16-08-2022, 01:12 PM
सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक दिन अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहा था कि एक नौकर ने आ कर कहा कि खलीफा के दरबार से एक सरदार आया है, वह आपसे बात करना चाहता है। मैं भोजन करके बाहर गया तो सरदार ने मुझसे कहा कि खलीफा ने तुम्हें बुलाया है। मैं तुरंत खलीफा के दरबार को चल पड़ा।
खलीफा के सामने जा कर मैंने जमीन चूम कर प्रणाम किया। खलीफा ने कहा, 'सिंदबाद, मैं चाहता हूँ कि सरान द्वीप के बादशाह के पत्र के उत्तर में पत्र भेजूँ और उसके उपहारों के बदले उपहार भेजूँ। तुम यह सब ले जा कर सरान द्वीप के बादशाह को पहुँचा दो।'
मुझे यह आदेश पा कर बड़ी परेशानी हुई। मैंने हाथ जोड़ कर कहा, 'हे समस्त *ों के अधिपति, मुझ में आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस तो नहीं है किंतु मैंने समुद्र की कई यात्राएँ की हैं और हर एक में ऐसे ऐसे जानलेवा कष्ट झेले हैं कि अब दृढ़ निश्चय किया है कि कभी जहाज पर पाँव नहीं रखूँगा।' यह कह कर मैंने खलीफा को संक्षेप में अपनी छहों यात्राओं की विपदा सुनाई। खलीफा को यह सब सुन कर आश्चर्य बहुत हुआ किंतु उसने अपना निर्णय न बदला। उसने कहा, 'वास्तव में तुम पर बड़े कष्ट पड़े हैं लेकिन मेरे कहने से एक बार और यात्रा करो क्योंकि इस काम को तुम्हारे अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। फिर तुम कभी यात्रा न करना।'
मैंने देखा कि खलीफा अपने निश्चय से हटनेवाला नहीं है और तर्क-वितर्क से कोई लाभ न होगा इसीलिए मैंने यात्रा पर जाना स्वीकार कर लिया। खलीफा ने मुझे राह खर्च के लिए चार हजार दीनार देने को कहा और कहा कि तुम तुरंत ही अपने घर जाओ और घर की व्यवस्था ठीक करके यात्रा की तैयारी शुरू कर दो। मैं घर जा कर अपने काम- काज को समेटने लगा और यात्रा के लिए तैयारी करके कुछ दिनों के बाद खलीफा के दरबार में जा पहुँचा।
मुझे खलीफा के सामने हाजिर किया गया। मैंने रीति के अनुसार धरती चूम कर खलीफा को प्रणाम किया। खलीफा मुझे देख कर प्रसन्न हुआ और उसने मेरी कुशलक्षेम पूछी। मैंने भगवान की अनुकंपा और खलीफा की दया की प्रशंसा की। खलीफा ने मुझे चार हजार दीनार यात्रा व्यय के लिए दिलाए।
मैं खलीफा की आज्ञानुसार उसके दिए हुए उपहार ले कर बसरा बंदरगाह पर आया और वहाँ से एक जहाज ले कर सरान द्वीप को चल दिया। यात्रा निर्विघ्न समाप्त हुई। मैं सूचना दे कर सरान द्वीप के बादशाह के सामने गया और अपना परिचय दिया। उसने कहा, हाँ सिंदबाद, मैंने तुम्हें पहचान लिया। तुम कुशल-मंगल से तो हो। मैंने बादशाह की न्यायप्रियता और मृदु स्वभाव की प्रशंसा की और कहा कि मैं खलीफा की ओर से आपके लिए कुछ भेंट और एक पत्र लाया हूँ।
खलीफा ने जो उपहार भेजे थे उनमें अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त एक अत्यंत सुंदर लाल रंग का कालीन था जिसका मूल्य चार हजार दीनार था। उस पर बहुत ही सुंदर सुनहरा काम किया हुआ था। एक प्याला माणिक का था जिसका दल एक अंगुल मोटा था। प्याले पर एक मनुष्य का चित्र बना था जो तीर-कमान से एक शेर का शिकार कर रहा था। एक राज सिंहासन भी था, जो ऊपर से नीचे तक रत्नों से जड़ा था और हजरत सुलेमान के तख्त को भी मात करता था। इसके अलावा और बहुत-सी मूल्यवान और दुर्लभ वस्तुएँ थीं। उपहारों को देखने के बाद बादशाह ने खलीफा का पत्र पढ़ा।
