20-07-2022, 05:22 PM
‘अगर उस लड़के की जान की सलामत चाहती है, तो भूल जा उसे’, ‘एक बार आप आज्ञा दे दो भाई साहब उस कमीने के टुकड़े भी नहीं मिलेंगे,’ ‘मेरा मन करता है कि इस निर्लज्ज को ही जहर दे कर मार डालूं’ जैसे कठोर वाक्यों से उस की सुबह और शाम होने लगी थी. धीरेधीरे उस का मनोबल टूटने लगा था. फिर 15 दिनों के भीतर उस की शादी तय कर दी गई. उस की अपने होने वाले पति या आने वाली जिंदगी के बारे में कुछ भी जानने की लालसा नहीं थी. वह एक मुरदे की भांति वही करती गई, जो उस के घर वालों ने उस से करने को कहा. विवाहोपरांत वह दूसरे शहर में पहुंच गई जहां उदय की नौकरी थी. घर में केवल उस का पति और वह ही रहती थी. ससुराल वाले दूसरे शहर में रहते थे.
उदय बहुत अच्छा व्यक्ति था. किंचित गंभीर किंतु सरल. किसी भी लड़की के लिए ऐसा जीवनसाथी मिलना बेहद खुशी की बात होती. वह अपनी पत्नी की हर खुशी का ध्यान रखता. यहां तक कि सुहागरात पर दीपिका के चेहरे पर दुख की छाया देख उदय ने उसे जरा भी तंग नहीं किया. सोचा पहले वह अपने नए परिवेश में समा जाए.
कुछ दिन उदास रहने के बाद दीपिका ने भी अपना मन लगाने में ही भलाई समझी. वह अपने नए घर, अपने नए रिश्तों में अपनी खुशी तलाशने लगी.
उस शाम घर में एक छोटी सी पार्टी थी. उदय के सभी मित्र आमंत्रित थे. उदय के जिद करने पर दीपिका ने एक छोटा सा गीत सुनाया. सारी महफिल उस के सुरीले गायन पर झूम उठी थी. सभी वाहवाह करते नहीं थक रहे थे. उदय मंत्रमुग्ध रह गया था.
‘‘मुझे पता नहीं था कि मेरी बीवी ने इतना अच्छा गला पाया है. तुम संगीत की शिक्षा क्यों नहीं लेतीं? तुम्हारा मन भी लगा रहेगा और शौक भी पूरा हो जाएगा,’’ उस रात सब के जाने के बाद उदय ने कहा था.
दीपिका चुप रही थी. वह संगीत की कक्षा ही तो थी जहां उस की मुलाकात संतोष से हुईर् थी. दोनों के सुर इतनी अच्छी तरह से मेल खाते थे कि उन के गुरु ने स्वत: ही उन की जोड़ी बना दी थी. फिर साथ अभ्यास करतेकरते कब संगीत ने उन दोनों के दिल के तार आपस में जोड़ दिए, उन्हें पता ही नहीं चला. गातेगुनगुनाते दोनों एक उज्ज्वल संगीतमय भविष्य के सपने संजोने लगे थे. लेकिन उस एक शाम ने उन के सभी सपनों को चकनाचूर कर दिया था और आज फिर उदय संगीत का विषय ले बैठा था.
दीपिका के चुप रहने के बावजूद उस की इच्छाओं का ध्यान रखने वाले उस के पति ने इधरउधर से पता कर उस के लिए एक संगीत अध्यापक का इंतजाम कर दिया, ‘‘आज से रोज तुम्हें नए सर संगीत का अभ्यास करवाने आया करेंगे.’’
संतोष को अपने संगीत अध्यापक के नए रूप में देख कर दीपिका हैरान रह गई. विस्फारित आंखों उसे ताकती वह कुछ न बोल सकी. हकीकत से अनजान उदय ने दोनों की मुलाकात करवाई और फिर ‘आल द बैस्ट’ कहता हुआ दफ्तर चला गया.
‘‘तुम यहां कैसे? क्या मेरा पीछा करते हुए…?’’ दीपिका के मुंह से पहला वाक्य निकला.
‘‘नहीं दीपू, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा. मैं तो इस शहर में रोजगार ढूंढ़ने आया और किसी के कहने पर यहां नौकरी की तलाश में पहुंच गया.’’
‘‘मुझे दीपू कहने का हक अब तुम खो चुके हो, संतोष. अब मैं शादीशुदा हूं. तुम्हारे लिए एक पराई स्त्री.’’
