11-08-2022, 07:06 PM
मेरे अंतरंग हमसफ़र
चतुर्थ अध्याय
लंदन जाने की तयारी
भाग 38
पहली डेट
मैंने सर उठा कर देखा तो एक 35-40 साल की महिला जिन्होंने बुरका पहना हुआ था वह मुझे पुकार रही थी और बोली क्या में आपका पेन इस्तेमाल कर सकती हूँ।
मैं उनका चेहरा तो नहीं देख पाया क्योंकि उसने सर से पाँव तक बुरका पहना हुआ था और मुँह पर नक़ाब था परन्तु उनकी आवाज और हाथ से मुझे एहसास हुआ की वह बहुत ही खूबसूरत होगी । मैंने उन्हें पेन दिया तो मन में यही विचार आया की आप मेरा ये पेन नहीं दूसरा पेन भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
फिर मोहतरमा ने मेरा पेन लिया और एक और मोहतरमा के पास चली गयी और वह भी बुर्क़े में थी । वह पेन ले कर गयी तो जिस के पास गयी उनसे पुछा की पेन कहा से ले कर आयी । तो पहले वाली मोहतरमा ने मेरी और इशारा किया । दूसरी मोहतरमा ने कुछ कागज साइन किये। इतने में उनका नंबर आ गया और वह मेरा पेन लेकर जल्दी से अंदर चली गयी।
खैर उनसे वहाँ फिर मुलाकात तो नहीं हुई क्योंकि फिर मेरा भी नंबर आ गया और उस दिन मेरा वीसा इंटरव्यू का काम जल्दी से निपट गया और मेरा पेन उन्ही मोहतरमा के पास रह गया।
मैं वापिस निकला तो वह दोनों भी कहीं नजर नहीं आयी और फिर मैं रेस्टोरेंट में गया और हमने लंच किया तो लगभग चार से ऊपर का समय हो गया। फिर हमने कुछ शॉपिंग की और इस बीच अचानक चारों तरफ़ बादल छा गए और अँधेरा जैसा हो गया और हवा तेज हो गई और आंधी आयी। तभी हलकी-हलकी बारिश की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी और मौसम सुहाना हो गया।
तो हुमा बोली मौसम कितना सुहाना हो गया चलो कही घूमने चलते हैं।
मैंने कहा ठीक है नदी के किनारे चलते हैं और वहाँ नौका विहार करेंगे। तो एमी बोली मिली और लिली दीदी को भी बुलवा लीजिये। मैंने उन्हें भी फोन कर आमंत्रित किया तो उन्होंने खुशी से उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और फिर जब बारिश रुकी तो हम नदी किनारे पर गए।
हम चारो के सिवा वहाँ कोई नहीं था। नदी किनारे काफ़ी घास उगी हुई थी और हरियाली थी और वहाँ ठंडी हवा चल रही थी। शाम हो गयी थी और सूर्य की रोशनी कम हो रही थी और हम नदी के किनारे घास पर चल रहे थे, बहुत ही रोमांटिक माहौल था।
वहाँ ठंडी हवा चल रही थी फिर हमने एक बड़ी नाव किराए पर ली। हमने वहा पर नाविक को बोला कुछ लोग और आएंगे। तो वह बोला हमउन्हें दुसरे नाव से आपके पास पहुँचा देंगे। जल्द ही हम नाव में थे और हम नदी में नौका विहार करने लगे।
मैंने पुछा-कैसा लग रहा है मैडम?
