27-07-2022, 03:39 PM
यह एक ऐसी घटना है जिसकी याद दस साल बाद भी मुझे शर्म से पानी पानी कर देती है। लगता है धरती फट जाए और उसमें समा जाऊँ। अकेले में भी आइना देखने की हिम्मत नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता किसी के साथ ऐसा भी घट सकता है ! ये एक केले का किस्सा है
उस घटना के बाद मैंने पापा से जिद करके जेएनयू ही छोड़ दिया। पता नहीं मेरी कितनी बदनामी हुई होगी। दस साल बाद आज भी किसी जेएनयू के विद्यार्थी के बारे में बात करते डर लगता है। कहीं वह सन 2000 के बैच का न निकले और सोशियोलॉजी विषय का न रहा हो। तब तो उसे जरूर मालूम होगा। खासकर हॉस्टल का रहनेवाला हो तब तो जरूर पहचान जाएगा।
गनीमत थी कि पापा को पता नहीं चला। उन्हें आश्चर्य ही होता रहा कि मैंने इतनी मेहनत से जेएनयू की प्रवेश परीक्षा पासकर उसमें छह महीने पढ़ लेने के बाद उसे छोड़ने का फैसला क्यों कर लिया। मुझे कुछ सूझा नहीं था, मैंने पिताजी से बहाना बना दिया कि मेरा मन सोशियोलॉजी पढ़ने का नहीं कर रहा और मैं मास कम्यूनिकेशन पढ़ना चाहती हूँ। छह महीने गुजर जाने के बाद अब नया एडमिशन तो अगले साल ही सम्भव था। चाहती थी अब वहाँ जाना ही न पड़े। संयोग से मेरी किस्मत ने साथ दिया और अगले साल मुझे बर्कले यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में छात्रवृत्ति मिल गई और मैं अमेरिका चली गई|
बर्कले
उस घटना के बाद मैंने पापा से जिद करके जेएनयू ही छोड़ दिया। पता नहीं मेरी कितनी बदनामी हुई होगी। दस साल बाद आज भी किसी जेएनयू के विद्यार्थी के बारे में बात करते डर लगता है। कहीं वह सन 2000 के बैच का न निकले और सोशियोलॉजी विषय का न रहा हो। तब तो उसे जरूर मालूम होगा। खासकर हॉस्टल का रहनेवाला हो तब तो जरूर पहचान जाएगा।
गनीमत थी कि पापा को पता नहीं चला। उन्हें आश्चर्य ही होता रहा कि मैंने इतनी मेहनत से जेएनयू की प्रवेश परीक्षा पासकर उसमें छह महीने पढ़ लेने के बाद उसे छोड़ने का फैसला क्यों कर लिया। मुझे कुछ सूझा नहीं था, मैंने पिताजी से बहाना बना दिया कि मेरा मन सोशियोलॉजी पढ़ने का नहीं कर रहा और मैं मास कम्यूनिकेशन पढ़ना चाहती हूँ। छह महीने गुजर जाने के बाद अब नया एडमिशन तो अगले साल ही सम्भव था। चाहती थी अब वहाँ जाना ही न पड़े। संयोग से मेरी किस्मत ने साथ दिया और अगले साल मुझे बर्कले यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में छात्रवृत्ति मिल गई और मैं अमेरिका चली गई|


बर्कले



जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
