16-08-2022, 01:02 PM
सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार यात्रा करनी चाही। चूँकि कोई कप्तान मेरी निर्धारित यात्रा पर जाने को राजी नहीं हुआ इसलिए मैंने खुद ही एक जहाज बनवाया। जहाज भरने के लिए सिर्फ मेरा माल काफी न था इसीलिए मैंने अन्य व्यापारियों को भी उस पर चढ़ा लिया और हम अपनी यात्रा के लिए गहरे समुद्र में आ गए।
कुछ ही देर में चार बड़े-बड़े बादल जैसे आते दिखाई दिए। मैंने पुकारकर कहा कि जल्दी से जहाज पर चलो, रुख पक्षी आ रहे हैं। हम जहाज पर पहुँचे ही थे कि बच्चे के माता-पिता वहाँ आ गए और अंडे को टूटा और बच्चे को मरा देख कर क्रोध में भयंकर चीत्कार करने लगे। कुछ देर में वे उड़कर चले गए। हमने तेजी से जहाज एक ओर भगाया कि रुख पक्षियों के क्रोध से बचें किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ही देर में रुख पक्षियों का एक पूरा झुंड हमारे सिर पर आ पहुँचा। उनके पंजों में विशालकाय चट्टानें दबी थीं। उन्होंने हम पर चट्टान गिराना शुरू किया। एक चट्टान जहाज से थोड़ी दूर पर गिरी और उससे पानी इतना उथल-पुथल हुआ कि जहाज डगमगाने लगा। दूसरी चट्टान जहाज के ठीक ऊपर गिरी और जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो गए। सारे व्यापारी और व्यापार का माल जलमग्न हो गया। मुझे ही प्राण रक्षा का अवसर मिला और मैं एक तख्ते का सहारा लेकर किसी तरह एक टापू पर पहुँचा।
कुछ दिनों में हमारा जहाज एक निर्जन टापू पर लगा। वहाँ रुख पक्षी का एक अंडा रखा था जैसा कि एक पहले की यात्रा में मैंने देखा था। मैंने अन्य व्यापारियों को उसके बारे में बताया। वे उसे देखने उसके पास गए। उस अंडे में से बच्चा निकलने वाला था। जब जोर की ठक-ठक की आवाज के साथ बच्चे की चोंच अंडा तोड़ कर निकली तो व्यापारियों को सूझा कि रुख के बच्चे को भूनकर खा जाएँ। वे कुल्हाड़ियों से अंडा तोड़ने लगे। मेरे लाख मना करने पर भी वे न माने और बच्चा निकालकर उसे काट-भून कर खा गए।
कुछ ही देर में चार बड़े-बड़े बादल जैसे आते दिखाई दिए। मैंने पुकारकर कहा कि जल्दी से जहाज पर चलो, रुख पक्षी आ रहे हैं। हम जहाज पर पहुँचे ही थे कि बच्चे के माता-पिता वहाँ आ गए और अंडे को टूटा और बच्चे को मरा देख कर क्रोध में भयंकर चीत्कार करने लगे। कुछ देर में वे उड़कर चले गए। हमने तेजी से जहाज एक ओर भगाया कि रुख पक्षियों के क्रोध से बचें किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ही देर में रुख पक्षियों का एक पूरा झुंड हमारे सिर पर आ पहुँचा। उनके पंजों में विशालकाय चट्टानें दबी थीं। उन्होंने हम पर चट्टान गिराना शुरू किया। एक चट्टान जहाज से थोड़ी दूर पर गिरी और उससे पानी इतना उथल-पुथल हुआ कि जहाज डगमगाने लगा। दूसरी चट्टान जहाज के ठीक ऊपर गिरी और जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो गए। सारे व्यापारी और व्यापार का माल जलमग्न हो गया। मुझे ही प्राण रक्षा का अवसर मिला और मैं एक तख्ते का सहारा लेकर किसी तरह एक टापू पर पहुँचा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.