मैंने हुमा और एमी का हाथ पकड़ा हुया था। फिर मैंने हुमा को अपनी बाँहों में भर लिया। वह मेरी चौड़ी छाती और मज़बूत कंधों से मैं होश खोने लगी और मैंने भी उसे मजबूती से अपने आलिंगन में कस लिया। मैं उसके बदन पर अपने हाथ फिराने लगा और मेरे चेहरे को उसके चेहरे पर रगड़ने लगा। वह बहुत उत्तेजित हो गयी और मेरे होठों को चूमना चाहती थी।
मेरे चूमने से पहले ही अपनी सारी शरम छोड़कर मेरे होठों का चुंबन ले लिया। तुरंत ही मैं भी उसके होठों को चूमने लगा और लार से उसके होंठ गीले हो गये। मैं हुमा के होठों का रस अब निचोड़ लेना चाहता था। जब मेरे होंठ कुछ पल के लिए अलग हुए तो हुमा बुरी तरह हाँफने लगी।
मेरे चूमने से और बाद में बदन पर हाथ फिराते देख एमी भी उत्तेजित हो गयी थी और उधर हुमा भी सिसकारियों भरते हुए मेरा नाम ले रही थी। उसकी टाँगें काँपने लगी तो मैंने अपनी मज़बूत बाँहों ने उसे थामे रखा।
हुमा का टॉप काफी ढीला था इसलिए उसकी चूचियों का ऊपरी हिस्सा साफ़ दिख रहा था।
मैंने अपना मुँह उसकी स्तनों की दरार (क्लीवेज) पर लगा दिया और उसकी चूचियों के मुलायम ऊपरी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। वह उत्तेजना से पागल-सी हो गयी। उसने भी मौका देखकर अपने दाएँ हाथ से मेरी पैंट में खड़े लंड को पकड़ लिया।
मेरे मोटे लंड को पैंट के बाहर से हाथ में पकड़कर हुमा ने ज़ोर से सिसकारी ली। मैंने पैंट की ज़िप खोलने में मदद की। लंड अंडरवेअर में खम्बे की तरह खड़ा था। वह अंडरवियर के बाहर से ही खड़े लंड को सहलाने लगी। फिर मैंने उसकी चूचियों से मुँह हटा लिया।
वो कुछ समझ नहीं पाई की क्या हुआ। उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी और एक हाथ में उसने मेरा लंड पकड़ा हुआ था। उसने मेरी तरफ देखा ऑटो पाया मैं नदी के किनारे की ओर देख रहा है और एक नाव हमारी तरफ़ आ रही थी।
अब मेरा ध्यान एमी की तरफ गया उसने एक छोटी-सी स्कर्ट पहनी हुई थी जिससे उसके सुंदर सुडौल टाँगे और सुंदर पतले टखने मुझे दिखाई दे रहे थे, उसने मुझे देखते हुए देखा तो उसने अपनी ड्रेस को पुन: समायोजन का प्रयास किया-लेकिन इससे उसकी कमर और नाभि दिखने लगी।
मैं खुलकर जोर से हंसा और कहा, 'ठीक है, एमी आज तुम अपनी खूबसूरती दिखाने के मामले में इतनी कंजूस क्यों हो गयी हो, जब तुम कल रात तुम मेरे पर महरबान थी और आज रात फिर से वैसी ही बनने जा रही हो!'
