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समलैंगिक डॉ राखी का खौफनाक कदम
#7
यही सब सोचतेसोचते उस ने मोबाइल लिया और एक वीडियो देखने लगी. मोबाइल देखते हुए कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगले रोज को राखी की नींद काफी देर से खुली थी. घर में अकेली रहती थी. अपनी मरजी की मालकिन थी. उस के 2 भाई सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी करते थे.
‘अरे बाप रे! साढ़े 8 बज गए!! मोबाइल का अलार्म क्यों नहीं बजा.’ भुनभुनाती हुई रेखा अपने कपड़े दुरुस्त करने लगी, ‘अरे, मेरे कपड़े किस ने खोले? ब्रा कहां चली गई? यहां कौन आया था रात को? कोई तो नहीं, दरवाजे की कुंडी तो भीतर से लगी है.’ खुद से बड़बड़ाती हुई बैड के किनारे झांक कर देखा और
नीचे जमीन पर पड़ी ब्रा को उठा कर
पहनने लगी.
उस की नजर सामने के शीशे पर पड़ गई और अपने बदन को देख कर शरमा कर खुद से ही बोली, ‘इतनी सुंदर तो देह है मेरी… कंचन कैसे कहती है कि वह सैक्सी नहीं दिखती है. आज मैं बताती हूं उसे कि सैक्सी क्या होती है?’
इसी के साथ उस ने कंचन को फोन मिला दिया. कई बार घंटी बजने के बाद भी उस ने फोन नहीं उठाया.
‘‘लगता है पति को काम पर भेजने की तैयारी कर रही होगी,’’ बोलती हुई राखी ने फोन काट दिया और उसे चार्ज करने को लगा दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: समलैंगिक डॉ राखी का खौफनाक कदम - by neerathemall - 20-07-2022, 11:48 AM



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