11-08-2022, 01:55 PM
“नहीं आँटी, ऐसी कोई बात नहीं।“ इतनी देर में एक दम से बहुत ज़ोरों की बारिश शुरू हो गयी। मेरे इस घर में आने के बाद ये पहली बारिश थी तो मेरा जी चाह रहा था कि मैं ऊपर जा के बालकोनी से बारिश देखूँ। इसी लिये मैंने आँटी से कहा कि “चलिये ऊपर चल के बैठते हैं और बारिश का मज़ा लेते हैं।“
हम दोनों बालकोनी में आ गये। हमारा फ्लैट आठवीं मंज़िल पर बिल्डिंग का सबसे ऊपर वाला फ्लैट है और हमारी बिल्डिंग के सामने सड़क थी और दूसरी तरफ छोटी सी मार्केट थी जहाँ सब्ज़ी, दूध और तकरीबन डेली इस्तेमल की सभी चीज़ें मिल जाया करती थी। इतनी बारिश की वजह से सारा मार्केट सुना पड़ा हुआ था। कभी-कभी कोई इक्का दुक्का सायकल वाला या कोई आदमी बरसाती ओढ़े गुज़र जाता था। हम दोनों बालकोनी में रखी कुर्सियों पे बैठ गये और बाहर का सीन देखने लगे। कभी-कभी बारिश का थोड़ा सा पानी हमारे ऊपर भी गिर जाता था। मौसम ठंडा हो गया था और ऐसा अंधेरा था कि शाम के पाँच बजे ही ऐसा लग रहा था जैसे रात के आठ-नौ बज रहे हों। मैं चाय़ बनाने उठी तो आँटी ने कहा कि, , वही ले आओ।“
वो मेरे लेफ़्ट साईड में बैठी थीं और ईधर-उधर की बात करते-करते पता नहीं आँटी को क्या सूझा कि मुझसे मेरी सैक्स लाईफ के बारे में पूछने लगी। आँटी एक्सपीरियंस्ड थीं। शायद मेरी खामोशी को ताड़ गयीं और धीरे से पूछा, “रात को मज़ा नहीं आता ना??”
मैंने ना में सर हिलाया लेकिन कुछ ज़ुबान से बोली नहीं। उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे से दबाया और कहा कि “मुझे भी नहीं आता, मैं भी ऐसे ही तड़पती रहती हूँ।“ और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर उसका मसाज करने लगी। उन्होंने अपनी सुहाग रात के बारे में बताया जो मेरी सुहाग रात की ही तरह हुई थी और फिर बताया कि कैसे वो अपनी सैक्स की प्यास को बुझाती हैं। मैं हक्की बक्की उनकी कहानी सुन रही थी। उन्होंने बताया कि उनका एक दूर का भाँजा है जो शहर में ही कॉलेज में पढ़ता है और हॉस्टल में रहता है। वो कभी-कभी आँटी की चुदाई करके उनकी प्यासी चूत की प्यास को बुझा देता है। मैं आँटी की कहानी सुन के हैरत में पड़ गयी और सोचने लगी कि मैं अपनी प्यासी चूत की प्यास बुझाने के लिये क्या करूँ।
अब ठंड थोड़ी सी बढ़ गयी ,बहुत अच्छा लग रहा था और हम बैठे हुए बारिश के मज़े ले रहे थे और अपनी अपनी चुदाई कि कहानियाँ एक दूसरे को सुना रहे थे। आँटी अपनी कुर्सी घुमा के मेरी तरफ मुँह करके बैठ गयीं और बीच-बीच में मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मसल रही थीं और अपनी टाँग बढ़ा कर मेरी सलवार ऊपर खिसकाते हुए अपने सैंडल को मेरी मेरी टाँगों पर हल्के-हल्के फिरा रही थीं और मेरे जिस्म में गर्मी आ रही थी। फ्लैट आठवीं मंज़िल पर होने की वजह से कोई हमें सड़क से देख नहीं सकता था और वैसे भी सड़क इतनी बारिश की वजह से सुनसान ही थी। वैसे मैं इस वक्त वो इतनी मस्त हो चुकी थी कि मुझे किसी बात का खयाल भी नहीं था। ऊपर से अपनी टाँगों पर उनके सैंडल का प्यारा सा लम्स और बाहर का ठंडा मौसम। फिर आँटी ने सुहाग रात की और अपनी चुदाई की दास्तान शुरू करके मेरे जिस्म में फिर से आग लगा दी थी।