एमी का रंग लाल हुआ और गहरे लाल रंग में रंगी, फिर बहुत भ्रम में थोड़ा-सा मुस्कुरायी और बोली, 'हमे स्थान और परिवेश पर विचार कर ही आचरण करना चाहिए. प्रिय-मुझे पूरा यकीन है कि कल रात मैं जैसी थी उसे अब आप भी यहाँ इस समय वैसी मुझे पसंद नहीं करोगे । अभी ये नहीं होगा!' मैं फिर उसके पास गया और हम तीनो ने उसे घेरे में ले लिया और बोला जब हम नदी के बीच में पहुँचेगे तो आपको पोषक बदलने का अवसर मिलेगा जो पोशाक हमने आज आपके लिए खरीदी हैं आप उन्हें आजमा सकती हैं! '
मैंने नाविक से कहा हमारे मित्र दूसरी नाव से आ रहे है आप हमें घने पेड़ों के अंत तक ले जाओ। 'जल्द ही हमने खुद को एक शानदार जगह में पाया जहाँ घने पेड़ो का झुरमुट था और पूर्ण गोपनीयता थी। नाविक ने नाव में लंगर डाल दिया ताकि नाव बहाव में बह न जाए। फिर मैं एमी की तरफ हुआ और उसे अपनी बगल में निचोड़ लिया और मेरी बाईं बांह को उसकी कमर के चारों ओर खिसका दिया।' यह बहुत रोमांटिक है! '
तभी वहाँ दूसरी नाव आ गयी और उसमे मिली, लिली, बाल सखी शबनम, लिली की सहायिका डेज़ी आ गयी और नाविक उस नाव में वापिस लौट गया और मैंने सबका स्वागत किया । अब सूर्यास्त हो रहा था और सुनहरी घूप हलकी हो गयी थी और, हवा ठंडी थी और मैंने एमी को अपनी ओर आकर्षित करते हुए धीरे से कहा-'क्या ये अवसर, और माहौल आपको जलपरी बनने के लिए प्रेरित नहीं कर रहा'।
एमी उल्लासपूर्वक हँसी और अपना सिर हिला दिया। 'मैंने कभी नाटक नहीं किये हैं कुमार!,'
'मैं आपको अभी ऐसा करने के लिए नहीं कह रहा हूँ, प्रिय,' मैंने जवाब दिया-'नाटको का मतलब है तैयार होना, मेरे सुझाव का मतलब बिल्कुल विपरीत है!' वह खुशी से हँसी, फिर वह दिव्य रूप से शरमा गयी।
तभी मिली धीरे से मेरे कान में फुसफुसाई, कुमार आप अगले कुछ घंटो में आप जो चाहते हैं वह सब देखेंगे, क्या ऐसा नहीं होगा, प्रिय एमी? '
मैंने मिली लिली और एमी को कस कर पकड़ लिया और एमी को अपनी गोद में बिठा लिया और मिली और लिली मेरे साथ चिपक गयी फिर मैंने उन्हें बारी-बारी जोश से चूमा। 'मेरी जान!' मैं फुसफुसाया, ' मैं केवल आपको चिढ़ा रहा था!
जारी रहेगी
दीपक कुमार
चतुर्थ अध्याय
लंदन जाने की तयारी
भाग 38
पहली डेट
मैंने सर उठा कर देखा तो एक 35-40 साल की महिला जिन्होंने बुरका पहना हुआ था वह मुझे पुकार रही थी और बोली क्या में आपका पेन इस्तेमाल कर सकती हूँ।
मैं उनका चेहरा तो नहीं देख पाया क्योंकि उसने सर से पाँव तक बुरका पहना हुआ था और मुँह पर नक़ाब था परन्तु उनकी आवाज और हाथ से मुझे एहसास हुआ की वह बहुत ही खूबसूरत होगी । मैंने उन्हें पेन दिया तो मन में यही विचार आया की आप मेरा ये पेन नहीं दूसरा पेन भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
फिर मोहतरमा ने मेरा पेन लिया और एक और मोहतरमा के पास चली गयी और वह भी बुर्क़े में थी । वह पेन ले कर गयी तो जिस के पास गयी उनसे पुछा की पेन कहा से ले कर आयी । तो पहले वाली मोहतरमा ने मेरी और इशारा किया । दूसरी मोहतरमा ने कुछ कागज साइन किये। इतने में उनका नंबर आ गया और वह मेरा पेन लेकर जल्दी से अंदर चली गयी।
खैर उनसे वहाँ फिर मुलाकात तो नहीं हुई क्योंकि फिर मेरा भी नंबर आ गया और उस दिन मेरा वीसा इंटरव्यू का काम जल्दी से निपट गया और मेरा पेन उन्ही मोहतरमा के पास रह गया।
मैं वापिस निकला तो वह दोनों भी कहीं नजर नहीं आयी और फिर मैं रेस्टोरेंट में गया और हमने लंच किया तो लगभग चार से ऊपर का समय हो गया। फिर हमने कुछ शॉपिंग की और इस बीच अचानक चारों तरफ़ बादल छा गए और अँधेरा जैसा हो गया और हवा तेज हो गई और आंधी आयी। तभी हलकी-हलकी बारिश की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी और मौसम सुहाना हो गया।
