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Adultery बरसात की काई: क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष?
#2
प्रेमी संतोष से बिछुड़ने का गम दीपिका शादी के बाद भी नहीं भुला पाई थी. मगर वही प्रेमी जब उस की जिंदगी में दोबारा आया तो क्या वह उसे अपना पाई.
 
दफ्तर से लौटने के बाद शाम ढले उदय बरामदे में बैठा शाम की चाय की  चुसकियां ले रहा था. दीपिका वहीं बैठी स्वैटर बुन रही थी.
 
 
 
शाम ढलते देख कर दीपिका ने बिस्तर समेटना शुरू किया. उस के हलके भूरे रेशम से बाल बारबार उस के गुलाबी गालों पर गिर रहे थे और वह उन्हें बारबार अपनी कोमल उंगलियों से कानों के पीछे धकेल रही थी.
 
‘‘अब उठो भीयह चादर समेटने दो,’’ कहते हुए दीपिका ने संतोष को हिलाया, जो अब भी बिस्तर पर लेटा था.
 
‘‘रहने दो न इन जुल्फों को अपने सुंदर मुखड़े परजैसे चांद को बादल ढकने की कोशिश कर रहे हों,’’ संतोष ने दीपिका को अपनी जुल्फें पीछे करते देख कहा.
 
‘‘शाम होने को आई है, जनाब. अब भी इन बादलों को घर नहीं भेजा तो आज तुम्हारे इस चांद को घरनिकाला मिल जाएगा, समझे?’’
 
‘‘तुम्हें किस बात का डर है? न घर की कमी है और न घर ले जाने वाले कीजिस दिन तुम हां कह दो उसी दिन मैं…’’
 
‘‘बसबस, हां कर तो चुकी हूंअब जाओ भी. उदय घर आते ही होंगेतब तक मैं सब ठीकठाक कर लूं,’’ दीपिका फटाफट हाथ चलाते घर व्यवस्थित करते हुए बोली, ‘‘कल कितने बजे आएंगे, गुरुदेव?’’
 
‘‘वही, करीब 12 बजे,’’ कहते ही संतोष कुछ सुस्त हो गया, ‘‘अब यों चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता मानो हम प्यार नहीं कोई गुनाह कर रहे हों.’’
 
‘‘गुनाह तो कर ही रहे हैं हम, संतोष.
 
यदि हमारी शादी हो गई होती तब अलग बात थी पर अब मैं उदय की पत्नी हूंतुम मेरे घर में मेरे संगीत अध्यापक की हैसियत से आते हो. इस स्थिति में हमारा यह रिश्ता गुनाह ही तो हुआ न?’’
 
‘‘ऐसा क्यों भला? पहले हम दोनों ने प्यार कियाउदय तुम्हारी जिंदगी में बाद में आया. अगर तुम्हारे और मेरे घर वाले जातबिरादरी के चक्कर में न पड़ कर हमारे प्यार के लिए राजी हो गए होते और आननफानन में तुम्हारी शादी दूसरे शहर में न करवा दी होती तो…’’
 
‘‘छोड़ो पुरानी बातों को. यह क्या कम है कि दूसरे शहर में भी हम एकदूसरे से टकरा गए और एक बार फिर मिल गए. शायद प्रकृति को भी मेरे मन में तुम्हारे लिए इतना प्यार देख मुझ पर दया आ गई और उस ने हमारे समीप्य का रास्ता सुझा दिया.’’
 
दफ्तर से लौटने के बाद शाम ढले उदय बरामदे में बैठा शाम की चाय की  चुसकियां ले रहा था. दीपिका वहीं बैठी स्वैटर बुन रही थी. संतोष को दीपिका के हाथ से बनी चीजें बहुत भाती थीं. इसीलिए वह संतोष के लिए कभी स्वैटर तो कभी दस्ताने बुनती रहती. उदय के पूछने पर कह देती कि अपनी किसी सहेली या छोटे भाई के लिए बना रही है. फिर बनाने के बाद खुशी से अपने पहले प्यार संतोष को उपहारस्वरूप दे आती.
 
दीपिका और उदय की शादी को 2 वर्ष बीत चुके थे. इन 2 वर्षों की शुरुआत में दीपिका बेहद उदासीन रही. उदय सोचता कि नया शहर, नया साथी और नई जिंदगी के चलते वह अपने पुराने जीवन को याद कर उदास रहती है. किंतु असली वजह थी उस का प्यार संतोष का उस से बिछड़ जाना. दीपिका बारबार उस शाम को कोसती जब वह और संतोष मूवी देख कर बांहों में बांहें डाले लौट रहे थे कि बड़े भाई साहब से उन का अचानक सामना हो गया. बिजली ही टूट पड़ी थी. वहीं बाजार से घसीटते हुए उसे घर लाया गया था. अब उस का कमरा ही उस का संसार बना दिया गया था. न कोई मिलने आएगा, न वह किसी से मिलने जा सकेगी. ढाई दिन भूख हड़ताल भी की दीपिका ने, किंतु कोई न पिघला. पेट की ज्वाला ने उसे ही पिघला दिया. संतोष से मिलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. घर वाले पुराने विचारों के थे और ऊपर से संतोष विजातीय भी था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बरसात की काई: क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष? - by neerathemall - 20-07-2022, 05:21 PM



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