मुझे सुहैल से चुदवाई हुई वो रातें याद आ रही थी जब मेरी चूत में सुहैल का लंबा मोटा लंड घुस के धूम मचा देता था और चूत-फाड़ झटके मार-मार के मेरी चूत को निचोड़ के अपने लंड का सारा रस मेरी चूत के अंदर छोड़ के कैसे मज़ा देता था। मेरा पूरा दिल और दिमाग सुहैल की चुदाई में था। मुझे पता ही नहीं चला के कब आँटी का पैर मेरी सलवार के ऊपर से जाँघों पे फिसलने लगा और मेरे सारे जिस्म में एक मस्ती का एहसास छाने लगा और बे-साख्ता मेरी टाँगें खुल गयीं और मैंने महसूस किया के आँटी का हाई-हील वाला सैंडल मेरी जाँघ से फिसल के टाँगों के बीच सलवार के ऊफर से चूत पे टिक गया और वो चूत का धीरे-धीरे मसाज करने लगी और मुझे मज़ा आने लगा।
मेरी प्यासी चूत पे आँटी के सैंडल के लम्स और मसाज से मुझे अपने कॉलेज का एक किस्सा याद आ गया। हम उन दिनो ग्यारहवीं क्लास में थे। सुहैल से चुदाई से पहले की बात है। हुआ ये था कि मेरी क्लासमेट, ताहिरा, मेरे पड़ोस में ही रहती थी और कभी वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मिल कर रात में पढ़ाई करते और एक ही बेड में सो जाते। कभी मैं उसके घर चली जाती और साथ पढ़ाई करते और मैं वहीं उसके साथ उसके बेड में ही सो जाती। एक रात वो मेरे घर आयी हुई थी और हम रात को पढ़ाई कर के मेरे बेड पे लेट गये। मेरा रूम घर में ऊपर के फ़्लोर पे था और मम्मी और डैडी का नीचे। मैं ऊपर अकेली ही रहती थी तो हमें अच्छी खासी प्राईवेसी मिल जाती थी। दोनों पढ़ाई खतम कर के सोने के लिये लेट गये। ताहिरा बहुत ही शरारती थी। उसने अपने मम्मी डैडी को चोदते हुए भी कई बार देखा था। कभी सोने का बहाना कर के कभी विंडो में से झाँक कर और फिर मुझे बताती थी कि कैसे उसके डैडी नंगे हो कर उसकी मम्मी को नंगा कर के चोदते हैं, कभी लाईट खुली रख के तो कभी लाईट बंद कर के। वो चुदाई देखती रहती थी और मुझे बता देती थी कि उसके डैडी ने आज उसकी मम्मी को कैसे चोदा ॥
हाँ तो वो मेरे साथ बेड मैं थी। हम ऐसे ही बातें कर रहे थे। वो अपने मम्मी और डैडी के चुदाई के किस्से सुना रही थी और अचानक उसने पूछा, “स्मायरा तेरा साईज़ क्या है?” मैंने पूछा, “कौन सा साईज़?”, तो उसने मेरी चूचियों को हाथ में पकड़ लिया और पूछा “अरे पागल इसका!” और हँसने लगी। उसका हाथ मेरे बूब्स पे अच्छा लग रहा था और उसने भी अपना हाथ नहीं हटाया और मैंने भी उससे हाथ निकालने को नहीं कहा और वो ऐसे ही मेरी चूचियों को दबाने लगी। रात तो थी ही और हम ब्लैंकेट ओढ़े हुए थे और लाईट बंद थी। ऐसे में मुझे उसका मेरी चूचियों को दबाना अच्छा लग रहा था। मैंने उसका हाथ नहीं हटाया। मैंने बोला कि “मुझे क्या मालूम!”, तो उसने कहा “ठहर मैं बताती हूँ तेरा क्या साईज़ है!” मैंने बोला, “तुझे कैसे मालूम?” तो वो हँसने लगी और बोली “मुझे सब पता है”, और वो मेरे ऊपर उछल के बैठ गयी। मैं सीधे ही लेटी थी और वो मेरे ऊपर बैठ कर मेरे बूब्स को मसल रही थी। अब उसने मेरी शर्ट के अंदर हाथ डाल के मसलना शुरू कर दिया तो मुझे और मज़ा आने लगा। मैंने बोला, “हाय ताहिरा, ये क्या कर रही है?” तो वो बोली कि “मेरे अब्बू भी तो ऐसे ही करते हैं मेरी अम्मी के साथ.... मैंने देखा है जब अब्बू ऐसे करते हैं तो अम्मी को बहुत मज़ा आता है..... बोल तुझे भी आ रहा है या नहीं?” मैंने कहा, “हाँ मज़ा तो आ रहा है...!” तो उसने कहा कि “बस तो ठीक है, ऐसे ही लेटी रह ना, मज़ा ले बस”, और वो ज़ोर ज़ोर से मेरी चूचियों को मसलाने लगी।
