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Thriller रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल
#31
आलिया कुरैशी जब गले मिली, मैंने महसूस किया उसके वक्षों के ऊपरी हिस्सों को अपने स्तनों के निचले हिस्से से टकराते हुए. मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही थी. उस दिन के बाद से मेरा ध्यान आलिया के अंगों पर ही था. उसके वक्षों के कड़े तिकोने अग्र भाग पर मेरी नजर कई बार गयी. मैं उन्हें देखना चाहती थी अन्दर से कैसे दिखते हैं. आलिया के छरहरी बदन का उसके कपड़े के नीचे से अंदाजा लगा कर मैं अन्दर तक रोमांचित हो गयी. आलिया दिखने में बहुत खूबसूरत है, एकदम गोरी चिट्टी. पर कपड़े के ऊपर से एक-दो बार देखने पर उसका पतला बदन अन्दर से कैसे कसा हुआ है ये समझ पाना थोड़ा मुश्किल है. पहले मेरा आलिया पर ज्यादा ध्यान गया नहीं कभी. मैं बस उसके मस्तियों पर साथ देती थी, उसको एक छोटी बहन की तरह संभालती थी.

गोवा ट्रिप में  मैंने आलिया को खुद को कई बार ताकते हुए पाया. मुझे कुछ ज्यादा अजीब नहीं लगा, मैंने सोचा हो सकता है मेरा आकर्षक व्यक्तित्व उसे अच्छा लगता हो. ऐसा होता है, जिससे हम प्रभावित होते हैं उसे देखने, जानने, समझने की इच्छा होती है. आलिया जैसा मुझसे व्यवहार करती थी, कोई भी कह सकता था वह मेरी बहुत इज्जत करती है, यहाँ तक की उसने गोवा में मुझे कहा था "दीदी, आप इतनी गजब क्यों हैं?". इस सब से साफ पता चलता है वह मुझसे प्रभावित थी. यहाँ तक की अपनी बड़ी बहन शाहीन कुरैशी से भी ज्यादा वह मुझे मानती थी. पर नीन्द में आलिया का मेरे पेट को सहलाना और सहलाते समय अपने हाथ से अपना वक्ष मलना. मुझे याद है उस समय मैं कुछ सोच नहीं पा रही थी. मैं बस आलिया के मखमली हाथ को अपने पेट पर महसूस कर रही थी. मेरी नजरें सिर्फ उसके जवान सीने पर टिकी हुई थी. जब मैंने उसके पारदर्शी कपड़े के अन्दर उसके कड़े छोटे, सीने के अग्रभाग को देखा मुझे लगा बच्ची अब बच्ची नहीं रही, बल्कि अब उसमें जवानी हिलोरे मार रही है. एक ऐसी अनछुई जवानी जिसे मुझे पकड़ कर रौंद देने का मन किया. मैं उसी समय उसके छोटे वक्षों को अपनी हथेलियों से परख लेना चाहती थी. ये सब बातें बार-बार मेरे मन में आ रही थी.  मुझे पहली बार अहसास हुआ कि एक अनछुई कमसिन जवानी को समझने की कितनी तीव्र इच्छा है मेरे अन्दर. इससे पहले, इधर मेरा ध्यान कभी नहीं गया था. मैं उसके दोनों अलफांसों आमों को चख लेना चाहती थी. उसे देखते ही मेरे दिमाग में रुखसाना आंटी का गीले कमीज वाला दृश्य घूम गया. उस दिन रुखसाना आंटी ने मेरे दिलों दिमाग में एक बिजली सी कड़का दी थी. घर में आलिया की हरकतों को सोच कर मैं गीली भी हो गयी थी. अहह , गीली मैं अभी भी हो रही हूँ थोड़ी सी. मैं ये सब क्या सोच रही हूँ! कॉफ़ी लगभग तैयार है.

