20-07-2022, 10:37 AM
गांव से यहां तक. फिर 1 ही साल में अपने मांबाबूजी को भी शहर ले आई अपने साथ रखने के लिए गोया जता रही हो वह कि आज के दौर में वह किसी बेटे से कम नहीं उन के लिए. फिर उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है. मुकाम हासिल करना है. प्यार करने तो नहीं आई इस कोलकाता जैसे शहर में. तो फिर निखिल उस का रहनुमां कैसे बन बैठा? क्यों वह चकोर की तरह बिहेव करती है? क्यों तकती है उस का रास्ता? इन्हीं सवालों के जवाब खोजने हैं आज उसे यहां. अब उसे फैसला लेना होगा. खुद को मजबूत बनाने ही तो यहां आई है.
प्राची जानती है कि निखिल को उस की केयर है. वह परेशान होगा. फिर भी उसे बता कर नहीं आई कि वह कहां जा रही है. उस ने अपना मोबाइल भी स्विचऔफ कर दिया ताकि कोई उसे डिस्टर्ब न कर सके. उसे फैसला लेना है जीवन का, प्यार का, कैरियर का.
अब रात ढल रही है. एकांत कमरे में प्राची सोने की कोशिश में है. पूरे चांद को और समुद्र की लहरों को देख उन का उछाल बारबार आंखों के सामने आ रहा है प्राची के… काश वह निखिल के साथ यहां आ पाती. उस के साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होता. यह सोच कर उसे रोमांच हो आया.
प्राची को याद है, वह रात को 10 बजे अपनी डैस्क का काम खत्म कर के घर आती है. उस के ऐडिटोरियल हैड उस के कार्यव्यवहार से बहुत संतुष्ट हैं. रात अपनी न्यूज स्टोरी की आखिरी कौपी उन को दे कर वह कैब से घर चली जाती है. जहां रोज की तरह छत वाले कमरे का अकेलापन उस का इंतजार कर रहा होता है. मां पहले अकसर उस के लिए गरम खाना बनाती थी उस के आने के बाद, मगर बाद में उस ने जिद कर के मां को मना कर दिया. इस के 2 कारण थे- एक तो मां की बढ़ती उम्र की वजह से उन के घुटनों का दर्द और दूसरी वह खुद इतनी थकी होती कि खाने की हिम्मत नहीं होती. चाहती, बस कुछ ऐसा मिल जाए जिसे सीधे गटक लिया जाए हलक में दलिए की तरह. सो अब उसे खाना भी वहीं कमरे में रखा मिल जाता है जिसे नहाने के बाद प्राची जैसेतैसे निगलती है और फिर कुछ देर टीवी के बाद सीधे बिस्तर में.
वह कभी रात को किसी से भी फोन पर बात नहीं करती. मगर आज क्यों बारबार उसे लग रहा है कि बस एक बार निखिल की भारी आवाज सुन ले. बस एक बार फोन कर उस पार से आती उस की सांसें महसूस करे बस एक बार. इसी असमंजस में उस ने हाथ बढ़ा कर पर्स में पड़ा अपना मोबाइल निकालने का उपक्रम किया. बस इतने में ही उस का दिल जोरों से धड़क उठा. जैसेतैसे उस ने उसे औन किया. इस के साथ ही उस के मन में हजारों खयाल एकसाथ उमड़ पड़े.
निखिल का उस के साथ ऐक्स्ट्रा अटैंटिव बरताव करना, उस की बातों में प्राची ने हमेशा एक सम्मान मिश्रित प्रेम अनुभव किया. प्राची ने कभी कोई हलकी बात उस के मुंह से नहीं सुनी किसी के लिए भी.
प्राची जानती है कि निखिल को उस की केयर है. वह परेशान होगा. फिर भी उसे बता कर नहीं आई कि वह कहां जा रही है. उस ने अपना मोबाइल भी स्विचऔफ कर दिया ताकि कोई उसे डिस्टर्ब न कर सके. उसे फैसला लेना है जीवन का, प्यार का, कैरियर का.
अब रात ढल रही है. एकांत कमरे में प्राची सोने की कोशिश में है. पूरे चांद को और समुद्र की लहरों को देख उन का उछाल बारबार आंखों के सामने आ रहा है प्राची के… काश वह निखिल के साथ यहां आ पाती. उस के साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होता. यह सोच कर उसे रोमांच हो आया.
प्राची को याद है, वह रात को 10 बजे अपनी डैस्क का काम खत्म कर के घर आती है. उस के ऐडिटोरियल हैड उस के कार्यव्यवहार से बहुत संतुष्ट हैं. रात अपनी न्यूज स्टोरी की आखिरी कौपी उन को दे कर वह कैब से घर चली जाती है. जहां रोज की तरह छत वाले कमरे का अकेलापन उस का इंतजार कर रहा होता है. मां पहले अकसर उस के लिए गरम खाना बनाती थी उस के आने के बाद, मगर बाद में उस ने जिद कर के मां को मना कर दिया. इस के 2 कारण थे- एक तो मां की बढ़ती उम्र की वजह से उन के घुटनों का दर्द और दूसरी वह खुद इतनी थकी होती कि खाने की हिम्मत नहीं होती. चाहती, बस कुछ ऐसा मिल जाए जिसे सीधे गटक लिया जाए हलक में दलिए की तरह. सो अब उसे खाना भी वहीं कमरे में रखा मिल जाता है जिसे नहाने के बाद प्राची जैसेतैसे निगलती है और फिर कुछ देर टीवी के बाद सीधे बिस्तर में.
वह कभी रात को किसी से भी फोन पर बात नहीं करती. मगर आज क्यों बारबार उसे लग रहा है कि बस एक बार निखिल की भारी आवाज सुन ले. बस एक बार फोन कर उस पार से आती उस की सांसें महसूस करे बस एक बार. इसी असमंजस में उस ने हाथ बढ़ा कर पर्स में पड़ा अपना मोबाइल निकालने का उपक्रम किया. बस इतने में ही उस का दिल जोरों से धड़क उठा. जैसेतैसे उस ने उसे औन किया. इस के साथ ही उस के मन में हजारों खयाल एकसाथ उमड़ पड़े.
निखिल का उस के साथ ऐक्स्ट्रा अटैंटिव बरताव करना, उस की बातों में प्राची ने हमेशा एक सम्मान मिश्रित प्रेम अनुभव किया. प्राची ने कभी कोई हलकी बात उस के मुंह से नहीं सुनी किसी के लिए भी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