हम दोनों बालकोनी में आ गये। हमारा फ्लैट आठवीं मंज़िल पर बिल्डिंग का सबसे ऊपर वाला फ्लैट है और हमारी बिल्डिंग के सामने सड़क थी और दूसरी तरफ छोटी सी मार्केट थी जहाँ सब्ज़ी, दूध और तकरीबन डेली इस्तेमल की सभी चीज़ें मिल जाया करती थी। इतनी बारिश की वजह से सारा मार्केट सुना पड़ा हुआ था। कभी-कभी कोई इक्का दुक्का सायकल वाला या कोई आदमी बरसाती ओढ़े गुज़र जाता था। हम दोनों बालकोनी में रखी कुर्सियों पे बैठ गये और बाहर का सीन देखने लगे। कभी-कभी बारिश का थोड़ा सा पानी हमारे ऊपर भी गिर जाता था। मौसम ठंडा हो गया था और ऐसा अंधेरा था कि शाम के पाँच बजे ही ऐसा लग रहा था जैसे रात के आठ-नौ बज रहे हों। मैं चाय़ बनाने उठी तो आँटी ने कहा कि, , वही ले आओ।“
वो मेरे लेफ़्ट साईड में बैठी थीं और ईधर-उधर की बात करते-करते पता नहीं आँटी को क्या सूझा कि मुझसे मेरी सैक्स लाईफ के बारे में पूछने लगी। आँटी एक्सपीरियंस्ड थीं। शायद मेरी खामोशी को ताड़ गयीं और धीरे से पूछा, “रात को मज़ा नहीं आता ना??”
मैंने ना में सर हिलाया लेकिन कुछ ज़ुबान से बोली नहीं। उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे से दबाया और कहा कि “मुझे भी नहीं आता, मैं भी ऐसे ही तड़पती रहती हूँ।“ और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर उसका मसाज करने लगी। उन्होंने अपनी सुहाग रात के बारे में बताया जो मेरी सुहाग रात की ही तरह हुई थी और फिर बताया कि कैसे वो अपनी सैक्स की प्यास को बुझाती हैं। मैं हक्की बक्की उनकी कहानी सुन रही थी। उन्होंने बताया कि उनका एक दूर का भाँजा है जो शहर में ही कॉलेज में पढ़ता है और हॉस्टल में रहता है। वो कभी-कभी आँटी की चुदाई करके उनकी प्यासी चूत की प्यास को बुझा देता है। मैं आँटी की कहानी सुन के हैरत में पड़ गयी और सोचने लगी कि मैं अपनी प्यासी चूत की प्यास बुझाने के लिये क्या करूँ।
अब ठंड थोड़ी सी बढ़ गयी ,बहुत अच्छा लग रहा था और हम बैठे हुए बारिश के मज़े ले रहे थे और अपनी अपनी चुदाई कि कहानियाँ एक दूसरे को सुना रहे थे। आँटी अपनी कुर्सी घुमा के मेरी तरफ मुँह करके बैठ गयीं और बीच-बीच में मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मसल रही थीं और अपनी टाँग बढ़ा कर मेरी सलवार ऊपर खिसकाते हुए अपने सैंडल को मेरी मेरी टाँगों पर हल्के-हल्के फिरा रही थीं और मेरे जिस्म में गर्मी आ रही थी। फ्लैट आठवीं मंज़िल पर होने की वजह से कोई हमें सड़क से देख नहीं सकता था और वैसे भी सड़क इतनी बारिश की वजह से सुनसान ही थी। वैसे मैं इस वक्त वो इतनी मस्त हो चुकी थी कि मुझे किसी बात का खयाल भी नहीं था। ऊपर से अपनी टाँगों पर उनके सैंडल का प्यारा सा लम्स और बाहर का ठंडा मौसम। फिर आँटी ने सुहाग रात की और अपनी चुदाई की दास्तान शुरू करके मेरे जिस्म में फिर से आग लगा दी थी।