उस दिन की तरह आज भी मेरी नजरें उसके छूते कमसिन उभारों पर जा रही थी. हांलाकि आज आलिया ने अन्दर ब्रा पहना हुआ था फिर भी उसके छोटे, कमसिन उभारों की आकृति का अंदाजा लगाया जा सकता था. मैंने ऊपर से यह भी समझ लिया था कि अन्दर मटर के दाने जैसे अग्र भाग कहाँ पर होंगे. स्लीवलेस टी-शर्ट से बाहर  उसकी मखमल सी त्वचा वाले गोर हाथ उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे. उसका छोटा पर सुडौल नितंभ और उसकी स्टाइलिश जीन्स जो उसके जांघों के पास चिपकी हुई थी, उसके मांसल और मदमस्त जांघों का प्रदर्शन कर रही थी. उसके जांघ एक दूसरे से चिपके हुए प्रतीत होते थे. पर सबसे ऊपरी हिस्से में जहाँ उसका पैर उसके कमर से अलग हुआ था, उसके दोनों जांघों के बीच थोड़ी सी जगह छूटी हुई थी जो उसके कटि प्रदेश की सुडौलता का अंदाजा दे रहे थे. आलिया जैसी कमसिन कच्ची कलि को भोगना किसी के लिए स्वप्न के जैसा था. मैं आज यह मौका नहीं जाने देना चाहती थी, बड़ी बहन-छोटी बहन का लिहाज मेरे अन्दर से नदारत थी. अन्दर बस शाहीन के लिए एक अपराध बोध था, शाहीन मेरी अच्छी दोस्त थी. पर अब मैं पूरी तैयारी  कर चुकी थी, आज की  थकान को मिटाने का मुझे एक ही रास्ता अभी नजर आ रही थी और वो थी आलिया.
आलिया की नजरों को भी मैंने अपनी डीप नेक पैटर्न के टी-शर्ट से झांकते मेरे दोनों स्तनों के बीच के कटाव पर ठहरते हुए पाया. वह नजरें चुरा कर मेरे बड़े, पुष्ट उभारों की ओर देखती थी. पारदर्शी टी-शर्ट के भीतर का काला ब्रा जरूर आलिया को उतावली बना रही होगी. पूरी तरह से बदन से चिपकी हुई लेगिंग जो मेरे सुडौल नितम्भों, जांघों और तराशी हुई, मिश्र की देवी जैसी टांगों के हरएक कटाव को स्पष्ट नुमाया कर रहा था. मुझे इस बात का अहसास हुआ, मैं कॉफ़ी बनाने के लिए किचन की तरफ मुड़ी तब से लेकर जब तक मैं नजरों से ओझल नहीं हो गयी, आलिया की नजरें मेरी मांसल नितम्भों और जांघों में था. वह एकटक मेरे हिलते हुए नितम्भों के बीच के दरार को देख रही थी. मैं इसलिए इतनी पक्की हूँ क्यूंकि मैंने आने के बाद मोबाईल से कमरे में लगे हुए कैमरे से सब देखा है. मेरी अवचेतन मन ने शायद जानबूझकर आज  ऐसे उत्तेजक कपड़े पहनाए थे. मैं कमरे में पहुंची,आलिया बिस्तर पर बैठी मेरा इन्तजार कर रही थी. मैंने मुस्कराते हुए उसे कॉफ़ी दिया.