तो हुमा बोली मौसम कितना सुहाना हो गया चलो कही घूमने चलते हैं।
मैंने कहा ठीक है नदी के किनारे चलते हैं और वहाँ नौका विहार करेंगे। तो एमी बोली मिली और लिली दीदी को भी बुलवा लीजिये। मैंने उन्हें भी फोन कर आमंत्रित किया तो उन्होंने खुशी से उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और फिर जब बारिश रुकी तो हम नदी किनारे पर गए।
हम चारो के सिवा वहाँ कोई नहीं था। नदी किनारे काफ़ी घास उगी हुई थी और हरियाली थी और वहाँ ठंडी हवा चल रही थी। शाम हो गयी थी और सूर्य की रोशनी कम हो रही थी और हम नदी के किनारे घास पर चल रहे थे, बहुत ही रोमांटिक माहौल था।
वहाँ ठंडी हवा चल रही थी फिर हमने एक बड़ी नाव किराए पर ली। हमने वहा पर नाविक को बोला कुछ लोग और आएंगे। तो वह बोला हमउन्हें दुसरे नाव से आपके पास पहुँचा देंगे। जल्द ही हम नाव में थे और हम नदी में नौका विहार करने लगे।
मैंने पुछा-कैसा लग रहा है मैडम?
मैंने हुमा और एमी का हाथ पकड़ा हुया था। फिर मैंने हुमा को अपनी बाँहों में भर लिया। वह मेरी चौड़ी छाती और मज़बूत कंधों से मैं होश खोने लगी और मैंने भी उसे मजबूती से अपने आलिंगन में कस लिया। मैं उसके बदन पर अपने हाथ फिराने लगा और मेरे चेहरे को उसके चेहरे पर रगड़ने लगा। वह बहुत उत्तेजित हो गयी और मेरे होठों को चूमना चाहती थी।
मेरे चूमने से पहले ही अपनी सारी शरम छोड़कर मेरे होठों का चुंबन ले लिया। तुरंत ही मैं भी उसके होठों को चूमने लगा और लार से उसके होंठ गीले हो गये। मैं हुमा के होठों का रस अब निचोड़ लेना चाहता था। जब मेरे होंठ कुछ पल के लिए अलग हुए तो हुमा बुरी तरह हाँफने लगी।
मेरे चूमने से और बाद में बदन पर हाथ फिराते देख एमी भी उत्तेजित हो गयी थी और उधर हुमा भी सिसकारियों भरते हुए मेरा नाम ले रही थी। उसकी टाँगें काँपने लगी तो मैंने अपनी मज़बूत बाँहों ने उसे थामे रखा।
हुमा का टॉप काफी ढीला था इसलिए उसकी चूचियों का ऊपरी हिस्सा साफ़ दिख रहा था।
मैंने अपना मुँह उसकी स्तनों की दरार (क्लीवेज) पर लगा दिया और उसकी चूचियों के मुलायम ऊपरी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। वह उत्तेजना से पागल-सी हो गयी। उसने भी मौका देखकर अपने दाएँ हाथ से मेरी पैंट में खड़े लंड को पकड़ लिया।
मेरे मोटे लंड को पैंट के बाहर से हाथ में पकड़कर हुमा ने ज़ोर से सिसकारी ली। मैंने पैंट की ज़िप खोलने में मदद की। लंड अंडरवेअर में खम्बे की तरह खड़ा था। वह अंडरवियर के बाहर से ही खड़े लंड को सहलाने लगी। फिर मैंने उसकी चूचियों से मुँह हटा लिया।
वो कुछ समझ नहीं पाई की क्या हुआ। उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी और एक हाथ में उसने मेरा लंड पकड़ा हुआ था। उसने मेरी तरफ देखा ऑटो पाया मैं नदी के किनारे की ओर देख रहा है और एक नाव हमारी तरफ़ आ रही थी।
अब मेरा ध्यान एमी की तरफ गया उसने एक छोटी-सी स्कर्ट पहनी हुई थी जिससे उसके सुंदर सुडौल टाँगे और सुंदर पतले टखने मुझे दिखाई दे रहे थे, उसने मुझे देखते हुए देखा तो उसने अपनी ड्रेस को पुन: समायोजन का प्रयास किया-लेकिन इससे उसकी कमर और नाभि दिखने लगी।
मैं खुलकर जोर से हंसा और कहा, 'ठीक है, एमी आज तुम अपनी खूबसूरती दिखाने के मामले में इतनी कंजूस क्यों हो गयी हो, जब तुम कल रात तुम मेरे पर महरबान थी और आज रात फिर से वैसी ही बनने जा रही हो!'