मुझे सुहैल से चुदवाई हुई वो रातें याद आ रही थी जब मेरी चूत में सुहैल का लंबा मोटा लंड घुस के धूम मचा देता था और चूत-फाड़ झटके मार-मार के मेरी चूत को निचोड़ के अपने लंड का सारा रस मेरी चूत के अंदर छोड़ के कैसे मज़ा देता था। मेरा पूरा दिल और दिमाग सुहैल की चुदाई में था। मुझे पता ही नहीं चला के कब आँटी का पैर मेरी सलवार के ऊपर से जाँघों पे फिसलने लगा और मेरे सारे जिस्म में एक मस्ती का एहसास छाने लगा और बे-साख्ता मेरी टाँगें खुल गयीं और मैंने महसूस किया के आँटी का हाई-हील वाला सैंडल मेरी जाँघ से फिसल के टाँगों के बीच सलवार के ऊफर से चूत पे टिक गया और वो चूत का धीरे-धीरे मसाज करने लगी और मुझे मज़ा आने लगा।
मेरी प्यासी चूत पे आँटी के सैंडल के लम्स और मसाज से मुझे अपने कॉलेज का एक किस्सा याद आ गया। हम उन दिनो ग्यारहवीं क्लास में थे। सुहैल से चुदाई से पहले की बात है। हुआ ये था कि मेरी क्लासमेट, ताहिरा, मेरे पड़ोस में ही रहती थी और कभी वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मिल कर रात में पढ़ाई करते और एक ही बेड में सो जाते। कभी मैं उसके घर चली जाती और साथ पढ़ाई करते और मैं वहीं उसके साथ उसके बेड में ही सो जाती। एक रात वो मेरे घर आयी हुई थी और हम रात को पढ़ाई कर के मेरे बेड पे लेट गये। मेरा रूम घर में ऊपर के फ़्लोर पे था और मम्मी और डैडी का नीचे। मैं ऊपर अकेली ही रहती थी तो हमें अच्छी खासी प्राईवेसी मिल जाती थी। दोनों पढ़ाई खतम कर के सोने के लिये लेट गये। ताहिरा बहुत ही शरारती थी। उसने अपने मम्मी डैडी को चोदते हुए भी कई बार देखा था। कभी सोने का बहाना कर के कभी विंडो में से झाँक कर और फिर मुझे बताती थी कि कैसे उसके डैडी नंगे हो कर उसकी मम्मी को नंगा कर के चोदते हैं, कभी लाईट खुली रख के तो कभी लाईट बंद कर के। वो चुदाई देखती रहती थी और मुझे बता देती थी कि उसके डैडी ने आज उसकी मम्मी को कैसे चोदा ॥
हाँ तो वो मेरे साथ बेड मैं थी। हम ऐसे ही बातें कर रहे थे। वो अपने मम्मी और डैडी के चुदाई के किस्से सुना रही थी और अचानक उसने पूछा, “स्मायरा तेरा साईज़ क्या है?” मैंने पूछा, “कौन सा साईज़?”, तो उसने मेरी चूचियों को हाथ में पकड़ लिया और पूछा “अरे पागल इसका!” और हँसने लगी। उसका हाथ मेरे बूब्स पे अच्छा लग रहा था और उसने भी अपना हाथ नहीं हटाया और मैंने भी उससे हाथ निकालने को नहीं कहा और वो ऐसे ही मेरी चूचियों को दबाने लगी। रात तो थी ही और हम ब्लैंकेट ओढ़े हुए थे और लाईट बंद थी। ऐसे में मुझे उसका मेरी चूचियों को दबाना अच्छा लग रहा था। मैंने उसका हाथ नहीं हटाया। मैंने बोला कि “मुझे क्या मालूम!”, तो उसने कहा “ठहर मैं बताती हूँ तेरा क्या साईज़ है!” मैंने बोला, “तुझे कैसे मालूम?” तो वो हँसने लगी और बोली “मुझे सब पता है”, और वो मेरे ऊपर उछल के बैठ गयी। मैं सीधे ही लेटी थी और वो मेरे ऊपर बैठ कर मेरे बूब्स को मसल रही थी। अब उसने मेरी शर्ट के अंदर हाथ डाल के मसलना शुरू कर दिया तो मुझे और मज़ा आने लगा। मैंने बोला, “हाय ताहिरा, ये क्या कर रही है?” तो वो बोली कि “मेरे अब्बू भी तो ऐसे ही करते हैं मेरी अम्मी के साथ.... मैंने देखा है जब अब्बू ऐसे करते हैं तो अम्मी को बहुत मज़ा आता है..... बोल तुझे भी आ रहा है या नहीं?” मैंने कहा, “हाँ मज़ा तो आ रहा है...!” तो उसने कहा कि “बस तो ठीक है, ऐसे ही लेटी रह ना, मज़ा ले बस”, और वो ज़ोर ज़ोर से मेरी चूचियों को मसलाने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.