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Incest मुंबई की बारिश और .......................
#11
"अहह...आह. चोद डाल.....चोद डाल माँ को........हे भगवान मेरा निकलने वाला है....में झड रही हूँ....मेरे साथ साथ तुम भी बेटा....गिरा दो अपना माल मेरी चूत में.....भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने गरम रस से..."

रवि आँखे बंद किए और दाँत भिंचे पूरे ज़ोर से अपनी माँ को चोदे जा रहा था. वो अपने टट्टों में वीर्य उबलता हुआ महसूस करता है और फिर हलाल होने वाले बकरे की तरह एक उँची कराह भरते हुए एक आखरी धक्का लगा कर अपना लॉडा अपनी माँ की चूत की जड तक पहुँचा देता है.

रश्मि अपनी चूत में जबरदस्त ऐंठन महसूस करती है और फिर उसकी चूत में गर्म वीर्य की बरसात सी होने लगती है. उसका मुँह एक घुटि चीख के रूप में खुल जाता है और कामोउन्माद के शिखर पर उसे उस वो आनंद प्राप्त होता है जिसके लिए वो पिछले दो सालों से तरस रही थी. उसकी चूत अति संकुचित होकर रवि के लौडे को निचोड़ रही थी. आनंद की चर्म अवस्था में वो अपना बदन झटक रही थी और उसके मुख से अनियंत्रित सिसकारियाँ फुट रही थी. धीरे धीरे उसका बदन शांत होने लगा और वो नज़र उठाकर अपने बेटे को देखती है जो अभी भी उसकी चूत में गहराई तक लंड घुसेडे हुए था.

"ओह बेटा..."वो सिसकती है. "तुमने तो कमाल कर दिया. एसा मज़ा जिंदगी में पहली बार मिला है."

"सच कहूँ मम्मी.....यह तो मेरी कल्पना से भी कही ज़यादा मज़ेदार था. उफ़फ्फ़ आपकी चूत....आपकी चूत का तो कोई जवाब नही...में हमेशा सोचा करता था कि कैसे लगेगा आपको चोद कर, अपनी मम्मी को चोद कर! मगर आज जब मेने आपको चोदा तो जाना ऐसे मज़े के बारे में तो कल्पना भी नही की जा सकती."

"मेरे ख़याल से मुझे चोदते वक़्त तुम्हे मुझे मम्मी कह कर नही पुकारना चाहिए" रश्मि हंसते हुए बोलती है.

"अच्छा! तो फिर में आपको क्या कह कर पुकारूँ?"

"मुझे नही मालूम" रश्मि हंसते हुए जवाब देती है"कुछ भी कह कर बुला सकते हो-गश्ती, रांड़, भोसड़ी की...कुछ भी...और चाहो तो मुझे सिर्फ़ रश्मि कह कर भी पुकार सकते हो."

"ओके! में आपको रांड़ नही मेरी रांड़ ...उम्म्म्म या फिर मेरी रंडी माँ. या फिर साली कुतिया.....उम्म्म सोचना पड़ेगा! मगर आपको चोदने के समय मम्मी कह कर पुकारने में भी अलग ही मज़ा है. यह एहसास कि में अपनी सग़ी माँ को चोद रहा हूँ अलग ही मज़ा देता है....मगर सोचना पड़ेगा...'

"हाँ वाकई में जब तुम अपना लॉडा मेरी चूत में फँसाए मुझे मम्मी मम्मी कहोगे तो मज़ा दुगना हो जाएगा. मगर ध्यान रहे तुम सिर्फ़ मुझे चोदने के वक़्त ही ऐसे नामों से या गालियाँ देकर पुकार सकते हो मगर बाकी पूरे समय में तुम्हारी माँ ही रहूंगी. और इस बात को कभी भूलना नही"