पता नहीं नियति को क्या मंजूर था, जो संतोष और दीपिका को एक बार फिर एकदूसरे के समक्ष खड़ा कर दिया था. अपनीअपनी जिंदगी में दोनों आगे बढ़ने को प्रयासरत थे, परंतु इस अप्रत्याशित घटना से दोनों को एक बारगी फिर धक्का लगा था.
‘‘मुझे तुम संगीत सिखाने आने दो दीपू. नहींनहीं दीपिका. फीस के पैसों से मेरी मदद हो जाएगी. उदय के सामने मैं कोई बात नहीं आने दूंगा, यह मेरा वादा रहा.’’
2
बरसात की काई (भाग-2)
उदय बहुत अच्छा व्यक्ति था. किंचित गंभीर किंतु सरल. किसी भी लड़की के लिए ऐसा जीवनसाथी मिलना बेहद खुशी की बात होती. वह अपनी पत्नी की हर खुशी का ध्यान रखता. यहां तक कि सुहागरात पर दीपिका के चेहरे पर दुख की छाया देख उदय ने उसे जरा भी तंग नहीं किया. सोचा पहले वह अपने नए परिवेश में समा जाए.
कुछ दिन उदास रहने के बाद दीपिका ने भी अपना मन लगाने में ही भलाई समझी. वह अपने नए घर, अपने नए रिश्तों में अपनी खुशी तलाशने लगी.
उस शाम घर में एक छोटी सी पार्टी थी. उदय के सभी मित्र आमंत्रित थे. उदय के जिद करने पर दीपिका ने एक छोटा सा गीत सुनाया. सारी महफिल उस के सुरीले गायन पर झूम उठी थी. सभी वाहवाह करते नहीं थक रहे थे. उदय मंत्रमुग्ध रह गया था.
‘‘मुझे पता नहीं था कि मेरी बीवी ने इतना अच्छा गला पाया है. तुम संगीत की शिक्षा क्यों नहीं लेतीं? तुम्हारा मन भी लगा रहेगा और शौक भी पूरा हो जाएगा,’’ उस रात सब के जाने के बाद उदय ने कहा था.
दीपिका चुप रही थी. वह संगीत की कक्षा ही तो थी जहां उस की मुलाकात संतोष से हुईर् थी. दोनों के सुर इतनी अच्छी तरह से मेल खाते थे कि उन के गुरु ने स्वत: ही उन की जोड़ी बना दी थी. फिर साथ अभ्यास करतेकरते कब संगीत ने उन दोनों के दिल के तार आपस में जोड़ दिए, उन्हें पता ही नहीं चला. गातेगुनगुनाते दोनों एक उज्ज्वल संगीतमय भविष्य के सपने संजोने लगे थे. लेकिन उस एक शाम ने उन के सभी सपनों को चकनाचूर कर दिया था और आज फिर उदय संगीत का विषय ले बैठा था.
दीपिका के चुप रहने के बावजूद उस की इच्छाओं का ध्यान रखने वाले उस के पति ने इधरउधर से पता कर उस के लिए एक संगीत अध्यापक का इंतजाम कर दिया, ‘‘आज से रोज तुम्हें नए सर संगीत का अभ्यास करवाने आया करेंगे.’’
संतोष को अपने संगीत अध्यापक के नए रूप में देख कर दीपिका हैरान रह गई. विस्फारित आंखों उसे ताकती वह कुछ न बोल सकी. हकीकत से अनजान उदय ने दोनों की मुलाकात करवाई और फिर ‘आल द बैस्ट’ कहता हुआ दफ्तर चला गया.
‘‘तुम यहां कैसे? क्या मेरा पीछा करते हुए…?’’ दीपिका के मुंह से पहला वाक्य निकला.
‘‘नहीं दीपू, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा. मैं तो इस शहर में रोजगार ढूंढ़ने आया और किसी के कहने पर यहां नौकरी की तलाश में पहुंच गया.’’
‘‘मुझे दीपू कहने का हक अब तुम खो चुके हो, संतोष. अब मैं शादीशुदा हूं. तुम्हारे लिए एक पराई स्त्री.’’
पता नहीं नियति को क्या मंजूर था, जो संतोष और दीपिका को एक बार फिर एकदूसरे के समक्ष खड़ा कर दिया था. अपनीअपनी जिंदगी में दोनों आगे बढ़ने को प्रयासरत थे, परंतु इस अप्रत्याशित घटना से दोनों को एक बारगी फिर धक्का लगा था.
‘‘मुझे तुम संगीत सिखाने आने दो दीपू. नहींनहीं दीपिका. फीस के पैसों से मेरी मदद हो जाएगी. उदय के सामने मैं कोई बात नहीं आने दूंगा, यह मेरा वादा रहा.’’
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बरसात की काई (भाग-2)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.