एमी का रंग लाल हुआ और गहरे लाल रंग में रंगी, फिर बहुत भ्रम में थोड़ा-सा मुस्कुरायी और बोली, 'हमे स्थान और परिवेश पर विचार कर ही आचरण करना चाहिए. प्रिय-मुझे पूरा यकीन है कि कल रात मैं जैसी थी उसे अब आप भी यहाँ इस समय वैसी मुझे पसंद नहीं करोगे । अभी ये नहीं होगा!' मैं फिर उसके पास गया और हम तीनो ने उसे घेरे में ले लिया और बोला जब हम नदी के बीच में पहुँचेगे तो आपको पोषक बदलने का अवसर मिलेगा जो पोशाक हमने आज आपके लिए खरीदी हैं आप उन्हें आजमा सकती हैं! '
मैंने नाविक से कहा हमारे मित्र दूसरी नाव से आ रहे है आप हमें घने पेड़ों के अंत तक ले जाओ। 'जल्द ही हमने खुद को एक शानदार जगह में पाया जहाँ घने पेड़ो का झुरमुट था और पूर्ण गोपनीयता थी। नाविक ने नाव में लंगर डाल दिया ताकि नाव बहाव में बह न जाए। फिर मैं एमी की तरफ हुआ और उसे अपनी बगल में निचोड़ लिया और मेरी बाईं बांह को उसकी कमर के चारों ओर खिसका दिया।' यह बहुत रोमांटिक है! '
तभी वहाँ दूसरी नाव आ गयी और उसमे मिली, लिली, बाल सखी शबनम, लिली की सहायिका डेज़ी आ गयी और नाविक उस नाव में वापिस लौट गया और मैंने सबका स्वागत किया । अब सूर्यास्त हो रहा था और सुनहरी घूप हलकी हो गयी थी और, हवा ठंडी थी और मैंने एमी को अपनी ओर आकर्षित करते हुए धीरे से कहा-'क्या ये अवसर, और माहौल आपको जलपरी बनने के लिए प्रेरित नहीं कर रहा'।
एमी उल्लासपूर्वक हँसी और अपना सिर हिला दिया। 'मैंने कभी नाटक नहीं किये हैं कुमार!,'
'मैं आपको अभी ऐसा करने के लिए नहीं कह रहा हूँ, प्रिय,' मैंने जवाब दिया-'नाटको का मतलब है तैयार होना, मेरे सुझाव का मतलब बिल्कुल विपरीत है!' वह खुशी से हँसी, फिर वह दिव्य रूप से शरमा गयी।
तभी मिली धीरे से मेरे कान में फुसफुसाई, कुमार आप अगले कुछ घंटो में आप जो चाहते हैं वह सब देखेंगे, क्या ऐसा नहीं होगा, प्रिय एमी? '
मैंने मिली लिली और एमी को कस कर पकड़ लिया और एमी को अपनी गोद में बिठा लिया और मिली और लिली मेरे साथ चिपक गयी फिर मैंने उन्हें बारी-बारी जोश से चूमा। 'मेरी जान!' मैं फुसफुसाया, ' मैं केवल आपको चिढ़ा रहा था!
जारी रहेगी
दीपक कुमार