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जिया की कामुकता उर्फ बुर कि दुर्दशा
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जिया छत पर थी और उसके फैले हुए जांघो के बीच काका का चेहरा था, काका मेरी बुर पर चुम्बन देते हुए उसके फांकों को अलग कर छेद में जीभ घुसाए और चाटने लगे तो उनका एक हाथ मेरे चूतड़ पर था जिसे वो सहलाते हुए बुर को लपलप चाटे जा रहे थे और मेरे पैर में थरथरी होने लगी तो मैं काका के बाल पर हाथ फेरते हुए आहें भरने लगी ” उह ओह काका तुम तो एक नंबर के बुर चट्ट हो प्लीज चूसो ना मैं तो कल शाम से ही तुझसे मिलने को मरी जा रही थी ” और मेरे रघु काका बुर के दोनों फांकों को आपस में सटाए मुंह में लिए फिर चूसने लगे, मैं चाहकर भी रस निकलने से रोक नहीं सकी फिर बुर में रस स्खलित होने लगा तो काका बुर मुंह से निकाल अब जीभ से चाटने लगे और मैं छत पर यही सोचकर आईं थीं कि रघु के मूसल लंड से चुदवाने का आनंद लेकर ही रहूंगी, काका बुर से जीभ निकाल दिए तो मैं अब बेंच पर बैठी और अभी रात के ०९:२० हुए थे तो मैं पूछी ” क्या काका कुछ पीने की व्यवस्था नहीं है क्या

( ...”  इतने में मेरी मोबाईल बजने लगी और देखी की मॉम का कॉल है ” हैलो
( मॉम ) तुम आंगन में नहीं हो और ना द्वार पर
( मैं डर गई ) हां रितिका के साथ बाराती के जनवाशा पर हूं ” सोची की झूठ पकड़ी ना जाए इसलिए जल्दी में पेंटी पहन छत पर से उतरी फिर आंगन गई तो मंडप पर दूल्हा और दुल्हन बैठे थे और शादी की रस्म शुरू हो चुकी थी तो जमीन पर गद्दा बिछा हुआ था जिसपर कितनी लड़कियां और महिलाएं बैठी हुई थी, मैं मॉम को एक नजर देखी और वहीं खड़ी होकर शादी की रस्म देख रही थी कि मॉम उठकर मेरे पास आई ” बारातियों के भोजन में देर होगी जाकर कुछ खा लो
( मैं बोली ) कोई नहीं, मैं जाकर कुछ खा लेती हूं ” फिर मैं मस्ती में आंगन से बाहर निकली तो मेरा मोबाइल बजने लगा, अनजान नंबर से कॉल था और मैं कॉल रिसीव की ” हैलो कौन
( मर्द की आवाज थी ) रघु काका छत पर आओ तो तुम्हारे लिए बहुत कुछ लाया हूं ” और मैं इधर उधर देखते हुए द्वार के सीढ़ी से उपर पहुंची तो काका फर्श पर गद्दा पर बैठे हुए थे।
मैं अपना सैंडल खोली फिर गद्दे पर उनके सामने बैठ गई तो वो गद्दा के पास ही बबैटः गये े और मैं बोली ” क्यों काका लगता है आज शोभा दीदी की शादी में मेरी सुहागरात हो ही जायेगी
( वो हाथ बढ़ाकर मेरे बूब्स पकड़ दबाने लगे ) पूरी रात यहीं रहना है समझी बाकी खाने का इंतजाम भी यहीं है ” , रघु काका ज्योंहि सिगरेट सुलगाए मैं उनकी ओर हाथ बढ़ाई फिर पैजामा पर से ही लंड के उभार को पकड़ दबाने लगी तो वो सिगरेट की लंबी कस लेते हुए बोले ” ले पिएगी ” मैं सिगरेट लेकर फूंकने लगी और  उनके पैजामा की डोरी को खोलने लगी तो काका खुद ही लंड बाहर निकाल मुझे पकड़ा दिए जिसे मैं खुशी खुशी स्वीकार की, लंड सहलाते हुए दूसरा ग्लास बियर पीने लगी और फिर मैं कामुकता वश बेड पर लेटकर लहंगा को कमर तक की तो काका बेशरम की तरह अपना पैजामा उतार मेरी पेंटी को खोल दिए तो मैं उन्हें बोली ” मेरे मोबाईल कवर में एक दवाई है उसे अंदर घुसाने के बाद ही समझे काका ” तो वो मेरे मोबाईल कवर से टुडे की स्ट्रिप निकाले फिर एक गोली निकाल उसे बुर में घुसाने लगे, उंगलियों की मदद से दवाई बुर के अंदर थी तो रघु काका बोले ” पहले भी चुदवा चुकी हो लेकिन मेरा लंड घुसते ही मत चिल्लाना ” जिया टांगें फैलाए लेटी थी तो काका को क्या पता कि मैं कितनी बड़ी चुदक्क़ड लड़की हूं। एक ओर शोभा दीदी की शादी की रस्में हो रही थी तो हर जगह सजावट, रोशनी तो गीत संगीत भी ब्ज रही थी और छत पर जिया की फैली जांघो के बीच रघु लंड पकड़े बैठा फिर सुपाड़ा को चूत में घुसाने लगा तो मेरी चूत मुखमैथुन करते वक़्त ही रसीली हो गई थी, अब सुपाड़ा सहित उनका लंड अंदर घुसने लगा तो मेरी बुर कि फ्लक पिछले साल भर में बढ़ चुकी थी और मुझे तो लग रहा था कि कोई लोहे का रॉड बुर में घुसे जा रहा है, तभी मेरे बूब्स को चोली पर से ही पकड़ काका दबाने लगे और जोर का धक्का बुर में दिए तो लगा कि उनके लंड से चूत कि सील तुड़वा रही हूं ” ओह फाड़ दिया बे साले
( काका दे दनादन चोदने लगे ) बहुत दिनों से चुदवा रही हो बेबी तू शहरी आवोहवा में मस्त होकर जवानी का आनंद ले रही हो ” मैं क्या बोलती और काका तो मेरे ऊपर सवार होकर चोदने लगे और मैं उनके पीठ से लेकर चूतड़ तक को सहलाने लगी, दोनों जांघें फैलाए चुदवा रही थी तो मन में डर भी था कि कोई छत पर आ गया तो इस हाल में हमें देख क्या सोचेगा, रघु का लौड़ा बुर का तार तार ढीला कर रहा था तो मैं उनके चेहरे को चूमने लगी ” ओह उह आह और तेज चोद साले मेरी मां की भी फट जायेगी तो मैं कौन हूं ” और काका चोदते हुए पसीना पसीना हो चुके थे वैसे भी वसंत ऋतु थी तो मैं उनके नीचे लेटे हुए चुदवाने लगी और कहिए तो अपने आपको समर्पित कर चूत को भगवान के भरोसे छोड़ दी थी, ३-४ मिनट की चुदाई में ही बुर का हाल खराब हो चुका था और मैं आहें भरने लगी ” काका थोड़ा रेस्ट दे दो ” तो रघु अपना लौड़ा बुर से निकाल लिए, मैं उठी तो लगा कि बुर में काफी दर्द और लहर है फिर भी ये तो प्राकृतिक मिलन है चाहे सम्बन्ध की सीमा को दोनों लांघकर मजे ले रहे थे…..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: जिया की कामुकता उर्फ बुर कि दुर्दशा - by neerathemall - 11-08-2022, 02:48 PM



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