"बता, क्या हो गया? क्यों परेशान  लग रही थी तू" मैंने कॉफ़ी देते हुए उसे कहा. आलिया बिस्तर पर, दोनों पैर नीचे रख कर बैठी हुई थी. मैं उसके सामने ही एक कुर्सी पर बैठ गयी. कॉफ़ी की चुस्की लेते हुए आलिया ने कहा "मेरे घर वालों ने परेशान करके रख दिया है दीदी. मेरा लॉ कॉलेज में सलेक्शन हो गया है. दिल्ली में अच्छा कॉलेज मिल रहा है. और मैं वहीं पढ़ना चाहती हूँ. और घर वाले कह रहे हैं, कहाँ लॉ करेगी! वो भी दिल्ली जाकर? यहीं ब्यूटी का कोर्स कर ले. अब आप ही बताओ, कहाँ लॉ और कहाँ ब्यूटी का कोर्स है? हद है, समझ भी नहीं आता है  इन लोगों को!" आलिया कहते-कहते रूआंसी हो गयी. "अरे-अरे! मैं हैंडल करुँगी ना, इतना निराश मत हो" मैंने उसे देखते हुए कहा. "यहाँ तक की शाहीन भी कह रही है, यहीं से लॉ कर ले. वो भी मुझे बाहर जाने में सपोर्ट नहीं कर रही है" आलिया ने फिर आवेश में कहा. "शाहीन ऐसा क्यों कर रही है!" मैंने चौंकते हुए कहा. "पता नहीं दीदी. ऊपर से एक और नियम बना रहे हैं घर वाले कि अब हमें बुर्का  पहन कर  बाहर निकलना है , और शाहीन मान भी गयी है. अम्मी तो अब घर में भी बुर्का पहनने लगी है. मुझे लॉयर बनना है, किसी भी हालत में और अपने मनपसंद कॉलेज से ही दीदी" यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रो पड़ी. हम दोनों की कॉफ़ी ख़त्म हो चुकी थी, मैं तुरंत कुर्सी से  उठी और आलिया की तरफ गयी. मैंने जाकर उसे चुप कराया, अपने हाथों से उसके आंसुओं को पोछा.

मैं उसे समझाया, मैंने कहा "मैं बात करुँगी आंटी से, तू रोना बंद कर" उसने मेरी ओर देखा और मुझसे लिपट कर  रोने लगी. आलिया मेरे सामने ही बिस्तर पर बैठी थी. मैं उसके सामने खड़ी थी. जब आलिया मुझसे लिपटी तो उसका सिर मेरे उभारों के नीचे मेरे पेट के पास था. उसने अपने दोनों हाथों से मुझे लपेट लिया था, उसके दोनों हाथ पीछे मेरे नितम्भों पर टिके हुए थे. वो लगातार रोये जा रही थी, उसके आंसुओं से मेरे पेट के पास टी-शर्ट भींग गया. मैं उसे लगातार चुप करा रही थी. मैं अपना हाथ उसके खुले मखमली बालों पर फेर रही थी. "चुप हो जा आलिया, मैं बात करुँगी ना, सब ठीक हो जायेगा. कह रहीं हूँ मैं" वह थोड़ा सा चुप हुई. मैं उसका हाथ अलग करते हुए    उसके बगल में जाकर  बिस्तर पर बैठ गयी. मैंने उसे कहा "देख आलिया, मैं बात करुँगी आंटी से, कह रही हूँ ना  मैं" वह मेरी ओर घूम गयी. "हाँ दीदी, वह सुबकते हुए बोली" उसकी मुंडी इस पूरे समय नीचे ही थी. अभी भी वो सिर नीचे ही की हुई थी. मैं बिस्तर के ऊपर गयी और उसके पीछे से जाकर अपना पैर ऐसे फैला कर कि वह अब मेरे दोनों टांगों के बीच वाली जगह पर बैठी थी, पीछे से उससे चिपक गयी. मेरा सीना उसके पीठ को छू रहा था. अपना हाथ उठा कर मैंने पीछे से उसका बाल सहलाना चालू रखा. अचानक वह बोली "और नहीं मानी तो अम्मी?" और वह फिर सुबकने लगी. मैं पीछे से अपने दोनों हाथ सामने ले जाकर उसे धीरे से अपनी तरफ खिंचा, वह आकर अपने पीठ से मेरे  सीने में टिक गयी.

