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Thriller सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा
#8
खैर, आदमियों के बीच पहुँचकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और मैंने ऊँचे स्वर में अपनी भाषा अरबी में भगवान को धन्यवाद दिया और कहा कि भगवान क्षण-क्षण पर मनुष्य की सहायता करता है और मनुष्य को चाहिए कि उसकी अनुकंपा से निराश न हो और मुझे भी उचित है कि आँख बंद करके स्वयं भगवान के सहारे छोड़ दूँ।

उन लोगों में से एक को अरबी भाषा आती थी। मेरी बातें सुनकर वह मेरे पास आया और कहने लगा, 'तुम हम लोगों को देखकर चिंता न करो। हम लोग इस क्षेत्र के वासी हैं। हम यहाँ नदी से अपने खेतों में पानी देने के लिए आते हैं। आज नदी में पानी कम आ रहा था जैसे धारा को कोई चीज रोके हुए हो। हमने आगे जाकर देखा तो एक मोड़ पर तुम्हारी नाव टेढ़ी होकर अटकी थी जिससे पानी धारा में आना कम हो गया था। हममें से एक व्यक्ति तैर कर गया और तुम्हारी नाव को उसने फिर सीधा करके धारा में डाला। फिर हमने तुम्हारी नाव यहाँ बाँध दी। अब तुम बताओ कि कौन हो और कहाँ से आए हो।'

मैंने उससे कहा कि मेरी भूख से जान निकली जा रही है, पहले कुछ खाने को दो। उन लोगों ने कई तरह की खाने की चीजें दीं। फिर मैंने आरंभ से अंत तक अपना हाल उन्हें बताया। उन लोगों को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि हम तुम्हें अपने बादशाह के पास ले जाएँगे, वहाँ तुम उन्हें अपना हाल सुनाना। मैंने कहा, मैं इसके लिए तैयार हूँ।

वे लोग मेरी गठरियाँ उठा कर मेरे साथ चले। यह सरान द्वीप (लंका) था। मैंने राज दरबार में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठे राजा को देखकर हिंदुओं की प्रथानुसार उसे प्रणाम किया और उसके सिंहासन को चूमा। बादशाह ने पूछा, तू कौन है। मैंने कहा, मेरा नाम सिंदबाद जहाजी है, मैं बगदाद नगर का निवासी हूँ। उसने कहा, तू कहाँ जा रहा है और मेरे राज्य में कैसे आया। मैंने उसे अपनी यात्रा का वृत्तांत आद्योपांत बताया। उसे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने आज्ञा दी कि सिंदबाद के जीवन का वृत्तांत लिख लिया जाए बल्कि सोने के पानी से लिखा जाए ताकि यह हमारे यहाँ के इतिहास की तथा अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों में भी जगह पर सके।

उसने मेरी गठरियाँ खोलने की आज्ञा दी। उनमें के बहुमूल्य रत्नों तथा चंदनादि अन्य वस्तुओं को देखकर उसे और भी आश्चर्य हुआ। मैंने कहा, 'महाराजाधिराज, यह सब आप ही का है, आप इसमें से जितना चाहें ले लें बल्कि सब कुछ लेना चाहें तो वह भी करें।' उसने मुस्कराकर उत्तर दिया, 'नहीं, यह सब तेरा हैं, हम इसमें से कुछ नहीं लेंगे।' फिर उसने आज्ञा दी कि इस मनुष्य को इसके माल-असबाब के साथ एक अच्छे घर में ठहराओ, इसकी सेवा के लिए अनुचर रखो और हर प्रकार इसकी सुख-सुविधा का खयाल रखो। उसके सेवकों ने ऐसा ही किया और मुझे एक शानदार मकान में ले जाकर उतारा। मैं रोज राज दरबार जाया करता था और वहाँ से छुट्टी मिलने पर इधर-उधर घूम-फिर कर राज्य की देखने योग्य चीजें देखा करता था।

सरान द्वीप भूमध्य रेखा के किंचित दक्षिण में है। इसीलिए वहाँ सदैव ही दिन और रात बराबर होते हैं। उस द्वीप की लंबाई चालीस कोस है और इतनी ही उसकी चौड़ाई है। राजधानी के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं। वहाँ से समुद्र तट तीन दिन की राह पर है। वहाँ लाल (मणि) तथा अन्य रत्नों की कई खानें हैं और वहाँ कोरंड नामी पत्थर भी पाया जाता है जिससे हीरों और अन्य रत्नों को काटते और तराशते हैं। वहाँ नारियल के तथा अन्य कई फलों के वृक्ष भी बहुतायत से हैं। वहाँ के समुद्र में मोती भी बहुत मिलते हैं। हजरते आदम, जो कुरान और बाइबिल के अनुसार मनुष्यों के आदि पुरुष हैं, जब स्वर्ग से उतारे गए थे तो इसी द्वीप के एक पहाड़ पर लाए गए थे।

जब मैं वहाँ खूब घूम-फिर कर देख चुका तो मैंने बादशाह से निवेदन किया कि अब मुझे मेरे देश जाने की अनुमति दीजिए। उसने मुझे अनुमति ही नहीं बल्कि कई बहुमूल्य वस्तुएँ इनाम के तौर पर भी दीं। उसने खलीफा हारूँ रशीद के नाम एक पत्र और बहुत-से उपहार भी मुझे दिए कि मैं उन्हें खलीफा तक पहुँचा दूँ। मैंने सिर झुका कर यह स्वीकार किया। बादशाह ने मेरे ले जाने के लिए एक मजबूत जहाज का प्रबंध किया और कप्तान और खलासियों को ताकीद की कि सिंदबाद को बड़े सम्मान से उसके देश में पहुँचाना, रास्ते में इसे किसी प्रकार की असुविधा न हो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा - by neerathemall - 16-08-2022, 01:10 PM



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