"नही भूलूंगा. वैसे भी आज आप को चोदकर मैं भी मादरचोद बन गया हूँ"[img]वह रात देर तक पढ़ाई करती, सुबह देर से उठती। उसका नाश्ता अक्सर मुझे कमरे में लाकर रखना पड़ता। कभी कभी मैं भी अपना नाश्ता साथ ले आती। उस दिन जरूर संभावना रहती कि वह नाश्ते के फलों को दिखाकर कुछ बोलेगी। जैसे, ‘असली’ केला खाकर देखो, बड़ा मजा आएगा।’ वैसे तो खीरे, ककड़ियों के टुकड़ों पर भी चुटकी लेती, ‘खीरा भी बुरा नहीं है, मगर वह शुरू करने के लिए थोड़ा सख्त है।’ केले को दिखाकर कहती, “इससे शुरूआत करो, इसकी साइज, लम्बाई मोटाई चिकनाई सब ‘उससे’ मिलते है, यह ‘इसके’ (उंगली से योनिस्थल की ओर इशारा) के सबसे ज्यादा अनुकूल है। एक बार उसने कहा, “छिलके को पहले मत उतारो, इन्फेक्शन का डर रहेगा। बस एक तरफ से थोड़ा-सा छिलका हटाओ और गूदे को उसके मुँह पर लगाओ, फिर धीरे धीरे ठेलो। छिलका उतरता जाएगा और एकदम फ्रेश चीज अंदर जाती जाएगी। नो इन्फेक्शकन।” मुझे हँसी आ रही थी। वह कूदकर मेरे बिस्तर पर आ गई और बोली, “बाई गॉड, एक बार करके तो देखो, बहुत मजा आएगा।” एक-दो सेकंड तक इंतजार करने के बाद बोली,”बोलो तो मैं मदद करूँ? अभी ! तुम्हें खा तो नहीं जाऊँगी।” “क्या पता खा भी जाओ, तुम्हारा कोई भरोसा नहीं।” मैं बात को मजाक में रखना चाह रही थी। “हुम्म….” कुछ हँसती, कुछ दाँत पीसती हुई-सी बोली,”तो जानेमन, सावधान रहना, तुम जैसी परी को अकेले नहीं खाऊँगी, सबको खिलाऊँगी।” “सबको खिलाने से क्या मतलब है?” मुझे उसकी हँसी के बावजूद डर लगा। उस दिन कोई व्रत का दिन था। वह सुबह-सुबह नहाकर मंदिर गई थी। लौटने में देर होनी थी इसलिए मैंने उसका नाश्ता लाकर रख दिया था। आज हमें बस फलाहार करना था। अकेले कमरे में प्लेट में रखे केले को देखकर उसकी बात याद आ रही थी,”इसका आकार, लम्बाई मोटाई चिकनाई सब ‘उससे’ मिलते हैं।” मैं केले को उठाकर देखने लगी, पीला, मोटा और लम्बा। हल्का-सा टेढ़ा मानो इतरा रहा हो और मेरी हँसी उड़ाती नजर का बुरा मान रहा हो। असली लिंग को तो देखा नहीं था, मगर हीना ने कहा था शुरू में वह भी मुँह में केले जैसा ही लगता है। मैंने कौतूहल से उसके मुँह पर से छिलके को थोड़ा अलगाया और उसे होठों पर छुलाया। नरम-सी मिठास, साथ में हल्के कसैलेपन का एहसास भी। क्या ‘वह’ भी ऐसा ही लगता है? मैं कुछ देर उसे होंठों और जीभ पर फिराती रही फिर अलग कर लिया। थूक का एक महीन तार उसके साथ खिंचकर चला आया। लगा, जैसे योनि के रस से गीला होकर लिंग निकला हो ! (एक ब्लू फिल्म का दृश्*य)। धत्त ! मुझे शर्म आई, मैंने केले को मेज पर रख दिया। मुझे लगा, मेरी योनि में भी गीलापन आने लगा है। साढ़े आठ बज रहे थे। हीना अब आती ही होगी। क्लास के लिए तैयार होने के लिए काफी समय था। केला मेज पर रखा था। उसे खाऊँ या रहने दूँ। मैंने उसे फिर उठाकर देखा। सिरे पर अलगाए छिलके के भीतर से गूदे का गोल मुँह झाँक रहा था। मैंने शरारत से ही उसके मुँह पर नाखून से एक चीरे का पिहून बना दिया। अब वह और वास्तविक लिंग-जैसा लगने लगा। मन में एक खयाल गुजर गया- जरा इसको अपनी ‘उस’ में भी लगाकर देखूँ? पर इस खयाल को दिमाग से झटक दिया। लेकिन केला सामने रखा था। छिलके के नीचे से झाँकते