अपना बायाँ हाथ मैं उसके स्लीवलेस बाहों में ले जाकर सांत्वना देने जैसा सहला रही हूँ और दाएं हाथ से उसकी  आँखों के आंसुओं को पोछने की कोशिश. उसे मैंने कहा "देख, तुझे पता है आंटी मेरा कहना मानती है. मैंने शाहीन को गोवा ले जाने के लिए आंटी को मना लिया था तुझे याद है ना?" वह थोड़ा शांत हुई फिर धीरे से उसने कहा "हाँ". मैंने बोलना जारी रखा "मुझे भरोसा है मैं आंटी से बात करुँगी और वह मेरी बात जरुर मानेंगी और उनकी कुछ चिंता हुई तो वो मैं चुटकियों में दूर कर दूँगी, तू परेशान मत हो". "हाँ दीदी, सही बोल रहे हो. आप कुछ भी कर सकते हो" उसके कहा. यह कहते समय उसके आवाज में कम्पन थी. मैं अपने बाएँ हाथ से उसकी मांसल भुजा को अभी भी सहला रही थी. वह पूरी तरह से मेरे सीने  में टिक कर  शांत, एकदम शांत बैठी हुई थी. उसे जरूर अपनी पीठ पर मेरे स्तनों का अंदाजा हो रहा, पूरा भार उन्हीं दोनों पर था. मेरी हथेली उसके मखमली भुजाओं पर पर मचल रही थी. उसकी  आवाज के कम्पन को मैंने एक सिग्नल की तरह माना. मैंने अपने हाथ को थोड़ा आगे ले जाकर कर बीच-बीच में बगल से उसके स्तनों को छूना शुरू किया. जब पहली बार मेरी उँगलियाँ उसके वक्ष से छुआ तो उसके मुंह से निकला "उंह", फिर वह शांत हो गयी. ना उसने कुछ बोला ना वह हिली, जैसे वह सिर्फ मेरी मचलती हाथ हो महसूस करते शांत बैठी हो. मैंने अपना दाहिना हाथ भी उसके दायें कंधे पर रख कर धीरे से सहलाने की मुद्रा में नीचे उसके कोहनी की तरफ ली जाने लगी. इस बार मैंने दोनों तरफ से, अपने दोनों हाथों से उसके दोनों छोटे वक्षों को छू लिया, और इस बार थोड़ी ज्यादा समय के लिए. वह हल्का सा छटपटाहट से हिली फिर शांत हो गयी. मैं अपने दोनों हाथों से उसकी मांसल बाँहों को सहला ही रही थी, मैंने अचानक दोनों बाँहों को हौले से मसल दिया. आंख बंद किये आलिया ने अपनी मुंडी को थोड़ा सा ऊपर उठाया. यही मौका देखकर मैंने दायाँ हाथ ले जाकर उसके दायें वक्ष पर रख दिया, हल्के से, बिना किसी दबाव के. मेरी खुली हथेली उसके वक्ष के ऊपर जाकर बस टिकी हुई थी, बिना किसी हरकत के. आलिया, अब तक अपना पीठ  मेरी ओर करके  सामने बिस्तर पर बैठी हुई थी. वह थोड़ा आगे झुकी, और फिर अपने दोनों हाथों को थोड़ा पीछे ले जाकर मेरे फैले हुए एक-एक जांघों पर रख दिया. मुझे उससे इस हतकत की उम्मीद ना थी, मेरी हंथेलियाँ अभी भी वहीँ थी.

मेरी जाँघों पर दबाव देते, आलिया ने अपनी नितम्भों को उठाते हुए अपने पूरे शरीर को ऊपर उठाया और पीछे खिसक कर एकदम से मेरी गोद में आकर बैठ गयी. उसने अपना  नितंभ, मेरी  दोनों टांगों के जुड़ाव वाले स्थान पर मेरी योनी प्रदेश से एकदम चिपका कर रख दिया था. वह मेरे जांघों पर बैठ जाना चाहती थी. उसकी  इस अप्रत्याशित हरकत ने मेरे तन-बदन में विद्युत् का संचार कर दिया. मैंने उसके कड़े, छोटे अलफांसों आम जैसी दाएं वक्ष को अपनी हथेली में पकड़ कर जोर से भींच दिया. "आआह्ह्ह, थोड़ा धीरे दीदी, धीरे" आलिया ने मधहोश होते हुए कहा.
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RE: रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल - by rashmimandal - 07-08-2022, 01:46 AM



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