वीप में ले गए। उस द्वीप के निकट कोई जहाज उनके डर से नहीं आता था किंतु हमारी तो मौत ही हमें घसीट लाई थी।

उन्होंने हमें एक घर के अंदर बंद कर दिया। हमने देखा कि आँगन में मनुष्यों की हड्डियों का एक ढेर जमा है और बहुत-सी मोटी लोहे की छड़ें रखी हैं। हम यह देख कर भय के कारण अचेत हो गए। बहुत देर के बाद हमें होश आया तो हम अपनी दशा को विचारकर रोने लगे। अचानक एक दरवाजा खुला और अंदर से एक अत्यंत विशालकाय आदमी हमारे आँगन में आया। उसका शरीर ताड़ की तरह था और मुँह घोड़े की तरह। उसके केवल एक ही आँख थी जो माथे के बीच में थी और अंगारे की तरह दहक रही थी। उसके दाँत बहुत बड़े और नुकीले थे और उसके मुख से बाहर निकले हुए थे। उसका निचला होंठ इतना बड़ा था कि उसकी छाती तक लटकता था। उसके कान हाथी जैसे थे और उसके कंधों को ढँके हुए थे और उसके नाखून बड़े कड़े और घुमावदार थे, जैसे शिकारी जानवरों के होते हैं। हम सब उस राक्षस को देख कर एक बार फिर गश खा गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा - by neerathemall - 16-08-2022, 01:25 PM



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