खलीफा के सामने जा कर मैंने जमीन चूम कर प्रणाम किया। खलीफा ने कहा, 'सिंदबाद, मैं चाहता हूँ कि सरान द्वीप के बादशाह के पत्र के उत्तर में पत्र भेजूँ और उसके उपहारों के बदले उपहार भेजूँ। तुम यह सब ले जा कर सरान द्वीप के बादशाह को पहुँचा दो।'
मुझे यह आदेश पा कर बड़ी परेशानी हुई। मैंने हाथ जोड़ कर कहा, 'हे समस्त *ों के अधिपति, मुझ में आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस तो नहीं है किंतु मैंने समुद्र की कई यात्राएँ की हैं और हर एक में ऐसे ऐसे जानलेवा कष्ट झेले हैं कि अब दृढ़ निश्चय किया है कि कभी जहाज पर पाँव नहीं रखूँगा।' यह कह कर मैंने खलीफा को संक्षेप में अपनी छहों यात्राओं की विपदा सुनाई। खलीफा को यह सब सुन कर आश्चर्य बहुत हुआ किंतु उसने अपना निर्णय न बदला। उसने कहा, 'वास्तव में तुम पर बड़े कष्ट पड़े हैं लेकिन मेरे कहने से एक बार और यात्रा करो क्योंकि इस काम को तुम्हारे अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। फिर तुम कभी यात्रा न करना।'
मैंने देखा कि खलीफा अपने निश्चय से हटनेवाला नहीं है और तर्क-वितर्क से कोई लाभ न होगा इसीलिए मैंने यात्रा पर जाना स्वीकार कर लिया। खलीफा ने मुझे राह खर्च के लिए चार हजार दीनार देने को कहा और कहा कि तुम तुरंत ही अपने घर जाओ और घर की व्यवस्था ठीक करके यात्रा की तैयारी शुरू कर दो। मैं घर जा कर अपने काम- काज को समेटने लगा और यात्रा के लिए तैयारी करके कुछ दिनों के बाद खलीफा के दरबार में जा पहुँचा।
मुझे खलीफा के सामने हाजिर किया गया। मैंने रीति के अनुसार धरती चूम कर खलीफा को प्रणाम किया। खलीफा मुझे देख कर प्रसन्न हुआ और उसने मेरी कुशलक्षेम पूछी। मैंने भगवान की अनुकंपा और खलीफा की दया की प्रशंसा की। खलीफा ने मुझे चार हजार दीनार यात्रा व्यय के लिए दिलाए।
मैं खलीफा की आज्ञानुसार उसके दिए हुए उपहार ले कर बसरा बंदरगाह पर आया और वहाँ से एक जहाज ले कर सरान द्वीप को चल दिया। यात्रा निर्विघ्न समाप्त हुई। मैं सूचना दे कर सरान द्वीप के बादशाह के सामने गया और अपना परिचय दिया। उसने कहा, हाँ सिंदबाद, मैंने तुम्हें पहचान लिया। तुम कुशल-मंगल से तो हो। मैंने बादशाह की न्यायप्रियता और मृदु स्वभाव की प्रशंसा की और कहा कि मैं खलीफा की ओर से आपके लिए कुछ भेंट और एक पत्र लाया हूँ।
खलीफा ने जो उपहार भेजे थे उनमें अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त एक अत्यंत सुंदर लाल रंग का कालीन था जिसका मूल्य चार हजार दीनार था। उस पर बहुत ही सुंदर सुनहरा काम किया हुआ था। एक प्याला माणिक का था जिसका दल एक अंगुल मोटा था। प्याले पर एक मनुष्य का चित्र बना था जो तीर-कमान से एक शेर का शिकार कर रहा था। एक राज सिंहासन भी था, जो ऊपर से नीचे तक रत्नों से जड़ा था और हजरत सुलेमान के तख्त को भी मात करता था। इसके अलावा और बहुत-सी मूल्यवान और दुर्लभ वस्तुएँ थीं। उपहारों को देखने के बाद बादशाह ने खलीफा का पत्र पढ़ा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.