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Romance अमर प्रेम (अमर -सकीना)
#7
अमर ने माथा ठोककर कहा-हां माता, मुझे बिलकुल खयाल न रहा।

'तो अब खयाल रखो, बेटा मेरे और कौन बैठा हुआ है जिससे कहूं- इधर सकीना ने कई रूमाल बनाए हैं। कई टोपियों के पल्ले भी काढ़े हैं पर जब चीज बिकती नहीं, तो दिल नहीं बढ़ता।'

'मुझे वह सब चीजें दे दो। मैं बेचवा दूंगा।'

'तुम्हें तकलीफ न होगी?'

'कोई तकलीफ नहीं। भला इसमें क्या तकलीफ?'

अमरकान्त को बुढ़िया घर में न ले गई। इधर उसकी दशा और भी हीन हो गई थी। रोटियों के भी लाले थे। घर की एक-एक अंगुल जमीन पर उसकी दरिद्रता अंकित हो रही थी। उस घर में अमर को क्या ले जाती- बुढ़ापा निस्संकोच होने पर भी कुछ परदा रखना ही चाहता है। यह उसे इक्के ही पर छोड़कर अंदर गई, और थोड़ी देर में ताबीज और रूमालों की बकची लेकर आ पहुंची।

'ताबीज उसके गले में बंधा देना। फिर कल मुझसे हाल कहना।'





4

अमर ने पठानिन के रूमाल दिखाने शुरू किए।

'एक बुढ़िया रख गई है। गरीब औरत है। जी चाहे दो-चार ले लो।'

सलीम ने रूमालों को देखकर कहा-चीज तो अच्छी है यार, लाओ एक दर्जन लेता जाऊं। किसने बनाए हैं-

'उसी बुढ़िया की एक पोती है।'

'अच्छा, वही तो नहीं, जो एक बार कचहरी में पगली के मुकदमे में गई थी- माशूक तो यार तुमने अच्छा छांटा।'

अमरकान्त ने अपनी सफाई दी-कसम ले लो, जो मैंने उसकी तरफ देखा भी हो।

'मुझे कसम लेने की जरूरत नहीं तुम्हें वह मुबारक हो, मैं तुम्हारा रकीब नहीं बनना चाहता। दर्जन रूमाल कितने के हैं-

'जो मुनासिब समझो दे दो।'

'इसकी कीमत बनाने वाले के ऊपर मुनहसर है। अगर उस हसीना ने बनाए हैं, तो फी रूमाल पांच रुपये। बुढ़िया या किसी और ने बनाए हैं, तो फी रूमाल चार आने।'

'तुम मजाक करते हो। तुम्हें लेना मंजूर नहीं।'

'पहले यह बताओ किसने बनाए हैं?'
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: अमर प्रेम (अमर -सकीना) - by neerathemall - 20-07-2022, 01:35 PM



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