16-08-2022, 01:21 PM
सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर उसे भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्रेयस्कर है। सभी बुद्धिमानों ने ऐसा कहा है। मैं इस बात को बार-बार सोचता और मन ही मन अपनी दुर्दशा पर रोता। अंत में जब निर्धनता मेरी सहन शक्ति के बाहर हो गई तो मैंने अपना बचा-खुचा सामान बेच डाला और जो पैसा मिला उसे लेकर समुद्री व्यापारियों के पास गया और कहा कि अब मैं भी व्यापार के लिए निकलना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे व्यापार के बारे में बड़ी अच्छी सलाह दी। उसके अनुसार मैंने व्यापार की वस्तुएँ मोल लीं और उन्हें लेकर उनमें से एक व्यापारी के जहाज पर किराया देकर सामान लादा और खुद सवार हो गया। जहाज अपनी व्यापार यात्रा पर चल पड़ा।
मैं पूरे एक दिन और एक रात उस अथाह जल में तैरता रहा। थकन ने मेरी सारी शक्ति हर ली और मैं तैरने के लिए हाथ-पाँव चलाने के योग्य भी न रहा। मैं डूबने ही वाला था कि एक बड़ी समुद्री लहर ने मुझे उछाल कर किनारे पर फेंक दिया। किंतु किनारा समतल नहीं था। बल्कि खड़े ढलवान का था। मैं किसी प्रकार मरता-गिरता वृक्षों की जड़ें पकड़ता हुआ ऊपर पहुँचा और मुर्दे की भाँति जमीन पर गिर रहा।
जहाज फारस की खाड़ी में से होकर फारस देश में पहुँचा जो अरब के बाईं ओर बसा है और हिंदुस्तान के पश्चिम की ओर। फारस की खाड़ी लंबाई में ढाई हजार मील और चौड़ाई में सत्तर मील थी। मुझे समुद्री यात्रा का अभ्यास नहीं था इसलिए कई दिनों तक मैं समुद्री बीमारी से ग्रस्त रहा। फिर अच्छा हो गया। रास्ते में हमें कई टापू मिले जहाँ हम लोगों ने माल खरीदा और बेचा। एक दिन हमारा जहाज पाल उड़ाए हुए जा रहा था। तभी हमारे सामने एक हरा-भरा सुंदर द्वीप दिखाई दिया। कप्तान ने जहाज के पाल उतरवा लिए और लंगर डाल दिए और कहा कि जिन लोगों का जी चाहे वे इस द्वीप की सैर कर आएँ। मैं और कई अन्य व्यापारी, जो जहाज पर बैठे-बैठे ऊब गए थे, खाने का सामान लेकर उस द्वीप पर नाव द्वारा चले गए। किंतु वह द्वीप उस समय हिलने लगा जब हमने खाना पकाने के लिए आग जलाई। यह देखकर व्यापारी चिल्लाने लगे कि भाग कर जहाज पर चलो, यह टापू नहीं, एक बड़ी मछली की पीठ है। सब लोग कूद-कूद कर जहाज की छोटी नाव पर बैठ गए। मैं अकुशलता के कारण ऐसा न कर सका। नाव जहाज की ओर चल पड़ी। इधर मछली ने, जो हमारे आग जलाने से जाग गई थी, पानी में गोता लगाया। मैं समुद्र में बहने लगा। मेरे हाथ में सिर्फ एक लकड़ी थी जिसे मैं जलाने के लिए लाया था। उसी के सहारे समुद्र में तैरने लगा। मैं जहाज तक पहुँच पाऊँ इससे पहले ही जहाज लंगर उठा कर चल दिया।
मैं पूरे एक दिन और एक रात उस अथाह जल में तैरता रहा। थकन ने मेरी सारी शक्ति हर ली और मैं तैरने के लिए हाथ-पाँव चलाने के योग्य भी न रहा। मैं डूबने ही वाला था कि एक बड़ी समुद्री लहर ने मुझे उछाल कर किनारे पर फेंक दिया। किंतु किनारा समतल नहीं था। बल्कि खड़े ढलवान का था। मैं किसी प्रकार मरता-गिरता वृक्षों की जड़ें पकड़ता हुआ ऊपर पहुँचा और मुर्दे की भाँति जमीन पर गिर रहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.