उसके नाखून से खुदे मुँह पर बार-बार नजर जाती थी। मुझे अजीब लग रहा था, हँसी भी आ रही थी और कौतुहल भी। एकांत छोटी भावनाओं को भी जैसे बड़ा कर देता है। सोचा, कौन देखेगा, जरा करके देखते हैं। हीना डींग मारती है कि सच बोलती है पता तो चलेगा। मैंने उठकर दरवाजा लगा दिया। हीना का खयाल कहीं दूर से आता लगा। जैसे वह मुझ पर हँस रही हो। मध्यम आकार का केला। ज्यादा लम्बा नहीं। अभी थोड़ा अधपका। मोटा और स्वस्थ। मैं बिस्तर पर बैठ गई और नाइटी को उठा लिया। कभी अपने नंगेपन को चाहकर नहीं देखा था। इस बार मैंने सिर झुकाकर देखा। बालों के झुरमुट के अंदर गुलाबी गहराई। मैंने हाथ से महसूस किया- चिकना, गीला, गरम… मैंने खुद पर हँसते हुए ही केले को अपने मुँह से लगाकर गीला किया और उसके लार से चमक गए मुँह को देखकर चुटकी ली, ‘जरूर खुश होओ बेटा, ऐसी जबरदस्त किस्मत दोबारा नहीं होगी।’ योनि के होठों को उंगलियों से फैलाया और अंदर की फाँक में केले को लगा दिया। कुछ खास तो नहीं महसूस हुआ, पर हाँ, छुआते समय एक हल्की सिहरन सी जरूर आई। उस कोमल जगह में जरा सा भी स्पर्श ज्यादा महसूस होता है। मैंने केले को हल्के से दबाया लेकिन योनि का मुँह बिस्तर में दबा था। मैं पीछे लेट गई। सिर के नीचे अपने तकिए के ऊपर हीना का भी तकिया खींचकर लगा लिया। पैरों को मोड़कर घुटने फैला लिये। मुँह खुलते ही केले ने दरार के अंदर बैठने की जगह पाई। योनि के छेद पर उसका मुँह टिक गया, पर अंदर ठेलने की हिम्मत नहीं हुई। उसे कटाव के अंदर ही रगड़ते हुए ऊपर ले आई। भगनासा की घुण्डी से नीचे ही, क्योंकि वहाँ मैं बहुत संवेदनशील हूँ। नीचे गुदा की छेद और ऊपर भगनासा से बचाते हुए मैंने उसकी ऊपर नीचे कई बार सैर कराई। जब कभी वह होठों के बीच से अलग होता, एक गीली ‘चट’ की आवाज होती। मैंने कौतुकवश ही उसे उठा-उठाकर ‘चट’ ‘चट’ की आवाज को मजे लेने के लिए सुना। हँसी और कौतुक के बीच उत्तेजना का मीठा संगीत भी शरीर में बजने लगा था। केला जैसे अधीर हो रहा था भगनासा का शिवलिंग-स्पर्श करने को। ‘कर लो भक्त !’ मैंने केले को बोलकर कहा और उसे भगनासा की घुण्डी के ऊपर दबा दिया। दबाव के नीचे वह लचीली कली बिछली और रोमांचित होकर खिंच गई। उसके खिंचे मुँह पर केले को फिराते और रगड़ते मेरे मुँह से पहली ‘आह’ निकली। मैंने हीना को मन ही मन गाली दी- साली ! बगल के कमरे से कुछ आवाज सी आई। हाथ तत्क्षण रुक गया। नजर अपने आप किवाड़ की कुण्डी पर उठ गई। कुण्डी चढ़ी हुई थी। फिर भी गौर से देखकर तसल्ली की। रोंगटे खड़े हो गए। कोई देख ले तो ! नाइटी पेट से ऊपर, पाँव फैले हुए, उनके बीच होंठों को फैलाए बायाँ हाथ, दाहिने हाथ में केला। कितनी अश्लील मुद्रा में थी मैं !![/img]

"एक बहुत ही बढ़िया और जानदार मादरचोद." रश्मि हँसती है और महसूस करती है रवि ने उसकी चूत से अपना लॉडा निकाल लिया था. "तुम्हारा बाप इस चूत को चोदते हुए कभी थकता नही था अब देखना है तुममे कितना दमखम है"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: मुंबई की बारिश और ....................... - by neerathemall - 26-07-2022, 04:21 PM



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