16-08-2022, 01:03 PM
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सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा ~ अलिफ लैला
0 Nisheeth Ranjan
मैंने उससे पूछा कि तुम क्या कर रहे हो। उसने मुझे संकेत में बताया कि चाहता है कि मैं उसे अपने कंधों पर बिठाकर नहर पार करा दूँ। मैंने सोचा कि शायद उस पार यह मेरे कंधों पर चढ़कर पेड़ों से फल तोड़ना और खाना चाहता है। मैंने उसे अपनी गर्दन पर चढ़ा लिया।
सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा ~ अलिफ लैला
0 Nisheeth Ranjan
सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार यात्रा करनी चाही। चूँकि कोई कप्तान मेरी निर्धारित यात्रा पर जाने को राजी नहीं हुआ इसलिए मैंने खुद ही एक जहाज बनवाया। जहाज भरने के लिए सिर्फ मेरा माल काफी न था इसीलिए मैंने अन्य व्यापारियों को भी उस पर चढ़ा लिया और हम अपनी यात्रा के लिए गहरे समुद्र में आ गए।
कुछ दिनों में हमारा जहाज एक निर्जन टापू पर लगा। वहाँ रुख पक्षी का एक अंडा रखा था जैसा कि एक पहले की यात्रा में मैंने देखा था। मैंने अन्य व्यापारियों को उसके बारे में बताया। वे उसे देखने उसके पास गए। उस अंडे में से बच्चा निकलने वाला था। जब जोर की ठक-ठक की आवाज के साथ बच्चे की चोंच अंडा तोड़ कर निकली तो व्यापारियों को सूझा कि रुख के बच्चे को भूनकर खा जाएँ। वे कुल्हाड़ियों से अंडा तोड़ने लगे। मेरे लाख मना करने पर भी वे न माने और बच्चा निकालकर उसे काट-भून कर खा गए।
कुछ ही देर में चार बड़े-बड़े बादल जैसे आते दिखाई दिए। मैंने पुकारकर कहा कि जल्दी से जहाज पर चलो, रुख पक्षी आ रहे हैं। हम जहाज पर पहुँचे ही थे कि बच्चे के माता-पिता वहाँ आ गए और अंडे को टूटा और बच्चे को मरा देख कर क्रोध में भयंकर चीत्कार करने लगे। कुछ देर में वे उड़कर चले गए। हमने तेजी से जहाज एक ओर भगाया कि रुख पक्षियों के क्रोध से बचें किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ही देर में रुख पक्षियों का एक पूरा झुंड हमारे सिर पर आ पहुँचा। उनके पंजों में विशालकाय चट्टानें दबी थीं। उन्होंने हम पर चट्टान गिराना शुरू किया। एक चट्टान जहाज से थोड़ी दूर पर गिरी और उससे पानी इतना उथल-पुथल हुआ कि जहाज डगमगाने लगा। दूसरी चट्टान जहाज के ठीक ऊपर गिरी और जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो गए। सारे व्यापारी और व्यापार का माल जलमग्न हो गया। मुझे ही प्राण रक्षा का अवसर मिला और मैं एक तख्ते का सहारा लेकर किसी तरह एक टापू पर पहुँचा।
तट पर कुछ देर तक सुस्ताने के बाद मैं उस द्वीप पर घूम फिर कर देखने लगा कि क्या किया जा सकता हैं। मैंने देखा कि वहाँ सुंदर फलों के कई बाग हैं। कई पेड़ों के फल कच्चे थे किंतु बहुत-से फल पके और मीठे थे। कई जगह मैंने मीठे पानी के स्रोत देखे। मैंने पेट भरकर पके फल खाए और एक स्रोत से पानी पिया। रात हो गई थी इसीलिए मैं एक जगह पर सोने के इरादे से लेट गया। किंतु मुझे नींद न आई। निर्जन स्थान का भय भी था और अपने दुर्भाग्य पर दुख भी था। मैं रोता था और स्वयं को धिक्कारता था कि इतनी धन-दौलत होने पर भी, जिससे आयुपर्यंत सुख और ऐश्वर्य के साथ रह सकता था, यह फिर यात्रा करने की मूर्खता क्यों की। कभी यह भी सोचने लगता था कि इस द्वीप से किस तरह निकलकर बाहर जाया जा सकता है।
इतने में सवेरा हो गया। मैं भी अपनी उधेड़बुन को छोड़कर उठ खड़ा हुआ और फलवाले पेड़ों को घूम-घूमकर देखने लगा। कुछ ही देर में मैंने देखा कि वहाँ किनारे एक बूढ़ा बैठा है। वह बहुत कमजोर लगता था और मालूम होता था कि उसकी कमर से नीचे का भाग पक्षाघात-ग्रस्त है। पहले मैंने सोचा कि यह भी मेरी तरह का कोई भूला-भटका यात्री है जिसका जहाज डूब गया है। मैंने उसके समीप जाकर उसका अभिवादन किया। उसने कुछ उत्तर न दिया, केवल सिर हिलाया।
मैंने उससे पूछा कि तुम क्या कर रहे हो। उसने मुझे संकेत में बताया कि चाहता है कि मैं उसे अपने कंधों पर बिठाकर नहर पार करा दूँ। मैंने सोचा कि शायद उस पार यह मेरे कंधों पर चढ़कर पेड़ों से फल तोड़ना और खाना चाहता है। मैंने उसे अपनी गर्दन पर चढ़ा लिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.