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Thriller सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा
#15
मैंने व्यापारी को पूरा हाल सुनाया। वह उस खड्ड की बात सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। मेरे साथ वह उस खड्ड तक पहुँचा और जितने हाथी दाँत उसके हाथी पर लद सकते थे उन्हें लाद कर शहर वापस आया। फिर उसने मुझ से कहा, 'भाई, आज से तुम मेरे गुलाम नहीं हो। तुमने मेरा बड़ा उपकार किया है, तुम्हारे कारण मेरे पास अपार धन हो जाएगा। मैंने तुम से अभी तक एक बात छुपा रखी थी। मेरे कई गुलाम हाथियों ने मार डाले हैं। जो कोई हाथियों के शिकार को जाता था दो या तीन दिन से अधिक नहीं जी पाता था। भगवान ने तुम्हें हाथियों से बचाया। इससे मालूम होता है कि तुम बहुत दिन जिओगे। इससे पहले बहुत-से गुलाम खो कर भी मैं मामूली लाभ ही पाता था, अब तुम्हारे कारण मैं ही नहीं इस नगर के सारे व्यापारी संपन्न हो जाएँगे। मैं तुम्हें न केवल स्वतंत्र करूँगा बल्कि तुम्हें बड़ी धन-दौलत भी दूँगा और अन्य व्यापारियों से भी बहुत कुछ दिलवाऊँगा।'

मैंने कहा, 'आप मेरे स्वामी हैं। भगवान आपको चिरायु करे। मैं आपका बड़ा कृतज्ञ हूँ कि आपने समुद्री डाकुओं के पंजे से मुझे छुड़ा लिया और मेरा बड़ा भाग्य था कि मैं इस नगर में आ कर बिका। अब मैं आपसे और अन्य व्यापारियों से इतनी दया चाहता हूँ कि मुझे मेरे देश पहुँचा दें।' उसने कहा, 'तुम धैर्य रखो। जहाज यहाँ पर एक विशेष ॠतु में आते हैं और उनके व्यापारी हमसे हाथी दाँत मोल लेते हैं। जब वे जहाज आएँगे तो हम लोग तुम्हारे देश को जाने वाले किसी जहाज पर तुम्हें चढ़ा देंगे।' मैंने उसे सैकड़ों आशीर्वाद दिए।

मैं कई महीनों तक जहाजों के आने की प्रतीक्षा करता रहा। इस बीच मैं कई बार जंगल में गया और हाथी दाँत लाया और इनसे उसका घर भर दिया। व्यापारियों को भी उस खड्ड के बारे में बताया और वे सभी वहाँ से हाथी दाँत ला कर अत्यंत संपन्न हो गए। जहाजों की ॠतु आने पर जहाज वहाँ पहुँचे। मेरे स्वामी व्यापारी ने अपने घर के आधे हाथी दाँत मुझे दे दिए और एक जहाज पर मेरे नाम से उन्हें चढ़ा दिया और अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री भी मुझे दे दी। अन्य व्यापारियों ने भी मुझे बहुत कुछ दिया। मैं जहाज पर कई द्वीपों की यात्रा करता हुआ फारस के एक बंदरगाह पर पहुँचा। वहाँ से थल मार्ग से बसरा आया और हाथी दाँत बेच कर कई मूल्यवान वस्तुएँ ली। फिर बगदाद आ गया।

बगदाद आ कर मैं तुरंत ही खलीफा के दरबार में पहुँचा और उससे पत्र और उपहारों को सरान द्वीप के बादशाह के पास पहुँचाने का हाल कहा। खलीफा ने कहा कि मेरा ध्यान सदैव तुम्हारी कुशलता की ओर लगा रहता था और मैं भगवान से प्रार्थना करता था कि तुम्हें सही-सलामत वापस लाए। जब मैंने अपना हाथियोंवाला अनुभव उसे सुनाया तो उसे यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने अपने एक लेखनकार को यह आदेश दिया कि मेरे वृत्तांत को सुनहरे अक्षरों में लिख ले और शाही अभिलेखागार में रखे। फिर उसने मुझे खिलअत और बहुत-से इनाम दे कर विदा किया।

सिंदबाद ने कहा कि मित्रो, इसके बाद मैं किसी यात्रा पर नहीं गया और भगवान के दिए हुए धन का उपभोग करता हूँ। फिर उसने हिंदबाद से कहा कि अब तुम बताओ कि कोई और मनुष्य ऐसा कहीं है जिसने मुझ से अधिक विपत्तियाँ झेली हों। हिंदबाद ने सम्मानपूर्वक सिंदबाद का हाथ चूमा और कहा, 'सच्ची बात तो यह है कि इन सात समुद्र यात्राओं के दौरान जितनी मुसीबत आपने उठाई और जितनी बार प्राणों के संकट से बच कर निकले उतनी किसी की भी शक्ति नहीं है। मैं अभी तक बिल्कुल अनजान था कि अपनी निर्धनता को रोता था और आपकी सुख-सुविधाओं से ईर्ष्या करता था। मैं रूखी-सूखी खाता हूँ किंतु भगवान को लाख धन्यवाद है कि अपने स्त्री-पुत्रों के बीच आनंद से रहता हूँ। ऐसी कोई विपत्ति मुझ पर नहीं आई जैसी विपत्तियाँ आपने उठाई हैं। वास्तव में जो सुख आप भोग रहे हैं आप उससे अधिक के अधिकारी हैं। भगवान करें आप सदैव इसी प्रकार ऐश्वर्यवान और सुखी रहें।'

सिंदबाद ने हिंदबाद को चार सौ दीनारें और दीं और उससे कहा कि तुम अब मेहनत-मजदूरी करना छोड़ दो और मेरे मुसाहिब हो जाओ। मैं सारी उम्र तुम्हारे स्त्री-बच्चों का भरण-पोषण करूँगा। हिंदबाद ने ऐसा ही किया और सारी आयु आनंद से बिताई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा - by neerathemall - 16-08-2022, 01:12 PM



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